कोरोना वायरस एक नई महामारी है जो चीन के वुहान से शुरू होकर थाइलैंड, फ़्रांस, फिलीपींस, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और भारत समेत दुनिया के 16 देशों तक फैल गई है. इसकी वजह से अब तक 27 हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और 6 लाख से अधिक लोग संक्रमित हुए हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कोरोना वायरस को वैश्विक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित कर दिया. दुनिया के लगभग सभी देश लॉकडाउन की स्थिति में हैं. भारत में 23 मार्च से 21 दिनों के लॉक डाउन का आदेश जारी किया गया है.

कोरोना वायरस संक्रमण के लक्षण दूसरे सांस संबंधी संक्रमणों की तरह ही होते हैं. इसलिए इसे सामान्य बुखार से अलग करने में मुश्किल आती है. ये श्वसन तंत्र से निकलने वाले द्रव्यों, जैसे कि कफ और छींक से फैलता है. इंफ्लुएंज़ा और दूसरी सांस संबंधी बीमारियों की तरह. इस संक्रमण की सीमाओं की बात करें, तो इसमें हल्की खांसी से गंभीर बीमार और फिर मौत तक देखी गई है. इस संक्रमण के सामान्य लक्षण हैं, कफ, बुखार, सांस लेने में तक़लीफ़ और कभी-कभी डायरिया भी. अभी तक, इस संक्रमण के इलाज के लिए कोई वैक्सीन नहीं बनी है. सुरक्षा उपायों को अपनाना ही इस संक्रमण को फैलने से रोकने का सबसे अच्छा तरीका है.

दावा:

आयुर्वेद, योग और नेचुरोपैथी, यूनानी, सिद्धा, सोवा रिग्पा और होम्योपैथी (आयुष) मंत्रालय ने प्रेस इन्फ़ॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) के ज़रिए कोरोना वायरस महामारी से बचाव और उपचार के लिए दो एडवायजरी जारी कीं. एक एडवायजरी के मुताबिक़, होम्योपैथिक दवा आर्सेनिकम अल्बम 30 को संक्रमण से बचाव के लिए ‘रोगनिरोधी मेडिसिन’ के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है (नीचे देखिए).

“होम्योपैथिक प्रैक्टिस के अनुसार, नीचे लिखे गए बीमारी से बचाव के कदम उठाने का सुझाव दिया जाता है – अलग-अलग फ़ील्ड्स के विशेषज्ञों ने रिकमेंड किया है कि होम्योपैथिक दवा आर्सेनिकम अल्बम 30 को कोरोना वायरस संक्रमण से बचने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. इसे इंफ़्लुएंज़ा जैसी बीमारियों (ILI) से बचाव के लिए भी लेने की सलाह दी गई है. तीन दिनों तक खाली पेट आर्सेनिकम अल्बम 30 का एक डोज लेने के लिए कहा गया है. अगर कम्युनिटी में कोरोना वायरस का संक्रमण फैलता है तो यही डोज़ हर महीने दोहराया जा सकता है.”

नतीजा:

ग़लत

फ़ैक्ट-चेक:

ऑल्ट न्यूज़ ने गूगल स्कॉलर और PUBMED जैसे वैज्ञानिक आर्टिकल्स के स्रोतों पर छपे वैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर आयुष मंत्रालय के दावों की छानबीन की. दवा बनाने के क्षेत्र में, डॉक्टर्स नई दवाओं पर जानकारी जुटाने और सत्यता की पुष्टि के लिए गूगल स्कॉलर और PUBMED पर छपे रिसर्च की मदद लेते हैं. अर्थात, अगर गूगल स्कॉलर और PUBMED पर दवाओं से संबंधित वैज्ञानिक शोधों की कमी है, तो इसका मतलब ये है कि उन दवाओं के बारे में चिकित्सकीय या बेसिक साइंटिफ़िक रिसर्च नहीं हुई है.

हमने वैज्ञानिक पद्धति से कोरोना वायरस संक्रमणों में आर्सेनिकम अल्बम 30 के इस्तेमाल, कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ किसी दूसरे होम्योपैथी दवा के साक्ष्य, और आर्सेनिक अल्बम 30 के किसी दूसरे संक्रमण में प्रयोग के सबूत ढूंढ़ने की कोशिश की.

1. कोरोना वायरस के लिए आर्सेनिकम अल्बम 30 का साक्ष्य

हमें कोई भी ऐसी स्टडी नहीं मिली, जिसमें मनुष्यों और पशुओं (जीवित प्राणी में) में कोरोना वायरस के लिए आर्सेनिकम अल्बम के प्रभाव का ज़िक्र किया गया हो. साथ ही, कोई ऐसी स्टडी भी नहीं मिली जिसमें जीवित प्राणियों से अलग (मनुष्य/जानवरों के शरीर के अलावा) इस दवा के प्रभाव का अध्ययन किया गया हो.

2. कोरोना वायरस के लिए किसी भी होम्योपैथी दवा का साक्ष्य

ऐसी कोई भी स्टडी नहीं मिली जिसमें कोरोना वायरस संक्रमण के मामले में किसी भी होम्योपैथी दवा के प्रभाव की जांच की गई हो.

3. किसी भी तरह के संक्रमण में आर्सेनिकम अल्बम 30 के प्रयोग का साक्ष्य

होम्योपैथिक रिसर्च में साक्ष्य की तलाश में, आर्सेनिकम अल्बम 30 दवा के बारे में खोजने पर हमें सिर्फ़ एक रिसर्च पेपर मिला. ये ब्रिटिश होम्योपैथिक जर्नल (कायने एंड रैफ़र्टी, 1994) ने पब्लिश किया था. इसमें बछड़ों में होने वाले डायरिया में इसके प्रयोग का अध्ययन किया गया था. इसे वर्डियर, ओहागन एंड एलेनियस (Verdier, Öhagen & Alenius) ने स्टेटिस्टिक्स के ज़रिए 2003 में अवैध साबित कर दिया था.

इसलिए, किसी होम्योपैथ ने कोई साइंटिफ़िक रिसर्च नहीं की है या ये साबित नहीं किया है कि आर्सेनिकम अल्बम 30, कोरोना वायरस या इंसानों में होने वाले किसी भी किस्म के संक्रमण को रोक सकता है.

निष्कर्ष:

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और भारत में भी, होम्योपैथी को रोगनिरोधी उपाय बताकर एडवायजरी जारी करने के लिए आयुष मंत्रालय और भारत सरकार की कड़ी आलोचना की गई. ऑल्ट न्यूज़ ने वैज्ञानिक तरीके से, कोरोना वायरस संक्रमण की रोकथाम के लिए, आर्सेनिकम अल्बम 30 दवा की होम्योपैथिक रिसर्च की जांच की.

दूसरी होम्योपैथिक दवाओं की तरह ही, आर्सेनिकम अल्बम 30 को कभी भी कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने या कम करने के लिए न तो कभी टेस्ट किया गया और न ही कभी ये साबित हुआ है. हालांकि, हमारा फोकस होम्योपैथ्स द्वारा की गई रिसर्च की स्टडी पर था, लेकिन इस मामले में दूसरे रिसर्चर्स की भी ऐसी कोई स्टडी नहीं मिली, जिसमें आर्सेनिकम अल्बम 30 को कोरोना वायरस के लिए इस्तेमाल करने का सुझाव दिया गया हो.

आयुष मंत्रालय और आयुष के होम्योपैथ्स के द्वारा किया दावा ग़लत है, खतरनाक है और भारत में कोरोना वायरस महामारी को नया रूप दे सकता है. क्योंकि संक्रमित मरीज़ों की देखभाल करने वाले भारत सरकार की एडवायजरी के आधार पर ग़लत प्रोटेक्शन यूज कर सकते हैं.

अगर ये भ्रामक सलाह मानी गई, तो इस खतरनाक और संक्रामक बीमारी के दौर में, लाखों लोगों की जान खतपे में पड़ सकती है.

रेफ़रेंस:

Kayne, S., & Rafferty, A. (1994). The use of Arsenicum album 30c to complement conventional treatment of neonatal diarrhoea (‘scours’) in calves. British Homoeopathic Journal, 83(4), 202-204.

De Verdier, K., Öhagen, P., & Alenius, S. (2003). No effect of a homeopathic preparation on neonatal calf diarrhoea in a randomised double-blind, placebo-controlled clinical trial. Acta Veterinaria Scandinavica, 44(2), 97.

भारत में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या 900 के पार जा पहुंची है. इसकी वजह से सरकार ने बुनियादी ज़रुरतों से जुड़ी चीज़ों को छोड़कर बाकी सभी चीज़ों पर पाबंदी लगा दी है. दुनिया भर में 6 लाख से ज़्यादा कन्फ़र्म केस सामने आये हैं और 27 हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. लोगों में डर का माहौल बना हुआ है और इसी वजह से वो बिना जांच-पड़ताल किये किसी भी ख़बर पर विश्वास कर रहे हैं. लोग ग़लत जानकारियों का शिकार बन रहे हैं जो कि उनके लिए घातक भी साबित हो सकता है. ऐसे कई वीडियो या तस्वीरें वायरल हो रही हैं जो कि घरेलू नुस्खों और बेबुनियाद जानकारियों को बढ़ावा दे रही हैं. आपके इरादे ठीक हो सकते हैं लेकिन ऐसी भयावह स्थिति में यूं ग़लत जानकारियां जानलेवा हो सकती हैं. हम पाठकों से ये अपील करते हैं कि वो बिना जांचे-परखे और वेरीफ़ाई किये किसी भी मेसेज पर विश्वास न करें और उन्हें किसी भी जगह फ़ॉरवर्ड भी न करें.

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From 2017-2021, Dr. Shaikh was the Founding-Editor for Alt News Science. Her main role is as a neuroscientist researching violent extremism and psychiatry.