वेरिफ़ाईड ट्विटर यूज़र अर्पिता शैवा ने इस महीने की शुरुआत में एक तस्वीर ट्वीट करते हुए लिखा, ‘उसका अब्दुल अलग था.’ तस्वीर में एक व्यक्ति मोटरसाइकिल पर कथित तौर पर शव ले जा रहा था. हालांकि छोटे और सौम्य लगने वाले इस कैप्शन का मतलब है सार्वजनिक चर्चा में हर मुसलमान का अमानवीयकरण किया जाना. हाल ही में ‘अब्दुल’ सामाजिक और मेनस्ट्रीम मीडिया में मुस्लिम व्यक्तियों के लिए एक प्लेसहोल्डर नाम बन गया है. मुख्य रूप से राईट विंग इंफ्लुएन्सर द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली कैचलाइन ‘मेरा अब्दुल अलग है’ असल में मुसलमान से जुड़े अंतर-धार्मिक संबंधों पर एक व्यंग्यात्मक टिप्पणी है जिसमें उन सभी मुसलमानों को एक ही केटेगरी का बताया गया है और इस बात पर जोर दिया गया है कि सभी मुस्लिम व्यक्ति हत्यारे हैं.

ऑल्ट न्यूज़ के फ़ैक्ट चेक के मुताबिक, अर्पिता शैवा ने जो तस्वीर ट्वीट की थी उसमें एक बाइक सवार असल में काहिरा के एक गारमेंट स्टोर तक एक डिसमेंटल पुतला ले जा रहा है.

‘अब्दुल’ ट्रोप

अरबी में ‘अब्द अल’ शब्द का मतलब है ‘…का नौकर.’ इस तरह, ‘अब्दुल‘ आम तौर पर एक यौगिक नाम का एक हिस्सा है जो कुरान या हदीस में बताए गए अल्लाह के गुणों में से एक को संदर्भित करता है. और इस नाम का मतलब ‘भगवान का सेवक’ (‘अब्दुल अजीज’ का मतलब है शक्तिशाली का सेवक) होगा. अब्दुल, मुसलमानों का एक कॉमन नाम है.

हमें दिसंबर 2014 की शुरुआत में मुसलमानों को संदर्भित करने के लिए ‘अब्दुल’ नाम के इस्तेमाल के उदाहरण मिले. 2014 में हुए बेंगलुरु ब्लास्ट के संदर्भ में कई यूज़र्स ने ट्वीट किया था, “हिंदू’ तो मंदबुद्धी, और अब्दुल निकला तो आतंकी.” उस वक्त आरोपी ने बम से उड़ाने की धमकी जारी करने के लिए अब्दुल खान नाम का इस्तेमाल करके एक फ़र्ज़ी सोशल मीडिया अकाउंट बनाया था. बाद में वो हिंदू निकला. उस वक्त, एक ठोस नैरेटिव से ज़्यादा ये सिर्फ एक व्यंग्यात्मक टिपण्णी था.

पिछले कुछ सालों से इस ट्रोप का इस्तेमाल कई यूज़र्स करते आ रहे हैं. इनमें इंफ्लुएंसर भी शामिल थे जिन्होंने मुस्लिम व्यक्तियों को जनरलाइज करने की कोशिश करते हुए एक मैसेज देने की कोशिश की थी. नकारात्मक मतलबों के साथ इस ट्रोप का इस्तेमाल किए जाने का शुरुआती उदाहरण ऑल्ट न्यूज़ को नवंबर 2016 का मिला. कई यूज़र्स ने एक व्यंग्यात्मक मैसेज ट्वीट किया था जिसमें मुसलमानों को खुश करने की विपक्ष की कोशिशों की आलोचना की गई थी. टेक्स्ट में लिखा है, “सिमी एनकाउंटर फर्जी, सर्जिकल स्ट्राइक फर्जी, काला धन वापसी फर्जी, देश का विकास फर्जी, मैं भौकूं जी, मेरी मर्ज़ी, वोट देगा मेरा अब्दुल दर्जी”.

श्रद्धा वॉकर मर्डर: ‘अब्दुल’ ट्रोप को सामान्य बनाने की शुरुआत

2022 में ‘अब्दुल’ शब्द का इस्तेमाल सामान्य बन गया और बड़े पैमाने पर जनता तक इसकी पहुंच हो गई. 26 साल की श्रद्धा वाकर की भीषण हत्या की ख़बर सामने आने के बाद, सोशल मीडिया पर ‘अब्दुल‘ एक ट्रेंडिंग टॉपिक बन गया था. क्योंकि इस हत्याकांड का आरोपी श्रद्धा वाकर का मुस्लिम पार्टनर आफ़ताब अमीन पूनावाला था. राईट विंग इकोसिस्टम ने ये कहकर मुस्लिम समुदाय को बदनाम करने की कोशिश की कि किसी मुस्लिम आदमी या ‘अब्दुल’ के साथ रिलेशन रखने पर आपका भी वही हाल होगा जो श्रद्धा वॉकर का हुआ. ऑपइंडिया की मुख्य संपादक नूपुर जे शर्मा ने ट्वीट किया, “आपका अब्दुल भी वैसा ही है.” उनके ट्वीट को 30 हज़ार लाइक्स और करीब 7 हज़ार रीट्वीट्स मिले.

इसके बाद, ‘अब्दुल’ ट्रोप को पहले से मौजूद ‘लव जिहाद’ कॉन्सपीरेसी थ्योरी के साथ जोड़ा गया. एक कथित अपराध को आरोपी की धार्मिक पहचान से जोड़कर पूरे मुस्लिम समुदाय को जवाबदेह ठहराया जाने लगा. ध्यान देना चाहिए कि, ‘अब्दुल’ नैरेटिव मेनस्ट्रीम टेलीविज़न में भी फैल गया. न्यूज़ एंकर हेट क्राइम को रिपोर्ट करते समय खुलेआम इस शब्द का इस्तेमाल करते हैं.

उदाहरण के लिए, 9 जून, 2023 को ज़ी न्यूज़ ने कथित ‘लव जिहाद’ के एक मामले पर अपनी रिपोर्ट की एक क्लिप ट्वीट की. इसमें उन्होंने दावा किया कि एक 20 साल की हिंदू महिला, एक ऐसे व्यक्ति के साथ रिलेशन में थी जिसने कथित तौर पर अपनी मुस्लिम पहचान छिपाई थी. बाद में उस शख्स ने महिला को इस्लाम अपनाने के लिए मजबूर किया और परिणामस्वरूप उस महिला ने आत्महत्या कर ली. इस क्लिप का कैप्शन था, “मेरा अब्दुल वैसा नहीं है” वालों के लिए सबसे बड़ा सबक है ये केस.” चैनल ने अपनी पूरी रिपोर्ट में “उसका ‘अब्दुल’ भी वही निकला” जैसे सांकेतिक टिकर चलाए. (आर्काइव)

8 जून, 2023 को राईट विंग प्रॉपगेंडा आउटलेट सुदर्शन न्यूज़ के ऑफ़िशियल हैंडल ने संगमनेर में सुरेश चव्हाणके के भाषण की एक क्लिप ट्वीट की. इसका कैप्शन था, “संगमनेर का हिंदू कहता था “मेरा अब्दुल वैसा नहीं है तो सुरेश चव्हाणके जी ने बताया उसने क्या किया.” आगे, सुरेश चव्हाणके के मराठी भाषण का अनुवाद है:

‘संगमनेर के लोग कहते थे ‘मेरा अब्दुल वैसा नहीं है’, लेकिन आपके अब्दुल ने अब आपको दिखाया है कि अगर आपकी बेटी उसके ऑटो-रिक्शा में बैठती है – वो उसके चाचा के उम्र का है – वो जानबूझकर उसे आगे अपने साथ बैठाता है और उसके स्तनों को छूता है. वो पापी है. उसने आपको दिखाया है कि अगर आप उसकी बेकरी से रोटी खरीदते हैं, तो उसमें उसका थूक मिला होता है. उसने आपको दिखाया है कि अगर आप अब्दुल से बिरयानी खरीदते हैं, तो उस बिरयानी में आपको नपुंसक बनाने की गोलियां होती हैं. अब्दुल ने आपको दिखाया है कि जब भी कोई प्रमुख व्यक्ति हमारे यहां आता है, तो 14-15 साल का हरा पिलवड [पिल्लों के लिए इस्तेमाल की जाने वाली गाली] उन्हें मार देता है या उन पर हमला कर देता है. जिस आदमी का गांव में इतना सम्मान है, उसे संगमनेर में शर्मिंदा और अपमानित किया जाता है. क्या अब आप अपमान सहेंगे? [ऑडियंस जवाब देती है: नहीं] क्या आप जैसे को तैसा करने जा रहे हैं? [ऑडियंस जवाब देती है: हां].’

जैसा कि साफ है, सुरेश चव्हाणके ने पूरे क्लिप में मुसलमानों को संबोधित करने के लिए ‘अब्दुल’ शब्द का इस्तेमाल किया. साथ ही काल्पनिक परिदृश्यों का इस्तेमाल करके पूरे समुदाय को दानव की तरह दिखाने की कोशिश की. (आर्काइव)

ये ध्यान देने वाली बात है कि पहले भी ऑल्ट न्यूज़ ने मुसलमानों द्वारा खाने पीने वाली चीजों में थूकने या बिरयानी में नपुंसकता की गोलियां डालने जैसे दावों की जांच कर उन्हें बेतुका पाया है.

ABP न्यूज़ ने एक ओपिनियन आर्टिकल को टाइटल दिया था, “कोई कल्पना नहीं, ठोस हकीकत है लव-जिहाद, 400 से अधिक ऐसे मामलों की पूरी सूची दिसंबर में हमने सौंपी.” विश्व हिंदू परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल ने देश भर में धर्मांतरण विरोधी कानून बनाने और ‘लव जिहाद’ के अपराध करने वालों के लिए कठोर दंड की मांग की. उन्होंने लिखा, ‘हिंदू समाज के अंदर भी बहुतेरे लोग सेकुलर-ब्रिगेड के ट्रैप में हैं. वे कहते हैं कि हिंदू-मुसलमान से क्या फर्क पड़ता है, मेरा अब्दुल ऐसा नहीं है. अब जो स्थितियां ऐसी आ रही हैं कि कोई भी अब्दुल कैसा भी हो, उसके अंदर का अब्दुल्ला कब निकल जाएगा, किसी को पता नहीं है.’

ऑडियो-विज़ुअल मीडिया में ‘अब्दुल’

राईट विंग इकोसिस्टम के पास ‘लव जिहाद’ और ‘अब्दुल’ बयानबाज़ी के बड़े नैरेटिव के लिए अलग-अलग प्रकार की ऑडियो-विज़ुअल कंटेंट है जिसमें बिना सोचे-समझे ‘हिंदू समाज’ के लोगों को जागने का आह्वान किया जाता है और ‘अब्दुलों’ के चंगुल से हिंदू महिलाओं को ‘बचाने’ की प्रेरणा दी जाती है.

मेनस्ट्रीम फ़िल्मों के माध्यम से नैरेटिव को बढ़ावा देना

‘लव जिहाद’ के पहले और प्रमुख उदाहरणों में से एक स्क्रीन पर दिखाए जाने वाली प्रॉपगेंडा फ़िल्म, ‘द केरला स्टोरी’ थी. इस फ़ीचर फ़िल्म ने मुस्लिम समुदाय के बारे में डर की भावना पैदा करने की कोशिश की और इस पर हिंसक प्रतिक्रियाएं आईं. उदाहरण के लिए, फ़िल्म देखने वाली एक महिला ने फ़िल्म की रिव्यू पूछने वाली एक वॉक्स-पॉप रिपोर्टर से पहले उसका नाम पूछा ताकि ये कंफ़र्म हो सके कि वो हिंदू है या मुसलमान, और फिर उसने कहा, ‘‘बहुत अच्छी थी लेकिन डर गई हूँ मैं. सही में देखना चाहिए. ज़रूर देखना चाहिए. हर हिन्दू को देखना चाहिए. मुसलमानों को देखकर डर लग गया.’

फ़ुल लेंथ मीडिया प्रोडक्शन के ऐसे सिमिलर शॉर्ट्स, यूट्यूब जैसे प्लेटफ़ॉर्म पर क्रिएटिव कंटेंट के रूप में आसानी से पाये जा सकते हैं. फिर ये व्हाट्सऐप स्टेटस या मैसेज, यूट्यूब शॉर्ट्स और इंस्टाग्राम रील्स के रूप में शेयर किए जाने वाले छोटे-छोटे कंटेंट के रूप में आ जाते हैं.

ऐसे ही एक यूट्यूब शॉर्ट का टाइटल था, ‘द केरला स्टोरी: मेरा अब्दुल ऐसा नहीं है | अदा शर्मा | #thekeralastory.’ इसे ये रिपोर्ट लिखे जाने तक 1 लाख 67 हज़ार बार देखा गया, ‘द केरला स्टोरी’ ट्रेलर के कुछ हिस्सों को हिंदुत्व कार्यकर्ताओं और ‘लव जिहाद’ के पीड़ितों की इंटरव्यू क्लिप के साथ कंपाइल किया गया है. वीडियो के नीचे लिखा हुआ है, ‘भारत में मुस्लिम लड़के विशेष रूप से स्कूल जाने वाली हिंदू लड़कियों को निशाना बनाते हैं.’

एक और वॉक्स पॉप वीडियो का टाइटल है, ‘द केरला स्टोरी’ देखकर निकली लड़कियों ने बताया उनका अब्दुल कैसा है, सुनकर चौंक जाएंगे आप KhabarIndia.’ इसमें एक रिप्रेज़ेंटेटिव ने महिलाओं का इंटरव्यू लिया और उनसे सांकेतिक सवाल पूछे जैसे कि द केरला स्टोरी’ देखने के बाद भी वो ऐसा ही कहेंगी कि ‘मेरा अब्दुल ऐसा नहीं है.’ जवाब में उन्होंने कहा, ‘अब्दुल होना भी नहीं चाहिए’, ‘झांसी की रानी बनना चाहिए लड़कियों को बस.’

ऐसे कई वोक्स पॉप वीडियोज़ हैं जिन पर हजारों व्यूज़ आये हैं और जिसमें इंटरव्यूर ने ‘द केरला स्टोरी’ को ‘अब्दुल’ नैरेटिव से जोड़ा है. फ़िल्म देखने वालों को भी ‘मेरा अब्दुल, आपका अब्दुल, सबका अब्दुल एक जैसे ही हैं. जिस दिन काटके बंद होंगे ना, तब समझ में आएगा’ जैसे अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया है. बैकग्राउंड में जय श्री राम के नारे लगाए गए.

ये वीडियोज़ और इंटरव्यूज़ इस ‘अब्दुल’ नैरेटिव की काफी बड़ी ‘लव जिहाद’ कॉन्सपिरेसी थ्योरी के सबूत हैं.

म्यूज़िक वीडियोज़ में ‘अब्दुल’

यूट्यूब चैनल PD ब्रदर्स ऑफ़िशियल द्वारा जारी एक म्यूज़िक वीडियो का कैप्शन है ‘मेरा अब्दुल ऐसा नहीं है‘. आर्टिकल लिखे जाने तक इसे 13 हज़ार से ज़्यादा बार देखा गया है और इसके बोल हैं ‘पहले पापा की परी थी… अब अब्दुल की जान हूं.’

गाने की शुरुआत में कथित ‘अब्दुल’ को एक सूटकेस ले जाते और उसे एक पुल पर गिराते हुए दिखाया जाता है. फिर फ्लैशबैक में ये दिखाया जाता है कि काला कुर्ता-पायजामा पहने एक व्यक्ति की मुंडी हुई मूंछे और कटी हुई दाढ़ी है, और उसने टोपी पहन रखी है. दूसरे शब्दों में, एक रूढ़िवादी मुस्लिम व्यक्ति अपनी हिंदू प्रेमिका से मिलता है और उसे एक स्मार्टफ़ोन उपहार में देता है. एक कथित आधुनिक कपड़े और एक बड़ी लाल ‘बिंदी’ (‘हिंदू होने’ का एकमात्र निशान) में लड़की एक बच्चे की आवाज़ में गाती है ‘मेरा अब्दुल ऐसा नहीं हैं. वो सबसे अलग है. कबूल है कबूल है. मुझे अब्दुल कबूल है.’ गीत के इस हिस्से में एक बच्चे की आवाज़ दिखाकर कंटेंट क्रिएटर द्वारा लड़की की पसंद और निर्णय को कमज़ोर दिखाने की साफ मंशा है. गाने की टैगलाइन इस धारणा को मजबूत करती है कि हर मुस्लिम व्यक्ति यही करता है. यानी, वो अपने पार्टनर की हत्या करके उसे ठिकाना लगाने के लिए सूटकेस या रेफ्रिजरेटर में भरने का काम करता है.

लड़की गाती रहती है, ‘नाम चाहे रख दे वो मेरा सलमा, वही बनेगा अब मेरा बलमा, मेरे ही नाम का पढ़ता है क़लमा.’ जिसमें धर्म परिवर्तन का संकेत दिया गया है. जैसे ही उसके माता-पिता ‘अब्दुल’ के साथ उसके रिश्ते का विरोध करते हैं, वो उसके साथ घर छोड़ कर चली जाती है. और जैसे ही वो जाती है, मुख्य गायक वीडियो के बीच में एक मैसेज देने के लिए स्क्रीन पर आता है. गायक प्रभात मिश्रा कहता है, ‘या ये अब्दुल हो या आफ़ताब है, सब ने पढ़ी एक ही किताब हैं। सावधान हिन्दू समाज.’

संदर्भ को सीधे श्रद्धा वॉकर मामले से जोड़ते हुए, संगीत वीडियो का मैसेज साफ है: कि सभी मुसलमान अपने गैर-मुस्लिम पार्टनर्स को मार डालेंगे. गीत इस मैसेज के साथ खत्म होता है: “जब-जब हिन्दू बहन नहीं रही मर्यादा की दहलीज़ में, तो कभी मिली सूट्कैस में, तो कभी मिली फ्रिज़ में…”

‘अब्दुल’ ट्रोप के ट्रजेक्ट्री का पता लगाने के लिए हमने ‘लव जिहाद’ पर Jaya’s Music द्वारा रिलीज़ म्यूज़िक वीडियोज़ की थ्री-पार्ट सीरीज़ का विश्लेषण किया (हालांकि इसमें ‘अब्दुल’ का कोई प्रत्यक्ष उल्लेख नहीं है). सीरीज़ के पहले पार्ट का टाइटल है, ‘लव जिहाद: कोई याद आ गया.’ इसे यूट्यूब पर 18 हज़ार से ज़्यादा बार देखा गया है और इसमें एक हिंदू महिला पुलिसकर्मी, एक मुस्लिम आतंकवादी को गोली मारती है. उस मुस्लिम आतंकवादी ने हिंदू होने का नाटक किया था और महिला के साथ रोमांटिक रिलेशन में था. उस महिला को ‘हिंदू शेरनी’ के रूप में सम्मानित किया गया है. हालांकि, उसने एक बार अपने इस प्रेमी के लिए अपने खून से प्यार के मैसेज लिखे थे, मरते वक्त मुस्लिम व्यक्ति अपने खून से दीवार पर ‘जिहाद’ शब्द लिखता है. इस तरह दर्शकों को दोनों समुदाय के सदस्यों की मानसिकता से अवगत कराने की कोशिश की गई है.

सीरीज़ के दूसरे पार्ट का टाइटल है, ‘लव जिहाद 2: मिजाज.’ ये रिपोर्ट लिखे जाने तक इसे यूट्यूब पर 45 हज़ार से ज़्यादा बार देखा गया है और इसमें पति के परिवार द्वारा जलाए जाने के बाद पीड़ित महिला का अस्पताल में काफी भयानक और हिंसात्मक दृश्य दिखाया गया है. यहां भी उसका पति एक मुस्लिम था जिसने उसे लुभाने के लिए खुद को हिंदू बताया था. लेकिन ‘शेरनी’ से अलग ये महिला भोली है जो उसके जाल में फंस गई और उससे शादी कर ली. महिला को जलाकर मारने के बाद, आदमी अपना अगला ‘शिकार’ ढूंढने में लग जाता है.

हमें इस वीडियो से क्लिप किया गया कंटेंट भी मिला जिसे मेरा अब्दुल ऐसा नहीं है कैप्शन के साथ ट्वीट किया गया था.

लाइन-अप में तीसरे पार्ट का टाइटल है, ‘आज कल ख़ाब.’ इसे 22 हज़ार से ज़्यादा बार देखा गया है और इसे हिंदी म्यूजिक इंडस्ट्री के सबसे लोकप्रिय प्लेबैक गायकों में से एक कुमार शानू ने गाया है. इसमें एक हिंदू व्यक्ति और एक मुस्लिम महिला के बीच रोमांटिक रिश्ता दिखाया गया है. गाने की शुरुआत मुस्लिमों की एक भीड़ द्वारा इस जोड़े का पीछा करने से होती है जिन्होंने तलवारें पकड़ी हैं, इनमें से ज़्यादातर उस महिला के रिश्तेदार हैं. इन लोगों द्वारा जोड़े की बेरहमी से हत्या के साथ ये वीडियो खत्म होता है. मैसेज ये है कि मुस्लिम समुदाय अपनी महिलाओं को अन्य समुदायों के सदस्यों के साथ रोमांटिक संबंध रखने की अनुमति नहीं देता है.

तीन पार्ट की ये सीरीज़ वर्तमान ‘लव जिहाद’ नैरेटिव का सार है – कि अंतर-धार्मिक प्रेम का पूरा विचार उतना निर्दोष नहीं है जितना कि ‘लिबरल’ इसके बारे में सोचते हैं. ये एक संगठित परियोजना है और यूनिडायरेक्शनल है जिसमें मुस्लिम व्यक्ति हमेशा गैर-मुस्लिम महिलाओं को निशाना बनाते हैं और; हिंदू महिलाओं को इससे खुद को बचाने के लिए ‘शेरनी’ बनना होगा और यदि वो भोली होंगी तो वो गंभीर पीड़ा और अपनी मौत को आमंत्रित करेंगी.

कार्टून्स में ‘अब्दुल’

मैसेज को छोटे लेकिन प्रभावी तरीके से पहुंचाने के लिए कार्टून और कैरिकेचर हमेशा से एक प्रभावी फॉर्मेट रहे हैं. अलग-अलग डिजिटल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स पर ‘अब्दुल’ ट्रोप को बेचने और प्रचार करने के लिए इस फ़ॉर्म (कार्टून) का भी बड़े पैमाने पर लाभ उठाया जा रहा है.

उदाहरण के लिए, ट्विटर और इंस्टाग्राम प्रोफ़ाइल চণ্ডীমণ্ডপ (अनुवाद: चोंडिमंडोप) जिसके ट्वीटर आईडी @bratati_maity से लगातार ट्वीट किया जाता है. इनके इंस्टाग्राम यूज़र आईडी Bratati_maity के बायो के मुताबिक, ये एक ‘अनअपोलोजेटिक हिंदू आर्टिस्ट’ है जो लगातार व्यंग्यपूर्ण इस्लामोफ़ोबिक कंटेंट शेयर करते हैं. इनके कार्टून्स में से एक सभी प्लेटफ़ॉर्म्स पर शायद इनकी सबसे वायरल कंटेंट है (ट्विटर पर 26 हज़ार से ज़्यादा बार देखा गया और इंस्टाग्राम पर 26 हज़ार से ज़्यादा लाइक्स मिले हैं). इसमें एक दाढ़ी वाला और टोपी पहना आदमी पीछे चाकू छिपाते हुए एक महिला को प्रपोज़ कर रहा है. व्यक्ति ये कहते हुए दिखाया गया है कि ‘कोई लव जिहाद नहीं. ये सब प्रोपेगेंडा है. मैं सचमुच तुमसे प्यार करता हूं.’ वहीं तस्वीर में भोली-भाली लड़की आंखों पर पट्टी बांधे हुए दिखती है जो ‘लव जिहाद’ के कथित पीड़ितों की कब्रों और लाशों को नहीं देख पाती. लड़की ये कहती है, ‘मैं जानती हूं अब्दुल. तुम अलग हो. मैं तुम पर आंख मूंदकर भरोसा करती हूं.’ इसी क्रिएटर के एक और कार्टून में एक लड़की एक आदमी को गले लगाकर ‘मेरा अब्दुल अलग है’ कह रही है, इस व्यक्ति की दाढ़ी है और उसने टोपी पहनी है. कार्टून में लड़की के माता-पिता चिल्लाते हुए कहते हैं, ‘नहीं.’ अगले फ़्रेम में दिखाया गया है कि ‘अब्दुल’ उस लड़की को आग के हवाले करता है, ‘उसने कहा था नहीं’ और लड़की चिल्लाती है, ‘ओह, नहीं.’

ऐसे ही एक कार्टून का कैप्शन है ‘हां “अलग है”, ये अलग-अलग तरीके से मारते हैं.’ इस कार्टून में भी ये दिखाया गया है एक लड़की एक आदमी को गले लगाकर ‘मेरा अब्दुल अलग है’ कह रही है, इस व्यक्ति की भी दाढ़ी है और उसने टोपी पहन रखी है. एक और महिला अपने पार्टनर के साथ हाथ पकड़कर चलते और ‘मेरा भी’ कहती है. अगले फ्रेम में, वो व्यक्ति महिला के टुकड़ों को फ्रिज़ में रखते, और दूसरा व्यक्ति महिला पर पत्थर और खंजर से हमला करता है.

https://www.instagram.com/bratati_maity/?utm_source=ig_embed&ig_rid=66e9f167-3064-4da3-8b90-8f30d225b21e

यूज़र ने एक ‘सुपर्णा’ नामक कैरेक्टर को कैरीकेचर किया है जिसे एक टिपिकल ‘हिंदू शेरनी’ के रूप में दर्शाया गया है. सुपर्णा ‘अब्दुल’ और उसकी चालों को समझ जाती है और हिंदू धर्म को नीचा दिखाने के उसके कारणों और उसके धर्म परिवर्तन की मांगों को खारिज करती रहती है.

इंस्टाग्राम और ट्विटर पर कई यूज़र्स ने कार्टूनिस्ट गणेश भालेराव का एक कैरीकेचर ‘अब्दुल’ संदर्भ के साथ काफी शेयर किया है. कार्टून में टोपी पहने दाढ़ी वाले एक व्यक्ति को एक हाथ में फूलों का गुलदस्ता पकड़े और दूसरे हाथ में खंजर छिपाते हुए दिखाया गया है. आंखों पर पट्टी बांधे एक लड़की कथित ‘लव जिहाद’ पीड़ितों की कब्रों के उपर से छलांग लगाते हुए उसकी ओर दौड़ रही है, और सोच रही है ‘मेरा वाला ऐसा नहीं है.’ वहां एक साइनबोर्ड पर लिखा है ‘लव जिहाद पार्क.’

कार्टूनिस्ट मनोज कुरील ने हैशटैग #MeraAbdulAisaNahiHai का इस्तेमाल करते हुए एक कार्टून शेयर किया. इसके कैप्शन में लिखा है ‘पतन की सीढ़ियाँ.’ इस कार्टून में एक हिंदू लड़की सीढ़ियां चढ़ते हुए और ‘अब्दुल’ की स्टीरियोटाइप इमेज की ओर भागते हुए दिखती है. सीढ़ी को ‘लव जिहाद’ के रूप में लेबल किया गया है, और हर सीढ़ी पर एक अलग लेबल दिया गया है: संस्कृति से दूरी, बॉलीवुड, पारिवारिक मूल्यों का अभाव, सेकुलरिज्म, धर्म से दूरी, जड़ों से कटाव, दूषित मानसिकता, अज्ञानता. ये कथित रूप से ऐसी चीज़ें हैं जिनसे हिंदू लड़कियां किसी मुस्लिम व्यक्ति को पार्टनर के रूप में स्वीकार करने के लिए प्रभावित होती हैं.

कार्टून कैरिकेचर के साथ-साथ, ‘अब्दुल’ ट्रोप को मीम्स और कंटेंट के रूप में काफी ज़्यादा शेयर किया जाता है.

सतर्कतावाद को नॉर्मल करने वाला मैकेनिज्म

जैसा कि इन सभी रिप्रेजेंटेशन से साफ़ है, ‘लव जिहाद’ कॉन्सपिरेसी थ्योरी के बड़े नैरेटिव में एक सब-नैरेटिव भी बुना जा रहा है. ‘हिंदू शेरनी’, जो कि अपनी परंपराओं को मानने वाली है और पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों के अनुरूप है, वो ‘अब्दुल’ के जाल में फंसने वाली भोली-भाली उदार हिंदू लड़कियों से बिल्कुल अलग है. वो ‘अब्दुल’ की चालों को समझती है और उन्हें विफल कर देती है. ये नैरेटिव असल में मिसॉगनी और पितृसत्ता की धारणाओं के प्रभुत्व वाली सामाजिक सेटिंग में बिना कोई रुकावट प्लग और प्ले का काम करती है.

किसी मुस्लिम व्यक्ति से अंतरधार्मिक संबंधों के ऐसे चित्रण ‘लव जिहाद’ की कहानी को और मजबूत करते हैं. उदाहरण के लिए, हिंदुत्व स्टेटस का एक यूट्यूब शॉर्ट वीडियो, इसे आर्टिकल लिखे जाने तक 11 हज़ार से ज़्यादा बार देखा गया है. इसमें उन महिलाओं को दिखाया गया है जो इस बात से सहमत हैं कि ‘सारे अब्दुल एक जैसे ही होते हैं.’ इसे एक गौरवशाली बैकग्राउंड म्यूज़िक, इफ़ेक्ट्स और बैनर के साथ शेयर किया गया है. झा शॉर्ट्स, नामक एक चैनल के सिर्फ 196 सब्सक्राइबर्स हैं. लेकिन इसके एक शॉर्ट वीडियो को 19 हज़ार से ज़्यादा बार देखा गया है. इसमें एक लड़की दो कैरेक्टर प्ले करती है. एक (कैरेक्टर) जो पूरी तरह अवमानना ​​​​के साथ उस लड़की (दूसरे कैरेक्टर) को नसीहत दे रही है जिसे अपने मुस्लिम प्रेमी पर विश्वास है. जो लड़कियां या महिलाएं इस नैरेटिव के अनुरूप नहीं हैं और ऐसे रिश्तों को आगे बढ़ाती हैं या सार्वजनिक रूप से इसका बचाव करते हुए अपनी राय व्यक्त करती हैं उन्हें आसानी से भ्रष्ट, और ख़राब दिमाग की लड़की के रूप में चित्रित किया जाता है जिसे मदद की ज़रूरत है. उन पर ये आरोप लगाया जाता है कि उनमें सोचने की प्राथमिक क्षमता का अभाव है, और खुद निर्णय लेने की उनकी क्षमता पर लगातार सवाल उठाए जाते हैं. प्रभावी और सार्वजनिक रूप से उनके रिश्तों को उजागर करने, उनकी डिटेल्स लीक करने (डॉक्सिंग), उनके दोस्तों और परिवारों को धमकी देने के लिए एक नैतिक औचित्य के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, और जनता उन्हें ‘अब्दुल’ से ‘बचाने’ के लिए कार्रवाई की मांग करती है. ये सब बड़े नैरेटिव के छोटे हिस्सों के रूप में अपना योगदान देते हैं एक साथ एक ‘काल्पनिक शैतान’ को पेश करते हैं और शक, सतर्कता, अपमान, मुस्लिमों के प्रति नफ़रत के लिए माहौल तैयार करते हैं.

जैसल E K ऑल्ट न्यूज़ में इंटर्न हैं.

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