महाराष्ट्र में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव की तारीख का एलान हो गया है. 20 नवंबर को एक ही चरण में चुनाव होंगे और मतगणना 23 नवंबर को होगी. लेकिन राजनीतिक पार्टियों द्वारा चुनाव की तैयारियां महीनों पहले से शुरू हो चुकी थी. चुनावी माहौल में प्रचार-प्रसार, आक्रामक बयानबाज़ी के साथ-साथ गलत सूचना और दुष्प्रचार भी चरम पर है. इन तंत्रों के बीच, ‘महा बिघाडी – Maha Bighadi’ नामक फ़ेसबुक पेज विवादास्पद राजनीतिक विज्ञापनों का एक महत्वपूर्ण स्रोत बनकर उभरा है. भाजपा के इस प्रॉक्सी पेज द्वारा मुख्यतः भारतीय जनता पार्टी का प्रचार किया जाता है. साथ ही ‘महाविकास अगाढ़ी’ गठबंधन की पार्टियों को टारगेट किया जाता है जिसमें इंडियन नेशनल कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट), राष्ट्रवादी कांग्रेस (शरद पवार गुट) शामिल हैं. इस पेज का नाम भी ‘महाविकास अगाढ़ी’ का ही विकृत रूप ‘महा बिघाडी’ है. ऑल्ट न्यूज़ ने पहले भी ऐसे प्रॉक्सी पेजों का पर्दाफाश किया है जिसमें पेजों द्वारा पहचान छुपाकर भारतीय जनता पार्टी के प्रॉपगेंडा को चलाया जा रहा था और प्रतिद्वंदी राजनीतिक पार्टियों और नेताओं को टारगेट किया जा रहा था.

‘महा बिघाडी – Maha Bighadi’ द्वारा चलाए जा रहे विज्ञापन बेहद आक्रामक लहजे में हैं और भ्रामक सामग्री से भरपूर हैं. इन विज्ञापनों के ज़रिए प्रतिद्वंद्वी दलों के नेताओं को निशाना बनाकर उनकी छवि धूमिल करने की कोशिश की गई है. उदाहरण के लिए, कई विज्ञापनों में उद्धव ठाकरे को ‘मुस्लिम तुष्टीकरण करने वाला’ और राहुल गांधी को ‘हिंदू विरोधी’ बताया गया है. इस तरह के विज्ञापन और नेताओं की छवि धूमिल करने की कोशिश केवल राजनीतिक प्रहार ही नहीं बल्कि इनके जरिए वोटर्स को सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकृत करने की रणनीति भी है.

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शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे को प्रमुखता से किया जा रहा टारगेट

उद्धव ठाकरे को हिन्दू विरोधी और मुस्लिम हितैसी बताने के लिए एक विज्ञापन में उन्हें हिन्दू पर्व गणेशोत्सव से परहेज करने वाला और मुस्लिम पर्व ईद से प्यार करने वाला दर्शाया गया है. वहीं दूसरे विज्ञापन में उनके द्वारा मुसलमानों को भी उचित प्रतिनिधित्व देने वाले बयान को चलाते हुए कहा गया है कि उनके कार्यकर्ता हिन्दू हैं लेकिन वे टिकट सिर्फ मुसलमानों को दे रहे हैं. यह विज्ञापन ना सिर्फ विभाजनकारी है, बल्कि इसके जरिए नेता की छवि धूमिल करने का प्रयास किया गया है.

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कई विज्ञापनों में उद्धव ठाकरे की तस्वीर को एडिट कर उसके ऊपर जालीदार टोपी लगाई गई है और टेक्स्ट में उन्हें हिंदुत्ववादी विचारों की तिलांजलि देने वाला, वक़्फ़ बोर्ड को समर्थन देने वाला, इत्यादि लिखा गया है. ये नैरेटिव बनाने कोशिश की गई है कि वह हिंदुओं के विचारों से सहमति नहीं रखते और मुसलमानों के हितैषी के रूप में काम करते हैं. ऐसे विज्ञापन न केवल राजनीतिक विमर्श को कमजोर करता है, बल्कि सामाजिक सामंजस्य के लिए भी खतरा साबित हो सकता है.

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एनकाउंटर का महिमामंडन और फडणवीस का न्याय

इन विज्ञापनों में हत्या का महिमामंडन भी किया गया है. महाराष्ट्र के बदलापुर में दो युवतियों के यौन उत्पीड़न मामले के मुख्य आरोपी अक्षय शिंदे को पुलिस एनकाउंटर में मारा गया था. इसके बाद पेज ने एक विज्ञापन चलाया जिसमें अक्षय शिंदे के एनकाउंटर को ‘न्याय’ बताकर इसे बदला पूरा होने के रूप में पेश किया गया और इसके लिए महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को श्रेय दिया गया. बॉम्बे हाईकोर्ट ने बदलापुर मामले में आरोपी की पुलिस कस्टडी में एनकाउंटर होने की पुलिस की कहानी को स्वीकार करने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा, प्रथम दृष्टया इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता.

ऐसे ही एक अन्य विज्ञापन में अक्षय शिंदे के एनकाउंटर को महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस द्वारा न्याय करने का पैटर्न बताया और इसे उत्सवपूर्ण लहजे में पेश किया, जो पूरी तरह से हत्या का महिमामंडन है.

घोर सांप्रदायिक विज्ञापन

इस पेज द्वारा चलाए जा रहे विज्ञापनों की भाषा अत्यधिक सांप्रदायिक है. कुछ विज्ञापनों में स्पष्ट रूप से अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदायों को टारगेट किया गया है. इसके साथ ही एक समुदाय का भय दिखाकर, हिंदुओं से आह्वान किया गया है. ये ना केवल सामाजिक विभाजन को बढ़ावा देता है, बल्कि भय और द्वेष का माहौल भी पैदा करता है.

उदाहरण के लिए एक विज्ञापन में जालीदार टोपी पहने हुए मुसलमानों की AI से बनी तस्वीर है और बैकग्राउंड में एक मस्जिद की तस्वीर है. इसके साथ लिखा है – “हिंदुओं, जिहादियों की कार्यप्रणाली को जानो – पहले वह ज़मीन हड़प कर लैंड जिहाद करते हैं. समय के साथ एक अवैध मस्जिद का निर्माण करते हैं. स्थानीय प्रशासन जब निर्माण तोड़ने जाता है तो दंगा-फसाद करते हैं.” यह विज्ञापन स्पष्ट रूप से मुस्लिम समुदायों को टारगेट करता है. मेटा के हेट स्पीच पॉलिसी के अनुसार, ऐसा कंटेन्ट जो धर्म, जातियता या राष्ट्रीयता, इत्यादि प्रोटेक्टेड कैरेक्टरिस्टिक – के आधार पर व्यक्तियों या समूहों को नकारात्मक रूप से टारगेट करती है, ऐसे कंटेन्ट का प्लेटफ़ॉर्म पर होना सख्त मना है. लेकिन इस पेज द्वारा चलाया जा रहा विज्ञापन न केवल अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय को टारगेट करते हैं, बल्कि तनाव और हिंसा का माहौल भी बनाते हैं.

महालक्ष्मी हत्याकांड को दिया ग़लत सांप्रदायिक रंग

बीते दिनों बेंगलुरु में महालक्ष्मी नामक 29 वर्षीय महिला की निर्मम हत्या कर दी गई. महिला का क्षत-विक्षत शव उसके अपार्टमेंट के रेफ्रिजरेटर में मिला. वर्णित पेज द्वारा इस केस को सांप्रदायिक रंग देकर, गलत जानकारी के साथ विज्ञापन चलाया गया.

एक विज्ञापन के ग्राफिक में दो रेफ्रिजरेटर दिखाए गए जिन पर ‘श्रद्धा’ और ‘महालक्ष्मी’ लिखा हुआ है. एक रेफ्रिजरेटर के अंदर से ‘श्रद्धा’ को कहता दिखाया गया है ‘मेरा आफ़ताब ऐसा नहीं है’ और दूसरे में ‘महालक्ष्मी’ को मराठी में ये कहते दिखाया गया है ‘मेरा अशरफ़ ऐसा नहीं है’. इस ग्राफिक के जरिए ‘लव जिहाद’ कॉनसपिरेसी थ्योरी की ओर इशारा किया गया है और यह दर्शाने की कोशिश की गई है कि मुस्लिम पुरुष अपने हिंदू पार्टनर की हत्या करते हैं – इस थ्योरी का इस्तेमाल अक्सर भारत में अंतरधर्म रिलेशन के खिलाफ़ दक्षिणपंथी लोगों द्वारा मुसलमानों के लिए किया जाता है. इस विज्ञापन के जरिए भारत के समूचे अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय को जेनरलाइज़ और टारगेट किया गया है. इसके अलावा, पुलिस जांच में यह स्थापित हो गया था कि महालक्ष्मी की हत्या किसी मुस्लिम व्यक्ति ने नहीं की थी और न ही इसमें कोई सांप्रदायिक ऐंगल था. इसलिए इस विज्ञापन के के जरिए सांप्रदायिक गलत सूचना को भी बढ़ावा दिया गया है.

ऐसे ही दूसरे ग्राफिक में महालक्ष्मी की एक तस्वीर के साथ विज्ञापन में गलत सूचना को बढ़ावा दिया गया है कि मामले का आरोपी एक मुस्लिम व्यक्ति था. इसके साथ यहाँ भी इसमें एक ‘लव जिहाद’ जैसा सांप्रदायिक ऐंगल जोड़ा गया है जिसके जरिए सभी मुस्लिम पुरुषों को अपने जीवनसाथी की हत्या करने वाले के रूप में सामान्यीकृत किया गया है.

हिन्दू देवता गणेश को कैदी के रूप में पेश किया

कर्नाटक के मांड्या में गणेश चतुर्थी समारोह के दौरान भड़की सांप्रदायिक झड़पों की जांच की मांग को लेकर 13 सितंबर को बेंगलुरु के टाउन हॉल में एक विरोध प्रदर्शन किया गया. प्रदर्शनकारी गणेश की मूर्ति लेकर आ गए. यह विरोध प्रदर्शन, शहर के नियमों के अनुरूप नहीं था जिसके मुताबिक विरोध प्रदर्शनों को फ्रीडम पार्क तक सीमित रखना होता है. स्थिति को संभालने के लिए, लगभग 40 प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया गया. इसी क्रम में पुलिस ने हिन्दू देवता गणेश की मूर्ति को सुरक्षा के लिहाज से एक खाली पुलिस वैन में रखा था. बेंगलुरु पुलिस ने स्पष्ट किया कि विरोध प्रदर्शन के दौरान मूर्ति को हिरासत में नहीं लिया गया था, बल्कि उसकी सुरक्षा की गई थी. बाद में मूर्ति को उचित अनुष्ठानों के साथ उल्सूर झील में विसर्जित कर दिया गया था.

इस पेज द्वारा बेंगलुरू की घटना से जुड़ा एक ग्राफिक विज्ञापन के रूप में चलाया गया जिसमें एक पुलिस वैन में पीछे गणेश की मूर्ति है और कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी पुलिस वैन चला रहे हैं. ये विज्ञापन ना सिर्फ गलत तथ्यों को पेश कर रहा है बल्कि इसमें ‘टीपू सुल्तान’ का नाम लाकर सांप्रदायिक ऐंगल लाने की कोशिश भी की गई है.

इस घटना के कई अन्य वर्जन भी इस पेज द्वारा विज्ञापन के रूप में चलाए गए जिसमें गणेश को कैदी के रूप में पेश करते हुए कर्नाटक सरकार और कांग्रेस पार्टी को टारगेट किया गया है.

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हिन्दू समुदाय को उकसाने का प्रयास

इस पेज द्वारा चलाए जा रहे विज्ञापनों के जरिए हिन्दू समुदाय के लोगों को उकसाने की कोशिश की जाती है. एक विज्ञापन में AIMIM प्रेसीडेंट और सांसद असदुद्दीन ओवैसी, पार्टी के नेता इम्तियाज़ जलील और वारिस पठान की तस्वीर लगाकर लिखा गया है, ‘उन्होंने पहले कहा कि बस 15 मिनट के लिए पुलिस सुरक्षा हटा दो फिर देखो, अब लाखों लोग मुंबई आए और “सिर तन से जुदा” के नारे लगाए.” इस विज्ञापन के कैप्शन में लिखा है ‘हिंदुओं तुम कब जागोगे?’

क्या है ’15 मिनट’ का संदर्भ?

दरअसल, 2013 में एक सभा के दौरान एआईएमआईएम नेता अकबरुद्दीन ओवैसी ने कथित तौर पर भड़काऊ भाषण दिया था जिसमें उन्होंने कहा था कि हम 25 करोड़ हैं, आप 100 करोड़ हैं. 15 मिनट के लिए पुलिस हटा दो और हम बताएंगे कि किसके पास कितना दम है. तब से, ’15 मिनट’ शब्द दो समुदायों के बीच अलगाव का पर्याय बन गया, इसका इस्तेमाल समय-समय पर कई नफरत भरे भाषणों और राजनीतिक संदर्भों में मुसलमानों का भय दिखाने और उनके खिलाफ़ नफरत फैलाने के लिए किया जाता है. हाल ही में, 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान भी, भाजपा नेता और सांसद नवनीत राणा ने हैदराबाद में फिर से इस मुद्दे को उठाया और एक सभा के दौरान मंच से अकबरुद्दीन ओवैसी के पुराने भाषण का जवाब देते हुए कहा कि उन्होंने 15 मिनट बोला था, और हम केवल 15 सेकंड लेंगे. हालांकि, 2022 में ही अदालत ने सबूतों के अभाव में अकबरुद्दीन ओवैसी को इस मामले में बरी कर दिया था. कोर्ट ने कहा कि अकबरुद्दीन का भाषण पूरा नहीं था, उसे टुकड़ों में कोर्ट के सामने पेश किया गया था, इसलिए कोर्ट ने संदेह के आधार पर उन्हें इस केस में बरी कर दिया.

ऐसे ही एक विज्ञापन में लिखा है – हिंदुओं, ये दृश्य मत भूलना कि AIMIM के नेता वारिस पठान और इम्तियाज़ जलील ने सरेआम धमकी दी है. इस प्रकार कई विज्ञापनों के जरिए हिंदुओं को भड़काने की कोशिश की गई है.

‘रेल जिहाद’ कॉन्सपिरेसी थ्योरी के जरिए मुस्लिम समुदाय पर निशाना

यह पेज ‘रेल जिहाद’ जैसी कॉन्सपिरेसी थ्योरी को बढ़ावा देता है और पूरे मुस्लिम समुदाय की गलत छवि पेश करने की कोशिश करता है. भारत में हाल ही में हुई रेल दुर्घटनाओं की आधिकारिक जांच में किसी साजिश का खुलासा नहीं हुआ है. ऐसे विज्ञापन फ़र्ज़ी नैरेटिव को बढ़ावा देते हैं जो मुस्लिम समुदाय को विलेन के रूप में पेश करते हैं. कई फ़ैक्ट-चेकिंग संस्थाओं ने भारत में ट्रेन दुर्घटनाओं के संबंध में सोशल मीडिया पर प्रसारित की जा रही सांप्रदायिक ऐंगल को खारिज किया है. इस पेज द्वारा ऐसे कई विज्ञापन चलाए गए हैं जिसमें रेल दुर्घटना को सीधे तौर पर सांप्रदायिक साजिश के रूप में पेश किया गया है.

22 सितंबर को कानपुर से प्रयागराज की ओर जा रही मालगाड़ी को ड्राइवर ने ट्रैक पर गैस सिलेंडर पड़ा देखकर इमरजेंसी ब्रेक लगाकर रोक दिया था. इस पेज ने घटना को सांप्रदायिक साजिश बताकर विज्ञापन चलाया और इसे ‘जिहाद’ बताकर मुस्लिम समुदाय पर निशाना साधा, जबकि अबतक मामले की जांच में ऐसी कोई बात सामने नहीं आई है.

राहुल गांधी का क्लिप्ड वीडियो, भ्रामक दावे के साथ विज्ञापन

एक विज्ञापन में राहुल गांधी का 5 सेकेंड का क्लिप्ड वीडियो और AI जेनरेटेड वॉयस के जरिए दावा किया गया है कि राहुल गांधी आरक्षण खत्म करने की तैयारी में हैं. जबकि इस वीडियो को कई स्वतंत्र फ़ैक्ट-चेकिंग आउटलेट्स द्वारा भ्रामक और संदर्भ से काटकर करार दिया गया है. इनमें फ़ेसबुक की पैरेंट कंपनी मेटा की थर्ड-पार्टी फ़ैक्ट-चेकिंग पार्टनर आउटलेट्स भी शामिल है. इसके बावजूद ये वीडियो विज्ञापन के रूप में चला. ‘महा बिघाडी – Maha Bighadi’ द्वारा विज्ञापन चलाया जा रहा कंटेन्ट, मेटा के विज्ञापन स्टैंडर्ड्स के बारे में गंभीर सवाल उठाती है, और इसे रोकने में मेटा की विफलता चिंता का विषय है.

इस तरह के टारगेटेड गलत सूचना और सांप्रदायिक कंटेन्ट वाले विज्ञापन तत्काल राजनीतिक परिदृश्य से परे हैं. ये पूर्ण रूप से एक समुदाय के प्रति अविश्वास और नफरत को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किया जाता है जिसका सामाजिक ताने-बाने पर गहरा असर हो सकता है. ऐसे कंटेन्ट का वास्तविक दुनिया में भी व्यापक असर देखने को मिला है. जैसे-जैसे नेता और राजनीतिक दल द्वारा इस तरह की विभाजनकारी बयानबाज़ी को आगे बढ़ाया जाता है, वास्तविक दुनिया में भी हिंसा और सांप्रदायिक तनाव की संभावना बढ़ जातीहै. यह समाज पर लंबे समय के लिए प्रभाव डाल सकता है.

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दिन नज़दीक आते-आते गलत सूचना और सांप्रदायिक विज्ञापन का प्रवाह बढ़ रहा है. ‘महा बिघाडी – Maha Bighadi’ जैसे पेजों की गतिविधियाँ मतदाताओं की चुनौतियाँ बढ़ा सकती है और उन्हें गलत तरीके से इनफ़्लूएंस कर सकती है.

हमने मेटा को इस पेज द्वारा चलाए गए विज्ञापनों के बारे में 3 अक्टूबर को ईमेल किया था. हमें अबतक मेटा की तरफ से इसपर कोई जवाब नहीं आया है. जवाब मिलने पर हम इस आर्टिकल को अपडेट कर देंगे.

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Abhishek is a senior fact-checking journalist and researcher at Alt News. He has a keen interest in information verification and technology. He is always eager to learn new skills, explore new OSINT tools and techniques. Prior to joining Alt News, he worked in the field of content development and analysis with a major focus on Search Engine Optimization (SEO).