पतंजलि आयुर्वेद ने कोविड-19 के ‘इलाज’ के लिए ‘कोरोनिल’ नामक आयुर्वेदिक किट लॉन्च की. भारतीय मीडिया संस्थानों ने इस किट पर कई शो चलाए. इसमें किट को कोरोना वायरस के इलाज में ‘पहली आयुर्वेदिक दवा’ बनाकर पेश किया गया. राम किशन यादव उर्फ़ बाबा रामदेव, जो पतंजलि का चेहरा हैं, उन्होंने कहा कि इस किट को ‘क्लिनिकली कंट्रोल्ड ट्रायल’ के माध्यम से विकसित किया गया है. उन्होंने दावा किया कि ये ‘कोविड-19 का सौ फ़ीसदी इलाज’ है. इसके अलावा, रामदेव ने कहा कि कि उनके पास इस दवा को बनाने और रिलीज़ करने की पूरी इज़ाज़त भी है.
दवा लॉन्च होने के कुछ समय बाद, आयुष मंत्रालय ने एक स्टेटमेंट जारी कर कहा कि पतंजलि आयुर्वेद को इस दवा को कोविड-19 के इलाज के तौर पर प्रचारित करने से मना किया गया है. वजह, ज़रूरी डॉक्यूमेंट्स की कमी (जैसे कि दवा के प्रभाव का सबूत). उसी शाम, इंडिया टुडे को दिए एक इंटरव्यू में रामदेव ने दावा किया कि आयुष मंत्रालय को रिसर्च से संबंधित वो सारे डॉक्यूमेंट्स मुहैया कराए जाएंगे, जिनका इस्तेमाल कोरोनिल किट के असर को साबित करने के लिए किया गया है.
पतंजलि ने डॉक्यूमेंट्स का जो सेट रिलीज़ किया वो ये था –
- पहले से सर्कुलेट हो रहा क्लिनिकल ट्रायल रजिस्ट्री डॉक्यूमेंट (CTRI). इसे 20 मई, 2020 को रजिस्टर करवाया गया था.
- आयुष मंत्रालय के ड्रग पॉलिसी विभाग को लिखी गई चिट्ठी, जिसमें दवा के कम्पोजिशन, क्लिनिकल ट्रायल का विवरण और क्लिनिकल ट्रायल की जगह के बारे में जानकारी दर्ज थी.
- ड्रग के कम्पोजिशन के अंतर्गत दो रिसर्च आर्टिकल्स का लिंक.
- एथिक्स अप्रूवल कमिटी का पत्र, और CCRAS के डायरेक्टर जनरल और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव को लिखी गई दो FYI (For Your Information) चिट्ठियां.
CTRI के अतिरिक्त, सिर्फ़ दो रिसर्च आर्टिकल्स के लिंक ये बताने के लिए प्रस्तुत किए गए कि कोरोनिल दवा कोविड-19 को सौ फ़ीसदी ठीक करने में सक्षम है. इसके अलावा, उत्तराखंड के आयुर्वेद विभाग के लाइसेंस अधिकारी ने बयान दिया कि कोरोनिल किट को इम्युनिटी बूस्टर के तौर पर इस्तेमाल करने की अनुमति मिली थी न कि कोविड-19 का इलाज के लिए.
इस साइंस-चेक में, हम कोरोनिल किट के कम्पोजिशन और पतंजलि के डॉक्यूमेंट में शामिल दोनों स्टडीज़ को चेक करेंगे.
दावा :
पतंजलि आयुर्वेद की कोरोनिल किट कोविड-19 का 100 फ़ीसदी इलाज है और ये क्लिनिकल ट्रायल्स के जरिए वैज्ञानिक पद्धति से साबित हुआ है.
नतीजा :
ग़लत
फ़ैक्ट-चेक
कोरोनिल किट में तीन शीशियां हैं-
- श्वसारि रस टैबलेट या (DRS) – बूटियों से बना टैबलेट.
- इसमें दो हिस्सा गिलोय, एक हिस्सा अश्वगंधा और एक हिस्सा तुलसी है.
- अनु तैल (नाक में डाले जाने वाला ड्रॉप)
CTRI क्लिनिकल ट्रायल का रजिस्ट्रेशन (न कि प्रकाशित हुआ RCT अध्ययन) होता है. दवा के प्रभाव को साबित करने के लिए, इस डॉक्यूमेंट के अलावा सिर्फ़ दो रिसर्च स्टडीज़ आयुष मंत्रालय को भेजी गईं. पतंजलि ने RCT पब्लिश करने का दावा किया था लेकिन इनमें से एक भी पब्लिश हुआ ‘रैंडमाइज़्ड कंट्रोल्ड ट्रायल्स’ (RCTs) नहीं था.
इन दो अध्य्यनों में से, पहला टैबलेट 1 (DRS) से संबंधित था. दूसरी स्टडी कोरोनिल टैबलेट के एक अंश गिलोय से संबंधित थी. इस डॉक्यूमेंट में अश्वगंधा और तुलसी से जुड़ा कोई अध्य्यन नहीं पेश किया गया. जबकि इनका इस्तेमाल कोरोनिल टैबलेट बनाने में किया गया. साथ ही, किट की तीसरी दवा अनु तैल (नाक में डाला जाने वाला ड्रॉप) से जुड़ी कोई भी स्टडी नहीं पेश की गई.
CTRI डॉक्यूमेंट से पता चलता है कि कोविड-19 से संक्रमित 120 मरीज़ों को कोरोनिल का उपचार दिया गया मगर पतंजलि ने दावा किया कि उन्होंने 100 फ़ीसदी मरीज़ों को ठीक कर दिया. हालांकि. CTRI डॉक्यूमेंट सिर्फ़ क्लिनिकल ट्रायल के रजिस्ट्रेशन का सबूत है न कि ट्रायल से प्राप्त परिणामों का. किसी बीमारी की दवा का प्रमाण तब ही माना जाता है जब उसपे की गयी स्टडी रिसर्च मानकों के अनुरूप पर्याप्त जनसंख्या पर की जाए. इसके बाद इसे प्रकाशित किया जाए और इसी बीमारी पर अध्ययन कर रहे अन्य वैज्ञानिकों द्वारा इसकी समीक्षा की जानी चाहिए.
नीचे दो स्टडीज़ का ज़िक़्र है. इन्हें पतंजलि ने श्वासारि रस (किट की पहली दवा) और गिलोय (कोरोनिल टेबलेट या दूसरी दवा का अंश) का कोविड-19 के इलाज में प्रभाव बताने के लिए पेश किया है.
इस स्टडी में श्वासारि रस या दिव्य श्वासारि रस (DSR) का, लैब में बनाए गए एलर्जिक अस्थमा मॉडल में चूहों (इंसानों पर नहीं) पर प्रभाव का अध्य्यन किया गया है. DSR दवा को न तो कोरोना वायरस वाले इन्फ़्लेमेट्री फेफडे़ की कोशिका और न ही इंसानों पर जांचा गया है. इस स्टडी के दौरान, DSR को एलर्जिक अस्थमा पर आजमाया गया. जबकि एलर्जिक अस्थमा और नोवेल कोरोना वायरस (कोविड-19) से होने वाली बीमारियां पूरी तरह से अलग हैं. दोनों बीमारियों का मैकेनिज़्म भी अलग है. साथ ही, DSR का अध्य्यन इंसानों से इतर की प्रजातियों पर किया गया है, इसलिए ये स्टडी कोविड-19 के इलाज में DSR के प्रभाव दिखाने के सटीक सबूत के तौर पर इस्तेमाल नहीं की जा सकती है.
दूसरा अध्य्यन एक प्री-प्रिंट (जैसे, बिना विस्तृत समीक्षा वाला एक आर्टिकल) है. इस स्टडी को साइंटिफ़िक वैधता देने के लिए, किसी दूसरे वैज्ञानिक ने अभी तक समीक्षा नहीं की है. इस महामारी के दौरान, ऐसे कई प्री-प्रिंट उपलब्ध हैं. क्योंकि रिसर्च प्रोसेस को तेज करने के लिए सूचनाओं का ज़ल्द-से-ज़ल्द पहुंचना ज़रूरी हो जाता है. जिस स्टडी के आधार पर पतंजलि आयुर्वेद गिलोय टेबलेट को सौ फ़ीसदी असरदार बता रहा है, वो गिलोय बूटी (टिनोसपोरा कार्डिफ़ोलिया) का आणविक अध्य्यन है. ये अध्य्यन कंप्यूटर पर मॉडल बनाकर किया गया है, न कि किसी जीवित प्राणी, चूहे या इंसानों पर.
चूंकि कोरोना वायरस (SARS-COV2) इंसानों में स्पाइक प्रोटीन की मदद से ACE रिसेप्टर के जरिए होस्ट सेल से संपर्क स्थापित करता है, ये स्टडी दावा करती है कि गिलोय इस बाइंडिंग को बाधित करता है. कैसे? ACE रिसेप्टर और रिसेप्टर-बाइंडिंग प्रोटीन (RBD) में होने वाले संवाद में रूकावट पैदा करके (तस्वीर देखें). ACE रिसेप्टर और स्पाइक प्रोटीन RBD, वो प्रोटीन हैं जिनका इस्तेमाल SARS-COV2 कोशिका में एंट्री के लिए करता है.
ये स्टडी एक आणविक डायनमिक्स (MD) ‘सिमुलेशन है’ जो कि एक कंप्यूटर पर बनाया गया मॉडल है. इस मामले में, इसे डिस्कवरी स्टूडियो, बायोविया नामक सॉफ़्टवेयर पर अंज़ाम दिया गया.
इस स्टडी की विस्तृत समीक्षा होनी ज़रूरी है. ये न तो ‘क्लीनिकल ट्रायल’ है जैसा कि रामदेव या पतंजलि दावा कर रहे हैं, और न ही इसमें मनुष्यों या किसी दूसरे जीवित प्राणियों में दोनों प्रोटीनों के बीच के संबंध को जांचा गया है.
निष्कर्ष:
इसलिए, पतंजलि द्वारा दिया गया एक भी सबूत ये साबित नहीं करता कि कोरोनिल, कोविड-19 का प्रभावी इलाज है. इसकी वजहें निम्नलिखित हैं:
- जो डॉक्यूमेंट उपलब्ध कराए गए हैं, उनमें कोरोनिल किट में शामिल तीन दवाओं में से सिर्फ़ एक की पब्लिश्ड रिसर्च स्टडी है. एक स्टडी में तीन जड़ी-बूटियों वाली कोरोनिल दवा के सिर्फ़ एक हिस्से (गिलोय) की बात की गई है और इस स्टडी की विस्तृत समीक्षा भी नहीं हुई है.
- साक्ष्य-आधारित दवा को बनाने या उसके अप्रूवल के लिए, दवा के सिर्फ़ एक हिस्से की बिना समीक्षा वाली स्टडी को, कोरोनिल टेबलेट के प्रभाव के प्रूफ़ के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.
- श्वासारि रस (DSR) पर की गई स्टडी इंसानों पर नहीं बल्कि चूहों पर की गई है.
- और, गिलोय पर की गई दूसरी रिसर्च स्टडी एक कंप्यूटर सिमुलेशन है, न कि किसी जीवित प्राणी पर किया गया अध्य्यन.
- क्लिनिकल ट्रायल रजिस्ट्री डॉक्यूमेंट (CTRI), सिर्फ़ रजिस्ट्रेशन का प्रूफ़ है, न कि ट्रायल के दौरान मिले परिणामों का.
- इसके अलावा, कोई टॉक्सिसिटी या हर्बल इंटरैक्शन स्टडी नहीं की गई, जिससे साबित हो कि ये दवा कोविड-19 के मरीज़ों के लिए सुरक्षित या असरदार है.
असल में, ये दावा करना कि इस तरह की अप्रमाणित दवा कोविड-19 के मरीज़ों को सौ फ़ीसदी ठीक कर देगी, उपचार की ग़लत कल्पना है. और, ये मरीज़ों को पारंपरिक तरीके से इलाज करवाने के अधिकार से वंचित करती है, भले ही इससे हर एक मरीज़ ठीक न हो पाए. प्राचीन आयुर्वेद का मुखौटा ओढ़कर ग़लत दवा बनाने का ये तरीक़ा एक वैश्विक महामारी के समय लोगों की जान को खतरे में डाल सकता है.
रेफ़रेंस :
Balkrishna, A., Solleti, S. K., Singh, H., Tomer, M., Sharma, N., & Varshney, A. (2020). Calcio-herbal Formulation, Divya-Swasari-Ras, Alleviates Chronic Inflammation and Suppresses Airway Remodelling in Mouse Model of Allergic Asthma by Modulating Pro-Inflammatory Cytokine Response. Biomedicine & Pharmacotherapy. 2020 Jun;126:110063.doi: 10.1016/j.biopha.2020.110063
Acharya Balkrishna, SUBARNA POKHREL, Anurag Varshney. Tinospora cordifolia (Giloy) may curb COVID-19 contagion: Tinocordiside disrupts the electrostatic interactions between ACE2 and RBD. Authorea. April 16, 2020. DOI: 10.22541/au.158707095.53639175
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