2021 में भारत में माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफ़ॉर्म ट्विटर के अल्टरनेटिव कू पर एक यूज़र ट्रूइंडोलॉजी ने डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर के बारे में एक सीरीज में कई दावे किए. इन दावों में उनके बचपन, शिक्षा, और किस तरह उन्हें उपनाम दिया गया ये सब लिखा था. दावे में लिखा था, “बचपन में अम्बेडकर की देखभाल किसने की? एक ब्राह्मण ने! अम्बेडकर की शिक्षा का ध्यान किसने रखा? एक ब्राह्मण ने! उनका उपनाम अम्बेडकर किसने दिया? एक ब्राह्मण ने. अंबेडकर की विदेशी शिक्षा का खर्च किसने दिया? एक हिंदू राष्ट्रवादी राजा सयाजीराव गायकवाड़ ने. अम्बेडकर से शादी किसने की? एक ब्राह्मण महिला ने. अम्बेडकर की बहनों से किसने शादी की? ब्राह्मण ने. अम्बेडकरवादी किसे गाली देते हैं? हिंदूओं और ब्राम्हणों को!” (आर्काइव्ड लिंक)

इसके बाद, अक्टूबर, 2021 में ट्विटर यूज़र @BharadwajSpeaks ने इसी तरह का दावा किया. इसमें पहले किये गए दावों में से उनकी पत्नी और बहनों के बारे में किये गए 2 दावे नहीं थे. इन दावों का मतलब ये है कि डॉ. अम्बेडकर की प्रमुख उपलब्धियां दयालु ब्राह्मणों की वजह से हुई थीं. फिर भी उन्होंने ब्राह्मणों से “दुर्व्यवहार” किया. इस ट्वीट को 5 हज़ार से ज़्यादा बार रिट्वीट किया गया. ट्विटर ने इस अकाउंट को सस्पेंड कर दिया है. इस आर्टिकल के पब्लिश होने तक, अकाउंट का एक्सेस नहीं है. पाठकों को ध्यान देना चाहिए कि @BharadwajSpeaks के पास पहले TrueIndology नाम का ट्विटर अकाउंट था, जो कि काल्पनिक ऐतिहासिक दावे शेयर करने के कुख्यात था. 2017 में ऑल्ट न्यूज़ ने तीन पार्ट में ‘ट्रूइंडोलॉजी या ट्रूफ्रॉडोलॉजी‘ नामक एक सीरीज पब्लिश की जिसमें ट्रूइंडोलॉजी द्वारा ग़लत सूचना के 17 केसेज़ की पड़ताल करते हुए इनका डॉक्यूमेंटेशन किया.

इस अकाउंट ने अप्रैल 2021 में भी ऐसा ही ट्वीट पोस्ट किया था, जिसे 10 हज़ार से ज़्यादा रीट्वीट मिले थे. इसके बाद, कई भाजपा समर्थक फ़ेसबुक पेज ने @BharadwajSpeaks के ट्वीट का स्क्रीनशॉट शेयर किया. जिनमें PMO रिपोर्ट कार्ड, वी सपोर्ट अर्नब गोस्वामी, द राइट साइड, वैदिक साइंस, फ़ाइटिंग एंटीइंडिया एलिमेंट्स, और इंडियन राइट विंग कम्युनिटी शामिल हैं.

कई सोशल मीडिया यूज़र्स ने बार-बार एक ही दावा किया है. ट्विटर यूज़र @JoyantaKarmoker ने 2022 में डॉ. अम्बेडकर के जन्मदिन के अवसर पर यही ट्वीट किया. (आर्काइव्ड लिंक)

फ़ैक्ट-चेक

पहला दावा: “बचपन में अम्बेडकर की देखभाल किसने की? एक ब्राह्मण ने”

विश्लेषण: 1913 में डॉ. अम्बेडकर के पिता रामजी सकपाल का निधन हो गया. उस वक्त, डॉ. अम्बेडकर अपने बीसवें बसंत के शुरूआती दौर में थे. इस तरह, उनके पूरे बचपन में यानी, उनके जीवन के पहले 18 सालों तक उनके पिता ही वास्तविक अभिभावक थे. ‘वेटिंग फ़ॉर ए वीज़ा‘ पर आधारित, 20 पेज की डॉ. अम्बेडकर की आत्मकथात्मक जीवन कहानी (14 अप्रैल, 1891 – 6 दिसंबर, 1956), ‘ए चाइल्डहुड जर्नी टू कोरेगांव बीज़ ए नाइटमेयर’ अध्याय में उनके पिता के व्यवसाय के बारे में बताया गया है.

डॉ. अम्बेडकर ने लिखा कि वे महार समुदाय से थे और 10 साल की उम्र से पहले ही उन्होंने अपनी मां को खो दिया था. बॉम्बे प्रेसीडेंसी में उन्हें अछूत माना जाता था. उनका परिवार मूल रूप से बॉम्बे प्रेसीडेंसी के रत्नागिरी ज़िले के दापोली तालुका से आया था. उनके पिता, अपने पूर्वजों की तरह, सेना में शामिल हुए और सूबेदार के रूप में रिटायर्ड हुए. वे 1904 तक सतारा में रहे. इस सेक्शन में वो एक घटना के बारे में बताते हैं जब उनके पिता को शहर से बाहर जाना पड़ा था. यहां, हमें ये पता चलता है कि उनके पिता ने उन्हें किसी ब्राह्मण की देखरेख में नहीं छोड़ा था.

जब मेरे पिता कोरेगांव गए तो उन्होंने मुझे और मेरे बड़े भाई, और मेरी सबसे बड़ी बहन (जो मर चुकी है) के दो बेटों को, मेरी चाची और कुछ पड़ोसियों की देखरेख में छोड़ दिया था. मेरी चाची मेरी जानकारी में सबसे दयालु आत्मा थीं, लेकिन उन्होंने हमारी कोई मदद नहीं की. वो कद में काफी छोटी (बौनी) महिला थीं और उनके पैरों में कुछ परेशानी थी, जिसकी वजह से वो बिना किसी सहायता के चलना उनके मुश्किल हो गया था. उन्हें कई बार उठाना पड़ता था. मेरी बहनें थीं. वे शादीशुदा थीं और अपने परिवार के साथ रह रही थीं.”

– ‘वेटिंग फ़ॉर ए वीज़ा’ का एक हिस्सा’

इस पैराग्राफ़ को पढ़कर ऐसा लगता है कि उनकी चाची अपने स्वास्थ्य की वजह से उनकी ज़रूरी देखरेख नहीं कर पायी थीं. इसलिए उनके पिता ने उन्हें उनके बड़े भाई और पड़ोसी की निगरानी में छोड़ दिया था. जाहिर सी बात है, उनके बड़े भाई ब्राह्मण नहीं थे. इस तरह अब हमें ये वेरीफ़ाई करना है कि उनके पड़ोसी ब्राह्मण थे या नहीं.

ऑल्ट न्यूज़ ने बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय के एक शिक्षाविद से संपर्क किया. नाम उजागर न करने के रिक्वेस्ट पर प्रोफ़ेसर ने कहा, “हम एक सदी पहले के सामाजिक स्तरीकरण के बारे में बात कर रहे हैं, जब जातिवाद मौजूद था. इस बात की संभावना नहीं है कि अम्बेडकर के पड़ोसी ब्राह्मण होंगे.”

पाठक ध्यान दें कि डॉ. अम्बेडकर का घर सतारा के सदर बाज़ार में है. ऑल्ट न्यूज़ ने सतारा के मीडिया एडवोकेसी एक्टिविस्ट सिद्धार्थ खराथ से बात की. उन्होंने बताया, “सदर बाजार क्षेत्र में चार वार्ड शामिल हैं, ये सभी अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. सरकारी डॉक्यूमेंट सतारा नगर परिषद अनुबंध 2 [PDF देखें] में इसका ज़िक्र किया गया है जिसे आम चुनाव 2021-2022 के लिए तैयार किया गया था. डॉक्यूमेंट में सदर बाज़ार में विशेष वार्डों के लिए बॉर्डर और उसका डिस्क्रिप्शन शामिल है. 4 वार्डों में से 2 वार्ड एक कर दिए गए हैं – डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर का पुराना बंगला, जिसे अब “अमाने बंगला” कहा जाता है साथ ही इसे डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर की मां स्वर्गीय भीमाबाई अम्बेडकर की कब्र के रूप में भी जाना जाता है.”

निष्कर्ष: कुल मिलाकर डॉ. अम्बेडकर के बचपन में उनके पिता ही उनके असली अभिभावक थे. उनकी आत्मकथा और बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय के एक शिक्षाविद के बयान के आधार पर, ये संभावना नहीं है कि उनके पड़ोसी ब्राह्मण समुदाय से होंगे. यानी, इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि बचपन में अम्बेडकर की देखरेख ब्राह्मण ने की थी.

दूसरा दावा: अम्बेडकर की शिक्षा की देखरेख किसने की? एक ब्राह्मण ने

तीसरा दावा: अम्बेडकर की विदेशी शिक्षा का खर्च किसने दिया? एक हिंदू राष्ट्रवादी राजा सयाजीराव गायकवाडी ने

फ़ैक्ट-चेक: दूसरा दावे में ये नहीं बताया गया है कि किस प्रकार की शिक्षा की बात की जा रही है. हालांकि, इसके बाद किए गए दावे में विदेश में उनकी उच्च शिक्षा का ज़िक्र है. इसका मतलब, ये दावा शायद अम्बेडकर की हाई स्कूल शिक्षा के बारे में किया गया है.

डॉ. अम्बेडकर की जीवनी लिखने वाले लेखक धनंजय कीर ने 1956 में अपनी किताब ‘डॉ. अम्बेडकर: लाइफ़ एंड मिशन‘ लिखी. इस किताब में उन्होंने लिखा है कि पांच साल के अम्बेडकर का दापोली के एक स्कूल में दाखिला कराया गया था. ये महाराष्ट्र के रत्नागिरी ज़िले का एक शहर है. इसके बाद जब अम्बेडकर की प्राथमिक शिक्षा का ज़िक्र किया गया है, तब वो सतारा में रह रहे थे. धनंजय कीर ने इस समय (1896-1906) के दौरान शिक्षा के लिए पैसे की कोई कमी न होने का ज़िक्र किया है. ये ध्यान देने वाली बात है कि उनके पिता एक सेना में सूबेदार की पोस्ट से रिटायर्ड थे, इसलिए प्राथमिक शिक्षा का खर्च करने लायक था.

इसके बाद के टेक्स्ट में, उन्होंने लिखा कि अम्बेडकर की इंटर-आर्ट्स परीक्षा के बाद अम्बेडकर के पिता के पास पैसे की कमी हो गई. उनकी पोस्ट-मैट्रिक शिक्षा मुंबई के एलफिंस्टन कॉलेज में हुई. जिसका खर्च एक मराठा शासक, बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय ने उठाया था.

सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय 1875 से 1939 तक बड़ौदा राज्य के महाराजा थे. भारत सरकार की एक वेबसाइट के मुताबिक, वो मत्रे नामक एक मराठा वंश से थे, जिसका मतलब है मंत्री. गायकवाड़ को एक प्रगतिशील शासक के रूप में जाना जाता है. बेटर इंडिया के एक आर्टिकल में कहा गया है, “उनके कार्यकाल में 1893 में बाल विवाह की समाप्ति, विधवा विवाह को कानूनी मान्यता और मुफ्त और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा की शुरुआत हुई.”

“भारतीय राजकुमारों में बड़ौदा के श्री सयाजीराव गायकवाड़ ही थे जिन्होंने 1883 में अछूतों के लिए स्कूल शुरू किए थे. लेकिन उन दिनों उनके राज्य को उन स्कूलों के विकास के लिए मुस्लिम शिक्षकों पर निर्भर रहना पड़ा था, क्योंकि हिंदू जाति के शिक्षक उन स्कूलों में शिक्षक पदों को स्वीकार नहीं किया.”

– धनंजय कीर की किताब डॉ. अम्बेडकर: लाइफ़ और मिशन का एक हिस्सा

विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर मौजूद ‘राइटिंग्स एंड स्पीचेज ऑफ़ डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर’ के वॉल्यूम 17 के भाग एक में गायकवाड़ और डॉ. अम्बेडकर के बीच हुई बातचीत का अंश है.

H. H. महाराजा: इन विषयों का अध्ययन करके आप क्या करेंगे?

भीमराव: इन विषयों के अध्ययन से मुझे अपने समाज की दयनीय स्थिति में सुधार के संकेत मिलेंगे और मैं उसी आधार पर समाज सुधार का काम करूंगा.

H. H. महाराजा: (हंसते हुए) लेकिन आप हमारी सेवा करने जा रहे हैं, है ना? फिर कैसे पढ़ेंगे, सेवा करेंगे और समाज सेवा भी करेंगे?

भीमराव: यदि परम पूज्य महाराज मुझे उचित अवसर देते हैं, तो मैं सब कुछ कर लूंगा.

H. H. महाराजा: मैं उसी आधार पर सोच रहा हूं. मैं आपको अमेरिका भेजने की सोच रहा हूं आप जाओगे?

भीमराव: हां सर.

H. H. महाराजा: अब आप जा सकते हैं. हमारे अकादमिक अधिकारी को छात्रवृत्ति के लिए विदेशी प्रस्तावित अध्ययन का एक आवेदन भेजें और मुझे तदनुसार सूचित करें.

ऑल्ट न्यूज़ ने वॉल्यूम 17 से 22 तक ‘राइटिंग्स एंड स्पीचेज ऑफ़ डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर’ के संपादक हरि नारके से बात की. नारके को उत्तरी अमेरिका के अम्बेडकर एसोसिएशन द्वारा 2022 के ‘डॉ अम्बेडकर अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है.

हरि नारके ने ऑल्ट न्यूज़ को बताया, “महाराजा सयाजीराव एक प्रगतिशील राजा थे. दरअसल, वो हिंदू थे लेकिन उन्हें “हिंदू राष्ट्रवादी राजा” के रूप में लेबल करना ग़लत होगा क्योंकि “हिंदू राष्ट्रवादी” शब्द राजनीतिक है और अक्सर एक रूढ़िवादी व्यक्ति के लिए इस्तेमाल किया जाता है.

निष्कर्ष: कुल मिलाकर, सयाजीराव गायकवाड़ ने डॉ. अम्बेडकर की विदेश शिक्षा का खर्चा उठाया था. हालांकि, सयाजीराव को “हिंदू राष्ट्रवादी राजा” के रूप में लेबल करना बिल्कुल ग़लत है. इस दावे का कोई सबूत नहीं है कि एक ब्राह्मण ने अम्बेडकर की शिक्षा का खर्चा उठाया था.

चौथा दावा: अम्बेडकर से शादी किसने की? एक ब्राह्मण महिला ने

फ़ैक्ट-चेक: डॉ. अम्बेडकर ने अपने जीवनकाल में दो शादियां कीं. फ़र्स्टपोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, रमाबाई भीमराव अम्बेडकर डॉ. अम्बेडकर की पहली पत्नी थीं. वो एक गरीब दलित परिवार से ताल्लुक रखती थीं. 1906 में उनकी शादी के समय उनकी उम्र 9 साल थी, जबकि डॉ. अम्बेडकर की उम्र 15 साल थी. उनके शादी के 29 साल बाद लंबी बीमारी की वजह से रमाबाई का निधन हो गया.

इसके तेरह साल बाद, डॉ. अम्बेडकर ने डॉ. शारदा कबीर से शादी की. शादी के बाद उन्होंने अपना नाम सविता अम्बेडकर रख लिया. द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, “एक मध्यमवर्गीय सारस्वत ब्राह्मण परिवार में जन्मी, डॉ. शारदा कबीर जब अम्बेडकर से मिलीं तो उन्होंने जानलेवा बीमारियों से ग्रसित एक मरीज के रूप में डॉ. BR अम्बेडकर को जाना. उन्होंने 15 अप्रैल, 1948 को उनसे शादी की और अपना नाम बदलकर सविता अम्बेडकर रख लिया.”

डॉ. अम्बेडकर की पत्नी की जाति से जाति व्यवस्था के बारे में उनकी राय या ब्राह्मणों पर उनके विचार का पता नहीं लगाया जा सकता. डॉ. अम्बेडकर ने भारत में जाति व्यवस्था को तोड़ने के लिए अंतर्जातीय विवाह की वकालत की थी.

“जाति उन्मूलन के लिए एक और काम, अंतर-जातीय भोज शुरू करना है. ये उपाय भी मेरी राय में पर्याप्त नहीं है. ऐसी कई जातियां हैं जिनमें अंतर-जातीय भोज की अनुमति है. लेकिन ये एक सामान्य अनुभव है कि अंतर-जातीय भोज जाति की भावना और जाति की चेतना को मारने में सफल नहीं है. मुझे विश्वास है कि असली उपाय अंतर जातीय विवाह है. खून के मेल से ही नातेदारी की भावना पैदा हो सकती है, और रिश्तेदारी की इस भावना से ही अंतर जातीय शादी की भावना पैदा हो सकती है. सिर्फ खून के मेल से ही नातेदारी की भावना पैदा हो सकती है. और जब तक नातेदारी की ये भावना सबसे उपर नहीं हो जाती, जाति द्वारा निर्मित अलगाववादी भावना समाज से गायब नहीं होगी. हिंदुओं के बीच, गैर-हिंदुओं के जीवन में अंतर्विवाह अनिवार्य रूप से सामाजिक जीवन में अधिक मजबूती का कारक होना चाहिए. जहां समाज पहले से ही दूसरे कई बंधनों से बंधा हुआ है, वहां शादी जीवन की एक सामान्य घटना है. लेकिन जहां समाज को इससे अलग कर दिया जाता है, वहां विवाह जो एक बंधन है वो तत्काल ज़रूरत का विषय बन जाता है. जाति को तोड़ने का असली उपाय अंतर जातीय विवाह है. और कुछ भी जाति के विलायक के रूप में काम नहीं करेगा.”

– ‘अनायलेशन ऑफ़ कास्ट’ का एक हिस्सा

निष्कर्ष: कुल मिलाकर, ये दावा सही है कि डॉ. अम्बेडकर ने एक ब्राह्मण महिला से शादी की थी. हालांकि, इससे पूरी कहानी का पता नहीं चलता है. डॉ. अम्बेडकर की पहली पत्नी दलित समुदाय से थीं और उनकी दूसरी पत्नी ने शादी के बाद बौद्ध धर्म अपना लिया था.

पांचवा दावा: अम्बेडकर की बहनों से किसने शादी की? ब्राह्मणों ने

फ़ैक्ट-चेक: डॉ. अम्बेडकर की जीवनी में धनंजय कीर ने लिखा है कि अम्बेडकर 14 भाई-बहन थे. हालांकि, जब तक वे सतारा सिफ्ट हुए, तब तक सिर्फ दो बहनें और तीन भाई ही जीवित थे. इनमें “बलराम सबसे बड़े थे, आंद्राव दूसरे थे, उसके बाद दो बेटियां मंजुला और तुलसी और सबसे छोटा भीम था.” पेज 34 पर, बहन की शादी के बारे में बात करते हुए उन्होंने ये ज़िक्र नहीं किया कि उनकी शादी ब्राह्मणों से हुई थी. धनंजय कीर ने इसके बाद किताब में बहनों का ज़िक्र नहीं किया है.

हरि नारके ने कहा, “ये दावा बिल्कुल ग़लत है. दोनों बहनों की शादी उन्हीं की जाति के लड़कों से हुई थी.” एक ईमेल एक्सचेंज पर, डॉ. अम्बेडकर के पोते, प्रकाश अम्बेडकर ने ऑल्ट न्यूज़ को बताया, “केवल डॉ. अम्बेडकर ने अंतर्जातीय विवाह की थी. उनके किसी भी भाई-बहन ने ऐसा नहीं किया था.”

निष्कर्ष: इस दावे का कोई सबूत नहीं है कि डॉ. अम्बेडकर की बहनों की शादी ब्राम्हणों से हुई थी. डॉ. अम्बेडकर के पोते ने इस दावे को ग़लत बताया.

छठा दावा: अम्बेडकर को उनका उपनाम किसने दिया था? एक ब्राह्मण ने

फ़ैक्ट-चेक: धनंजय कीर ने अपनी किताब के एक सेक्शन में ‘अम्बेडकर’ उपनाम बारे में लिखा है. धनंजय कीर के मुताबिक, एक ब्राह्मण शिक्षक ने डॉ. अम्बेडकर को अपना उपनाम दिया था. हालांकि, उन्होंने उस शिक्षक का नाम नहीं बताया.

2009 में आयी किताब ‘जियोग्राफ़िकल थॉट ऑफ़ डॉ बीआर अंबेडकर’ के लेखक, दीपक महादेव राव वानखेड़े ने दावा किया कि जिस शिक्षक ने उपनाम ‘अंबावडेकर’ को अम्बेडकर में बदल दिया, उनका नाम कृष्णा केशव अम्बेडकर था.

2022 में ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने रिपोर्ट किया कि अंबावडेकर सरनेम महाराष्ट्र के रत्नागिरी ज़िले में डॉ. अम्बेडकर एक पैतृक गांव अंबावड़े के नाम से लिया गया था. रिपोर्ट में आगे कहा गया है, “उनके शिक्षक, महादेव अम्बेडकर उनसे बहुत प्यार करते थे, शिक्षक ने भीमराव रामजी का उपनाम बदलकर अम्बेडकर कर दिया था.”

हरि नारके ने कहा, “लोग इस मुद्दे पर बंटे हुए हैं. हालांकि, मेरे शोध और मेरे साथियों के काम के आधार पर मैं बिना किसी हिचकिचाहट के कह सकता हूं कि डॉ. अम्बेडकर के प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक कृष्णजी केशव अम्बेडकर ने उन्हें उनका उपनाम दिया था.” हरि नारके ने तीन पीढ़ियों के परिजनों की तस्वीर के साथ शिक्षक का एक स्केच भी दिखाया.

उन्होंने आगे कहा, “धनंजय कीर, चांगदेव भवनराव खैरमोडे और वसंत मून द्वारा अम्बेडकर के जीवनी पर किए गए काम के अलावा, 13 अप्रैल, 1947 को मराठी-साप्ताहिक नवयुग द्वारा पब्लिश इंटरव्यू, सबसे ‘पुख्ता’ प्रमाण है. इस आर्टिकल के अनुसार, डॉ. अम्बेडकर ने प्रोफ़ेसर सत्यबोध हुदलीकर से कहा था कि कृष्णजी केशव अम्बेडकर ने उन्हें अपना उपनाम दिया था. हालांकि, इस आर्टिकल की कोई सॉफ्ट कॉपी नहीं है, हरि नारके ने खैरमोडे की किताब से संबंधित हिस्से की एक तस्वीर शेयर की. ऑल्ट न्यूज़ ने इस कंटेंट का अनुवाद करने के लिए गूगल लेंस का इस्तेमाल किया और देखा कि खैरमोडे ने असल में नवयुग को इस बात के सबूत के रूप में कोट किया है कि डॉ. अम्बेडकर ने खुद कहा था कि एक ब्राह्मण शिक्षक ने उन्हें उनका उपनाम दिया था.

हरि नारके ने आगे कहा, “खैरमोडे और मून के मुताबिक, कृष्णजी केशव अम्बेडकर ने लंदन में 1930 के गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए मुंबई से प्रस्थान करने से पहले डॉ. अंबेडकर से मुलाकात की थी. पूछताछ करने पर, हरि नारके ने स्पष्ट किया कि खैरमोडे और मून अम्बेडकर उसी महार समुदाय से थे, जिस समुदाय से अम्बेडकर आते थे. इन्हें वर्तमान में बौद्धों के रूप में जाना जाता है. हालांकि, प्रोफ़ेसर सत्यबोध हुदलीकर ब्राह्मण जाति से आते हैं.”

ABP माझा के 2019 के एक कार्यक्रम में, जब डॉ. अम्बेडकर के पोते, प्रकाश यशवंत अम्बेडकर को ये सवाल पूछा गया कि क्या सच में एक ब्राह्मण शिक्षक ने डॉ. अम्बेडकर को उनका उपनाम दिया था. उन्होंने (44 मिनट 40 सेकेंड पर) जवाब देते हुए कहा, “ये सच था.” प्रकाश वंचित बहुजन अघाड़ी नामक राजनीतिक दल के अध्यक्ष भी हैं.

निष्कर्ष: ऑल्ट न्यूज़ ने डॉ. अम्बेडकर के एक अन्य रिश्तेदार राजरत्न अम्बेडकर से बात की. उन्होंने बताया कि एक ब्राह्मण शिक्षक ने डॉ. अंबेडकर का उपनाम बदल दिया था. हालांकि, पाठकों को ये ध्यान देना चाहिए कि ऐसे ठोस सबूत मौजूद हैं जो बताते हैं कि डॉ. अम्बेडकर ने 1947 में मराठी पत्रिका नवयुग के साथ एक इंटरव्यू में एक ब्राह्मण शिक्षक से अपना उपनाम प्राप्त करने के बारे में कहा था.

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🙏 Blessed to have worked as a fact-checking journalist from November 2019 to February 2023.