भारत में कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने न सिर्फ़ देश की चिकित्सा व्यवस्था की खस्ता हालत बयान की, बल्कि श्मशानों को इतना व्यस्त कर दिया जितना उन्हें पहले कभी भी नहीं देखा गया था. कई ऐसे लोग जो अंतिम संस्कार का पैसा नहीं दे सकते थे, लाशों को गंगा नदी में बहा रहे थे या उसके किनारे उन्हें दफ़ना रहे थे. मई के दूसरे हफ़्ते में दैनिक भास्कर ने खबर दी थी कि बिहार और उत्तर प्रदेश में गंगा किनारे के 1,140 किलोमीटर के क्षेत्र में 2 हज़ार से ज़्यादा लाशें मिली थीं. और भी कई मीडिया संगठनों ने गंगा और उसके किनारे से शव बरामद होने की खबरें दी थीं जिसमें रॉइटर्स, हिंदुस्तान टाइम्स, इंडिया टुडे, मोजो स्टोरी और बीबीसी शामिल हैं.

लेकिन पिछले कुछ दिनों से दैनिक जागरण ने ऐसी रिपोर्ट्स पब्लिश कीं जिनमें बताया गया कि गंगा नदी के किनारे हमेशा से ही इस तरह से लाशों को दफ़नाया जाता रहा है और ऑनलाइन मीडिया इस सनसनीखेज़ रिपोर्टिंग के ज़रिए लोगों को भ्रमित कर रहा है.

26 मई को दैनिक जागरण ने दफ़न की हुई लाशों की एक तस्वीर पब्लिश कर दावा किया कि ये तस्वीर 3 साल पुरानी है. इस तस्वीर के ज़रिए मीडिया आउटलेट इस नतीजे पर पहुंचा कि प्रयागराज के शृंगवेरपुर घाट पर दफ़न हुए शवों की ज़्यादातर तस्वीरें 2018 की हैं. इसके बाद उन्होंने इस नज़ारे को आम बात बताते हुए दावा किया कि ऐसा महामारी के कारण नहीं हुआ है और वहां पर पहले भी इस तरह से लाशे दफ़नाई जाती रही हैं.

उसी दिन, जागरण ने एक और रिपोर्ट अपने प्रिन्ट संस्करण में भी पब्लिश की थी. इस रिपोर्ट की हेडलाइन थी – “कोरोना नहीं था, फिर भी तीन साल पहले ऐसी ही थी गंगा किनारे की तस्वीर”. रिपोर्ट में लिखा है, “संगमनगरी प्रयागराज में गंगा किनारे दफनाए गए शवों को हालिया करार देते हुए इंटरनेट मीडिया पर हो-हल्ला मचाने वालों को यह पुरानी तस्वीर गौर से देखनी चाहिए। यह तस्वीर 18 मार्च, 2018 की है, जब कुंभ 2019 के क्रम में तीर्थराज प्रयाग के शृंगवेरपुर का कायाकल्प हो रहा था।”. आगे, रिपोर्ट में बताया गया है, “प्रयागराज में शृंगवेरपुर और फाफामऊ घाट पर अरसे से शव दफ़नाने की परंपरा रही है।”

रिपोर्ट के मुताबिक, दैनिक जागरण की 5 सदस्यों की टीम ने शृंगवेरपुर और फाफामऊ घाट के 70 किलोमीटर के क्षेत्र में कई गांव कवर किये थे. ये रिपोर्ट जागरण के नई दिल्ली के संस्करण में भी छपी थी जिसके 3 मुख्य बिंदु नीचे तस्वीर में लाल घेरे से दिखाए गए हैं
1) कई हिन्दू परिवारों में गंगा किनारे शव दफ़न करने की है परंपरा,
2) इंटरनेट मीडिया पर ऐसी ही तस्वीरों से फैलाई गई सनसनी, और
3) सफ़ेद दाग, कुष्ट रोग, सर्पदंश सहित अकाल मौतों से जुड़े शव किये जाते हैं दफ़न.

ऐसी रिपोर्ट दैनिक जागरण के 28 मई के प्रयागराज संस्करण में भी छापी गयी थी.

26 मई को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी ये रिपोर्ट ट्वीट की थी. आर्टिकल लिखे जाने तक इस ट्वीट को 11 हज़ार से ज़्यादा बार रीट्वीट किया गया है. इसके अलावा, और भी कई नामी भाजपा नेताओं ने ये रिपोर्ट ट्वीट की जिसमें भाजपा आईटी सेल के मुखिया अमित मालवीय, भाजपा प्रवक्ता नीतू डबास और भाजपा नेता रविंदर गुप्ता शामिल हैं. अमित मालवीय और रविंदर गुप्ता ने दावा किया कि लोग सरकार की आलोचना कर कोरोना का राजनीतिकरण और हिंदुओं को बदनाम कर रहे हैं.

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फ़ैक्ट-चेक

गौर करने वाली बात है कि इंडो-एशियन न्यूज़ सर्विस (IANS) ने 2019 में रिपोर्ट किया था कि दैनिक जागरण को 2014-15 से लेकर 2018-19 तक सरकार के विज्ञापन के लिए 100 करोड़ रुपये मिले थे. IANS के मुताबिक, सरकारी विज्ञापनों से सबसे ज़्यादा पैसा दैनिक जागरण को मिलता है. फ़रवरी 2021 में न्यूज़ लॉन्ड्री ने बताया था कि कैसे दैनिक जागरण ने उत्तर प्रदेश सरकार की किसान-नीतियों को लेकर पीआर कैम्पैन चलाया था और इसी क्रम में अपनी तरक्की का रास्ता बनाया.

ऑल्ट न्यूज़ ने दैनिक जागरण की खबर की पुष्टि करने के लिए एक स्वतंत्र पत्रकार प्रशांत सिंह की मदद ली. प्रशांत दैनिक जागरण की रिपोर्ट में बताए गए घाटों के अलावा 2 और घाटों पर भी पहुंचे. मीडिया रिपोर्ट्स, पूजा करने वालों से हुई बातचीत और स्थानीय लोगों और पत्रकारों के बयान के आधार पर ये बात साफ़ हो जाती है कि श्रृंगवेरपुर और फाफामऊ घाट पर दफ़नाई गई लाशों की संख्या में महामारी के बाद बड़ा उछाल देखने को मिला.

जांच : दैनिक जागरण की रिपोर्ट्स

ऑल्ट न्यूज़ ने जागरण की रिपोर्ट में शेयर की गई श्रृंगवेरपुर घाट की तस्वीरों की तुलना की. हमने पाया कि दोनों तस्वीरों के पीछे का बैकग्राउंड अलग दिखता है. बायीं ओर की तस्वीर, जिसे जागरण ने 2018 का बताया है, उसमें नदी का तट दिखता है जबकि दूसरी तस्वीर में पीछे पहाड़ी और पेड़ दिखते हैं. ये एक बहुत महत्वपूर्ण सवाल खड़ा करता है कि जागरण ने तुलना के लिए खींची हाल की तस्वीर, उसी जगह या ऐंगल से क्यों नहीं खींची जो 2018 में था?

दायीं तस्वीर में पहाड़ी के ऊपर जो मस्जिद दिख रही है, वो मनारी शाह बाबा सिंगरौर है. जागरण की 26 मई की रिपोर्ट में दोनों तस्वीरें अच्छे रिज़ॉल्यूशन में मौजूद हैं.

हमने इस मामले में दैनिक जागरण के प्रयागराज ऑफ़िस के 2 कर्मचारियों से संपर्क किया लेकिन उन्होंने स्टोरीज़ पर कमेन्ट करने से मना कर दिया. लेकिन दोनों ने बातचीत के दौरान बताया कि 2021 में लाशों को दफ़नाएं जाने का आंकड़ा काफ़ी ज़्यादा है.

इन रिपोर्ट्स के पब्लिश होने के 10 दिन पहले 15 मई को जागरण ने एक तस्वीर शेयर करते हुआ बताया था कि अप्रैल महीने के आख़िरी सप्ताह से हर रोज़ 100 शवों का शृंगवेरपुर घाट अपर अंतिम संस्कार किया जा रहा था. जागरण ने बताया था कि आमतौर पर एक दिन में 20 से 25 शवों का दाह-संस्कार किया जाता था.

ऑल्ट न्यूज़ ने स्वतंत्र फ़ोटोजर्नलिस्ट प्रभात वर्मा से भी बात की. वो 2009 से प्रयागराज से रिपोर्टिंग कर रहे हैं. उन्होंने बताया, “कई पत्रकारों की तरह, मैं भी गंगा में तैरती और दफ़नाई गई लाशों के बारे में रिपोर्टिंग कर रहा था. मेरे पिछले अनुभव और महामारी के हाल के दृश्य को देखते हुए मैं इस बात की पुष्टि कर सकता हूं कि अप्रैल-मई 2021 में शवों का आंकड़ा सिर्फ़ शृंगवेरपुर घाट में नहीं बल्कि सभी घाटों पर अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है.”

प्रभात वर्मा ने आगे बताया, “पत्रकार के तौर पर मैंने खास-तौर पर अपने शहर की न्यूज़ फ़ॉलो की. ये पहली बार नहीं है जब जागरण ने सरकार की आलोचना करते हुए खबर प्रकाशित की हो और बाद में कुछ दिनों बाद अपनी ही रिपोर्ट से अलग सरकार के समर्थन में नई रिपोर्ट पब्लिश की हो.”

मीडिया रिपोर्ट्स: प्रयागराज में हाल में दफ़नाई गयी लाशें

ऑल्ट न्यूज़ ने मार्च 2018 से दिसम्बर 2018 के बीच के समय को लेकर ट्विटर (पहला लिंक, दूसरा लिंक) और गूगल (पहला लिंक, दूसरा लिंक) पर की-वर्ड्स सर्च किया लेकिन हमें इस समयावधि के दौरान गंगा में लाशें मिलने की कोई राष्ट्रीय मीडिया की रिपोर्ट नहीं मिली.

लेकिन 2021 में कई मीडिया संगठनों और जल शक्ति मंत्रालय ने कोरोना की दूसरी लहर के दौरान बड़ी संख्या में लाशें मिलने की खबर दी. उत्तर प्रदेश के 27 ज़िलों में ग्राउन्ड रिपोर्टिंग करने के लिए दैनिक भास्कर ने 30 रिपोर्टर भेजे थे. 14 मई की रिपोर्ट के मुताबिक, 1,140 किमी के क्षेत्रफल में 2 हज़ार से ज़्यादा लाशें मिली थीं. दैनिक भास्कर ने बताया था कि प्रयागराज के संगम से पुलिस ने 13 शव हटाए थे जिसमें से 3 लाशों की मौत का कारण आत्महत्या बताया गया था. बची 10 लाशों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गयी.

अमर उजाला ने 15 मई और 16 मई को 2 रिपोर्ट पब्लिश करते हुए बताया था कि गंगा के नज़दीक झूंसी के छतनाग घाट पर सैंकड़ों लाशें दफ़न की गयी हैं.

ANI ने रिपोर्ट किया था कि संगम के इलाके में शव खुले में रख दिए गए हैं. न्यूज़ एजेंसी को एक स्थानीय व्यक्ति कुंवर जीत तिवार ने बताया, “कम से कम 400 से 500 लाशे यहां पर दफ़न हैं. ये एक पवित्र जगह है जहां लोग स्नान के लिए आते हैं. अब लोगों को यहां आना पसंद नहीं है. सरकार को इस मसले पर ध्यान देना चाहिए”. ये रिपोर्ट द न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने 16 मई को शेयर की थी.

16 मई को जल शक्ति मंत्रालय ने बयान दिया था, “देश ऐसी भयानक परिस्थिति का सामना कर रहा है जहां पिछले कुछ समय में कोरोना महामारी के केसेज़ और उससे होने वाली मृत्यु के आंकड़े कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में बढ़े हैं. हाल ही में गंगा और उससे जुड़ी नदियों में शव/जली या सड़ी-गली लाशें फेंकने की घटनाएं सामने आयी हैं. ये काफ़ी गलत और भयानक है.”. ऐसा कोई बयान 2018 में जारी नहीं किया गया था जिसके बारे में जागरण का दावा है कि तब भी ऐसा ही नज़ारा था.

इसके अगले दिन हिंदुस्तान टाइम्स ने बताया, “पिछले हफ़्ते उत्तर प्रदेश और बिहार में गंगा नदी या उसके किनारे करीब 1 हज़ार लाशें या तो पानी से निकाली गयी हैं या वहीं दफ़न मिली हैं.” रिपोर्ट में बताया गया है कि ये शव शृंगवेरपुर, अरैल, झूंसी, फाफामऊ, संगम जैसे घाटों से मिली हैं. प्रयागराज रेंज के इन्स्पेक्टर जनरल केपी सिंह ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया कि पुलिस अब नदी के किनारों पर अंतिम संस्कार करने की अनुमति नहीं दे रही है.

शृंगवेरपुर घाट के पुजारी शिवबरण तिवारी ने दैनिक भास्कर को बताया कि महामारी से पहले आम-तौर पर 8 से 10 शव आया करते थे. लेकिन महामारी के बाद सिर्फ़ शृंगवेरपुर में 60 से 70 लाशें आती हैं. कभी-कभी ये आंकड़ा 100 के पार भी पहुंच जाता है. ये रिपोर्ट भी 17 मई को पब्लिश हुई थी.

20 मई को आज तक ने फाफामऊ पुल के दृश्य प्रसारित किये थे. ये दृश्य नेशनल हाइवे 30 के पुल से रिकॉर्ड किये गये थे. ये रिपोर्ट फाफामऊ में शवों के दफ़नाये जाने के आंकड़े में आये उछाल के बारे में है. आज तक के रिपोर्टर शिवेन्द्र श्रीवास्तव ने ब्रॉडकास्ट में कहा, “फाफामऊ ब्रिज के नीचे का दृश्य देख कर आपका दिल दहल जाएगा. ये वो जगह है जहां पर अंतिम संस्कार कराने के लिए लोग आते हैं और यहां अगर आपकी नज़र आगे 1 किमी तक कही जाएगी तो सिर्फ़ और सिर्फ़ आपको लाशें दिखेंगी. वो भी अंतिम संस्कार की हुई नहीं बल्कि ऐसे ही रेत में 1-2 फ़ीट नीचे दबी हुई. जितने भी चमकते हुए कपड़े हैं, वो लाशों के ऊपर ढके हुए हैं. अगर मैं अंदाज़े से बात करूं तो हज़ार लाशों से ऊपर डेड बॉडीज़ का अंतिम संस्कार ऐसे ही किया हुआ है”.

ऑल्ट न्यूज़ ने शिवेन्द्र श्रीवास्तव से बात की. उन्होंने हमें बताया, “मैं अपनी रिपोर्ट पर कायम हूं. मैं इस बात की पुष्टि कर सकता हूं कि फाफामऊ ब्रिज के नीचे 1 हज़ार लाशें दबी हुई थीं. मेरी रीसर्च के मुताबिक, इतनी लाशें इससे पहले वहां पर नई दफ़नाई गयी होंगी.”

शृंगवेरपुर घाट पर मिली लाशों की तस्वीरें गेट्टी इमेजेज़ पर मौजूद हैं. उसमें से एक तस्वीर 20 मई को रीतेश शुक्ला ने खींची थी. कैप्शन के मुताबिक, “इन लाशों में से कुछ कोरोना मरीज़ों की बताई गई हैं, जो रेत में दफ़न दिखती हैं. 20 मई 2021 को गंगा नदी के शृंगवेरपुर घाट में बारिश के बाद लाशों के ऊपर लगी रेत बह गई. कब्र खोदने वाले लोगों ने बताया कि अप्रैल के बाद अंतिम संस्कार के लिए आनेवाले शवों में बढ़ोतरी हुई है.

24 मई को 50 वर्षीय पुजारी जयराम ने इंडिया टुडे को बताया था कि गंगा किनारे मिट्टी में लाशें दफ़नाने का रिवाज़ पुराना है लेकिन शवों को दफ़न करने की संख्या में हुई बढ़ोत्तरी की वजह कोरोना महामारी ही मालूम देती है.

इसके अलावा, कई नेशनल मीडिया आउटलेट्स ने रिपोर्ट्स दी थीं कि उत्तर प्रदेश और बिहार में गंगा किनारे से 1 हज़ार से ज़्यादा लाशें मिली थीं. जागरण ने बिना किसी मीडिया आउटलेट का नाम लिए इंटरनेशनल मीडिया पर प्रयागराज की छवि खराब करने का आरोप लगाया. पाठक ध्यान दें कि बीबीसी और द वॉशिंग्टन पोस्ट की रिपोर्ट में सरकार के अधिकारियों के बयान शामिल थे. ऐसे में जागरण का ये कहना कि इंटरनेट पर मौजूद तस्वीर और ‘अंतर्राष्ट्रीय मीडिया’ की रिपोर्ट्स लोगों में भ्रम की स्थिति पैदा कर रही थीं, तार्किक नहीं मालूम देता.

गंगा विचार मंच के अधिकारियों का बयान

ऑल्ट न्यूज़ ने गंगा विचार मंच के अधिकारी से बात की जो राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन से जुड़ी एक स्वयंसेवी संस्था है. भाजपा की प्रदेश मंत्री अनामिका चौधरी और उत्तर प्रदेश को-कॉर्डिनेटर सुनील निषाद ने ऑल्ट न्यूज़ से इस बात की पुष्टि की कि महामारी के कारण शृंगवेरपुर घाट और फाफामऊ घाट पर अंतिम संस्कार में बढ़ोत्तरी हुई है.

अनामिका ने बताया, “शृंगवेरपुर घाट और फाफामऊ घाट पर हुए अंतिम संस्कार में मई 2021 के बाद उछाल आया है. लेकिन प्रशासन की मदद से नदी किनारे की परिस्थिति अभी सुधर रही है और अब वहां पर लाशें नहीं दफ़नाई जा रही हैं.”

सुनील निषाद ने बताया, “महामारी से पहले शायद ही कभी अरैल घाट पर शव दफ़नाए जाते थे लेकिन इस बार शवों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है. ये चीज़ फाफामऊ घाट पर भी देखने को मिली है. सितंबर-अक्टूबर 2019 में शृंगवेरपुर घाट जाने के दौरान मैंने 20 से 25 लाशें दफ़न की हुई पायी थीं. लेकिन इस बार ये आंकड़ा 400 से 500 के आस-पास था – मैं इस बात से इनकार नहीं कर सकता.”

पत्रकार प्रशांत सिंह की ग्राउन्ड रिपोर्टिंग

2018 में शवों की संख्या हाल के जितनी होने का दावा करती दैनिक जागरण की रिपोर्ट की पुष्टि करने के लिए प्रशांत सिंह शृंगवेरपुर घाट और फाफामऊ पुल गए. प्रशांत ने कोरोना महामारी के पहले दफ़नाई गई लाशों की मई 2021 के पहले 3 हफ़्तों के बीच दफ़नाई गई लाशों की संख्या से तुलना करने के लिए स्थानीय लोगों से बात की.

शृंगवेरपुर घाट पर इंटरव्यू

प्रशांत ने 26 मई को केदारनाथ तिवारी (उम्र 62 वर्ष) और मनोज तिवारी (उम्र 42 वर्ष) से बात की. केदारनाथ पहले पुजारी थे और मनोज पंडा हैं. दोनों घाट पर दशकों से अंतिम क्रिया संपन्न करवाने का काम कर रहे हैं.

केदारनाथ ने बताया, “ऐसा कभी नहीं देखा जी. देख कर के आश्चर्य हुआ. हम लोग भी आना बंद कर दिए यहां. इसमें लाशों की संख्या बढ़ी, घरवाले आने ही नहीं देते थे.बहुत संख्या में लाश आने लगीं. सुबह से ही तांता लग जाता था… ये तो कहिये कि 15 दिनों से राहत मिली है. अब सामान्य हो गया है. कभी हम लोगों ने ऐसा देखा ही नहीं था. हर गांव से 4-6 मिट्टी (शव) आ रहे थे.”

27 मई को द इंडियन एक्स्प्रेस, ABP न्यूज़ और जागरण ने बताया था कि सरकारी अधिकारी अनिल कुमार पटेल ने शृंगवेरपुर घाट पर दफ़न किये गए शवों की इतनी बड़ी संख्बया को ध्ढ़यान में रखते हुए घाट के पास इलेक्ट्रिक शवदाहगृह बनाए जाने का सुझाव दिया था. ये बताता है कि सरकार ने महामारी की दूसरी लहर की वजह से मरनेवालों की संख्या में हुई वृद्धि का संज्ञान लिया था.

प्रशांत ने एक और पुजारी मनोज तिवारी से पूछा कि क्या उन्होंने पहले कभी इतनी बड़ी तादात में शवों का अंतिम संस्कार होते देखा था. इसपर उन्होंने तुरंत ही कहा, “नहीं.” आगे बात करते हुए उन्होंने ये भी कहा, “दस साल से गर्मी बढ़ते ही (लू की वजह से) ज़्यादा शव दफ़नाये जाने लगे. लेकिन जो 2021 में दिख रहा है, ऐसा कभी भी नहीं देखा गया है. हमारे बुज़ुर्गों ने बताया कि आख़िरी बार इतनी बड़ी तादात में लोग कॉलरा की महामारी से मरे थे.”

मनोज ने ये कन्फ़र्म किया कि श्रृंगवेरपुर घाट पर कम से कम एक हज़ार शव दफ़न हुए होंगे. जब प्रशांत ने उनसे पूछा कि महामारी के पहले कितने शव दफ़न किये गए थे तो उन्होंने जवाब दिया, “एक दिन में 10-20 से 50 तक.” प्रशांत ने सवाल किया कि ये संख्या तो काफी कम है. इसपर मनोज ने कहा, “यही तो बात है. आज हर दिन 100-125 शव दफ़न किये जा रहे हैं. कोई भी इसका रिकॉर्ड नहीं रख पाया कि यहां कितने शव लाये जा रहे थे. यहां तक कि हमने अंतिम संस्कार करना बंद कर दिया और मृतकों के परिवार से ख़ुद ही शव को दफ़न करने को कहने लगे.”

उन्होंने ये भी कहा, “अपने नज़दीकी को दफ़न करने आने वाले लोग खुद वायरस के संक्रमण से डरे हुए थे. वो जल्दी से जल्दी सब ख़तम करते और चले जाते थे. जो दिल के बहुत मज़बूत थे, वही पूरे विधान से अंतिम संस्कार करते थे.”

जब प्रशांत ने ये पूछा कि क्या सरकार ने इसमें कोई हस्तक्षेप किया, मनोज ने जवाब दिया, “सरकार ने तो मीडिया में रिपोर्ट आने के बाद ही ऐक्शन लिया. अब दफ़न करने का काम बंद हो गया है और सिर्फ़ शवदाह होता है.”

फाफामऊ पुल पर लिए गए इंटरव्यू

29 मई को प्रशांत सिंह फाफामऊ इलाके में पहुंचे जहां उन्होंने दो पंडों – देवी प्रसाद मिश्रा और दुर्गा प्रसाद मिश्रा से बात की. दोनों इस घाट पर कई दशकों से मौजूद हैं.

देवी प्रसाद ने कहा, “मेरी 55 साल की उम्र है इतने समय में मैंने कभी ऐसा नहीं देखा.” जब प्रशांत सिंह ने उनसे पूछा कि क्या 2018, यानी 2019 से पहले भी वहां इतनी संख्या में शव आते थे, तो हमें ये जवाब मिला, “ये कोरोनाकाल में ऐसा हुआ है. 100-125 गाड़ियां रोज़ आना चालू हुईं.” देवी प्रसाद ने ये भी बताया कि उस इलाके में इतनी बड़ी संख्या में शवों को पहली बार दफ़न किया गया. उन्होंने प्रशांत को ये भी बताया कि शवों पर से रामनानी कपड़ा हाल ही में हटा दिया गया था.

इसके आगे, दुर्गा प्रसाद ने कहा, “आती थी बॉडी लेकिन जलाई भी जाती थी, दफ़न भी किया जाता था, लेकिन इतनी मात्रा में कभी नहीं आयी.”

प्रशांत ने रामजी से भी बात की जो गंगा में स्नान के लिए अक्सर फाफामऊ जाया करते हैं. उन्होंने कहा, “मैं यहां 32 साल से गंगा नहाने आता हूं. फाफामऊ घाट पे. पर यहां जिस स्थिति में अब सब दिख रहा है, कोरोना वाले समय में, तो इतनी बॉडी नहीं देखी हमने कभी.”

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दैनिक जागरण ने सिलसिलेवार रिपोर्ट्स के ज़रिये ये दावा किया कि इन्टरनेट और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट्स में दिख रही बड़ी तादाद में गंगा किनारे दफ़न हुए शवों की तस्वीरें सिर्फ़ सनसनीखेज रिपोर्टिंग के लिए दिखाई जा रही हैं. दैनिक जागरण ने ये भी दावा किया कि कोविड-19 की दूसरी लहर के बाद इतनी बड़ी संख्या में शवों का दफ़न किया जाना पहली बार नहीं हुआ है और ऐसा ही 2018 में भी हुआ था.

ये बात सही है कि प्रयागराज में गंगा के घाट पर शवों को दफ़न करने की परम्परा पुरानी है. लेकिन कोरोना वायरस के संक्रमण के बाद घाटों पर आने वाले शवों की संख्या में भारी इज़ाफ़ा हुआ. इस बात की तस्दीक इन लोगों ने की –

1. स्थानीय लोग, पुजारी और कब्र खोदने वाले लोग जो वहां दशकों से काम कर रहे हैं.
2. स्वतंत्र पत्रकार प्रशांत सिंह, फ़ोटोजर्नलिस्ट प्रभात कुमार वर्मा और आज तक के रिपोर्टर शिवेंद्र श्रीवास्तव.
3. गंगा विचार मंच के अधिकारी जिसमें भाजपा की राज्य मंत्री अनामिका चौधरी भी शामिल हैं.
2. दैनिक जागरण, प्रयागराज के दो कर्मचारी

दैनिक जागरण की रिपोर्ट्स ज़मीनी हक़ीक़त से मेल नहीं खाती हैं और कमोबेश सरकारी हीलाहवाली और अव्यवस्था से हुई मौतों पर पर्दा डालने की कोशिश करती नज़र आती हैं. यहां ये ज़रूर बताया जाना चाहिए कि MMI ऑनलाइन, जागरण प्रकाशन लिमिटेड का डिजिटल मीडिया विंग अंतर्राष्ट्रीय फ़ैक्ट-चेकिंग नेटवर्क (IFCN) से मान्यता प्राप्त है. जागरण ख़ुद विश्वास न्यूज़ नाम से फ़ैक्ट-चेकिंग भी करता है. जागरण न्यूज़ मीडिया के सीईओ भरत गुप्ता, ख़ुद IFCN के बोर्ड सदस्य हैं. मगर सच ये है कि हालिया रिपोर्ट्स उस फ़ेहरिस्त में शुमार होती हैं जिसमें जागरण की फैलाई हुई कई भ्रामक रिपोर्ट्स पहले से शामिल हैं. 2018 में, जब कठुआ में एक 8 वर्ष की बच्ची का बलात्कार हुआ था, जागरण ने ये दावा किया था कि वहां बलात्कार की कोई घटना हुई ही नहीं थी. बीते वर्ष, जब हाथरस में एक दलित महिला का कथित बलात्कार हुआ था, जागरण ने दावा किया था कि उस लड़की की हत्या उसके भाई और उसकी मां ने मिलकर की थी.

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