19 मार्च को पलक्कड़ ज़िला न्यायाधीश डॉ बी कलाम पाशा ने मोहिनीअट्टम डांसर नीना प्रसाद को परफ़ॉर्म करने से रोक दिया. इसके तुरंत बाद ऑल इंडिया लॉयर्स यूनियन और पलक्कड़ ज़िला बार एसोसिएशन ने अदालत परिसर में विरोध प्रदर्शन किया. ये दावा किया गया कि न्यायाधीश ने ‘धार्मिक कारणों’ की वजह से शो रोक दिया था. डॉ बी कलाम पाशा ने कहा कि वो इन ‘आरोपों से दुखी हैं’ और उन्होंने निजी सुरक्षा अधिकारी के माध्यम से पलक्कड़ के पुलिस उपाधीक्षक को शो की आवाज़ कम करने का एक मेसेज दिया था.
ट्विटर यूज़र @nach1keta ने दावा किया कि ‘कमाल पाशा’ के रियाद में दिए गए भाषण की एक क्लिप पोस्ट की. ये क्लिप मलयालम भाषा में है. यूज़र ने दावा किया कि जज ने ये बातें कही थी, “जब तक देश मुस्लिम बहुसंख्यक है, आप कुरान का पालन कर सकते हैं और आस्था नहीं रखने वाले को काफिर मान सकते हैं, इससे कोई समस्या नहीं है… लेकिन अगर आप अल्पसंख्यक समुदाय से हैं तो आपको चालाकी से काम लेना होगा और आस्था नहीं रखने वाले लोगों को अपना भाई कहना होगा.” इस वीडियो को 2 लाख के करीब व्यूज़ मिले हैं.
“As long as the country is Muslim Majority, you can follow the Quran and consider non-believers as Kafirs, no problem with that…but when you are a minority as in the case of India, you have to be tactful and call non-believers as your brothers”
Justice Kamal Pasha in Riyadh pic.twitter.com/yyfaQtgbjS— നചികേതസ് (@nach1keta) March 25, 2022
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की वरिष्ठ सलाहकार कंचन गुप्ता ने उपर दिए गए ट्वीट को कोट ट्वीट करते हुए लिखा, ‘ज़्यादा ‘संवैधानिक नैतिकता.’
More ‘constitutional morality’. https://t.co/FmusG5vecH
— Kanchan Gupta 🇮🇳 (@KanchanGupta) March 26, 2022
कई फ़ेसबुक यूज़र्स ने ये वीडियो शेयर किया. और जज का नाम ‘कमाल पाशा’ बताया. कुछ यूज़र्स ने दावा किया कि ये वही जज हैं जिन्होंने नीना प्रसाद के शो में खलल दी थी. वहीँ कुछ ने दावा किया कि ये उनके भाई केमल पाशा हैं. केमल पाशा केरल हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज हैं.
जज कलाम पाशा के भाषण का भ्रामक और भड़काऊ अनुवाद
वीडियो में दिख रहे शख्स न तो कलाम पाशा हैं न कमाल पाशा. ये कलाम पाशा के भाई केमल पाशा हैं.
सोशल मीडिया पर ये दावा किया गया था कि जज केमल पाशा ने भारत में मुसलमानों को चालाकी से हिंदुओं से जान पहचान बढ़ाने की सलाह दी थी. साथ ही कुरान के मुताबिक, हिंदू ‘काफिर’ (धर्म में विश्वास नहीं करने वाले) होते हैं लेकिन फिर भी उनके साथ ‘भाइयों’ जैसा बर्ताव करने का दिखावा करने की सलाह दी थी, लेकिन ये सच नहीं है.
ऑल्ट न्यूज़ ने केरल के पत्रकार ज़ायन आसिफ़ से बात की जिन्होंने हमारे लिए इस भाषण को ट्रांसक्राईब्ड किया. केमल पाशा ने कहा, “जब आप किसी के बारे में कहते हैं कि “वो एक काफिर है”, तो कल्पना कीजिए कि प्रतिक्रिया क्या होगी. दूसरे धर्मों के लोग इसे एक बहुत ही आपत्तिजनक शब्द मानेंगे. कम से कम भारत में तो ऐसा ही है. मुझे नहीं पता कि ये यहां [रियाद में] कैसा है. लेकिन भारत में ऐसा है. हमें कभी भी किसी को [काफिर के रूप में] संबोधित नहीं करना चाहिए. वो एक भाई है. सूरह (कुरान की आयत) में क्या बताया गया है? “आप अपनी आस्था में विश्वास करते हैं. मैं अपनी आस्था पर विश्वास करूंगा. मुझे आपके आस्था पर विश्वास नहीं हो रहा है. और आप मेरी आस्था पर विश्वास नहीं कर पा रहे हो. आपके पास आपका धर्म है. मेरे पास मेरा है.” क्या ये सबसे बड़ी विचारधारा नहीं है? क्या इसमें सभी धर्मों को स्वीकार नहीं किया गया है? क्या ये धार्मिक एकता की अवधारणा को मजबूत नहीं बनाता? ये कुरान द्वारा दिया गया विचार है. [आपको] इस संदेश को लोगों तक ले जाना है. यहां [रियाद में] इसकी ज़रूरत नहीं है क्योंकि ये एक मुस्लिम बहुसंख्यक देश है. तो आपको इन बातों को समझना होगा और उसके अनुसार जीना होगा. लेकिन भारत जैसे लोकतांत्रिक, बहुल समाज में यही व्याख्या बताई जानी चाहिए.”
रिटायर्ड जज केलम पाशा ने कहा कि किसी को भी ‘काफिर’ नहीं कहा जाना चाहिए, लेकिन सोशल मीडिया पर इससे बिल्कुल अलग दावा किया जा रहा है. असल में, उन्होंने कुरान की एक आयत का भी हवाला देते हुए धार्मिक सहिष्णुता की बात की थी. आसिफ़ ने आगे बताया, “भाषण में कहीं भी कलाम पाशा ने ऐसे किसी मुहावरा का इस्तेमाल नहीं किया है जिसका मतलब है, “आपको चालक होना चाहिए और धर्म में विश्वास नहीं करने वाले के साथ भाईचारा का दिखावा करना चाहिए.” इसके अलावा, क्यूंकि क्लिप का अगला हिस्सा नहीं रखा गया है, इसलिए ये अनुवाद पूरी तरह से भ्रामक है.”
ऑल्ट न्यूज़ ने जज केलम पाशा से भी बात की. उन्होंने बताया, “ये रियाद की क्लिप हो सकती है और शायद 2019 की हो. मुझे पूरी तरह याद नहीं है क्योंकि मैंने केरल और मध्य पूर्व के कई शहरों में ऐसे भाषण दिए हैं. मेरे भाषण का सार ये था कि किसी भी धर्म को असहिष्णुता का संदेश नहीं देना चाहिए और मेरी एक बात ये थी कि इस्लामी जानकारों को “काफिर” शब्द के इस्तेमाल से बचना चाहिए क्योंकि इससे धार्मिक भेदभाव हो सकता है. उन्होंने आगे कहा, “सोशल मीडिया पर किए जा रहे दावे में मेरे भाषण को ग़लत तरीके से पेश किया गया है.
[आर्टिकल में पहले रिटायर्ड जज केलम पाशा को पलक्कड़ ज़िला न्यायाधीश डॉ बी कलाम पाशा लिखा गया था. इसे ठीक कर दिया गया है.]सत्ता को आईना दिखाने वाली पत्रकारिता का कॉरपोरेट और राजनीति, दोनों के नियंत्रण से मुक्त होना बुनियादी ज़रूरत है. और ये तभी संभव है जब जनता ऐसी पत्रकारिता का हर मोड़ पर साथ दे. फ़ेक न्यूज़ और ग़लत जानकारियों के खिलाफ़ इस लड़ाई में हमारी मदद करें. नीचे दिए गए बटन पर क्लिक कर ऑल्ट न्यूज़ को डोनेट करें.
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