ऑल्ट न्यूज़ के व्हाट्सऐप नंबर (+91 76000 11160) पर सुभाष चन्द्र बोस की एक तस्वीर की सच्चाई पता करने की रिक्वेस्ट मिली है. इस तस्वीर के साथ दावा किया गया है कि सुभाष चन्द्र बोस 23 अप्रैल 1945 को एक अख़बार में अपनी ही मौत की ख़बर पढ़ रहे थे. कहा जा रहा है कि ये कांग्रेस का सबसे बड़ा झूठ था. तस्वीर में दिख रहे अख़बार में सुभाष चन्द्र बोस की मौत की ख़बर छपी दिखती है.
व्हाट्सऐप पर ये तस्वीर इसी दावे के साथ वायरल है. कई लोगों ने हमें फ़ैक्ट-चेक रिक्वेस्ट में ये तस्वीर भेजी.
हमने देखा कि फ़ेसबुक पर 2019 में ये तस्वीर बंगाली टेक्स्ट के साथ शेयर की गयी थी और यही दावा किया गया था.
फ़ैक्ट-चेक
तस्वीर के ऊपर का टेक्स्ट हटाकर इसका रिवर्स इमेज सर्च करने पर हमें असली तस्वीर मिली. ये तस्वीर अनुज धर ने 27 मई 2018 को पोस्ट की थी. अनुज धर ‘कुन्ड्रम: सुभाष बोस लाइफ़ आफ्टर डेथ’ किताब के लेखक हैं. उन्होंने ये तस्वीर पोस्ट करते हुए बताया कि नेताजी जापान का सबसे बड़ा अंग्रेज़ी अख़बार निपन टाइम्स पढ़ रहे थे. तस्वीर में दिख रहा अख़बार निपन टाइम्स ही है जिसे साफ़ देखा जा सकता है.
Subhas Chandra Bose reading Nippon Times (now The Japan Times), Japan’s largest and oldest English-language daily newspaper @japantimes pic.twitter.com/6A7YMXGEkW
— Anuj Dhar (@anujdhar) May 27, 2018
मई 2018 में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस मेमोरियल इन दिल्ली ने ये तस्वीर पोस्ट की थी. इसके अलावा 23 जनवरी 2020 को ‘माय सिटी लिंक्स‘ में उनको याद करते हुए लिखी गयी एक रिपोर्ट में भी ये तस्वीर छपी थी.
हमने देखा कि लेखक अनुज धर ने अगस्त 2019 में एडिटेड तस्वीर शेयर की थी. उन्होंने लिखा था कि असली तस्वीर में यूज़र @BiplabC2 ने कुछ बदलाव किये थे. यूज़र @BiplabC2 का अकाउंट सस्पेंड हो चुका है.
Original picture with some reimagination by @BiplabC2.#Netaji #DeathThatWasnt #TheBoseMystery #Gumnaami @prosenjitbumba @srijitspeaketh @chandrachurg @PanickarS @koushikzworld @SayakSen6 @Sayani_Pandit pic.twitter.com/ep8T70g6Uj
— Anuj Dhar (@anujdhar) August 18, 2019
यानी, नेताजी की एक एडिटेड तस्वीर शेयर करते हुए ये दावा किया जा रहा है कि वो अपनी मौत की ख़बर पढ़ रहे थे. दरअसल सुभाष चन्द्र बोस की मौत की अभी भी एक रहस्य है. कहा जाता है कि 1945 में एक प्लेन क्रैश में उनकी मौत हुई थी लेकिन उनके अवशेष न मिलने के कारण ठोस रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता.
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