नोवेल कोरोना वायरस (कोविड-19) से संबंधित एक टेक्स्ट संदेश सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है. इसे यूनिसेफ़ की तरफ़ से ज़ारी संदेश बताने का दावा किया गया है. इसमें कोरोना वायरस संक्रमण (फ्लू की तरह के लक्षण वाला, ऊपरी श्वसन तंत्र से जुड़ा वायरल संक्रमण) से बचाव और नियंत्रण के उपाय बताए गए हैं. कोरोना वायरस संक्रमण को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने हाल ही में वैश्विक महामारी घोषित कर दिया है.

दावा

सोशल मीडिया पर वायरल संदेश में इन चीज़ों के बारे में दावा किया जा रहा है:

– ये यूनिसेफ़ की तरफ़ से है: यूनाइटेड नेशंस चिल्ड्रेंस फंड. ये यूनाइटेड नेशंस की एक एजेंसी है जो दुनियाभर में बच्चों के विकास के लिए मदद मुहैया कराती है.

– कोरोनावायरस का आकार, संक्रमण से बचाव में मास्क की उपयोगिता और इसके संक्रमण का माध्यम.

– इंसान के शरीर के बाहर वायरस के ज़िंदा रहने की अनुमानित अवधि.

– ये भी दावा है कि ये वायरस 26-27 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा के गर्म तापमान और सूर्य की रौशनी में जीवित नहीं रह सकता है.

– बिना पुष्टि की सूचनाएं, जैसे कि गर्म पानी पीना और गर्म पानी में नमक मिलाकर गरारा करना.

ये दावा व्हाट्सऐप पर धड़ल्ले से शेयर किया जा रहा है.

कोरोना वायरस से संबंधित इंफ़ोग्राफिक्स भी मैसेजिंग ऐप्स पर ये बताकर सर्कुलेट किए जा रहे हैं कि इन्हें यूनिसेफ़ ने ज़ारी किया है. ऑल्ट न्यूज़ को अपने मोबाइल ऐप पर इन दावों के फ़ैक्ट-चेक के कई रिक्वेस्ट मिले हैं.

फ़ैक्ट-चेक

यूनिसेफ़ ने ये एडवायज़री नहीं जारी की है. यूनिसेफ़ इंडिया की कम्युनिकेशंस स्पेशलिस्ट अलका गुप्ता ने ऑल्ट न्यूज़ साइंस को ईमेल के जरिये ये कंफ़र्म किया कि वायरल हो रहा संदेश उनकी तरफ़ से नहीं आया है. उन्होंने ये भी जोड़ा कि “ऐसी सलाह देना खतरनाक है कि ‘किस तरह गर्म पानी पीने, सूर्य की रौशनी में रहने और ठंडा खाना न खाने से’ कोविड-19 के संक्रमण से बचा जा सकता है.”

इस रिपोर्ट में हम वायरल हो रही एडवायजरी में किए गए दावों का एक-एक करके फ़ैक्ट-चेक करेंगे.

1. कोविड-19 वायरस का आकार मास्क में घुसने के लिहाज़ से काफी बड़ा होता है और ये हवा के माध्यम से नहीं फैलता है.

वायरस जो होते हैं, वे कोशिकाहीन होते हैं. यानी कि बिना कोशिकाओं के. वे मुख्यत: जेनेटिक तत्वों जैसे कि RNA आदि से मिलकर बने होते हैं. इसलिए, वायरल संदेश में कोरोनावायरस की कोशिकाओं के आकार के बारे में दी गई जानकारी यहीं पर ग़लत साबित हो जाती हैं. कोरोनावायरस का आकार लगभग 125 नैनोमीटर (फ़ेह्र एंड पर्लमैन, 2015) होता है. एक नैनोमीटर (nm) एक माइक्रोमीटर ((μm) के हज़ारवें हिस्से के बराबर होता है.

इसके बावजूद, वे अब तक ज्ञात सबसे बड़े RNA वायरसों (Sexton et al. 2016) में से एक हैं. लेकिन बैक्टीरिया और मनुष्य की कोशिकाओं से छोटे हैं. नीचे की तस्वीर (लूमेन, माइक्रोबायोलॉजी से ली गई है) आपको परमाणु, प्रोटीन और वसा के अणुओं और बैक्टीरिया, पौधे और जानवरों के कोशिकाओं की तुलना में इस वायरस के आकार के बारे में अधिक बेहतर तरीके से समझा सकती है.

कोरोना वायरस न सिर्फ़ मास्क के वायरल क्लस्टर्स के जरिए बल्कि आंखों के रास्ते भी हमारे अंदर घुस सकता है. हालांकि, किसी संक्रमित व्यक्ति के चेहरे पर लगा मास्क कोरोना वायरस वाली छींक को हवा में फ़ैलने से रोक सकता है. हमारे सांस लेने के सिस्टम को संक्रमित करने वाले कोरोना वायरस या दूसरे वायरस मुख्य तौर पर हवा के माध्यम से ही फैलते हैं.

अमेरिका के सर्जन जनरल ने भी इस ट्वीट में मास्क का इस्तेमाल न करने की सलाह दी थी.

डेविड हुई चाइनीज़ यूनिवर्सिटी ऑफ़ हॉन्ग कॉन्ग में सांस से संबंधित बीमारियों के विशेषज्ञ हैं. उन्होंने 2002-2003 के दौरान फैले सीवियर एक्यूट रिस्पायरेटरी सिंड्रोम (SARS) पर बहुत विस्तार से काम किया है. दी टाइम पत्रिका ने उनके हवाले से रिपोर्ट छापी है, इसमें डेविड हुई कहते हैं,

ये ‘कॉमन सेंस’ यानी आसानी से समझ में आने वाली बात है कि मास्क आपको कोविड-19 जैसी संक्रामक बीमारियों से बचाता है, ‘अगर आप किसी अस्वस्थ इंसान के सामने खड़े हैं’.

और हां, कोविड-19 के मरीज़ों में लक्षण काफ़ी कम या न के बराबर होते हैं, लेकिन वो चुपचाप एक इंसान से दूसरे इंसान में प्रवेश कर सकते हैं. इसलिए, बंद इलाकों में संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए मास्क काफ़ी प्रभावी हो सकते हैं.

इसलिए, ये वायरस बड़ा तो है लेकिन इतना भी बड़ा नहीं कि कपड़े के मास्क के छेदों में घुस न पाए, लेकिन संक्रमित व्यक्ति द्वारा मास्क का इस्तेमाल इसका फैलाव रोकने का एक प्रभावी रास्ता है. एयरोसोल (हवा के ड्रॉपेलट्स में वायरसों का समूह) मास्क में फंसकर रूक सकते हैं. ये वायरस आंखों के जरिए भी फैल सकते हैं, क्योंकि हवा के ड्रॉप्लेट्स वायरस के संक्रमण का मुख्य माध्यम हैं.

2. इंसानी शरीर के बाहर इस वायरस की अनुमानित उम्र.

अमेरिकी वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययन (Doremalen et al 2020) में ये बात सामने आई है कि नया कोरोनावायरस (कोविड-19) हवा में कुछ घंटों तक और सतह पर 2-3 दिनों तक ज़िंदा रह सकता है. इस स्टडी के अनुसार, ये वायरस हवा, संक्रमित चीजों को छूने से और संक्रमित व्यक्ति के सीधे संपर्क में आने से भी फैल सकता है. ये स्टडी अभी प्रिंट नहीं हुई है.

वैज्ञानिकों ने नेबुलाइज़र की मदद से एक संक्रमित व्यक्ति के खांसने का सीन क्रिएट कर वायरस को हवा में स्प्रे किया. उन्होंने पाया कि वायरस तीन घंटे तक हवा में दिख रहा था. ये तांबे की सतह पर चार घंटे तक, कार्डबोर्ड पर 24 घंटों तक, जबकि प्लास्टिक और स्टेनलेस स्टील वाली सतहों पर 2-3 दिनों तक बरकरार था.

ये सही है कि वायरस सतह पर लंबे समय तक जीवित रह सकता है. लेकिन संदेश में किए गए दावे में किसी भी रिसर्च का रेफ़रेंस नहीं है और न ही अलग-अलग सतहों पर वायरस के ज़िंदा रहने की समयसीमा बताई गई है.

3. ये दावा है कि वायरस 26-27 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा के गर्म तापमान और सूर्य की रौशनी में जीवित नहीं रह सकता है.

महामारी विज्ञान के विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि ये वायरस इतना नया है कि इसके बारे में बहुत कम जानकारी प्राप्त है. गर्म मौसम में वायरस के व्यवहार पर भविष्यवाणी पहले की SARS और MERS महामारी के आधार पर की जा रही होगी.

और हां, सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया जैसे गर्म देशों में इसका फैलना ये बताता है कि ये वायरस गर्म जलवायु में भी ज़िंदा रह सकता है. हालांकि, गर्म मौसम इस वायरस के फैलाव को रोकने का इकलौता कारक नहीं है. गर्मी के महीनों में नमी और पब्लिक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच से कोविड-19 के विस्तार में कमी आ सकती है या फिर ‘इसका फैलाव ठहर सकता है’.

एक और स्टडी है Mauricio Santillana and colleagues (2020) की. ये बोस्टन के हार्वर्ड मेडिकल स्कूल से आई है. इसके अनुसार, इस वायरस ने चीन में हर तरह के तापमान और नमी वाले इलाकों में आसानी से फैलने और तेज़ी से बढ़ने की क्षमता दिखाई है. ये वायरस नमी वाले इलाकों, ठंडे प्रदेशों और सूखे वाले इलाकों में भी फैलने में सफ़ल रहा है.

4. दावा है कि साबुन से धोने से कोरोनावायरस मर जाएगा.

ये इकलौता ऐसा दावा है जो बाकी वायरल संदेशों की तुलना में बिल्कुल सही और दुरूस्त है. साबुन कोरोनावायरस को खत्म करने का प्रभावी और आसान तरीका है. नीचे की तस्वीर देखिए (CDC से लिया गया). कोविड-19 वायरस के डायग्राम से साफ़ पता चलता है कि, नैनोपार्टिकल एक मोटी तह(तस्वीर में दिख रही ग्रे कलर की तह) से ढके हुए हैं, जो इस ढांचे को जोड़े रखने की सबसे कमज़ोर कड़ी है. पानी अकेले इस मोटी तह के जोड़ को नहीं तोड़ सकता है. लेकिन साबुन एक amphiphile पदार्थ है. Amphiphile ऐसे पदार्थ होते हैं जिनके अंदर पानी और वसा दोनों के साथ जुड़ जाने का गुण होता है. साबुन वायरस की मोटी या वसा वाली तह के साथ जोड़ा बनाकर दूसरी तह से अलग कर देता है. इससे वायरस का ढांचा टूट जाता है और इस तरह वायरस का खात्मा हो जाता है.

5. दावा ये कि गर्म पानी पीने, नमक मिले गर्म पानी से गुलगुला करने और आइसक्रीम न खाने से आप कोरोना वायरस से बच सकते हैं.

गर्म पानी पीने या उससे गुलगुला करने या आइसक्रीम खाने या न खाने से कोरोनावायरस संक्रमण पर कोई असर नहीं पड़ता है. न तो कम और न ही ज्यादा तापमान कोरोना वायरस को खत्म कर सकता है. WHO ने इस दावे से संबंधित इंफोग्राफिक्स की सीरीज़ ज़ारी की है. वायरस को मारने के लिए गर्म पानी पीना या गर्म पानी से धोना आपकी त्वचा को नुकसान पहुंचा सकता है.

निष्कर्ष

वायरल संदेश, जिसे यूनिसेफ़ का बताया जा रहा है, सोशल मीडिया पर हावी हो रही ग़लत सूचनाओं के भंडार में से एक है. ये न सिर्फ यूनिसेफ़ का नाम लेकर बेईमानी से विश्वसनीयता हासिल करने की साज़िश है, बल्कि इधर-उधर से सुनी बातों, भ्रामक जानकारियों और कुछ ठीक सूचनाओं का अजीब कॉम्बिनेशन भी है.

इस संदेश में लोगों को गर्म और नमक वाले गुनगुने पानी से गुलगुले करने की सिंपल तकनीक बताई गई है. लोग इसको अपना भी सकते हैं, लेकिन ये किसी काम नहीं आने वाली. ये वायरल संदेश पढ़कर संक्रमित लोग मास्क पहनने से भी परहेज़ कर सकते हैं. जबकि ऐसे वक़्त में उन्हें एकांत में रहकर मेडिकल सहायता लेने की ज़रूरत होती है.

साथ ही, यूनिसेफ़ श्रीलंका ने ये साफ़ किया है कि उनके नाम से चलाया जा रहा इंफ़ोग्राफिक फ़र्ज़ी है. इसमें लिखा है, “यूनिसेफ़ कोरोना वायरस से जुड़ी एडवायज़री चैट ऐप्स पर ज़ारी नहीं करता है. जो एडवायज़री सर्कुलेट की जा रही है, वो यूनिसेफ़ की तरफ़ से नहीं आई है’.

⚠ Misinformation on COVID-19 ⚠

UNICEF does not issue coronavirus advisories on chat apps. The ones circulating now are…

Posted by UNICEF Sri Lanka on Sunday, 8 March 2020

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