सोशल मीडिया पर एक वीडियो काफी शेयर किया जा रहा है जिसमें एक व्यक्ति को अपने घर के पास गायों को नहीं काटने का अनुरोध करते हुए सुना जा सकता है. वो व्यक्ति कहता है, “… मैं देखता हूं यहां बीस बाईस गाय आप कैसे काटते हो … मैं आपको ऐसा नहीं करने दूंगा … सीधी बात … देखते हैं कि इस बार आप ऐसा कैसे करते हैं. क्या यह कसाईखाना है? क्या आपके पास लाइसेंस है? मुझे (खराब) गंध आती है.” वीडियो को इस दावे के साथ शेयर किया गया है कि कश्मीर में एक कश्मीरी पंडित मुस्लिम कसाईयों का विरोध कर रहा था.

फ़ेसबुक पेज ‘RSS फ़ैन क्लब‘ ने इस वीडियो को 15 सितंबर को पोस्ट किया था. 24 घंटे के भीतर ही इसे 30 लाख से ज़्यादा बार देखा जा चुका है. पेज के मुताबिक ये कश्मीर में आर्टिकल 370 और 35 (A) को हटाने का प्रभाव था.

@VidyaSanatani और @prabhato777 सहित कई ट्विटर यूज़र्स ने भी इसी तरह के दावे किए. @VidyaSanatani ने लिखा कि सभी हिंदुओं को वीडियो रिकॉर्ड करने वाले आदमी की तरह होना चाहिए.

ऑल्ट न्यूज़ को हमारे व्हाट्सऐप हेल्पलाइन नंबर (+91 76000 11160) पर इस दावे की सच्चाई जानने के लिए कई रिक्वेस्ट मिलीं. व्हाट्सऐप ने इस मेसेज़ को “कई बार फ़ॉरवर्ड” किए जाने का लेबल दिया है. वीडियो से जुड़े हिंदी टेक्स्ट में प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ़ की गई है. इसी तरह, अंग्रेजी टेक्स्ट में पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को कश्मीर में “हिंदुओं के रवैये में बदलाव” का क्रेडिट दिया गया है.

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एक ही समुदाय के सदस्यों के बीच विवाद

रिवर्स इमेज सर्च करने पर हमने देखा कि अगस्त 2021 में जम्मू के वकील अंकुर शर्मा ने वायरल क्लिप के साथ दो वीडियोज़ ट्वीट किये थे. उन्होंने लिखा था कि इस साल ईद के आस-पास एक मुस्लिम व्यक्ति ने वीडियो रिकॉर्ड किया था. 2021 में ईद 21 जुलाई को मनाई गई थी.

दूसरे वीडियो में, एक बिल्डिंग के सामने गायों को देखा जा सकता है जिनके आस-पास घास बिखरी हुई है. बिल्डिंग पर एक हरे रंग का साइन है जिस पर उर्दू में ‘मरकज़ी दार अल उलूम दाउद’ लिखा है जिसका मतलब ‘इस्लामी मदरसा संस्थान’ है.

वीडियो आरिफ़ जान नाम के शख्स ने रिकॉर्ड किया

वीडियो के अंत में 2 मिनट 11 सेकेंड पर, हम रिकॉर्ड कर रहे व्यक्ति का चेहरा देख सकते हैं. कश्मीर के एक स्थानीय व्यक्ति ने हमारा उनसे संपर्क कराया. इस शख्स का नाम आरिफ़ जान है जो गांदरबल का निवासी है. हमने आरिफ़ जान के व्हाट्सऐप डिस्प्ले और वायरल वीडियो में दिख रहे उनके चेहरे की तुलना की और उन्हें एक समान पाया. आरिफ़ जान की रिक्वेस्ट पर हम उनका चेहरा नहीं दिखा रहे हैं.

ऑल्ट न्यूज़ ने आरिफ़ जान से फ़ोन पर बात की. उन्होंने कंफ़र्म किया वीडियो उन्होंने ही बनाया था. इसके साथ उन्होंने कहा, “ये घटना बकरीद के आस-पास हुई. मैं एक मुस्लिम हूं और सोशल मीडिया के दावे ग़लत हैं.”

“मेरे घर के बगल में एक दार-अल-उलूम है. दोनों प्रॉपर्टी के बीच एक ही दीवार है. इन दिनों चल रही महामारी की वजह से ये बंद है. दो साल पहले, लोगों ने वहां बलि की रस्में निभाई थीं. उस समय, मैंने उनसे साफ़-सफ़ाई के कारण, बचे हुए मलबे और खून की वजह से दोबारा वहां बलि नहीं देने की रिक्वेस्ट की थी. इसलिए जब इस बकरीद के दौरान ऐसा किया जा रहा था, तो मुझे अपमानित महसूस हुआ कि मेरी रिक्वेस्ट को गंभीरता से नहीं लिया गया. तो मैंने सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी आवाज़ उठाने का फैसला किया.” उन्होंने आगे बताया कि इस घटना को ग़लत सांप्रदायिक मोड़ देने के कारण अब उन्हें सोशल मीडिया पर वीडियो अपलोड करने का पछतावा है.

उन्होंने साफ़ तौर पर बताते हुए कहा, “मैं ये बताना चाहूंगा कि मैंने जानवरों के बलिदान का विरोध नहीं किया, बल्कि उस ज़गह पर बलिदान करने का विरोध किया था. मैंने सुझाव दिया था कि कुर्बानी मस्जिद परिसर के पीछे होनी चाहिए जो सिर्फ 200 फ़ीट की दूरी पर है.”

उन्होंने बताया, “घटना के तुरंत बाद, फ़लाह बेहबूद मस्जिद समिति ने हस्तक्षेप करते हुए इस मुद्दे को सुलझा लिया. मैं ये साफ करना चाहता हूं कि मेरी अपने पड़ोसियों से कोई दुश्मनी नहीं है.”

मस्जिद समिति की प्रतिक्रिया

ऑल्ट न्यूज़ ने फ़लाह बेहबूद समिति के अध्यक्ष, 85 साल के गुलाम रसूल कारा से बात की. उन्होंने बताया, “इस मुद्दे को लगभग दो महीने पहले सुलझा लिया गया था. मुद्दे की जड़ बलिदान की ज़गह थी. आरिफ़ जान द्वारा किए गए अनुरोध व्यावहारिक थे. आगे मैं ये बताना चाहूंगा कि इस तरह की लड़ाई आम नहीं हैं. समिति ने मामले से संबंधित पड़ोसियों को कहा कि सामूहिक बलि की रस्में घरों के पास नहीं होनी चाहिए और मस्जिद समिति की संपत्ति का उपयोग किया जाना चाहिए.”

इस तरह सोशल मीडिया यूज़र्स ने ग़लत दावा किया कि एक कश्मीरी पंडित कश्मीर में गोहत्या के खिलाफ़ मुसलमानों का विरोध कर रहा था. जबकि, दोनों पक्ष एक ही समुदाय से थे और वहां मुद्दा गायों की बलि से नहीं, बल्कि घर के पास बलि दिये जाने से संबंधित था. इस मुद्दे को उठाने वाले आरिफ़ जान साफ़-सफ़ाई को लेकर चिंतित थे.


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🙏 Blessed to have worked as a fact-checking journalist from November 2019 to February 2023.