अक्टूबर 2016 में, ABVP के सदस्यों से हाथापाई के बाद जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के छात्र नज़ीब अहमद गायब हो गए थे। इस मामले की जांच CBI द्वारा की गई थी और बाद में केस को बंद कर दिया गया था। उनके गायब होने के बाद से ही सोशल मीडिया इन अफवाहों से भरा रहा है कि नजीब ISIS में शामिल हो गए हैं।
उपरोक्त संदेश व्हाट्सएप्प पर एक तस्वीर के साथ प्रसारित किया गया है, जिसमें ISIS के बैनर के आगे कुछ व्यक्ति फोटो खिंचवाते हुए दिख रहे हैं। इस संदेश में कहा गया है, “अरे अपना नजीब… JNU वाला नजीब… आज़ादी गैंग वाला नजीब!! वामी कामी गिरोह का दुलारा नजीब …JNU से डाइरेक्टर प्लेसमेंट हुआ है ISIS में!! सीरिया से राहुल जी और केजरी सर जी को सलाम भेजा है!!”
ऑल्ट न्यूज़ इस दावे को पहले ही दो बार खारिज कर चुका है। (1, 2) इस बार यह अफवाह, नजीब की मां के एक ट्वीट के बाद फिर से प्रसारित होने लगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संबोधित इस ट्वीट में उन्होंने अपने गायब बेटे के बारे में सवाल उठाए।
If you are a chowkidar then tell me
where is my son Najeeb ?Why Abvp goons not arrested ?
Why three toped agencies failed to find my son ? #WhereIsNajeeb https://t.co/5GjtKSTIDh— Fatima Nafis (@FatimaNafis1) March 16, 2019
2018 से प्रसारित झूठी खबर
नजीब के ISIS में शामिल होने की अफवाह 2018 के शुरुआत से ही प्रसारित की जा रही है। अगस्त 2017 में वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (VIT) का एक छात्र गायब हो गया था और उसके ISIS में शामिल हो जाने की आशंका की गई थी। जांचकर्ताओं ने यह निर्णय, एक टेक्स्ट मैसेज के आधार पर लिया था, जो उस 23-वर्षीय छात्र ने गायब होने के पहले अपने परिवार को भेजा था।
जैसे ही VIT, वेल्लोर के नजीब की खबर सामने आई, जिसके ISIS में शामिल हो जाने की आशंका थी, जानबूझकर या अन्यथा, JNU के नजीब अहमद की गायब होने को इसके साथ जोड़ दिया गया और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स व व्हाट्सएप्प पर व्यापक रूप से शेयर किया गया। पूर्व में, राम माधव और स्वपन दासगुप्ता जैसे भाजपा नेता इस गलत सूचना के शिकार हुए हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया की गलत खबर
मार्च 2017 में, टाइम्स ऑफ इंडिया ने एक असत्यापित लेख प्रकाशित की, जिसके अनुसार, उस अखबार को सूत्रों ने बताया था कि JNU वाला नजीब अहमद ISIS से सहानुभूति रखता था, जो इंटरनेट पर उसकी browsing history से पता चला था। इस रिपोर्ट में दावा किया गया था कि पुलिस सूत्रों के अनुसार, नजीब यूट्यूब पर ISIS के वीडियो देखा करता था।
जब तक दिल्ली पुलिस पुष्टि करती कि यह खबर झूठी है, उससे पहले कई समाचार संगठनों ने टाइम्स ऑफ इंडिया की उस खबर को उठा लिया और पुनः प्रकाशित कर दिया था। जबकि, इस रिपोर्ट में कोई सच्चाई नहीं थी कि नजीब ने ISIS के समर्थन वाले वीडियो देखे थे।
वायरल तस्वीर की असलियत
ऑल्ट न्यूज़ ने उस तस्वीर की रिवर्स सर्च की तो पता चला कि संदेश के साथ इस्तेमाल की गई ISIS लड़ाकों की वह तस्वीर रॉयटर्स द्वारा 2015 में खींची गई थी। यह ‘इराक के लिए संघर्ष‘ शीर्षक के एक फोटो एलबम का हिस्सा है और मार्च 2015 में इसे अपलोड किया गया था।
नजीब अहमद के ISIS में शामिल होने की विघटनकारी सूचना, खारिज होने के बावजूद, प्रत्येक कुछ महीने पर सोशल मीडिया में प्रसारित होती रहती है।
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