“दारुल-उलूम देवबंद ने नेल पॉलिश का उपयोग करने वाली मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ फतवा जारी किया है कि यह गैर इस्लामी और अवैध है।” 5 नवंबर की सुबह ANI के इस ट्वीट ने पूरे दिन समाचार कक्षों और सोशल मीडिया को इस नवीनतम फतवा का उपहास करने में व्यस्त रखा। क्या हैं ये फतवे? कैसे वे अक्सर आते हैं और मीडिया को सनसनीखेज कहानी दे जाते हैं? ऑल्ट न्यूज़ ने इसकी गहराई से पड़ताल करना तय किया तो, समाचार कैसे बनाया जाता है, इस बारे में चौंकाने वाली कहानी सामने आई। आइए आपको ले चलते हैं फतवों की राह पर।
Saharanpur: “Darul-Uloom Deoband has issued fatwa against Muslim women using nail polish because it is un-Islamic and illegal . Rather women should use mehendi on their nails,”Mufti Ishrar Gaura, Darul-Uloom Deoband (4.11) pic.twitter.com/u6TnE8ADy7
— ANI UP (@ANINewsUP) November 5, 2018
भ्रामक उद्धरण
ANI के ट्वीट के तुरंत बाद, सोशल मीडिया यूजर्स ने यह कहते हुए, इसे गलत बताया, कि तस्वीर वाला आदमी न तो मुफ्ती है और न ही दारुल-उलूम देवबन्द से जुड़ा है। (मुफ़्ती : इस्लाम से संबंधित विषयों पर फतवा/राय जारी करने वाला अधिकृत धार्मिक विद्वान)।
Dear brother he is not even a mufti neither he’s connected to darul uloom deoband he’s the younger brother of present imam and son of previous imam of jama masjid Saharanpur.
I just spoke to him and he’s saying that he just quoted the fatwa of darul uloom dated back in early 90s
— AYAAN (Mohd. Salman) (@4u_ayaan) November 5, 2018
ऑल्ट न्यूज़ ने इसकी आगे जांच करने का फैसला किया और दारुल-उलूम देवबंद से संपर्क किया। उन्होंने फतवा के बारे में खबरों पर टिप्पणी करने से इंकार कर दिया, लेकिन हमें पुष्टि की कि ANI के ट्वीट में दिखलाया गया व्यक्ति उनसे जुड़ा हुआ नहीं है।
इसके बाद ऑल्ट न्यूज़ ने, ANI द्वारा मुफ्ती के रूप में उद्धृत व्यक्ति इशर गौरा से संपर्क किया। यह पता चला कि उनका नाम इशर नहीं, इशाक गौरा था और वह न तो मुफ्ती थे और न ही दारुल-उलूम से जुड़े थे। उन्होंने हमें बताया कि ANI ने इस फतवा पर ईनाडु/ईटीवी उर्दू की कहानी पर उनकी टिप्पणियों के लिए उनसे संपर्क किया था। उन्होंने यह भी दावा किया कि उन्हें ANI द्वारा गलत तरीके से उद्धृत किया गया है।
इसके बाद ऑल्ट न्यूज़ ने इस अतिरिक्त जानकारी के साथ एएनआई के संपादक से संपर्क किया तो ANI ने तुरंत एक अद्यतन जारी करके कहा कि दारुल-उलूम देवबंद द्वारा जारी फतवा पर बात कर रहे कारी सैयद इशाक गौरा, दारुल-उलूम देवबंद का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।
#UPDATE: Qari Syed Ishaq Gaura who was speaking on the fatwa issued by Darul-Uloom Deoband, does not represent Darul-Uloom Deoband but is the National President of Jamiat Dawatul Muslimeen and an Imam in Saharanpur.
— ANI UP (@ANINewsUP) November 6, 2018
फतवा में नहीं कहा कि नाखून पॉलिश गैर इस्लामी है
ANI के ट्वीट में व्यक्ति की पहचान को सही कर लिया गया, लेकिन अभी भी यह सवाल हमारे सामने है कि दारुल-उलूम द्वारा जारी फतवा कहां है? क्या किसी ने इसे देखा है? क्या वास्तव में यह कहता है कि नाखून पॉलिश का उपयोग गैर इस्लामी और अवैध है, जैसा कि ANI ट्वीट में दावा किया गया?
दारुल-उलूम की एक ऑनलाइन सेवा है जहां कोई भी प्रश्न पूछ सकता है और उसके बारे में मुफ्ती से फतवा या राय ले सकता है। यह विशेष फतवा ऑनलाइन नहीं मिला और इससे हमें इस संभावना का संकेत हुआ कि या तो यह अस्तित्व में ही नहीं था, या किसी व्यक्ति द्वारा लिखित में पूछा गया होगा।
ऑल्ट न्यूज़ ने फतवा की प्रति मांगने के लिए ANI से फिर संपर्क किया, तब ANI ने उसे अपनी वेबसाइट पर ऑनलाइन अपलोड किया। नए ट्वीट में मूल ट्वीट से अलग शब्द थे। “नाखून पॉलिश लगाए हुई मुस्लिम महिलाओं” के खिलाफ फतवा अब “नाखून पॉलिश लगाए हुए नमाज़ या प्रार्थना करने वाले समुदाय की महिलाएं और पुरुष” के खिलाफ फतवा में बदल गया था।
Darul Uloom Deoband, one of the most respected Muslim seminaries in India, has issued a fatwa or a decree, against women and men of the community proferring Namaz or prayer, wearing nail polish
Read @ANI Story | https://t.co/iTxtDFrE4s pic.twitter.com/zYYQwWJGWl
— ANI Digital (@ani_digital) November 6, 2018
फतवा की आधिकारिक परिभाषा गैर-बाध्यकारी है, फिर भी किसी व्यक्ति या कानूनी अदालत द्वारा पूछे गए प्रश्न के जवाब में यह मुफ्ती (कानूनी विद्वान) द्वारा दी गई आधिकारिक कानूनी राय है। इस खास मामले में, सवाल उठाया गया था, “क्या नाखून पॉलिश लगाना अनुमति योग्य है? कई महिलाएं, जब वे पार्टियों और शादियों में जाती हैं तो नाखून पॉलिश लगाती हैं। बहुत सी महिलाएं नाखून पॉलिश लगाती और नाखून बढ़ाती हैं। पुरुषों और महिलाओं द्वारा नाखून बढ़ाना और नाखून पॉलिश लगाना क्या अनुमति योग्य है?”
इस बारे में राय मांगने वाले व्यक्ति मुजफ्फरनगर के मोहम्मद तुफेल हैं। उन्हें दी गई प्रतिक्रिया थी — “हां, वे नाखून पॉलिश लगा सकती हैं बशर्ते इसमें कोई अशुद्ध सामग्री न हो। इसके अलावा, चूंकि नाखून पॉलिश लगाने का कार्य एक परत बनाता है, जब तक इसे साफ नहीं किया जाता है, पानी नाखून तक नहीं पहुंचता है। जब तक इसे हटाया नहीं जाता है, न तो वजू (नमाज़ से पहले शुद्धि) और न ही ग़ुस्ल (शरीर की सफाई की पद्धति) को पूरा किया जा सकता है। यही कारण है कि वजू या ग़ुस्ल से पहले इस परत को हटाना आवश्यक है। पुरुष और महिलाएं 40 दिनों तक नाखून बढ़ा सकती हैं और उसके बाद आपको नाखूनों को काटना पड़ता है .. “ -अनुवादित। यह फतवा नाखून पॉलिश को गैर-इस्लामी या अवैध नहीं कहता है, जैसा कि ANI के ट्वीट में दावा किया गया है।
ANI की ऑनलाइन रिपोर्ट का शीर्षक “नया फतवा : नेल पॉलिश न लगाएं” से “नमाज के दौरान नाखून पॉलिश पहनने के खिलाफ फतवा” तक संशोधित किया गया। ANI के संशोधित लेख में कारी सैयद इशाक गौरा के नाम और दारुल-उलूम से उनके संबंध में संशोधन के साथ उनकी टिप्पणियों को भी लिया गया।
बनाई हुई कहानी
फतवा मौजूद होने की पुष्टि करने के बाद हमने इस महत्वपूर्ण सवाल का जवाब तलाशा – ईटीवी को वह फतवा कैसे मिला जो सार्वजनिक डोमेन में नहीं था? फतवा हस्तलिखित है और वेबसाइट पर अपलोड नहीं किया गया है। अगर यह किसी व्यक्ति द्वारा मांगा गया स्पष्टीकरण था, तो मीडिया को यह कैसे मिला? यहां आकर कहानी अस्पष्ट हो जाती है।
ऑल्ट न्यूज़ ने उस व्यक्ति से संपर्क करना तय किया जिसने इस मुद्दे पर दारुल-उलूम की राय मांगी थी। फतवा में उनका नाम मोहम्मद तुफेल वर्णित था और उनका फोन नंबर भी दिया गया था। हालांकि, नंबर लुक-अप सेवा ट्रूकॉलर पर तस्लीम कुरेशी नाम दिखलाया।
जब ऑल्ट न्यूज़ ने यह नंबर लगाया, तो इसका जवाब तस्लीम कुरेशी नामक व्यक्ति ने दिया। वार्तालाप के दौरान, हमने पाया कि कुरेशी ईनाडु/ईटीवी उर्दू से जुड़े हैं और उन्होंने अपने एक रिश्तेदार के नाम से फतवा के लिए पूछा था ताकि वह उस पर एक कहानी कर सकें। चूंकि वह एक पत्रकार के रूप में दारुल-उलूम से संपर्क नहीं कर सकते, इसलिए एक आम मुसलमान का अभिनय करते हुए, एक रिश्तेदार के नाम से, किसी मामले पर उनकी सलाह के लिए, वह उनसे प्रश्न करते हैं। आप उनकी दूसरी फतवा कहानियों के लिंक उनके यूट्यूब चैनल और इंस्टाग्राम अकाउंट पर देख सकते हैं — ‘क्या महिलाएं मेहंदी लगाने के लिए बाजार जा सकती हैं‘ पर फतवा से लेकर ‘क्या महिलाएं वैक्स करवा सकती हैं‘ पर फतवा तक। उनके वीडियो में इन फतवों के लिए जिस व्यक्ति से राय मांगी जा रही है, वे भी इनके इंस्टाग्राम अकाउंट की तस्वीरों में दिखाई देते हैं।
जब हमने कुरेशी से उनके कार्यों के बारे में पूछताछ की तो कुरेशी ने ऑल्ट न्यूज़ से कहा — “मैं एक पत्रकार हूं।” उन्होंने सवाल किया, “क्या कोई नियम मुझे फतवा मांगने से मना कर रहा है? क्या मैं मुसलमान नहीं हूं?” पत्रकारिता की नैतिकता का उनमें कोई संकेत तक न था। उन्होंने जोर देकर कहा कि ANI ने उनकी कहानी को गलत तरीके से रिपोर्ट किया था।
एक फतवा हमेशा एक बड़ी कहानी बनाता है और राष्ट्र का ध्यान धर्म पर केंद्रित करने का अवसर प्रदान करता है। सहारनपुर का एक पत्रकार इसे समझ जाता है और दूसरों के नाम से फतवा के लिए अनुरोध करता है, जिससे वह एक कहानी बना सकता है। उसकी कहानी समाचार एजेंसियों द्वारा उत्सुकता से उठाई जाती है और पूरे मीडिया में एक सनसनीखेज शीर्षक के साथ फैला दी जाती है — “ब्रेकिंग : नेल पॉलिश लगाने वाली मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ नया फतवा।” इस कहानी की रिपोर्ट करने वाले सभी मीडिया संस्थानों में से कोई भी संपादक आश्चर्य नहीं करता कि कैसे एक व्यक्ति और एक शिक्षालय के बीच हस्तलिखित पत्र के रूप में हुआ व्यक्तिगत संवाद सार्वजनिक जानकारी बन गया और इसके पीछे कौन था!
इस तरह, इस फतवा के बारे में कहानी बनाई गई है। यह पहली ऐसी कहानी नहीं है, न ही यह आखिरी होगी। जब तक ऐसी कहानियां हेडलाइंस बनाती रहेंगी और उनके लिए लोग उत्सुक होंगे, तब तक ये बढ़ते रहेंगे।
सत्ता को आईना दिखाने वाली पत्रकारिता का कॉरपोरेट और राजनीति, दोनों के नियंत्रण से मुक्त होना बुनियादी ज़रूरत है. और ये तभी संभव है जब जनता ऐसी पत्रकारिता का हर मोड़ पर साथ दे. फ़ेक न्यूज़ और ग़लत जानकारियों के खिलाफ़ इस लड़ाई में हमारी मदद करें. नीचे दिए गए बटन पर क्लिक कर ऑल्ट न्यूज़ को डोनेट करें.
बैंक ट्रांसफ़र / चेक / DD के माध्यम से डोनेट करने सम्बंधित जानकारी के लिए यहां क्लिक करें.