कोविड-19 महामारी के आने से आयुर्वेद और अन्य चिकत्सीय उद्योगों में भारी तेज़ी देखने को मिली है. लेकिन कई आयुर्वेदिक उत्पाद बिना किसी ठोस आधार के लोगों के बीच प्रमोट किये जा रहे हैं. ऐसे उत्पाद लॉन्च और प्रमोट करने में स्वास्थ्य मंत्रालय और भारत के प्रधानमंत्री भी शामिल है.
ऐसे ही उत्पादों में च्यवनप्राश भी शामिल है जो औषधियों और चीनी का गाढ़ा मिश्रण है. भारत में ये एक लोकप्रिय आयुर्वेदिक उत्पाद है जिसे डाबर, इमामी और पतंजलि आदि बेचते हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस महामारी में च्यवनप्राश की मांग 85 फ़ीसदी बढ़ी है.
आयुर्वेदिक उत्पादों के बड़े ब्रांड्स में शामिल, डाबर भी च्यवनप्राश उत्पादन की सूची में शामिल है. डाबर ने हाल ही में च्यवनप्राश के विज्ञापन में कोविड-19 से सुरक्षा करने का दावा कर किया. विज्ञापन के साथ ही कंपनी ने ये भी दावा किया कि इसके पीछे क्लिनिकल ट्रायल के शोध किये गये हैं और इसके प्रभाव को साबित करते हैं. कंपनी की वेबसाइट पर भी यही कहा गया है कि डाबर च्यवनप्राश रोज़ाना खाने से कोविड-19 होने का खतरा 12 गुना कम हो जाता है. लेकिन वेबसाइट पर किसी शोध अध्ययन का प्रमाण नहीं दिया गया है.
इसके बाद कई लोगों ने इस विज्ञापन का विरोध किया. यही नहीं, भारतीय विज्ञापन मानक परिषद् ने इस विज्ञापन के खिलाफ़ शिकायत भी दर्ज की. हमने डाबर के इस विज्ञापन और च्यवनप्राश के कोरोना पर प्रभाव का विश्लेषण किया और इस दावे का पाया कि इसका कोई लिखित वैज्ञानिक आधार नहीं है. इससे पहले भी ऑल्ट न्यूज़ ने अश्वगंधा का कोविड-19 पर असर का विश्लेषण किया था और उसका भी कोई वैज्ञानिक आधार नहीं पाया गया था. ये फिर से बता दें कि अश्वगंधा को खुद आयुष मंत्रालय ने प्रमोट किया था.
Alerting @ascionline ! How reliable and valid is the study @DaburIndia is quoting? Please find out and pass your verdict. @rameshnarayan @skswamy @beastoftraal @calamur @bhatnaturally Two spoons vs Two shots of vaccine? pic.twitter.com/UgKAc2MZxn
— Ambi Parameswaran (@ambimgp) March 26, 2021
दावे:
1. डाबर च्यवनप्राश रोज़ाना खाने से कोविड-19 होने का खतरा 12 गुना कम हो जाता है
2. च्यवनप्राश कोविड-19 से बचाव करता है
ये दोनों दावे ग़लत हैं
फ़ैक्ट-चेक
भारत में किसी भी क्लिनिकल या ह्यूमन ट्रायल से पहले उसका रजिस्ट्रेशन ICMR के क्लिनिकल ट्रायल रजिस्ट्री – इंडिया (CTRI) में करना पड़ता है, और ये आयुष के प्रोयोगों पर भी लागू होता है. कुछ ख़ामियों से इतर, CTRI में की गयी एंट्री पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाती हैं. साथ ही ट्रायल से जुड़ी कुछ ज़रूरी जानकारियां भी मिलती हैं.
हमने दो कीवर्ड ‘Chyawanprash’ और ‘Chyavanprash’ सर्च किया और CTRI पर इससे जुड़ी 10 क्लिनिकल स्टडी सूचित मिलीं. सभी ट्रायल्स में अभी इस बात पर शोध चल ही रहा है कि च्यवनप्राश के सेवन से कोविड-19 से बचाव होगा या नहीं.
No. | Registration Date | CTRI Entry | Primary Sponsor | Study Type | Sample Size | Phase as per CTRI | Publication |
1 | 27 April 20 | CTRI/2020/05/025484 | CCRAS NIIMH | RCT Open Label | 5000 | 2/3 | None |
2 | 2 May 20 | CTRI/2020/05/024981 | Dabur India | RCT Open Label | 696 | NA | None |
3 | 20 May 20 | CTRI/2020/05/025275 | CCRAS Ind Gov | RCT Open Label | 200 | 3 | Preprint |
4 | 28 May 20 | CTRI/2020/05/025425 | CCRAS Ind Gov | Single Arm | 50 | 3/4 | None |
5 | 31 May 20 | CTRI/2020/05/025493 | AYUSH, Telangana | Single Arm | 1500 | 2/3 | None |
6 | 3 June 20 | CTRI/2020/06/025561 | AYUSH, Telangana | RCT Open Label | 500 | 2/3 | None |
7 | 19 Sept 20 | CTRI/2020/09/027914 | Dabur India | RCT Open Label | 72 | 2/3 | None |
8 | 22 Sept 20 | CTRI/2020/09/027974 | CCRAS Ind Gov | RCT Open Label | 200 | 2 | None |
9 | 14 Jan 21 | CTRI/2021/01/030454 | Emami Zandu | RCT Open Label | 300 | 2/3 | None |
10 | 24 Jan 21 | CTRI/2021/01/030733 | Emami Zandu | RCT Open Label | 60 | 2/3 | None |
इन 10 अध्ययनों में से 2 डाबर के हैं (आखिरी बार 3 अप्रैल को जब ये सूची चेक की गयी). CTRI की एंट्री के मुताबिक, इनमें से एक अध्ययन में 696 प्रतिभागी थे और ये 5 अलग-अलग केन्द्रों से हैं. डाबर ने अपने विज्ञापन में यही जानकारी दी हुई है.
हमने गूगल स्कॉलर और PubMed डेटाबेस (विज्ञान से जुड़े पब्लिकेशन) पर कीवर्ड ‘Dabur Chyawanprash Clinical study on Covid-19’ सर्च किया और इस बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. इसी तरह BioRxiv और MedRxiv पर भी डाबर के शोध पर कोई जानकारी नहीं मिली. इसका सीधा मतलब है कि डाबर ने कोई रीसर्च पेपर जारी ही नहीं किया.
कंपनी की वेबसाइट पर दिए गये परिणाम भी संदिग्ध जान पड़ते हैं. वेबसाइट पर बताया गया है कि च्यवनप्राश खाने वाले 351 लोगों में केवल 2.38% को ही बाद में कोरोना पॉज़िटिव पाया गया. 2.38% बनता है 8.3538 लोग. लेकिन प्रतिभागियों की ये संख्या दशमलव नहीं बल्कि पूर्ण संख्या होनी चाहिए. इसी तरह, कंट्रोल ग्रुप (लोग जिनपर ट्रीटमेंट का प्रयोग नहीं किया जाता) में, 345 में से 28.57% कोरोना पॉज़िटिव पाए गये. 28.57% यानी, 98.5665 लोग और ये भी एक पूर्व संख्या नहीं है.
अगर इसे राउंड-अप करके 99 भी मानते हैं जिन्हें कोरोना हुआ और च्यवनप्राश खाने वालों में केवल 8 लोगों को कोरोना हुआ, ये परिणाम बहुत ही ज़्यादा प्रभावी हैं. इस संख्या को हम वैक्सीन से जोड़कर देखें तो ये कुछ ऐसा जैसे किसी वैक्सीन का 92% प्रभावी होना. यानी, भारत में इस्तेमाल की जा रही कोवैक्सीन (81%) और कोविशील्ड (76%) से भी ज़्यादा असरदार.
बड़े दावों के पीछे बड़े आधार का होना भी ज़रूरी है. डाबर के मामले में कोई ऐसा सबूत नहीं है. डाबर ने च्यवनप्राश पर किये गए प्रयोगों का एक भी परिणाम पब्लिश नहीं किया. इससे साबित होता है उनकी वेबसाइट और विज्ञापन पर किये गये दावे भ्रामक हैं.
न्यूज़ आउटलेट्स नवभारत टाइम्स और न्यूज़ ट्रैक ने डाबर के इस दावे पर आर्टिकल भी पब्लिश किया, ये जानते हुए कि इसपर कोई भी रीसर्च पेपर मौजूद नहीं है.
च्यवनप्राश का बिना निष्कर्ष वाला प्रीप्रिंट
ऊपर जिन 10 क्लिनिकल ट्रायल की सूची है उनमें से केवल एक का परिणाम पब्लिश किया. लेकिन वो भी बतौर प्रीप्रिंट (छापने से पहले की कॉपी) जिसे किसी और विशेषज्ञ ने नहीं देखा-परखा. इस अध्ययन को आयुष मंत्रालय के केन्द्रीय आयुर्वेदीय विज्ञान अनुसंधान परिषद् (CCRAS) ने फ़ंड किया है. उन्होंने प्रयोग किया कि क्या डाबर च्यवनप्राश कोविड-19 से बचा सकता है. लेकिन ये प्रयोग केवल 193 प्रतिभागियों पर ही किया गया. इस प्रीप्रिंट में निष्कर्ष लिखा है, “जिन लोगों को च्यवनप्राश का सेवन करवाया गया उनके शरीर ने इसे सही ढंग से ग्रहण कर लिया. लेकिन शरीर में सहन शक्ति बढ़ाने और कोविड-19 के खिलाफ़ सुरक्षा साबित करने के लिए सैंपल साइज़ बड़ा लेकर ज़्यादा समयांतराल में क्लिनिकल ट्रायल किये जाने की ज़रूरत है.”
इसके अलावा, प्रीप्रिंट के परिणाम ये भी बताते हैं कि च्यवनप्राश का सेवन करने वालों में, इसे न खाने वालों के मुकाबले IgG का लेवल बाधा हुआ था. IgG एक ऐसा मानक होता है जो शरीर में खाने से जुड़ी दिक्कतें बताता है और इसे इंफ़्लेमेटरी मार्कर के तौर पर जाना जाता है. यानी, ज़्यादा च्यवनप्राश खाने वालों का शरीर अलग-अलग खाद्य पदार्थों को लेकर ज़्यादा संवेदनशील बनाता है. इससे पता चलता है कि शरीर की इम्यूनिटी शरीर का साथ नहीं दे पा रही.
च्यवनप्राश की क्लिनिकल स्टडी का विश्लेषण एक धूमिल तस्वीर पेश करता है. मान लेते हैं कि CCRAS द्वारा फ़ंड किये गये इस अध्ययन में 49 लोगों को 30 दिनों तक च्यवनप्राश का सेवन करवाया गया और कोई कंट्रोल ग्रुप भी नहीं है. एक महीने बाद इनमें से 2 लोग कोरोना पॉज़िटिव पाए जाते हैं और इसके बावजूद CTRI एंट्री में पाया जाता है, “कोविड-19 से बचाव के उपायों के सन्दर्भ में इस पायलट स्टडी के परिणाम प्रोत्साहित करने वाले हैं.” इस अध्ययन के परिणामों का कोई भी वैज्ञानिक दस्तावेज़ नहीं दिया गया है, न ही पेपर और न ही प्रीप्रिंट के रूप में.
इसी तरह, च्यवनप्राश से जुड़े अन्य अध्ययन भी असंगठित तरीके से तैयार किये गये हैं. इनमें से अधिकतर में कंट्रोल ग्रुप तो है लेकिन एक भी ब्लाइंडेड ग्रुप (जिन्हें नहीं पता होता कि उन्हें कौन सी दवाई दी जा रही है) नहीं है. ब्लाइंडेड ग्रुप किसी प्रयोग में इसलिए ज़रूरी होते हैं ताकि कोई पूर्वाग्रह न हो. एक समूह को नहीं बताया जाता है कि उन्हें दवाई दी जा रही है या नहीं, न ही चिकित्सकों को इसकी सूचना दी जाती है. और अगर ये तरीका नहीं अपनाया जाता है तो मुमकिन है कि शोधकर्ता या प्रतिभागी अपने लक्षण के बारे में पूरी सच्चाई न बताएं और च्यवनप्राश को ज़्यादा असरदार साबित करने की कोशिश करें.
कुछ बड़े सैंपल साइज़ जैसे, NIIMH-CCRAS रजिस्टर करवाए गये हैं. ये भी आयुष मंत्रालय द्वारा फ़ंड किया गया अध्ययन है जिसमें 5000 प्रतिभागी हैं. इस प्रयोग को अगर सुनियोजित रूप से नियमों से साथ किया गया तो इसके परिणाम भी संतोषजनक हो सकते हैं. NIIMH-CCRAS तेलंगाना में 1500 पुलिसकर्मियों पर भी च्यवनप्राश का कोविड-19 के खिलाफ़ प्रभाव पर एक प्रयोग को फ़ंड कर रहा है. लेकिन CTRI के आंकड़ों के मुताबिक, दोनों ट्रायल को अबतक ख़त्म हो जाना चाहिए था और इनके परिणाम के कोई दस्तावेज़ सार्वजानिक तौर से मौजूद नहीं हैं.
CTRI के एंट्री के मुताबिक, 10 में से कई ट्रायल्स में भर्तियां काफ़ी पहले ख़त्म हो जाने चाहिए थीं लेकिन अधिकतर ट्रायल के बारे में कोई आंकड़े पब्लिश ही नहीं किये गए हैं. इसका एक कारण प्रकाशन में पूर्वाग्रह (file-drawer effect) आना भी है. ऐसा तब होता है जब शोधकर्ता ट्रायल को रजिस्टर करवाते हैं, इसे पूरा करते हैं लेकिन सही परिणाम न मिलने पर उसे प्रकाशित नहीं करते. लेकिन परिणाम प्रकाशित नहीं करना केवल प्रतिभागियों के साथ धोखा नहीं है, बल्कि उन सभी लोगों के साथ धोखा है जिन्होंने आयुष मंत्रालय के ज़रिये इस शोधों को फ़ंड किया.
निष्कर्ष
कोविड-19 से सुरक्षा में च्यवनप्राश के उपयोग पर किये गये ट्रायल्स में केवल एक का प्रीप्रिंट जारी किया गया और वो भी धुंधले परिणामों के साथ. ये अध्ययन साफ़ नहीं करता कि च्यवनप्राश प्रभावी है. CTRI में शामिल अन्य 9 ट्रायल्स प्रकाशित किये जाने बाकी हैं. आयुष मंत्रालय का ये दावा कि च्यवनप्राश कोरोना से बचाता है, बिना किसी ठोस सबूत के किया गया है.
डाबर ने कोई रीसर्च पेपर नहीं जारी किया और उनकी वेबसाइट पर लिखी सतही जानकारी भी संदेहास्पद जान पड़ती है.
कुल मिलाकर, च्यवनप्राश का कोरोना के खिलाफ़ सुरक्षा का दावा भ्रामक और निराधार है.
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