हाल ही में प्रेस इन्फ़ॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) की फ़ैक्ट-चेक टीम ने ट्रेन में हुए श्रमिकों की मौत की ख़बर को गलत बताते हुए कुछ ट्वीट्स किये. उन्होंने फ़ैक्ट-चेक में बताया कि मरने वाले लोग या तो पहले से गंभीर बीमारियों से ग्रसित थे या हाल ही में उनका इलाज हुआ था. PIB ने ये दावे तो किये लेकिन श्रमिकों के पहले से बीमार होने का कोई सबूत, कोई मेडिकल रिपोर्ट नहीं दी.
हाल ही में PIB ने ट्रेन में 4 लोगों की हुई मौत के बारे में कहा कि ये सभी पहले से गंभीर बीमार से ग्रसित थे. जब हमने मृतकों के परिवार से बात की तो हमारे सामने कुछ और ही सच्चाई निकल कर आई. इस रिपोर्ट में हम आपको सिलसिलेवार ढंग से, केस बाई केस बताएंगे कि कैसे PIB ने फ़ैक्ट्स को ही दरकिनार करते हुए फ़ैक्ट-चेक किए –
केस 1.
28 मई को PIB ने स्पोक्सपर्सन रेलवे के एक ट्वीट को रीट्वीट किया. इस ट्वीट में बताया गया कि मुज़फ़्फ़रपुर रेलवे स्टेशन पर मरने वाला बच्चा पहले से बीमार था और दिल्ली से इलाज के बाद घर लौट रहा था. साथ ही अनवेरिफ़ाइड न्यूज़ नहीं शेयर करने की नसीहत भी दी गयी. ये ट्वीट पत्रकार राणा अयूब के ट्वीट के रिप्लाई में था. राणा अयूब ने हिंदुस्तान टाइम्स की ख़बर का एक लिंक शेयर किया था जिसमें 4 साल के बच्चे की स्टेशन पर मौत की ख़बर थी.
इससे पहले इस खबर को PIB ने 26 मई के एक ट्वीट में भी गलत और भ्रामक बताया था और यही दावा किया गया था कि बच्चा पहले से बीमार था और इलाज के बाद घर लौट रहा था. साथ ही पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के बाद ही स्पष्ट हो पायेगा कि मौत की वजह क्या थी.
फ़ैक्ट-चेक
इस दावे की सच्चाई जानने के लिए हमने मृत बच्चे के पिता मोहम्मद पिंटू से बात की. इन्होंने बताया कि इनका 4 साल का बच्चा इरशाद पहले से बीमार नहीं था. न ही उसका हाल ही में कोई इलाज हुआ था या चल रहा था. “हम 23 मई की दोपहर को दिल्ली से पटना की ट्रेन में बैठे थे. दिल्ली सरकार ने ट्रेन में खाने-पीने की व्यवस्था की थी. हमसे टिकट के पैसे भी नहीं लिए गए थे. उसी रात (23 मई) को लखनऊ स्टेशन पर थोड़ा खाना (पूरी सब्जी) और पानी की बोतल हमें दी गयी थी. उसके बाद हमें कहीं कोई मदद नहीं मिली. ट्रेन भी ऐसे जगहों पर रोकी जाती थी जहां आस-पास कुछ नहीं होता था. पानी भी नहीं मिलता था. हम सब 16 लोग थे सभी चार दिन से भूखे थे. सभी बच्चे भूख-प्यास और गर्मी से परेशान हो रहे थे. 25 की सुबह हम पटना पहुंचे. वहां से दानापुर और उसके बाद 10 बजे के करीब मुज़फ़्फ़रपुर पहुंचे. वहां 10 बजे से 3 बजे तक बेतिया के लिए ट्रेन या किसी सवारी का इंतज़ार करते रहे. कहीं कोई इंतजाम नहीं था. इसी बीच इरशाद ने दम तोड़ दिया.”
हमने पूछा कि क्या हाल ही में उनके बच्चे का कोई इलाज हुआ था? पिता मोहम्मद पिंटू ने हाल ही में इलाज होने या किसी चल रहे इलाज की बात से साफ़ इनकार किया और कहा कि उनका बच्चा बिलकुल स्वस्थ था इसीलिए तो ट्रैवेल कर रहा था. ट्रेन में बैठने से पहले चेक-अप भी हुआ था. बीमारी की कोई निशानी नहीं थी. हमने ये भी पूछा कि क्या उनके बच्चे का पोस्टमार्टम हुआ? उन्होंने कहा, “हम लोग एक तो भूखे-प्यासे कब से घर पहुंचने की आस लगाए बैठे थे. हमारे साथ और भी चार-पांच बच्चे थे. एक तो 10 दिन का बच्चा था. मेरा एक 2 साल का बच्चा है. सब के सब भूख से परेशान थे. कोई इधर रो रहा था कोई उधर. और कितना इंतज़ार करते हम? एक ने तो दम तोड़ ही दिया था. इसीलिए हम लोगों ने पोस्टमार्टम के लिए मना कर दिया.”
हमारे आग्रह करने पर मोहम्मद पिंटू ने वीडियो के ज़रिये सारी बातें बतायीं.
इसके अलावा मिनिस्टरी ऑफ़ रेलवे ने 2 मई को नॉर्म्स जारी किये थे जिसमें बताया गया था कि श्रमिक ट्रेनों में चढ़ने से पहले सभी यात्रियों की जांच की जाएगी. बीमार पाये जाने पर उसे यात्रा नहीं करने दिया जाएगा. COVID-19 के लक्षण न दिखाने वाले लोग ही ट्रेन यात्रा कर सकते हैं. इससे ये साफ़ होता है कि इरशाद को बुखार नहीं था, सांस लेने में तकलीफ़ नहीं थी और न ही खांसी-ज़ुकाम या वायरस से संक्रमण के कोई और लक्षण थे.
केस 2.
इसके अगले दिन यानी 27 मई की शुरुआत एक ऐसे वीडियो से हुई जिसने सबको झकझोर के रख दिया. बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर रेलवे प्लेटफ़ॉर्म पर एक बच्चा अपनी मरी हुई मां को जगाने की कोशिश कर रहा था. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ बच्चे की मां, 23 वर्षीय अरवीना खातून गर्मी, प्यास और भूख से बेहाल होकर मर गयी क्यूंकि ट्रेन में यात्रियों को खाना और पानी नहीं मिल रहा था. इसके कुछ ही समय बाद PIB बिहार ने इस ख़बर को गलत और भ्रामक बता दिया. PIB के मुताबिक़ अरवीना ट्रेन पर चढ़ने से पहले बीमार थी जिसकी पुष्टि उसके परिवार ने की है.
#दावा: वायरल वीडियो में मुजफ्फरपुर स्टेशन पर एक महिला की भूख-प्यास से हुई मौत को दिखाया जा रहा है#factcheck: गलत और भ्रामक है। महिला के पहले से ही बीमार होने की पुष्टि उसके परिवार ने की है। pic.twitter.com/XIsP9c8Esm
— PIB In Bihar 🇮🇳 (@PIB_Patna) May 27, 2020
फ़ैक्ट-चेक
ऑल्ट न्यूज़ ने इस मामले पर एक डीटेल्ड फ़ैक्ट-चेक रिपोर्ट की है. हमने अरवीना के साथ सफ़र कर रहे परिवार वालों से बात की जिसमें उसकी बहन कोहिनूर और उसके जीजा मोहम्मद वज़ीर शामिल थे. मोहम्मद वज़ीर और कोहिनूर, दोनों ने हमें बताया कि अरवीना ने चलते वक़्त कभी नहीं कहा कि उसे तबीयत ख़राब लग रही है. वो ट्रेन में बेहद प्यासी थी और उसे पानी चाहिये था. कोहिनूर ने ये भी कहा कि ट्रेन यात्रा से पहले वो लोग एक डॉक्टर के पास गए थे और अपना चेक-अप करवाया था. चेक-अप में अरवीना एकदम ठीक निकली थीं.
अरवीना के पिता मोहम्मद नेहरुल ने भी हमसे यही बात कही. मोहम्मद नेहरुल से NDTV ने भी बात की थी. उन्होंने चैनल को बताया कि अरवीना अहमदाबाद जाकर काम कर पा रही थी क्यूंकि वो शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह से ठीक थी.
अरवीना की मां ने भी ऐसी ही बातें कहीं. उन्होंने कहा कि अरवीना बीमार नहीं थी और लॉकडाउन में नौकरी न रहने के कारण वो वापस आना चाहती थी. इन सब के बयानों के बाद भी अगर मान लिया जाए कि अरवीना पहले से एक बीमारी से जूझ रही थी, तो भी PIB ने किसी ऐसी बीमारी का ज़िक्र नहीं किया है जिसके चलते उसकी जान चली जाए. इसके साथ ही लम्बी चल रही बीमारी का कोई मेडिकल रिकॉर्ड भी नहीं शेयर किया गया. इसके अलावा, सरकार ने पोस्टमार्टम भी नहीं किया जिससे मौत की वजह साफ़ हो सकती थी. अगर अरवीना लम्बी बीमारी से जूझ रही थीं तो उनके मां-बाप को मालूम होगा. PIB ने उसके मां-बाप से बात क्यूं नहीं की. अगर मीडिया और बाकी लोग, रेलवे के अनुसार बिना पोस्टमार्टम के मौत की वजह को भूख-प्यास, गर्मी वगैरह नहीं सकते हैं तो PIB भी किस आधार पर इन वजहों से इन्कार कर रहा है.
इसके अलावा सबसे ज़रूरी बात – PIB का ये दावा कि अरवीना पहले से बीमार थी, एक शिकायत पत्र के आधार पर किया गया है जो कि मोहम्मद वज़ीर के हवाले से था. लेकिन मोहम्मद वज़ीर ने हमसे हुई बातचीत के दौरान बताया कि उन्हें लिखना पढ़ना नहीं आता है और वो शिकायत पत्र असल में किसी और ने लिखा था जिसपर उनसे अंगूठे का निशान लिया गया था. अंगूठे का निशान लेने से पहले उन्हें बताया भी नहीं गया था कि उस शिकायत पत्र में क्या लिखा है.
केस 3
27 मई को PIB ने स्पोक्सपर्सन रेलवे के एक ट्वीट को रीट्वीट किया. इस ट्वीट में बताया गया था कि जिन 2 व्यक्तियों की ट्रेन में मौत हुई है, दोनों पहले से ही बीमार थे. एक व्यक्ति लकवा से ग्रसित था और किडनी का इलाज करवा रहा था और दूसरा 63 वर्ष का व्यक्ति कई बीमारियों से जूझ रहा था.
फ़ैक्ट-चेक
इस बारे में हमने कुछ मीडिया रिपोर्ट्स ढूंढे. नवभारत टाइम्स की 27 मई की रिपोर्ट बताती है कि मुंबई से वाराणसी के मंडुआडीह पहुंची श्रमिक स्पेशल ट्रेन में दो प्रवासी मजदूर मृत मिले. “मृत दिव्यांग दशरथ (30) जौनपुर के बदलापुर का रहने वाला था. वह अपने भाई लालमणि प्रजापति के साथ मुंबई पैसे कमाने के लिए गया था. भाई के साथ घर वापसी के दौरान भीषण गर्मी व भूख-प्यास के चलते प्रयागराज में उसकी तबीयत बिगड़ गई थी. ट्रेन के मंडुआडीह स्टेशन पहुंचने पर भाई ने दशरथ को जगाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं उठा.”
वहीं इस रिपोर्ट में मृत पाये गए दूसरे शख़्स के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलने की बात की गयी.
एक स्थानीय न्यूज़ चैनल ने इस घटना का वीडियो बनाया है और मृत विकलांग के परिवार वालों से बात की है. वीडियो में परिवार वालों का कहना है कि दशरथ बचपन से ही विकलांग था और बीमार रहता था.
दूसरे शख्स की जेब से मिला ID कार्ड इस वीडियो में दिखता है. उसके आधार कार्ड के अनुसार नाम रामरतन रघुनाथ गौंड थी और उसकी उम्र 63 वर्ष थी.
हमने रामरतन के परिवार से संपर्क करने की कोशिश की. मंडुआडीह के थाना प्रभारी बुद्धि प्रसाद यादव ने हमें बताया कि बॉडी BHU वाराणसी में रखी गयी थी. पहले कोरोना वायरस का टेस्ट कराया गया, जिसकी रिपोर्ट निगेटिव आई. उसके बाद पोस्टमार्टम हुआ जिससे पता चला कि उसे लंग इन्फ़ेक्शन था. ऑल्ट न्यूज़ ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट की कॉपी के बारे में पूछा तो हमें मालूम चला कि रिपोर्ट अभी SP के पास भेजी गयी है.
थाना प्रभारी से हमें रामरतन के परिवार का नंबर मिला. रामरतन के बेटे राजेश ने हमें बताया कि उसके पिता पहले से बीमार नहीं थे. न ही कोई दवाई चल रही थी. “हमें उनकी मौत की खबर 28 मई को मिली और बॉडी 1 जून को. वो पहले से बीमार नहीं थे. ये अचानक में उनकी मौत हुई है. उनके साथ कोई होता तो पता चलता लेकिन कोई था नहीं तो ये भी नहीं मालूम क्या हुआ. एक बार रास्ते में भी बात हुई थी, बोले थे ठीक हूं. इसके बाद हम लोग फ़ोन करते रहे लेकिन कोई उठा नहीं रहा था. उन्हें कोई बीमारी नहीं थी. BP वैगरह भी नहीं.”
राजेश ने हमें ये बात वीडियो के जरिये भी बताई-
कैसे रेल मंत्री पियूष गोयल और PIB ने एक नैरेटिव बनाने की कोशिश की
जैसा कि हमने ऊपर देखा, PIB फ़ैक्ट-चेक ने ऐसे चार लोगों की श्रमिक ट्रेन में हुई मौत की ख़बर को ये बताते हुए भ्रामक और गलत करार दिया कि ये लोग पहले से बीमार थे. जबकि इनमें से तीन लोगों के परिवार वालों से बात करने पर हमने पाया कि इन्हें पहले से कोई बीमारी नहीं थी. एक तरह से PIB ने ये नैरेटिव बनाने की कोशिश की कि ट्रेन में सवार हो रहे लोग, जिनकी मौत हो जा रही है, वो पहले से बीमार होते हैं. और इस नैरेटिव को सपोर्ट किया रेलवे मिनिस्टर पियूष गोयल ने. 29 मई को उन्होंने एक ट्वीट करते हुए दावा किया कि ट्रेन में हुई मौतें पहले से मौजूद बीमारियों के चलते हुई थीं. उन्होंने लोगों को सलाह दी कि जिन लोगों को सीरियस दिक्कतें हैं, गर्भवती महिलाएं, 65 साल से ऊपर के लोग, और 10 साल से कम उम्र के बच्चे बहुत ज़रूरी होने पर ही श्रमिक स्पेशल ट्रेन से यात्रा करें.
मेरी सभी नागरिकों से अपील है कि गंभीर रोग से ग्रस्त, गर्भवती महिलाएं, व 65 से अधिक व 10 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में बहुत आवश्यक होने पर ही यात्रा करें।
रेल परिवार यात्रियों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। #SafeRailways
📖 https://t.co/eKsLpqtAW9 pic.twitter.com/p4MZzlIs4q
— Piyush Goyal (@PiyushGoyal) May 29, 2020
हमने एक और पीड़ित परिवार से बात की. एक रिपोर्ट के अनुसार, “21 मई को महाराष्ट्र से चली श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेन कई राज्यों से घूमते हुए 25 मई की रात बरौनी पहुंची. मजदूरों का आरोप है कि 4 दिनों तक कई राज्य घुमाने के बावजूद ट्रेन में खाने-पीने की कोई व्यवस्था नहीं थी.” महाराष्ट्र के बांद्रा टर्मिनल से 21 मई को इस ट्रेन से घर लौट रहे कटिहार के मोहम्मद अनवर की सोमवार शाम बरौनी जंक्शन पर मौत हो गई.
हमने इनके साथ सफ़र कर रहे लोगों और परिवार वालों से बात की. इनसे हमारी बात करवाई शाहबाज़ ने जो ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन के सदस्य हैं. मोहम्मद अनवर के पीछे उनकी पत्नी और 4 बच्चे हैं. बीवी ने बताया कि सफ़र के दौरान फ़ोन पे बात होती थी. उन्होंने बताया था कि ट्रेन में चढ़ने के समय अनवर ने सत्तू खाया था लेकिन उसके बाद कहीं कुछ नहीं मिला था. ट्रेन ऐसी जगहों पर रुकती थी जहां आस-पास कहीं कुछ नहीं होता था. इस वजह से उन्होंने एक तालाब से पानी पिया. 25 को ईद के दिन उनकी मौत की ख़बर आयी. परिवार में कमाने वाले एकमात्र सदस्य यही थे. एक बेटी है जिसकी शादी होनी है. जब हमारी बात हुई, तब तक किसी अधिकारी का कोई फ़ोन या कोई और मदद नहीं मिली है.
नफ़ीस, जो अनवर के साथ बांद्रा से ट्रेन में चढ़ा था, उसने बताया “21 को ट्रेन मिलने से पहले से कई दिनों से हम इधर-उधर भटक रहे थे. खाने-पीने के लिए पैसे भी खत्म हो रहे थे. ट्रेन में बैठने पर थोड़ा चावल सब्जी मिला था खाने को. उसके बाद कहीं कुछ नहीं मिला. ट्रेन पूरा चक्कर लगा के 25 तारीख को बरौनी पहुंची. वहां से ट्रेन बदल के कटिहार जाना था. वहीं पर अनवर को चक्कर आने लगा और वो बेहोश होकर गिर गए. उनकी मौत हो गयी. पुलिस आई, सब कुछ चेक हुआ. उनके पास एक रुपया नहीं था. हमें नहीं पता था कि उनके पास पैसे नहीं है. वो मांगते भी नहीं थे.” नफ़ीस ने हमें ट्रेन की टिकट भेजी है, जिसपर ट्रेन के रवाना होने की तारीख 21 मई है.
इसके अलावा बिहार के रहने वाले एक और मोहन लाल शर्मा श्रमिक स्पेशल ट्रेन के टॉयलेट में मरे मिले थे. 4 दिनों तक उनकी लाश के बारे में किसी को मालूम ही नहीं पड़ा. उनके भतीजे ने बताया कि उन्होंने पूरी यात्रा में किसी तरह की बीमारी का ज़िक्र नहीं किया. उनकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में लिखा आया कि स्ट्रोक के कारण उनकी मौत हुई.
मेडिकल एक्सपर्ट का क्या कहना है?
हमने बात की डॉ. सिल्विया कर्पगम से जिन्हें कम्युनिटी मेडिसिन में 15 साल से ज़्यादा का अनुभव है. उन्होंने राइट टु फ़ूड और राइट टु हेल्थ कैम्पेन पर भी ख़ूब काम किया. वो मेडिकोलीगल केस में वकीलों के पोस्टमार्टम रिपोर्ट देखने की भी पक्षधर हैं.
उन्होंने कहा, “ट्रेन में प्रवासी मजदूरों की हुई मौतों के पीछे एक ही वजह नहीं हो सकती है. पोस्ट मार्टम रिपोर्ट में पहले से मौजूद स्थितियों और छिपी हुई वजहों की भी बात की जानी चाहिए. भले ही मरने वाले 80 लोगों में ज़्यादातर लोगों को पहले से बीमारी रही होगी लेकिन ये एक फ़ैक्टर भर ही होगा. भले ही लोग पहले से बीमार होंगे लेकिन ये सवाल मौजूद रहेगा कि आखिर ऐसा क्या हुआ जो स्थिति यहां तक पहुँच गयी कि उनकी ट्रेन में ही मौत हो गयी. देश में कुपोषण की समस्या पहले से मौजूद है. ये क्रोनिक हंगर इंडेक्स से पता चल जाता है. ये कुपोषण प्रवासी मज़दूरों को सबसे ज़्यादा अफ़ेक्ट करता है क्यूंकि अक्सर उनके पास ऐसा भोजन उपलब्ध नहीं होता है. लॉकडाउन के दौरान ये स्थिति और भी ज़्यादा ख़राब हुई. हमने देखा कि उन्हें पैदल ही लम्बी-लम्बी दूरियां तय करनी पड़ीं क्यूंकि वो जहां पर थे वहां न ही उनके पास कुछ खाने को था और न ही जीविका चलाने का कोई साधन नज़र आ रहा था. खाने की ग़ैर-मौजूदगी के साथ-साथ भीषण गर्मी में पैदल चलने या कैसे भी यात्रा करने से शरीर में पानी की भयानक कमी हो जाती है. अगर लोगों के लिए पानी वगैरह का ही इंतज़ाम अच्छे से हुआ होता तो कई मौतें टाली जा सकती थीं.”
डॉक्टर सिल्विया ने आगे कहा, “पहले से बीमार और भूखे लोगों को इससे बचाया जा सकता था. शरीर में पानी की कमी इंसान के लिए भूख से कहीं ज़्यादा तेज़ी से घातक होती है. ये लोग दोनों से जूझ रहे थे. पहले गर्मी से शरीर थकना शुरू होता है और फिर लंबे सफ़र के चलते ये स्ट्रोक में तब्दील हो जाता है. गर्मी से आया स्ट्रोक एक इमरजेंसी सिचुएशन माना जाता है और इसका इलाज किसी अच्छे अस्पताल में ही संभव हो सकता है. ट्रेन में इससे नहीं निपटा जा सकता है. हां, अगर इन्हें पानी ही मिलता रहता तो इससे बचा जा सकता था.”
अंत में
कुल जमा बात ये समझ में आती है कि कोरोना वायरस संक्रमण रुपी इस आपदा की मार उस वर्ग को सबसे ज़्यादा झेलनी पड़ी है जो आर्थिक रूप से बेहद कमज़ोर है. इस वर्ग को पहले तो अपने ही घर पहुंचने के लिए सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलना पड़ा और जब स्पेशल ट्रेनों के रूप में उन्हें कुछ राहत मिलती नज़र आई तो अव्यवस्था के जाल में फंसी ट्रेनें उनके लिए बेरहमी का पर्याय बनकर आईं. खाने-पानी की कितनी ही शिकायतें सामने आईं. लोग प्लास्टिक की बोतलों में दाल-चावल भिगो कर खाने को मजबूर हुए. ऐसी स्थितियां बेहद भयावह लगती हैं. लेकिन एक बहुत बड़ा वर्ग इनसे दो-चार हो रहा था. कईयों की मौत हुई और जब ये ख़बरें सामने आईं तो सरकारी फ़ैक्ट चेकिंग ग्रुप इस तरह के फ़ैक्ट चेक सामने लेकर आया कि फ़ैक्ट-चेक और सरकार के बचाव के बीच अंतर गायब होता हुआ मालूम होने लगा. इन फ़ैक्ट चेक्स का जब फ़ैक्ट चेक किया गया तो सरकारी हीलाहवाली और ग़रीब वर्ग की मूलभूत सुविधाओं की अनदेखी सामने आई. किसी परिवार का एकमात्र कमाने वाला शख्स अस्तित्व में नहीं रहता है और सरकार उसे पहले से हो रखी बीमारी का हवाला देते हुए पल्ला झाड़ लेती है. क्या इससे पहले भारतीय रेल में लम्बी बीमारी से जूझ रहे लोग यात्रा नहीं करते थे? क्या लम्बी बीमारी झेल रहे लोगों के लिए ट्रेन में यात्रा करना इस कदर ख़तरनाक है कि वो जान से हाथ धो बैठें? क्या सामान्य परिस्थितियों में बीमार लोगों, गर्भवती महिलाओं, बच्चों, बुज़ुर्गों को यात्रा करने से ऐसे ही मना किया जाता है/जाएगा? अगर सरकार ये कह रही है कि ये सामान्य परिस्थितियां नहीं है तो क्यूं लगभग रेस्क्यू करवाए जा रहे लोगों के साथ इस तरह से ट्रीट किया जा रहा है कि वो सामान्य दिनों में यात्रा कर रहे हैं? इन सभी सवालों की जवाबदेही सरकार की ही बनती है लेकिन वो एक फ़ैक्ट चेक एजेंसी के बल पर मरने वालों की लापरवाही और उनकी ख़राब सेहत पर दोष डाल कर ख़ुद को दोषमुक्त करार देने की कोशिश में लगी हुई नज़र आ रही है. 133 करोड़ की जनता के देश में ऐसे हालात बेहद चिंताजनक हैं और इनकी बिनाह पर हर रोज़ सवाल खड़े किये जाने बेहद ज़रूरी हैं.
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