1 जनवरी, 1818 को कोरेगांव की लड़ाई लड़ने वाले महार सैनिक की बताकर एक तस्वीर शेयर की जा रही है. शौर्य दिवस का सम्मान करने के लिए इसे शेयर किया जा रहा है. इस तस्वीर पर लिखा है, “भीमा कोरेगांव की लड़ाई में अपन पराक्रम दिखाने वाले महार सैनिक की दुर्लभ फ़ोटो जो तत्कालीन ईस्ट इंडिया कंपनी के सलाहकार मि. डेवी जोन्स की डायरी से प्राप्त हुई है”. तस्वीर के बगल में लगाए गए कुछ अन्य शब्द हैं, ‘जाति का महार’, ‘285 किलो भार’, ’11 फ़ुट हाईट’, ‘7 किलो की तलवार’, और ‘अकेले 8000 पेशवा कर दिया उद्धार.’

एक फ़ेसबुक यूज़र ने ‘वी स्टैंड विद रवीश कुमार’ नाम के एक ग्रुप में ये तस्वीरपोस्ट की. इस पोस्ट को लगभग 2 हज़ार लाइक्स और 300 से ज़्यादा शेयर मिले हैं.

एक और फ़ेसबुक पेज ‘भारतीय वाल्मीकि धर्म समाज – रजिस्टर्ड भावाधस भारत’ ने ये तस्वीर शेयर की. इस पोस्ट को 5,500 लाइक्स और लगभग 300 शेयर मिले हैं.

फ़ेसबुक पेज ‘गुरु बानी टीवी लाइव’ ने भी ये तस्वीर पोस्ट की जिसे 2,600 लाइक और लगभग 300 शेयर मिले हैं

अम्बेडकर्स वर्ल्ड और भीम के लाडले नामक फ़ेसबुक पेज ने भी इस तस्वीर को शेयर किया जिन्हें लगभग 1 हज़ार लाइक्स मिले हैं.

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ये तस्वीर कई यूज़र्स ने ट्वीट भी की है.

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फैक्ट-चेक

वायरल तस्वीर को गूगल पर रिवर्स इमेज सर्च करने से हमें ये तस्वीर फोटो स्टॉक वेबसाइट Alamy पर मिली. Alamy के मुताबिक, तस्वीर में दिखाई देने वाले व्यक्ति राजकुमार नडाबुको काम्पांडे हैं. वो राजा सेटश्वेओ काम्पांडे के छोटे भाई हैं. सेत्शवेओ काम्पांडे 1873 से 1879 तक ज़ुलु साम्राज्य के राजा थे और 1879 के एंग्लो-ज़ुलु युद्ध के दौरान उसके नेता थे.

ये तस्वीर विकिमीडिया कॉमन्स पर भी मौजूद है और इसे File:Cetshwayo-c1875.jpg के रूप में सेव किया गया है. हालांकि, पेज के नीचले हिस्से में लिखा है, “कथित तौर पर राजा सेटश्वेओ काम्पांडे की तस्वीर असल में उनके छोटे भाई प्रिंस नडाबुको काम्पांडे की है तारीख 1880 के दशक के मध्य की है.”

आगे, हमें इतिहासकार इयान नाइट का एक पेपर मिला जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ज़ुलू साम्राज्य के उन्नीसवीं शताब्दी के इतिहास और विशेष रूप से 1879 के एंग्लो-ज़ुलु युद्ध पर एक प्रमुख अथॉरिटी माना जाता है. इस पेपर का टाइटल है, ‘मिस्टेकेन आइडेंटिटी. हाउ किंग सेटश्वेओ इज स्टील कन्फ्यूज्ड विथ हिज ब्रदर प्रिंस नडाबुको.’ इयान नाइट ने राजा सेटश्वेओ काम्पांडे और उनके भाई प्रिंस नडाबुको काम्पांडे के पहनावे के बीच अंतर बताया है. उन्होंने अपने पेपर में सेटश्वेओ और नडाबुको की कई तस्वीरों का इस्तेमाल किया है.

हालांकि, सेटश्वेओ और नडाबुको, दोनों की तस्वीरें पारंपरिक परिधानों में ली गई थीं. लेकिन उन दोनों की पोशाकें एक जैसी नहीं हैं. राजा सेटश्वेओ (उपर बाएं) की तस्वीर में, राजा शाल पहने हुए हैं. तेंदुए की खाल से बनी उनकी नीचे की पोशाक, ‘इबेशु’ है जो पुरुषों द्वारा अपने नितंबों को ढंकने के लिए पहना जाने वाला एप्रन है. इसे बाईं ओर की तस्वीर में उनके पीछे फैला हुआ देखा जा सकता है. 

प्रिंस नाडाबुको (उपर दाएं) की तस्वीर को अक्सर सेटश्वेओ की माना जाता है. रिडर्स ध्यान दें कि नडाबुको ने एक हार पहना हुआ है जो सेटश्वेओ ने नहीं पहना है. नडाबुको ने भी पीछे एक अलग लोई-कवरिंग पहन रखी है. बेंत पर भी ध्यान दें जो सेटश्वेओ के किसी भी तस्वीर में मौजूद नहीं है.

नीचे उसी बैठक से प्रिंस नाडाबुको की एक तस्वीर है जिसमें वो खड़े हैं. यहां भी वो वही बेंत, हार और लंगोटी पहने हुए हैं. ये तस्वीर भी अक्सर सेटश्वेओ की बताई जाती है.

राजा सेटश्वेओ उम्र में नडाबुको से दस साल बड़े थे. सेटश्वेओ का जन्म 1832 के आसपास और नडाबुको का जन्म 1842 के आसपास हुआ था. लेकिन दोनों करीबी दोस्त थे. नाडाबुको ने रॉयलिस्ट नियुक्ति का हिस्सा बनाया था. मई 1880 में राजा की रिहाई की मांग करने के लिए ये पीटरमैरिट्जबर्ग चले गए जहां पार्टी के अन्य प्रमुख सदस्यों के साथ फ़ोटो खिंचवाई थी. ये बाद में ज़ुलु गृह युद्ध और 1888 के दिनुज़ुलु विद्रोह में जोर शोर से शामिल हुए थे जहां ये रिंग-नेताओं में से एक थे. इन्हें दीनुज़ुलु और प्रिंस शिंगाना काम्पांडे के साथ सेंट हेलेना में निर्वासन की सज़ा सुनाई गई थी. ये बीसवीं सदी तक ज़िन्दा रहे. अपने जीवनकाल में इन्होंने कई बार तस्वीरें खिंचवाई थी.

कुल मिलाकर 1800 के दशक के मध्य की ज़ुलु प्रिंस नाडाबुको की एक तस्वीर महार सैनिक की तस्वीर बताकर वायरल है जिसने 1 जनवरी, 1818 को कोरेगांव की लड़ाई लड़ी थी.

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About the Author

Student of Economics at Presidency University. Interested in misinformation.