12 सितंबर को 72 साल की आयु में CPI (M) के महासचिव सीताराम येचुरी का निधन हो गया. उनकी मौत के बाद, मार्क्सवादी नेता के शरीर को एक ताबूत में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय ले जाया गया, जहां से उन्होंने अपने रजिनीतिक जीवन की शुरुआत की थी ताकि JNU के छात्र उन्हें श्रद्धांजलि दे सके.  

जैसे ही कॉमरेड की विश्वविद्यालय की अंतिम यात्रा की तस्वीरें और वीडियो ऑनलाइन सामने आए, कई राईटविंग इन्फ्लुएंसर्स ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर दावा किया कि सीताराम येचुरी एक ईसाई थे. नियमित तौर पर ग़लत सूचना और सांप्रदायिक प्रॉपगेंडा को बढ़ाने के लिए अपने सोशल मीडिया हैंडल का इस्तेमाल करने वाले ऋषि बागरी ने भी ऐसा दावा किया. सीताराम येचुरी को श्रद्धांजलि देने के बारे में JNUSU के ट्वीट को कोट करते हुए ऋषि बागरी ने अनुमान लगाया कि वो इसीलिए ‘हिंदू धर्म से नफरत करते थे’ क्योंकि वो एक ईसाई थे. (आर्काइव)

वेरिफ़ाईड राईटविंग प्रॉपगेंडा हैंडल @wokeflix_ ने भी यही दावा ट्वीट किया. ट्वीट को 1.7 मिलियन व्यूज़ और करीब 7 हज़ार रिट्वीट मिले. (आर्काइव)

कई अन्य यूज़र्स ने वायरल दावे को आगे बढ़ाया. (आर्काइव्स- 1234)

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फ़ैक्ट-चेक

2017 में राज्यसभा में अपने विदाई भाषण के दौरान, सीताराम येचुरी ने अपनी धार्मिक बैकग्राउंड के बारे में बात की थी. नीचे इसका ट्रांसक्रिप्ट है:

मेरा जन्म मद्रास जनरल हॉस्पिटल जिसे अब चेन्नई कहा जाता है, में एक तेलुगु भाषी ब्राह्मण परिवार में हुआ था. मेरे दादाजी एक न्यायाधीश थे…गुंटूर गए, इसलिए हम 1954 में वहां चले गए. मेरा जन्म 1952 में हुआ था. हम 1956 में हैदराबाद चले गए. मेरी स्कूली शिक्षा एक इस्लामी संस्कृति में हुई है जो आज़ादी के शुरुआती दौर में निज़ाम शासन के तहत हैदराबाद में प्रचलित थी. हमारी तालीम तो वही हुई सर. फिर मैं दिल्ली आ गया, यहां पढ़ाई की. मेरी शादी एक ऐसी शख्सियत से हुई है, जिसके पिता इस्लामिक संप्रदाय के सूफी हैं, और जिनका उपनाम चिश्ती है… उनकी मां एक राजपूत हैं, लेकिन एक मैसूरियन राजपूत हैं, जो 8वीं शताब्दी ईस्वी में वहां चले गए थे. अब हम 21वीं सदी में हैं… मैं एक दक्षिण भारतीय ब्राह्मण परिवार से हूं, जिसकी शादी इस महिला से हुई है, मेरे बेटे को किस नाम से जाना जाएगा, सर?… ऐसा कुछ भी नहीं है जो भारतीय होने के अलावा मेरे बेटे का वर्णन कर सके. ये हमारा देश है. ये मेरा उदाहरण है, कैसे देखें, ऐसे कितने लोग हैं (जिनका बैकग्राउंड ऐसा ही है)…

2017 में तत्कालीन केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के एक बयान की आलोचना करते हुए सीताराम येचुरी ने खुद को नास्तिक बताया था.

ऑल्ट न्यूज़ ने पश्चिम बंगाल CPI (M) के राज्य सचिव मोहम्मद सलीम से संपर्क किया. सलीम ने येचुरी के भाषण का भी ज़िक्र किया और कहा, ”न्यू इंडिया’ के विषाक्त सामाजिक-राजनीतिक माहौल में हर चीज को धर्म से जोड़ने की कोशिश की जा रही है. परंपरागत रूप से, धार्मिक मान्यताओं को मानवीय और व्यक्तिगत माना जाता है. ‘पूजक और पूज्य’ के बीच संबंध. कॉमरेड सीताराम येचुरी ने स्वयं अपने राज्यसभा भाषण में एक अद्वितीय शब्दकार के रूप में इस पर विस्तार से प्रकाश डाला है. उन्होंने आगे कहा, “ताबूतों का कोई विशेष धर्म नहीं है, लेकिन उन लोगों के लिए है जो संकीर्ण मान्यताओं के आधार पर हर चीज को बांटना चाहते हैं.”

सीताराम येचुरी का शव ताबूत में क्यों था?

मीडिया प्रभारी और एम्स दिल्ली में प्रोफ़ेसर डॉ. रीमा दादा के मुताबिक, सीताराम येचुरी के परिवार ने मेडिकल रिसर्च के लिए उनका शरीर दान कर दिया था. जहां शिक्षा के मकसद से शरीर को क्षत-विक्षत करने की ज़रूरत होती है, और इसे संरक्षित करने के लिए शरीर में तरल पदार्थ इंजेक्ट किए जाते हैं. सीताराम येचुरी के परिवार के फैसले को एम्स संकाय ने ‘नेक’ बताया.

द हिंदू के एक आर्टिकल के मुताबिक, कोई अंतिम संस्कार नहीं किया गया क्योंकि उनका शरीर एम्स में चिकित्सा अनुसंधान के लिए दान कर दिया गया था. उनकी मौत के एक दिन बाद, उनके क्षत-विक्षत शरीर को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और फिर उनके आवास पर ले जाया गया. शनिवार, 14 सितंबर को उनके अवशेषों को दिल्ली में पार्टी के मुख्यालय AKG भवन में लाया गया.

कुल मिलाकर, सोशल मीडिया पर किया जा रहा ये दावा बिल्कुल ग़लत है कि सीताराम येचुरी ईसाई थे.

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Student of Economics at Presidency University. Interested in misinformation.