स्ट्रेचर पर सांस लेने के लिए संघर्ष करते एक व्यक्ति का वीडियो व्हॉट्सऐप पर घूम रहा है. भारत में कोरोना वायरस संकट के बीच, इस वीडियो को कर्नाटक के मेंगलुरू का बताकर सर्क्युलेट किया जा रहा है. इस दावे में ये भी बताया जा रहा है कि वीडियो में दिख रहा कोविड-19 का मरीज़ वेनलॉक हॉस्पिटल के आइसोलेशन वॉर्ड में है.

व्हॉटसऐप पर, इसे ‘मेंगलुरू का पहला नोवेल कोरोना वायरस संक्रमण’ बताकर शेयर किया जा रहा है.

 

ऑल्ट न्यूज़ को अपने आधिकारिक एंड्रॉयड ऐप पर इस वीडियो की सत्यता का पता लगाने के लिए कई रिक़्वेस्ट्स मिलीं.

दूसरा दावा

इसी वीडियो को एक फ़ेसबुक यूजर ने बनारस का बताकर शेयर किया है. दावे के अनुसार, ये व्यक्ति बनारस के एक अस्पताल में भर्ती कोरोना वायरस का मरीज़ है. इस दावे में लिखा है,

“बनारस में भर्ती कोरोना वायरस के मरीज का यह वीडियो देखकर आप लोग समझे की कितनी गंभीर स्थिति है सिर्फ बचाओ ही इसका उपाय है कहीं भी भीड़ ना मचाए 1 मीटर की दूरी अवश्य बनाए रहे घड़ी घंटा बजाने वालों से भी अनुरोध है कि जुलूस के रूप में ना निकले गंभीरता से लें”.

इस दावे से वायरल वीडियो की सच्चाई का पता लगाने के लिए भी हमें कई रिक़्वेस्ट्स मिली हैं.

ये भारत का नहीं है

ऑल्ट न्यूज़ ने वीडियो को कई फ़्रेम्स में तोड़ा. उनमें से एक फ़्रेम को रिवर्स सर्च करने पर पता चला कि ये वीडियो इक्वाडोर का है. 18 मार्च को, इक्वाडोर के एक ट्विटर यूजर ने इस मरीज़ के कई वीडियो पोस्ट किए थे. यूजर के अनुसार, मरीज़ एक्यूट रिस्पायरेट्री डिस्ट्रेस सिंड्रोम से जूझ रहा था. इस वीडियो को लॉस रियोस प्रांत के वेलेंसिया शहर के एक हॉस्पिटल में शूट किया गया था. यूजर के ट्विटर बायो में लिखा है. “इक्वाडोरियन फ्रॉम गुआयाक़्विल. डॉक्टर. रिसर्चर”. इस ट्विटर यूजर ने अपना हैंडल फ़िलहाल प्राइवेट कर दिया है, लेकिन सभी ट्वीट्स के स्क्रीनशॉट्स नीचे देखे जा सकते हैं.

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उसके ट्वीट्स के अनुसार, मरीज़ का इलाज कर रहे स्वास्थ्यकर्मियों के पास मास्क के अलावा कोई पर्सनल प्रोटेक्शन इक़्विपमेंट्स (पीपीई) नहीं था. उसने एक और वीडियो पोस्ट किया, जिसमें मरीज़ को फ़्लुइड चढ़ाया जा रहा था. इस पोस्ट के कैप्शन में लिखा था, “इस वीडियो में इंटरकॉस्टल सर्क्युलेशन दिख रहा है. ये सीने के अंदर हवा के दबाव के कम होने का संकेत है.” इस ट्वीट में, वो ये जानकारी देती हैं कि मरीज़ को क़ेवेडो शहर के अस्पताल में ट्रांसफ़र किया जा सकता है. वीडियो में लोगों को स्पैनिश भाषा में बात करते हुए सुना जा सकता है. हालांकि ऑडियो उतना साफ़ नहीं है, लेकिन एक व्यक्ति को मरीज़ की कमीज़ उठाते वक़्त ये कहते हुए सुना जा सकता है, “तुम देख रहे हो, ये कैसे काम करता है?”. वीडियो के बाद के हिस्से में, एक और आवाज़ आती है, “क्या ये काफ़ी है?”

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उसने तीसरा वीडियो पोस्ट कर बताया कि मरीज़ को “बिना ऑक्सीजन की नली, वेंटिलेटर’ सांस लेने की दिक्कत के साथ” अस्थायी आइसोलेशन रूम में ले जाया जाएगा.

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इस ट्विटर थ्रेड के अंत में इक्वाडोर की सरकार की कड़ी आलोचना की जाती है क्योंकि उनके देश में सांस के संक्रमण से बीमार व्यक्ति के इलाज के लिए अस्पताल तक नहीं हैं. ध्यान देने वाली बात ये है कि पहले ट्वीट में (#COVID19) हैशटैग इस्तेमाल करने के बाद, उसने कोरोना वायरस का नाम तक नहीं लिया.

हमें ‘C6 Television Babahoyo‘, नाम का एक फ़ेसबुक पेज भी मिला. बाबाहोयो इक्वाडोर के लॉस रियोस प्रांत की राजधानी है. इस पेज के ‘अबाउट अस’ सेक्शन में जाने पर पता चला कि ये बाबाहोयो से शुरू हुआ फ़ेसबुक पेज है. उसी दिन, इस पेज ने वीडियो पोस्ट कर साफ़ किया था कि मरीज़ को सांस की समस्या थी न कि वो कोरोना वायरस का संक्रमण था.

#ATENCIÓN | El caso de la joven que se presenta en el vídeo, corresponde a una paciente con “Síndrome de abstinencia respiratoria” y no de afectación de coronavirus.

Posted by C6 Televisión Babahoyo on Tuesday, 17 March 2020

ऑल्ट न्यूज़ को स्वतंत्र रूप से इस वीडियो से संबंधित पूरी जानकारी का पता लगाने में सफ़लता नहीं मिली. हालांकि, पूरे दावे के साथ कहा जा सकता है कि ये वीडियो सबसे पहले इक्वाडोर में सर्क्युलेट हुआ था. वहां ये दावा किया जा रहा था कि मरीज़ एक्यूट रिस्पायरेट्री डिस्ट्रेस सिंड्रोम से परेशान है. पीछे से लोगों को स्पेनिश में बात करते हुए सुना जा सकता है. इससे हिंट मिलता है कि इस वीडियो को भारत में शूट नहीं किया गया.

ज़िले के सरकारी वेनलॉक अस्पताल के मेडिकल सुपरिंटेन्डेंट ने मेंगलुरू पुलिस में शिकायत दर्ज़ कर वीडियो सर्क्युलेट करनेवालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग की है. 22 मार्च, 2020 को ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया‘ में छपे एक आर्टिकल के मुताबिक़, रविवार को जैसे ही पहले कोविड-19 संक्रमण का मामला आया, तब से ये वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया जाने लगा है.”

वायरल वीडियोज़ को बकवास बताते हुए सुपरिंटेन्डेंट ने कहा, “सोशल मीडिया पर, वेनलॉक अस्पताल में संघर्ष कर रहे मरीज़ से संबंधित दो वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर जानबूझ कर शेयर की गई. ये वेनलॉक अस्पताल का वीडियो नहीं है. सबसे अहम बात, वेनलॉक अस्पताल में नीले रंग के बेड्स का इस्तेमाल नहीं किया जाता.”

भारत में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या 900 के पार जा पहुंची है. इसकी वजह से सरकार ने बुनियादी ज़रुरतों से जुड़ी चीज़ों को छोड़कर बाकी सभी चीज़ों पर पाबंदी लगा दी है. दुनिया भर में 6 लाख से ज़्यादा कन्फ़र्म केस सामने आये हैं और 27 हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. लोगों में डर का माहौल बना हुआ है और इसी वजह से वो बिना जांच-पड़ताल किये किसी भी ख़बर पर विश्वास कर रहे हैं. लोग ग़लत जानकारियों का शिकार बन रहे हैं जो कि उनके लिए घातक भी साबित हो सकता है. ऐसे कई वीडियो या तस्वीरें वायरल हो रही हैं जो कि घरेलू नुस्खों और बेबुनियाद जानकारियों को बढ़ावा दे रही हैं. आपके इरादे ठीक हो सकते हैं लेकिन ऐसी भयावह स्थिति में यूं ग़लत जानकारियां जानलेवा हो सकती हैं. हम पाठकों से ये अपील करते हैं कि वो बिना जांचे-परखे और वेरीफ़ाई किये किसी भी मेसेज पर विश्वास न करें और उन्हें किसी भी जगह फ़ॉरवर्ड भी न करें.

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