सोशल मीडिया पर एक अखबार की तस्वीर वायरल हो रही है जिसमें एक तरफ कथित खबर है कि 18 जनवरी को दिल्ली में दूल्हे ने मेहमानों के मनोरंजन के लिए ‘चोली के पीछे क्या है’ गाने पर डांस किया. इससे दुल्हन के पिता नाराज़ हो गए और उन्होंने शादी तोड़ दी. वहीं बगल में फ्री कंटेंट देने वाले OTT प्लेटफॉर्म Amazon MX Player का विज्ञापन है जिसमें लिखा है कि हर किसी को फ्री का मनोरंजन पसंद होता है.

चूंकि कथित खबर मेहमानों के मनोरंजन से जुड़ी है और दूसरी तरफ विज्ञापन में फ्री मनोरंजन की बात की जा रही है. इसलिए इस अखबार की कटिंग सोशल मीडिया पर खूब शेयर की जाने लगी और कहा जाने लगा कि इस खबर की प्लेसमेंट बहुत परफेक्ट है.

इस तस्वीर के वायरल होने के बाद कई मीडिया आउटलेट्स ने अखबार में विज्ञापन के बगल में प्रकाशित कथित खबर को सच मानकर इसे आगे बढ़ाया. इसमें हिन्दी, अंग्रेजी के कई प्रमुख मीडिया आउटलेट्स जैसे न्यूज़18, टाइम्स ऑफ इंडिया, लाइव मिंट, डेक्कन क्रॉनिकल, इकनॉमिक टाइम्स, इंडिया टीवी न्यूज़, डीएनए, मातृभूमि, इंडियन एक्सप्रेस, रिपब्लिक, डेक्कन हेराल्ड, एबीपी न्यूज़, न्यूज़18 हिंदी, वन इंडिया, एनडीटीवी इंडिया, जनसत्ता, एबीपी न्यूज़ हिंदी शामिल हैं.

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फ़ैक्ट-चेक

पहली नज़र में ही यह एक विज्ञापन रणनीति का हिस्सा प्रतीत होता है क्यूंकि यह न्यूज़ क्लस्टर (कई आउटलेट्स में इसे न्यूज़ पैकेज भी कहा जाता है) फॉर्मेट को फॉलो करता है, हालांकि, ये फॉर्मेट खबरों के लिए इस्तेमाल किया जाता है लेकिन इस मामले में विज्ञापन और समाचार एक ही विषय साझा करते हैं. न्यूज़ क्लस्टर का इस्तेमाल कई संबंधित खबरों को एक साथ एक सुसंगत तरीके से प्रेजेंट करने के लिए किया जाता है जिससे पाठक आसानी से खबरों के बीच संबंधों को देख सकें. इसका मकसद कई संबंधित खबरों का संदर्भ प्रदान करना और पाठक के समझ को बढ़ाना होता है. जब दो या अधिक समाचार किसी तरीके से एक दूसरे से संबंध रखते हैं जैसे कि एक ही कहानी के दो अलग पहलू, या एक विषय साझा करने वाली खबरें, तो उन्हें एक साथ प्रस्तुत करने से पाठकों को उन्हें समझने में मदद मिलती है. अखबार में अक्सर न्यूज़ क्लस्टर का इस्तेमाल करते वक्त उसे अलग रखते हुए एक बॉर्डर के अंदर रखा जाता है ताकि उनमें संबंध स्पष्ट रूप से दिखाई दे.

  • अखबारों में बॉर्डर का विशेष महत्व होता है, जिसका उपयोग दो समाचारों या विज्ञापनों के बीच अलगाव या संबंध दर्शाने के लिए किया जाता है. इस खबर और विज्ञापन का एक ही बॉर्डर के भीतर होना उनके नियोजित और संबंधित होने का संदेह पैदा करता है.
  • यह कथित खबर विज्ञापन के उद्देश्य से पूरी तरह मेल खाता है. इसके अलावा इसकी हेडलाइन में फुल स्टॉप का इस्तेमाल किया गया है, जो आमतौर पर अखबारों की हेडलाइन में इस्तेमाल नहीं होता. इस समाचार की न तो कोई बायलाइन है और न ही कोई प्लेसलाइन.

वायरल तस्वीर को ज़ूम करके देखने पर हमें ऊपर की तरफ़ छोटे अक्षरों में एक और ख़बर की 2-3 लाइनें दिखीं जिसमें एक जगह लिखा है, “I will make them excellent. But if you ask me to engage in abuses”. जब हमने इस लाइन को गूगल पर एडवांस सर्च किया तो हमें द पायनियर नाम की वेबसाइट पर 30 जनवरी को छपी एक ऐसी ही ख़बर मिली, जिसका हेडलाइन है, “Kejriwal calls Congress ‘vote cutter’.”

क्यूंकि ये खबर 30 जनवरी को छपी थी, हमने ‘द पायनियर’ अखबार के दिल्ली संस्करण के 30 जनवरी का ई-पेपर चेक किया. हमें ये विज्ञापन और कथित खबर उस अखबार के तीसरे पेज पर मिला. अब गौर करने वाली बात ये भी है कि ‘चोली के पीछे क्या है’ गाने पर डांस की वजह से शादी टूटने की 18 जनवरी की कथित खबर 30 जनवरी के अखबार में छपी थी, जो बेहद अजीब है.

इस मामले पर हमने ‘द पायनियर’ अखबार के एक अधिकारी से बात की. उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर पुष्टि की कि ‘चोली के पीछे क्या है’ गाने पर डांस वजह से शादी टूटने की बात कोई खबर नहीं बल्कि एक ऐड्वर्टॉरीअल है जो विज्ञापन एजेंसी ने उन्हें प्रकाशित करने के लिए दिया था.

कहां होता है ऐड्वर्टॉरीअल का जिक्र?

कभी-कभी अखबार ऐसे विज्ञापन चलाते हैं जो खबर जैसे दिखते हैं, लेकिन वे पेज पर कहीं ‘advertorial’ या ‘consumer connect’ जैसे शब्दों का डिसक्लेमर के रूप में उल्लेख करते हैं. यह बुनियादी संपादकीय अभ्यास है. उदाहरण के लिए, 5 फरवरी 2025 को प्रकाशित टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार के मुंबई संस्करण का पेज नंबर 25 एक ऐड्वर्टॉरीअल है और पेज के ऊपरी-दाईं ओर छोटे अक्षरों में ‘ADVERTORIAL’ लिखा गया है.

बिना ‘advertorial’ या ‘consumer connect’ जैसे डिसक्लेमर के बिना खबर की आड़ में विज्ञापन प्रकाशित करना संपादकीय अखंडता की कमी को दर्शाता है और पाठकों के लिए यह भ्रामक हो सकता है. अखबारों की ज़िम्मेदारी है कि वे खबर और विज्ञापन के बीच स्पष्ट अंतर बनाए रखें. जब वे ऐसा करने में विफल होते हैं, तो इससे पाठक का भरोसा खत्म हो जाता है और गलत सूचना फैलने लगती है. हालिया मामला इसका बेहतरीन उदाहरण है जिसमें इतने सारे मीडिया आउटलेट द पायनियर अखबार द्वारा प्रकाशित विज्ञापन के झांसे में आ गए और गलत सूचना का एक चक्र पैदा हो गया.

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Abhishek is a senior fact-checking journalist and researcher at Alt News. He has a keen interest in information verification and technology. He is always eager to learn new skills, explore new OSINT tools and techniques. Prior to joining Alt News, he worked in the field of content development and analysis with a major focus on Search Engine Optimization (SEO).