ट्विटर पर ‘द वायर’ के आर्टिकल का एक हिस्सा काफ़ी शेयर किया जा रहा है. दावा किया गया कि इस न्यूज़ प्लेटफ़ॉर्म ने दुर्गा पूजा को ‘नस्लभेदी त्यौहार’ और हिन्दू देवी को ‘सेक्स वर्कर’ कह कर ‘ऐंटी-हिन्दू’ भावनाओं को बढ़ावा दिया है.
पूर्व नेवी ऑफ़िसर हरिंदर सिक्का ने वायर की कड़ी आलोचना करते हुए लिखा, “क्या तुममें इस्लाम के ख़िलाफ़ ऐसे भद्दे शब्द लिखने की हिम्मत है?”
@thewire_in You’re intentionally stooping low,paid by cheap politicians,traitors to stoke fire, anarchy,hate?
Durga is worshipped in Hindustan.Can u dare write such obscene words for Islam? #ShameOnYou
@narendramodi It’s crime under cover of Press Freedom? pic.twitter.com/tz1YO6JjPM— Harinder S Sikka (@sikka_harinder) October 23, 2020
ट्विटर हैंडल @missionkaali जिसे दिल्ली भाजपा नेता कपिल मिश्रा फ़ॉलो करते हैं, ने ये स्क्रीनशॉट शेयर करते हुए सवाल किया कि क्या सच में प्लेटफ़ॉर्म ने ऐसा लिखा?
Is this really on @thewire_in? If it is, really deplorable! pic.twitter.com/tpW77olHVL
— Mission Kaali – Say No To Conversion (@missionkaali) October 24, 2020
@Voice_Of_Dharma, @Muralik79739498 ने भी ये स्क्रीनशॉट शेयर किया. ट्विटर हैंडल @indianrightwing ने लिखा, “@thewire_in ने माँ दुर्गा को सेक्स वर्कर कहा, वो भी नवरात्र में. कानूनी तौर से सज़ा-ए-मौत के अलावा और कोई सज़ा नहीं हो सकती…”
फ़ैक्ट-चेक
ट्विटर हैंडल @indianrightwing, जिसने ‘हिन्दूफ़ोबिक’ विचार के लिए द वायर को सज़ा-ए-मौत देने की बात कही, ने वो आर्टिकल भी शेयर किया है जिसमें ये हिस्सा है जो वायरल हो रहा है. अगर ये इस आर्टिकल को पढ़ भर लेते तो उन्हें पता चल जाता कि द वायर अपने विचारों को प्रमोट नहीं कर रहा था बल्कि ये 2016 में स्मृति ईरानी के दिए सन्दर्भ थे. इस बयान को कोटेशन मार्क्स में लिखा जाना ही संकेत करता है कि इसे द वायर ने खुद नहीं कहा.
ये आर्टिकल 27 फ़रवरी, 2016 को पूर्व एचआरडी मिनिस्टर के लोकसभा में एक भाषण के बाद लिखा गया था. स्मृति ईरानी ने जेएनयू प्रोटेस्ट को लेकर सरकार के रवैये पर हो रही आलोचना से उपजी बहस के दौरान बोलते हुए कहा था कि कैंपस में ‘ऐंटी-नेशनल’ कार्यक्रम का आयोजन हुआ था. ये भाषण उन्होंने 24 फ़रवरी, 2016 को दिया था और नीचे वीडियो में उस हिस्से को 31:40 मिनट से देखा जा सकता है.
स्मृति ईरानी ने दावा किया कि 2014 में ‘महिषासुर शहीद दिवस’ कार्यक्रम के लिए पर्चा छपवाया गया था और इसी में दुर्गा पूजा को लेकर ये बातें कही गयी थीं. कार्यक्रम के आयोजकों ने इस बात से इनकार कर दिया था. जेएनयू स्टूडेंट और आल इंडिया बैकवर्ड स्टूडेंट्स फोरम (AIBSF) के सदस्य, अनिल ने द वायर को बताया, “जो स्मृति ने कहा वो मनगढ़ंत था. उनके अनुसार जो हमारे पर्चे में लिखा था, वो कॉन्टेंट असल में उन्हें ABVP के पर्चे के ज़रिये मिला. ये बातें ABVP ने अपने पर्चे में हमारे विचार बताते हुए लिखी थीं. लेकिन वो ऐसे बता रहीं हैं जैसे ये बात हमने ही कही हो. जेएनयू प्रशासन ने बेशक उन्हें वो पर्चा दिया होगा लेकिन इससे वो ‘सर्टिफ़ाइड’ नहीं हो जाता. वो बस उसे जमा करते हैं.”
हालांकि जेएनयू प्रशासन ने दावा किया था कि जिस दस्तावेज़ का लोकसभा में सन्दर्भ दिया गया, वो वैध था. जेएनयू रजिस्ट्रार भूपिंदर ज़ुत्शी ने पीटीआई से कहा, “एचआरडी मंत्रालय ने हमसे कार्यक्रम के पर्चे समेत सभी दस्तावेज़ों को प्रामाणित करने के लिए कहा था. हमने अपने रिकॉर्ड में सिक्योरिटी रिपोर्ट्स चेक कीं और हमें सभी डॉक्युमेंट्स समेत ये पर्चे भी मिले. रिकॉर्ड के अनुसार दस्तावेज़ ठीक थे और यही मंत्रालय को दिए गये थे.”
AIBSF ने दुर्गा पूजा के उलट कुछ दलित और आदिवासी समुदाय के लिए महालया कार्यक्रम का आयोजन करने की कोशिश की थी जिसके बाद विवाद खड़ा हो गया था. इस कार्यक्रम को लेकर पहले भी विवाद हो चुका है. बहुजन समाज ब्राह्मणों द्वारा स्थापित महिषा-दुर्गा की कथा को ख़ारिज करते हैं. वो अपने राजा की मौत का शोक मनाते हैं जिसे हिन्दू देवी दुर्गा ने मार दिया था और इसे बुराई पर अच्छाई की जीत बताई गयी.
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक़, “एक ऐसी जनजाति है जो खुद को असुर या मूलनिवासी कहती है. ये ख़ुद को अपने घरों में कैद कर अपने राजा की ‘आर्यों के भगवानों द्वारा की गयी वीभत्स हत्या’ का शोक मनाते हैं. पौराणिक कथाओं के एक बदले हुए संस्करण के अनुसार महिषासुर आदिवासियों का राजा था जिसे छल कर के दुर्गा ने मारा क्यूंकि उसे ये वरदान मिला हुआ था कि कोई भी आदमी (पुरुष) उसे हरा नहीं सकेगा. इसके बाद कई भगवान और आये और उन्होंने उसे मार डाला.”
JNU में 2014 में हुआ ये इवेंट महालया से जुड़े अलग-अलग दृष्टिकोण लोगों के सामने रखने के मकसद से आयोजित किया गया था. द वायर से बात करते हुए अनिल ने बताया, “हम महिषासुर शहादत दिवस मना रहे थे क्यूंकि वो देश के आदिवासियों और हाशिये पे खड़ी जनता के एक हिस्से के लिए एक बड़ा प्रतीक है. ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो आदिवासियों को राक्षस कहा जाता था. मसलन, असुर जनजाति जो महिषासुर को पूजती है. आप अपने ही देश के नागरिकों की कैसे उपेक्षा कर सकते हैं? ये संविधान के ख़िलाफ़ है. हम ये नहीं कह रहे हैं कि किसी को भी दुर्गा की पूजा नहीं करनी चाहिए. (ऐसा करना) लोगों का अधिकार है. लेकिन ठीक इसी समय पर आप महिषासुर के मारे जाने को कैसे दिखा सकते हैं? ये कई लोगों को आहत करता है. खासकर उन्हें जो खुद को हाशिये पर खड़ा पाते हैं, जो इस कहानी को लेकर एक दूसरी ही राय रखते हैं.”
द वायर के 4 साल से ज़्यादा पुराने आर्टिकल में स्मृति ईरानी के एक बयान, जो कि JNU में बांटे गए एक पर्चे के बारे में है, को जगह मिली और इसे सोशल मीडिया पर गलत दावों के साथ पेश किया गया. यहां ये ध्यान देने लायक है कि यूनिवर्सिटी के ऑर्गनाइज़र्स ने ऐसे किसी भी पर्चे के छपने की बात नहीं की जिसमें दुर्गा को ‘सेक्स वर्कर’ बताया गया हो. AIBSF ने दावा किया कि ABVP ने उनकी बातों को ग़लत तरीके से दिखाया जिसके चलते उस वक़्त की शिक्षा मंत्री ने भी ऐसा ही किया. वहीं JNU के अधिकारियों का कहना है कि ये पर्चे सही (authentic) हैं. इस पूरे मामले पर द वायर के फ़ाउन्डिंग एडिटर सिद्धार्थ वर्धराजन ने भी ट्वीट कर सफ़ाई दी.
@thewire_in the pic below is being circulated in RW whatsapp groups, quoting ‘The Wire’ as the spreader of this, & is getting a lot of negative traction.
Is it true?
Wanted to check, & bring to your notice!@svaradarajan @bombaywallah @mkvenu1 @AltNews @free_thinker @zoo_bear pic.twitter.com/Ii8JHiMdvG
— Amitabh Pathak (@AmitabhAAV) October 25, 2020
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