21 सितंबर को, फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के एक आधिकारिक बयान से राजनीतिक तूफान आ गया। ओलांद ने कहा कि भारत सरकार ने ही अनिल अंबानी की फर्म का वर्तमान राफेल समझौते के तहत ‘ऑफसेट-कॉन्ट्रैक्ट’ पार्टनर के रूप में नाम सुझाया था, और फ्रांस की सरकार के पास इस मामले में दूसरा विकल्प नहीं था। इसके बाद से केंद्र सरकार इस बहुत बड़े रक्षा सौदे में भारी भ्रष्टाचार और पक्षपात के आरोपों का मुकाबला कर रही है। आरोप है कि पिछली सरकार द्वारा अंतिम रूप दिए गए समझौते के तहत 126 विमानों में से 108 को बनाने के लिए सरकार के स्वामित्व वाली हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) को किनारे करके अनिल अंबानी के स्वामित्व वाली रिलायंस डिफेंस लिमिटेड का पक्ष लिया गया।
There is evidence available that a proper MoU existed between Dassault and Reliance industry as early as on Feb 13, 2013, that means 1 year, 4 months before we came to power : Shri @rsprasad #RahulKaPuraKhandanChor pic.twitter.com/lAqOatziEP
— BJP (@BJP4India) September 22, 2018
22 सितंबर को, बीजेपी के आधिकारिक हैंडल से ट्वीट किया गया कि इस बात का सुबूत है कि फरवरी 2013 से जब यूपीए सरकार सत्ता में थी, राफेल विमान के निर्माता दसॉल्ट एविएशन और रिलायंस के बीच समझौता ज्ञापन (एमओयू) अस्तित्व में था।
इसे ही केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने दोहराया। उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया के 13 फरवरी, 2012 के एक लेख का लिंक ट्वीट किया, जिसमें बताया गया था कि दसॉल्ट एविएशन और रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) के बीच एक रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। दिल्ली भाजपा के प्रवक्ता तजिंदर बग्गा ने इस समझौते के बारे में समाचार ख़बरों का एक कोलाज ट्वीट किया।
As per this Times of India news dated 13 February 2012, defence pact between Dassault and Reliance was signed in 2012. #RahulKaPuraKhandanChorhttps://t.co/wcB753mY8S
— RSPrasad Office (@OfficeOfRSP) September 22, 2018
राफेल समझौते में रिलायंस इंडस्ट्रीज का शामिल होना पूर्ववर्ती सरकार की विरासत है- भाजपा के इस दावे के पीछे की कहानी क्या है?
मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल)
रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल), जिसने 2012 में रक्षा समझौता किया था, उसके प्रमुख मुकेश अंबानी हैं। उनके भाई अनिल अंबानी रिलायंस अनिल धीरूभाई अंबानी समूह के प्रमुख हैं। रिलायंस इंडस्ट्रीज का विघटन उन भाइयों के बीच सार्वजनिक विवाद के बाद 2005 में हुआ था। आखिरकार इनकी मां कोकिलाबेन ने हस्तक्षेप किया और सुखद तरीके से विभाजन को अंतिम रूप देने में मदद की।
वर्तमान समझौता दसॉल्ट एविएशन और रिलायंस डिफेंस लिमिटेड के बीच है। रिलायंस डिफेंस का निगमन 28 मार्च, 2015 को हुआ था- अप्रैल 2015 में मौजूदा समझौते को रद्द करके उड़ान की स्थिति वाले 36 राफेल जेट की खरीद का समझौता होने के कुछ ही दिन पहले। कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध रिलायंस डिफेंस लिमिटेड का विवरण नीचे दिया गया है। जैसा कि देखा जा सकता है, कंपनी मुंबई में पंजीकृत थी और 28/03/2015 को निगमित की गई थी।
रिलायंस डिफेंस लिमिटेड अनिल धीरूभाई अंबानी समूह (एडीएजी) की इकाई है, न कि रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड की, (आरआईएल) जिसका स्वामित्व मुकेश अंबानी के पास है। अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार बीजेपी का दावा दसॉल्ट एविएशन और मुकेश अंबानी के स्वामित्व वाली आरआईएल के बीच समझौते के संबंध में है। विडंबना यह है कि तजिंदर बग्गा ने ऐसा लगता है कि इसपर ध्यान नहीं दिया, और उन्होंने उस लेख का स्क्रीनशॉट ट्वीट कर दिया जिसमें मुकेश अंबानी की तस्वीर थी।
गली गली में शोर है, सोनिया गांधी चोर है pic.twitter.com/fNCwb1TxjO
— Tajinder Pal Singh Bagga (@TajinderBagga) September 21, 2018
दसॉल्ट-आरआईएल रक्षा संधि
2012 में, दसॉल्ट एविएशन और रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने रक्षा क्षेत्र में साझेदारी के लिए समझौता किया था। यह समझौता विस्तृत फील्ड परीक्षणों के बाद मध्यम बहु-भूमिका युद्धक विमान (MMRCA) के लिए राफेल को चुने जाने के तुरंत बाद हुआ था।
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट है कि “दसॉल्ट ने मुकेश अंबानी की अगुवाई वाली रिलायंस के साथ वार्ता शुरू की, जो एयरोस्पेस क्षेत्र में प्रवेश करने पर विचार कर रहा था। एक नई कंपनी, रिलायंस एयरोस्पेस टेक्नोलॉजीज लिमिटेड (आरएटीएल) को 4 सितंबर, 2008 को निगमित किया गया था। मई 2011 में, वायुसेना द्वारा राफेल और यूरोफाइटर जेट विमानों का चुनाव करने के कुछ हफ्तों बाद, आरएटीएल ने साझेदारी के रोडमैप को आगे बढाने के लिए जिसमें एचएएल की भूमिका पर चर्चा शामिल थी, प्रमुख अधिकारियों को भर्ती करना शुरू किया।”
लेख में आगे कहा गया है कि समझौता पूरा नहीं हो सका क्योंकि “रणनीतिक पुनर्विचार के बाद रक्षा और हवाई के क्षेत्र से रिलायंस ने 2014 के बाद अपना कदम वापस ले लिया था।”
भाजपा का दावा कि रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड पिछली सरकार द्वारा हस्ताक्षरित समझौते में पहले से ही शामिल थी, सरासर झूठ है। द टाइम्स ऑफ इंडिया का लेख कहता है कि भाजपा ने जिस रक्षा समझौते के बारे में बताया है, वह दसॉल्ट एविएशन और मुकेश अंबानी के स्वामित्व वाले आरआईएल के बीच हस्ताक्षर किए गए थे, जबकि मौजूदा समझौते में रिलायंस डिफेंस लिमिटेड को ऑफसेट अनुबंध से सम्मानित किया गया है जिसका स्वामित्व उनके भाई अनिल अंबानी के पास है। विवादों में फंसे राफेल सौदे को लेकर अपना बचाव करती सरकार खुद घिर चुकी है और उनका यह प्रयास शर्मनाक है।
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