सोशल मीडिया पर एक दावा शेयर किया जा रहा है. इसके मुताबिक, सिर्फ़ हिन्दू मंदिरों को ही टैक्स भरना पड़ता है. 26 सितंबर को यूट्यूबर एल्विस यादव ने ये दावा ट्वीट किया था. आर्टिकल लिखे जाने तक इस ट्वीट को 7,500 से ज़्यादा बार रीट्वीट किया जा चुका है. (ट्वीट का आर्काइव लिंक)
In a country where everyone enjoys religious freedom, why only Hindu temples have to pay taxes? #FreeTemples
— Elvish Yadav (@ElvishYadav) September 26, 2021
यूट्यूबर गौरव तनेजा ने एल्विस का ट्वीट कोट करते हुए लिखा कि 2014 में 282, 2019 में 303 लाकर भी जो काम नहीं हो सका वो 543 से भी नहीं होगा. यहां भाजपा और बीते दो आम चुनावों में उसकी सीटों की संख्या की ओर इशारा किया गया था.
ट्विटर पर ये दावा वायरल है.
फ़ेसबुक पर भी ये इसे शेयर किया जा रहा है.
फ़ैक्ट-चेक
ऑल्ट न्यूज़ इस दावे की जांच 2017 में ही कर चुका है. उस मौके पर सुब्रमण्यम स्वामी ने ट्वीट किया था कि GST सिर्फ़ मंदिरों को देना होगा न कि मस्जिद और चर्च को. ऑल्ट न्यूज़ ने अपनी जांच में इस दावे को झूठा पाया था.
वित्त मंत्रालय ने 3 जुलाई 2017 को ट्वीट करते हुए इस दावे को फ़र्ज़ी बताया था. बताया गया था कि GST धर्म के आधार पर लागू नहीं किया जाएगा.
There are some messages going around in social media stating that temple trusts have to pay the GST while the churches & mosques are exempt.
— Ministry of Finance (@FinMinIndia) July 3, 2017
This is completely untrue because no distinction is made in the GST Law on any provision based on religion.
— Ministry of Finance (@FinMinIndia) July 3, 2017
We request to people at large not to start circulating such wrong messages on social media.
— Ministry of Finance (@FinMinIndia) July 3, 2017
इसके अलावा, ऑल्ट न्यूज़ ने 2017 में कुछ मुस्लिम ट्रस्ट से भी संपर्क किया था. उन्होंने बताया था कि वो देश में लागू किये गए नए टैक्स कानूनों का पालन कर रहे हैं और उन्हें GST सर्टिफ़िकेट्स भी मिल चुके हैं.
मिर्ज़ापुर, अहमदाबाद की कुरेशी कमिटी के सदस्य उस्मान एच कुरेशी ने हमें बताया था कि उन्हें GST रजिस्ट्रेशन नंबर भी मिल चुका था और वो नए कानूनों के मुताबिक, टैक्स का भुगतान करने वाले थे. उन्होंने ऑल्ट न्यूज़ के साथ GST के सर्टिफ़िकेट्स की तस्वीर शेयर की थी.
हमने अहमदाबाद सुन्नी मुस्लिम वक्फ़ कमिटी (ट्रस्ट) के अध्यक्ष रिज़वान क़ादरी से भी बात की थी. उन्होंने बताया था कि ट्रस्ट की शहर में कुछ संपत्तियां हैं. और उन्हें किराये के 3 लाख रुपये मिलते हैं. GST में 20 लाख तक की छूट होती है और इसलिए ज़रूरी है कि उनकी वार्षिक आय, GST के साथ रजिस्टर हो. उन्होंने ऑल्ट से बात करते हुए इस बात की पुष्टि की थी कि वो GST आने से पहले से ही ट्रस्ट की आय पर टैक्स देते आ रहे थे.
GST के बारे में
कोई भी संस्था जिसकी वार्षिक आय 40 लाख से ज़्यादा हो (विशेष राज्यों में 20 लाख से ज़्यादा), तो उन्हें खुद को GST के तहत रजिस्टर करवाना होगा.
इनकम टैक्स ऐक्ट, 1961 के सेक्शन 12AA के तहत रजिस्टर की गई संस्था को ही टैक्स में छूट मिल सकती है. सरकार ने ट्रस्ट द्वारा दी जाने वाली सेवाओं की एक लिस्ट जारी की थी जिसमें शामिल सेवाएं अगर कोई ट्रस्ट देता हो तो ही उसे GST सर्टिफ़िकेट मिल सकता है. लिस्ट में शामिल सेवाओं में धार्मिक समारोह का आयोजन, धार्मिक परिसर को किराये पर देना शामिल है. यहां ध्यान दें कि इसमें धार्मिक परिसर के हॉल, खुली जगह, कमरे (जिसका किराया 1 हज़ार से ज़्यादा हो) या परिसर में मौजूद किसी भी दुकान/जगह को व्यापार के लिए देना शामिल नहीं है. इस लिस्ट से बाहर दी जाने वाली सेवाएं GST के अंतर्गत आयेंगी और ट्रस्ट को इससे संबंधित टैक्स का भुगतान करना होगा.
GST में धार्मिक और चैरिटी ट्रस्ट को लेकर दिए गए प्रावधानों में साफ़-साफ़ कहा गया है कि सभी धर्मों की धार्मिक गतिविधियों में छूट दी जाएगी. बशर्ते ये सेवाएं सरकार द्वारा जारी की गई लिस्ट के अनुसार हों.
कुल मिलाकर, 2017 से सोशल मीडिया पर एक दावा किया जा रहा है कि सिर्फ़ मंदिरों को ही टैक्स का भुगतान करना पड़ता है. और मस्जिद और चर्च इससे बाहर है. ये दावा पूरी तरह से फ़र्ज़ी है.
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