इंडिया में कोरोना वायरस के संक्रमण की वजह से बगैर दूरदर्शिता के लागू किये गए लॉकडाउन के कारण लाखों प्रवासी मज़दूर भूखे और बगैर छत के जीने को मजबूर हुए. लॉकडाउन लागू करने के लगभग 2 महीने बाद सरकार ने श्रमिक ट्रेनें चलाने का फ़ैसला लिया जिससे सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलने को मजबूर मज़दूरों को कुछ राहत मिलती नज़र आ रही थी. लेकिन फिर ट्रेन यात्रा में दर्जनों मज़दूरों के मरने की ख़बर आना शुरू हुई और आशा की जगह डर ने ले ली.
इस दौरान एक परेशान कर देने वाला वीडियो देखने को मिला. बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर रेलवे प्लेटफ़ॉर्म पर एक बच्चा अपनी मां को जगाने की कोशिश कर रहा था. उसकी मां की मौत हो चुकी थी. ये वीडियो सोशल मीडिया पर ख़ूब शेयर किया गया. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ बच्चे की मां, 23 वर्षीय अरवीना खातून गर्मी, प्यास और भूख से बेहाल होकर मर गयी क्यूंकि ट्रेन में यात्रियों को खाना और पानी नहीं मिल रहा था.
रेलवे के अधिकारियों ने इन रिपोर्ट्स का तुरंत खंडन किया. पूर्व मध्य रेलवे ने ट्वीट करते हुए बताया कि अरवीना बीमार रहती थी और यही उसकी मौत की वजह बनी.
23.05.20 को अहमदाबाद से कटिहार के लिए चली 09395 श्रमिक स्पेशल ट्रेन में श्रीमती बिना खातून की (उम्र-23 वर्ष) बीमार रहने के कारण यात्रा के दौरान मृत्यु हो गयी। उनके साथ बहन कोहिनूर खातून और उनके पति वजीर आजम तथा दो बच्चे थे। https://t.co/BV4qSIrDPB
— East Central Railway (@ECRlyHJP) May 27, 2020
प्रेस इनफ़ॉरर्मेशन ब्यूरो के नए नवेले फ़ैक्ट-चेक विभाग ने मीडिया रिपोर्ट्स को ग़लत और हवा-हवाई बताया. PIB बिहार के मुताबिक़ अरवीना ट्रेन पर चढ़ने से पहले बीमार थी और उसके परिवार ने भी यही बताया.
#दावा: वायरल वीडियो में मुजफ्फरपुर स्टेशन पर एक महिला की भूख-प्यास से हुई मौत को दिखाया जा रहा है#factcheck: गलत और भ्रामक है। महिला के पहले से ही बीमार होने की पुष्टि उसके परिवार ने की है। pic.twitter.com/XIsP9c8Esm
— PIB In Bihar 🇮🇳 (@PIB_Patna) May 27, 2020
इससे पहले किये गए एक और ट्वीट में PIB ने फ़ैक्ट चेक करते हुए कहा था कि मौत की वजह बिना पोस्टमार्टम के नहीं बतायी जा सकती.
PIB ने अरवीना के परिवार वालों से मिले बयान के बारे में या उसकी बीमारी के बारे में कोई डीटेल नहीं दिए. इस रिपोर्ट में हम आपको बतायेंगे कि फ़ैक्ट चेक असल में किया कैसा जाना चाहिए था.
फ़ैक्ट-चेक
अरवीना एक गरीब परिवार से आती थीं और बिहार के कटिहार ज़िले के श्रीकोल गांव में रहती थीं. उनके पीछे उनके मां-बाप और 6 बहनें हैं जिसमें 3 की शादी होनी अभी बाकी है. एक साथ रहने वाले ये लोग बेहद ख़राब आर्थिक परिस्थितियों में जी रहे थे. अरवीना के पति ने लगभग 1 साल पहले उसे तलाक दे दिया था. अपने 2 बच्चों को पालने के लिए वो अहमदाबाद आ गयी थी जहां वो अपनी बहन और उसके पति के साथ कंस्ट्रक्शन का काम करती थी. उसके बच्चे भी उसके साथ आ गए थे. लॉकडाउन में नौकरी गंवाने के बाद अरवीना और उसके फ़ैमिली मेम्बर्स के लिए चीज़ें काफ़ी ख़राब हो गयी थीं और वो पैसों के मोहताज हो गए थे. 23 मई को बहुत मुश्किलों के बाद वो अहमदाबाद से कटिहार की ट्रेन पकड़ पाए. इसी यात्रा के दौरान 25 मई को अरवीना की मौत हो गयी. ट्रेन के मुज़फ़्फ़रपुर पहुंचने से लगभग 2 घंटे पहले.
अरवीना की मौत जब ख़बरों में आई तो PIB ने दावा किया कि अरवीना पहले से बीमार थी. एक और यूज़र ने पुलिस कम्प्लेंट दिखाई जो कि अरवीना के साथ यात्रा कर रहे उसके जीजा मोहम्मद वज़ीर ने फ़ाइल की थी. इस शिकायत पत्र में लिखा हुआ था कि अरवीना मानसिक और शारीरिक, दोनों रूप से अस्वस्थ थी. JDU के राजीव रंजन प्रसाद ने एक वीडियो ट्वीट किया जिसमें मोहम्मद वज़ीर को ये कहते हुए देखा जा सकता है कि उन्हें ट्रेन में खाना मिला था. हालांकि उसने इस बात से इन्कार किया कि अरवीना बीमार थी. बीबीसी की एक रिपोर्ट ने मोहम्मद वज़ीर का बयान छापा जिसमें उसने कहा कि दिन में एक बार खाना मिला था और थोड़ी-थोड़ी देर पर पानी और नाश्ता वगैरह मिल रहा था. उसने बीबीसी को ये भी बताया कि अरवीना को कोई भी बीमारी नहीं थी.
अरवीना के फ़ैमिली मेम्बर्स से वीडियो पर बयान लेने के लिए कई ऐसे लोगों से बात करने की कोशिश की जो कि श्रीकोल के आस-पास रहते हैं. AISA बिहार के वाइस प्रेसिडेंट काज़िम इरफ़ानी ने परिवार वालों से बात करने पर हामी भरी और हमारे द्वारा बनायी गयी सवालों की लिस्ट से सवाल पूछे. मोहम्मद वज़ीर ने बीबीसी को दिए बयान के उलट, ये कहा कि ट्रेन में उन्हें खाना-पानी वगैरह नहीं दिया गया था. वो अपनी इस बात पर कायम रहा कि अरवीना को पहले से कोई बीमारी नहीं थी.
मुज़फ़्फ़रपुर पुलिस स्टेशन में दिए गए शिकायत पत्र में लिखा है कि अरवीना शारीरिक और मानसिक रूप से अस्वस्थ थी. हमने पूछा कि क्या ये शिकायत पत्र उन्होंने खुद लिखा था तो उन्होंने कहा कि वो लिख-पढ़ नहीं सकते, सिर्फ़ अपने साइन कर सकते हैं. पुलिस को दिए गए कम्प्लेंट लेटर में मोहम्मद वज़ीर के अंगूठे के निशान हैं. एक पुलिसवाले ने उसे लिखा था. हमें मोहम्मद वज़ीर ने ये भी बताया कि कि अंगूठा लगाने से पहले उसको वो शिकायत पत्र पढ़कर नहीं सुनाया गया था. यानी उसे नहीं मालूम था कि उसमें क्या लिखा है.
ऊपर दिए गए वीडियो के अलावा फ़ोन पर हुई बातचीत में मोहम्मद वज़ीर ने हमें बताया कि उसने शुरुआत में जो भी बयान दिए, जल्दबाज़ी में और परेशानी के हालातों में दिए. उसने कहा, “वो (अरवीना) थोड़े टाइम पहले ही मरी थी और मुझसे सवाल पूछे जा रहे थे. जो भी दिमाग में आया, मैंने कह दिया.”
अरवीना के साथ अकेले मोहम्मद वज़ीर ही यात्रा नहीं कर रहे थे. PIB ने कहा कि अरवीना के परिवार वालों का कहना था कि वो पहले से बीमार थी. ये सच नहीं है. नीचे अरवीना की बहन और मोहम्मद वज़ीर की पत्नी कोहिनूर ख़ातून का वीडियो है. वो भी श्रमिक ट्रेन से अहमदाबाद से कटिहार आ रही थीं. उन्होंने कहा कि अरवीना ने चलते वक़्त कभी नहीं कहा कि उसे तबीयत ख़राब लग रही है. वो ट्रेन में बेहद प्यासी थी और उसे पानी चाहिये था.
मोहम्मद वज़ीर ने कहा कि अरवीना ने चलने से पहले खाना खाया था जबकि कोहिनूर ने कहा कि उसने नहीं खाया था. मगर दोनों ये ज़रूर कह रहे थे कि वो ट्रेन पर चढ़ते वक़्त बीमार नहीं थी.
कोहिनूर ने ये भी कहा कि वो लोग एक डॉक्टर के पास गए थे और ट्रेन पकड़ने से पहले अपना चेक-अप करवाया था. चेक-अप में अरवीना एकदम ठीक निकली थीं. मोहम्मद वज़ीर ने भी ये बात फोन पर हुई बातचीत में कही थी. ये बात ध्यान में रखने वाली है क्यूंकि सरकार के निर्देशों के मुताबिक़ COVID-19 के लक्षण न दिखाने वाले लोग ही ट्रेन यात्रा कर सकते थे. चूंकि अरवीना को ट्रेन में चढ़ने दिया गया था, ये साफ़ होता है कि उसे बुखार नहीं था, सांस लेने में तकलीफ़ नहीं थी और न ही खांसी-ज़ुकाम या वायरस से संक्रमण के कोई और लक्षण थे.
और अगर हम ये मान भी लें कि अरवीना एक लम्बी बीमारी से जूझ रही थी, तो भी PIB किसी ऐसी बीमारी का ज़िक्र नहीं करता जिसके चलते उसकी जान चली जाए. इसके साथ ही लम्बी चल रही बीमारी का कोई मेडिकल रिकॉर्ड भी नहीं शेयर किया गया. इसके अलावा, सरकार ने पोस्टमार्टम भी नहीं किया जिससे मौत की वजह साफ़ हो सकती थी. अगर मीडिया और बाकी लोग, रेलवे के अनुसार बिना पोस्ट मार्टम के मौत की वजह को भूख-प्यास, गर्मी वगैरह नहीं सकते हैं तो PIB भी किस आधार पर इन वजहों से इन्कार कर रहा है.
अरवीना की एक और बहन परवीना ने ऑल्ट न्यूज़ को बताया कि उसे पहले से कोई बीमारी नहीं थी. उनके पिता मोहम्मद नेहरुल ने भी यही बात कही. उनका बयान नीचे है –
मोहम्मद नेहरुल से NDTV ने भी बात की थी. उन्होंने चैनल को बताया कि अरवीना अहमदाबाद जाकर काम कर पा रही थी क्यूंकि वो शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह से ठीक थी.
अरवीना की मां ने भी ऐसी ही बातें कहीं. उन्होंने कहा कि अरवीना बीमार नहीं थी और लॉकडाउन में नौकरी न रहने के कारण वो वापस आना चाहती थी.
कटिहार से पत्रकार नूर परवेज़, जो कि दैनिक भास्कर के लिए काम करते हैं, मोहम्मद वज़ीर और उनकी पत्नी के घर लौटने के अगले दिन जाकर उस परिवार से मिले. परवेज़ ने ऑल्ट न्यूज़ को बताया कि उन्हें मालूम चला कि ट्रेन में यात्रियों को खाना वगैरह नहीं मिला था और अरवीना को ट्रेन में चढ़ने से पहले कोई भी बीमारी नहीं थी.
एक्सपर्ट की मेडिकल ओपिनियन
ऑल्ट न्यूज़ ने श्रमिक ट्रेनों में हुई कई प्रवासी मज़दूरों की मौत के बारे में डॉक्टर सिल्विया कर्पागम से उनकी राय लेने के लिए बात की. सिल्विया कर्पागम को कम्युनिटी मेडिसिन में 15 साल से ज़्यादा का अनुभव है. उन्होंने राइट टु फ़ूड और राइट टु हेल्थ कैम्पेन पर भी ख़ूब काम किया. वो मेडिकोलीगल केस में वकीलों के पोस्टमार्टम रिपोर्ट देखने की भी पक्षधर हैं.
उन्होंने कहा, “ट्रेन में प्रवासी मजदूरों की हुई मौतों के पीछे एक ही वजह नहीं हो सकती है. पोस्ट मार्टम रिपोर्ट में पहले से मौजूद स्थितियों और छिपी हुई वजहों की भी बात की जानी चाहिए. भले ही मरने वाले 80 लोगों में ज़्यादातर लोगों को पहले से बीमारी रही होगी लेकिन ये एक फ़ैक्टर भर ही होगा. भले ही लोग पहले से बीमार होंगे लेकिन ये सवाल मौजूद रहेगा कि आखिर ऐसा क्या हुआ जो स्थिति यहां तक पहुँच गयी कि उनकी ट्रेन में ही मौत हो गयी. देश में कुपोषण की समस्या पहले से मौजूद है. ये क्रोनिक हंगर इंडेक्स से पता चल जाता है. ये कुपोषण प्रवासी मज़दूरों को सबसे ज़्यादा अफ़ेक्ट करता है क्यूंकि क्यूंकि अक्सर उनके पास ऐसा भोजन उपलब्ध नहीं होता है. लॉकडाउन के दौरान ये स्थिति और भी ज़्यादा ख़राब हुई. हमने देखा कि उन्हें पैदल ही लम्बी-लम्बी दूरियां तय करनी पड़ीं क्यूंकि वो जहां पर थे वहां न ही उनके पास कुछ खाने को था और न ही जीविका चलाने का कोई साधन नज़र आ रहा था.”
डॉक्टर सिल्विया ने आगे कहा, “खाने की ग़ैर-मौजूदगी के साथ-साथ भीषण गर्मी में पैदल चलने या कैसे भी यात्रा करने से शरीर में पानी की भयानक कमी हो जाती है. अगर लोगों के लिए पानी वगैरह का ही इंतज़ाम अच्छे से हुआ होता तो कई मौतें टाली जा सकती थीं. पहले से बीमार और भूखे लोगों को इससे बचाया जा सकता था. शरीर में पानी की कमी इंसान के लिए भूख से कहीं ज़्यादा तेज़ी से घातक होती है. ये लोग दोनों से जूझ रहे थे. पहले गर्मी से शरीर थकना शुरू होता है और फिर लंबे सफ़र के चलते ये स्ट्रोक में तब्दील हो जाता है. गर्मी से आया स्ट्रोक एक इमरजेंसी सिचुएशन माना जाता है और इसका इलाज किसी अच्छे अस्पताल में ही संभव हो सकता है. ट्रेन में इससे नहीं निपटा जा सकता है. हां, अगर इन्हें पानी ही मिलता रहता तो इससे बचा जा सकता था.”
रेलवे मिनिस्टर पियूष गोयल ने हाल ही में दावा किया था कि ट्रेन में हुई मौतें पहले से मौजूद बीमारियों के चलते हुई थीं. उन्होंने लोगों को सलाह दी कि जिन लोगों को सीरियस दिक्कतें हैं, गर्भवती महिलाएं, 65 साल से ऊपर के लोग, और 10 साल से कम उम्र के बच्चे बहुत ज़रूरी होने पर ही श्रमिक स्पेशल ट्रेन से यात्रा करें. डॉक्टर सिल्विया ने इस ओर ध्यान दिलाया कि लम्बे अरसे से चली आ रही बीमारी वाले लोग हमेशा हवाई जहाज में और ट्रेनों में यात्रा करते रहे हैं. उन्होंने कहा, “डॉक्टर्स अपने मरीज़ों से कुछ एहतियात बरतते हुए यात्रा करने को कहते हैं. किसी यात्रा के अंत तक आते-आते इतने सारे लोग मरते नहीं. लम्बी बीमारी से जूझ रहे लोग अपनी परिस्थितियों के बारे में ख़ूब अच्छे से जानते हैं और खुद को लम्बी यात्रा में सुरक्षित रखने के प्रयास करते हैं. लेकिन अगर ऐसे बहुत सारे लोग मर रहे हैं तो हमें बीमारी के साथ-साथ लम्बे अरसे तक भूख, प्यास और शुगर लेवल कम होने को भी ध्यान में रखना होगा.”
बिहार के एक और रहने वाले मोहन लाल शर्मा श्रमिक स्पेशल ट्रेन के टॉयलेट में मरे मिले थे. 4 दिनों तक उनकी लाश के बारे में किसी को मालूम ही नहीं पड़ा. उनके भतीजे ने बताया कि उन्होंने पूरी यात्रा में किसी तरह की बीमारी का ज़िक्र नहीं किया. उनकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में लिखा आया कि स्ट्रोक के कारण उनकी मौत हुई. डॉक्टर सिल्विया कहती हैं, “अगर किसी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में स्ट्रोक बताया गया है तो उससे सब कुछ नहीं पता लगाया जा सकता. हमें स्ट्रोक के टाइप के बारे में कुछ नहीं मालूम और न ही मरने वाले की स्थिति के बारे में मालूम चलता है. मसलन उसके शरीर में पानी की कमी थी या ब्लड शुगर लेवल कम हो गया था.”
ये पूरा घटनाक्रम बहुत सारी बातें जो कि रेलवे या फिर PIB ने फ़ैक्ट चेक नहीं किया.
1. अगर अरवीना बीमार थी तो ये अस्पताल में हुए चेक-अप में क्यूं नहीं दिखा.
2. वो किस लम्बी बीमारी से परेशान थी? उसके मेडिकल रिकॉर्ड्स कहां हैं?
3. अगर पोस्टमार्टम हुआ था तो सरकार ये कैसे कह सकती है कि उसकी मौत इस भीषण गर्मी में खाने, पानी की कमी की वजह से नहीं हुई?
4. अगर इस नतीजे पर अरवीना के परिवार के सदस्य के बयान की वजह से पहुंचा गया तो PIB ने उसकी बहन से बात क्यूं नहीं की जो कि उसके साथ ही यात्रा कर रही थी. अगर अरवीना लम्बी बीमारी से जूझ रही थीं तो उनके मां-बाप को मालूम होगा. PIB ने उसके मां-बाप से बात क्यूं नहीं की.
5. क्या अरवीना के जीजा मोहम्मद वज़ीर का बयान एकमात्र आधार था ये कहने के लिए कि उसे ट्रेन पर खाना मिला था. लेकिन हमें मोहम्मद वज़ीर ने ऐसा नहीं बताया और कहा कि शुरुआत में उसने जो भी कहा, बेहद परेशानी की स्थिति में कहा था. वज़ीर अलग-अलग वक़्त पर अलग-अलग बयान दे रहा था लेकिन उसने कभी भी ये नहीं कहा कि अरवीना को पहले से कोई बीमारी थी. इसके अलावा जो पुलिस को दिया गया शिकायती पत्र था, वो भी मोहम्मद वज़ीर ने नहीं लिखा था. उसने बताया कि वो लिख-पढ़ नहीं सकता है और शिकायत पत्र लिखे जाने के बाद उसे बताया नहीं गया कि उसमें क्या लिखा है और उससे अंगूठा लगवा दिया गया.
सार ये है कि रेलवे अधिकारियों ने अरवीना खातून की पहले से चल रही बीमारियों के चलते मौत हुई, इसका कोई सबूत नहीं दिया है. इसके अलावा PIB फ़ैक्ट चेक, जो कि हाल ही में एक ऐसा हथियार बनकर आया है जो कि पत्रकारों और मीडिया ऑर्गनाइज़ेशन को परेशान करने के काम में आता है, ने ढंग से फ़ैक्ट चेक का काम भी नहीं किया. यहां तक कि एक प्रवासी मज़दूर PIB की तहकीकात महज़ दो लाइनों तक सीमित रही. इसके इतर जब हमने इस मामले की पड़ताल की तो हमें इन नतीजों तक पहुंचने में 1 हफ़्ते का समय लगा.
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