नवम्बर के आखिरी हफ्ते में कुछ ट्विटर यूज़र्स ने पूछा, “क्या आपको पता है कि भारत अबतक रक्षा वर्दियों के फै़ब्रिक का आयात चीन जैसे देशों से करता था?” ट्विटर यूज़र @DoctorAjayita ने अहमदाबाद मिरर (आर्काइव लिंक) की एक रिपोर्ट का सहारा लेते हुए ये दावा किया. इस ट्वीट को अबतक 500 से ज़्यादा बार रीट्वीट किया जा चुका है. (आर्काइव लिंक)
Did you know that till date India used to import cloth for defence uniforms from countries like China? Now for the first time, Surat textile industry will manufacture the cloth. First order for 10 Lakh meters is already placed, to be delivered by Jan 2021. #AatmanirbharBharat 🇮🇳 pic.twitter.com/XMiuxP6lBD
— Dr. Ajayita (@DoctorAjayita) November 25, 2020
अहमदाबाद मिरर (आर्काइव लिंक) ने 23 नवम्बर के आसपास रिपोर्ट किया था कि भारत की तीनों सेनाओं की वर्दी के लिए अब सूरत में फै़ब्रिक बनाये जाएंगे, जो पहले आयात किये जाते थे. आर्टिकल के मुताबिक, “पहली बार…सूरत के टेक्सटाइल इंडस्ट्री को आर्मी, नेवी और एयर फ़ोर्स की वर्दी के लिए 10 लाख मीटर फै़ब्रिक बनाने का ऑर्डर मिला है.”
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि डिफ़ेन्स रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाईजेशन (DRDO) ने बैठक की थी जहां सशस्त्र बलों की ज़रूरत मुताबिक फै़ब्रिक के निर्माण का निवेदन किया गया था. DRDO रक्षा मंत्री का रिसर्च करने वाला अंग है.
अहमदाबाद मिरर की रिपोर्ट में ANI का एक वीडियो है जिसका टाइटल है, ‘सूरत टेक्सटाइल कंपनी को रक्षाकर्मियों की वर्दी के लिए फै़ब्रिक बनाने का मिला ऑर्डर.’ वीडियो के मुताबिक, ‘रक्षाकर्मियों की वर्दी’ के लिए लक्ष्मीपति ग्रुप को ऑर्डर मिला है.
क्या मिलिट्री की वर्दियां आयात किये फै़ब्रिक से बनती थी?
अहमदाबाद मिरर ने ये साफ़ नहीं किया कि था कि किस तरह की मिलिट्री वर्दी के लिए ऑर्डर मिला. इससे ये ग़लतफ़हमी पैदा हो गयी कि ये फै़ब्रिक सशस्त्र बलों की रोज़ाना पहनी जाने वाली वर्दी के लिए बनाये जाएंगे. लेकिन, इन फै़ब्रिक्स का इस्तेमाल सशस्त्र बल द्वारा विशेष मौकों पर पहनी जाने वाली पोशाक और मिलिट्री के अन्य सामानों को बनाने के लिए होना है. नेशनल सिक्योरिटी और स्ट्रेटेजिक अफे़यर्स विशेषज्ञ मंदीप सिंह बजवा ने @DoctorAjayita को जवाब देते हुए ट्वीट किया, “फ़ेक न्यूज़. वर्दी हमेशा से ही भारत में बने फै़ब्रिक से ही बनायी जाती रही है.”
Fake news. Uniforms were always stitched from Indian-manufactured fabric. https://t.co/mB0djdQcpN
— Mandeep Singh Bajwa (@MandeepBajwa) November 25, 2020
सशस्त्र सेना में रोज़ पहनी जाने वाली वर्दियों के अलावा भी विभिन्न कार्यक्रमों, परेड, सम्मान ग्रहण करते समय, अंतिम संस्कार और अन्य मौकों पर अलग पोशाक पहनी जाती है. फ़ील्ड में बुलेटप्रूफ़ वेस्ट, हथियार और गोलाबारूद, और पैराशूट को भी वर्दी का हिस्सा माना जाता है. पाठक गौर करें कि कुछ मीडिया आउटलेट्स- द इकॉनमिक टाइम्स, द इंडियन एक्सप्रेस और द यूरेशियन टाइम्स ने रिपोर्ट किया था कि भारतीय सेना के लिए प्रोटेक्टिव गियर/बुलेटप्रूफ़ जैकेट चीन से आयात किये जाते थे.
कर्नल राजेन्द्र भदूरी (Retd.) ने ऑल्ट न्यूज़ को बताया, “जिस भाग में ये कहा है कि फै़ब्रिक्स चीन, कोरिया और ताइवान से लाये जाते हैं उन्हें आर्मी, नेवी और एयर फ़ोर्स की रोज़ पहनने वाली वर्दी के लिए फै़ब्रिक समझ लिया गया होगा. आर्टिकल के मुताबिक, DRDO ने सूरत के टेक्सटाइल निर्माताओं के सैंपल (फै़ब्रिक) को मंज़ूरी दी है. इसलिए ये वो फै़ब्रिक नहीं हो सकता जो मिलिट्री के लोग रोज़ पहनते हैं. जिस फै़ब्रिक की बात की जा रही है वो बुलेटप्रूफ़ वेस्ट, रकसैक (बैग), पैराशूट और विशेष पोशाकों को बनाने के लिए उपयोग किया जाएगा.”
सशस्त्र बल के लिए रोज़ पहनी जाने वाली वर्दी कैसे बनती है?
ऑल्ट न्यूज़ ने इस प्रकिया को समझने के लिए सर्विंग मिलिट्री अधिकारियों और फै़ब्रिक विशषज्ञों से बात की.
राजेन्द्र भदूरी ने कहा, “तीनों सेनाओं को ‘यूनिफ़ॅार्म अलाउंस’ दिया जाता है जिसके तहत वो रोज़ पहनने वाली वर्दी खुद सिलवाते हैं. पर्सनेल बिलो ऑफ़िसर्स रैंक (PBOR) को सम्बंधित सरकारी विभाग वर्दी देता है. ऐतिहासिक रूप से PBOR की वर्दी शाहजहांपुर और अवाडी में सरकार के ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड (OFB) की एक इकाई, ऑर्डिनेंस क्लॉथ फैक्ट्रीज़ द्वारा निर्मित की जाती है. मैं अपने परिवार में मिलिट्री ऑफ़िसर की तीसरी पीढ़ी से आता हूं और मैंने ऐसा कभी नहीं सुना है कि किसी ऑफ़िसर ने अपनी वर्दी के लिए आयात किया फै़ब्रिक खरीदा हो.”
आर्डिनेंस फ़ैक्ट्री बोर्ड के कॉर्पोरेट कम्युनिकेशन के डिप्टी महानिदेशक, गगन चतुर्वेदी ने हमें बताया, “जूनियर कमीशंड ऑफ़िसर और सेना के PBRO कैडर को 2018 से ही ड्रेस अलाउंस मिली हुई है. ड्रेस अलाउंस के तहत आइटम्स की एक सूची भी दी गयी है. OEF ग्रुप में ड्रेस अलाउंस के आइटम्स का प्रोडक्शन बंद किया जा चुका है. इसलिए हम लड़ाई वाली वर्दी और अन्य उत्पाद बनाते हैं जो हमारे कैटलॉग में देखा जा सकता है. संगठित क्षेत्र में OBF यूनिफ़ॉर्म्स का सबसे बड़ा सप्लायर है. सबसे लेटेस्ट आंकड़ों के मुताबिक, 2017-2018 में OBF ने वर्दी, टुकड़ी के लिए आरामदायक आइटम्स, कोट कॉम्बैट आर्मी लोगो सहित कॉम्बैट गियर, कॉम्बैट यूनिफ़ॉर्म्स, ओवरऑल कॉम्बिनेशन आर्मी लोगो और इन्फे़ंट्री कॉम्बैट किट बनाया था. मिलिट्री प्रोडक्ट्स बनाने के लिए सभी फै़ब्रिक्स भारत में ही उपलब्ध हैं.”
रेमंड के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर गौतम सिंघानिया ने 2018 में ट्वीट किया था, “चीफ़ ऑफ़ इंडियन आर्मी, जनरल रावत ने आज आर्मी और इंडियन एयरफ़ोर्स की यूनिफ़ॉर्म्स के लिए @TheRaymondLtd लॉन्च किया जिसे CSD द्वारा उपलब्ध कराया जाएगा. #IndianArmy #AirForce #Raymond #Proud”
General Rawat Chief of Indian Army today launched @TheRaymondLtd uniform for Army and Indian airforce which will be made available through CSD. #IndianArmy #AirForce #Raymond #Proud pic.twitter.com/1om69vRt6M
— Gautam Singhania (@SinghaniaGautam) April 2, 2018
हमने चंडीगढ़ के एक टेलर से बात की जो 1970 के दशक से ही इंडियन आर्मी ऑफ़िसर्स के लिए वर्दी बना रहे हैं. उन्होंने कहा, “मेरे अनुभव में आर्मी की वर्दियां बनाने के लिए सबसे ज़्यादा आलोक ऐंड नाहर ब्रैंड को इस्तेमाल किया जाता है. आजकल रेमंड और एस. कुमार्स भी काफ़ी इस्तेमाल में है. हालांकि, कुछ ऑफ़िसर अलग ब्रैंड के फै़ब्रिक भी लाते हैं जो उन्हें पसंद हैं. कोई भी ब्रैंड हो, बताये गए रंग से फै़ब्रिक का रंग मिलने पर यूनिफ़ॅार्म बनाया जा सकता है.”
दिल्ली के टेलर जो एयर फ़ोर्स के लिए 15 सालों से ज़्यादा समय से वर्दी बना रहे हैं, उन्होंने हमें बताया, “आजकल अधिकतर ऑफ़िसर्स डिफ़ेन्स कैंटीन से ही फै़ब्रिक खरीदते हैं. जहां तक मेरा अनुभव है, ऑफ़िसर्स के सभी यूनिफॉर्म्स भारतीय कंपनियां ही बनाती हैं. रेमंड का फै़ब्रिक सबसे ज़्यादा प्रेफ़र किया जाता है.”
फै़ब्रिक निर्माता लक्ष्मीपति ग्रुप ने क्या बताया
लक्ष्मीपति ग्रुप के एमडी, संजय सरावगी ने ANI को बताया था कि कंपनी जिस फै़ब्रिक का उत्पादन कर रही है वो मांग में कमी के कारण भारत में आयात किया जाता था. उन्होंने आगे कहा था कि फै़ब्रिक का इस्तेमाल रक्षा बल जूतों, बैग्स, पैंट और टेंट्स जैसे विभिन्न उद्देश्यों के लिए किये जाएंगे. ध्यान दें कि संजय सरावगी ने यूनिफ़ॉर्म्स नहीं बल्कि कुछ विशेष आइटम्स की बात की थी. संजय सरावगी ने ऑल्ट न्यूज़ से बताया, “इस फै़ब्रिक का इस्तेमाल विशेष कामों के लिए होता है. इसकी 7.25 ग्राम प्रति डेनिएर (gpd- फै़ब्रिक की क्षमता नापने का स्केल) क्षमता है. हम जो फै़ब्रिक बनाते हैं वो प्लेन सफ़ेद और मज़बूत धागों से बना होता है. इस तरह के फै़ब्रिक अधिकतर इसलिए आयात किये जाते थे क्योंकि पहले भारत में इसकी डिमांड नहीं थी. एक बार फै़ब्रिक बन जाने पर हम उसे फ़ाइनल प्रोडक्ट बनाने के लिए गारमेंट बनाने वालों को दे देते हैं. इन फै़ब्रिक्स का इस्तेमाल टेंट्स, बैग्स और बेहद विशिष्ट तरह से मिलिट्री गियर बनाने के लिए किया जा सकता है. ये मज़बूत-टिकाऊ पैंट्स बनाने के लिए भी इस्तेमाल किये जा सकते हैं. ये कपड़ा आम लोगों के लिए नहीं है जिसे पहन कर ऑफ़िस जाया जाता है. अहमदाबाद मिरर ने संजय सरावगी की बातें तो लिखी थी लेकिन ये नहीं साफ़ किया था कि फै़ब्रिक से रोज़ पहने जाने वाले यूनिफ़ॉर्म्स नहीं बनाये जाएंगे.”
हमने संजय सरावगी से अहमदाबाद मिरर को दी गयी उस जानकारी के बारे में पूछा जिसमें कहा गया है कि ये फै़ब्रिक इतना मजबूत है कि हाथ से नहीं फटेगा या ऐसा करने की कोशिश पर उंगली कट सकती है? उन्होंने कहा, “मैंने धागे की बात की थी, फै़ब्रिक की नहीं.”
यानी, अहमदाबाद मिरर और ANI ने जिस फै़ब्रिक के बारे में बताया है उसे मिलिट्री के अलग-अलग आइटम्स बनाने के काम में लाया जाता है. रिपोर्ट्स में तकनीकी जानकारी की कमी होने के कारण लोगों को ऐसा मालूम हुआ कि अब तक इंडियन आर्मी, नेवी और एयर फ़ोर्स की रोज़ पहनी जाने वाली वर्दियां बनाने के लिए फै़ब्रिक को आयात किया जाता था. रिपोर्ट्स की हेडलाइन ने भी कुछ यही इशारा किया था. लेकिन सच्चाई ये है कि आर्म्ड फ़ोर्स रेमंड जैसी कंपनियों से अपनी वर्दियों के लिए खुद फै़ब्रिक खरीदते और सिलवाते हैं.
इस भ्रामक दावे को कईयों ने ऑनलाइन शेयर किया
अहमदाबाद मिरर के आर्टिकल को टेक्सटाइल और महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी, भाजपा एमपी दर्शना जर्दोश, भाजपा एमपी शोभा करंदलाजे, भाजपा विधायक पुर्नेश मोदी, पुणेटेक और रेलीस्कोर के को-फ़ाउंडर अमित परांजपे और रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटे के ग्रुप धनराज नाथवानी ने शेयर किया.
कई आउटलेट्स ने ANI की स्टोरी पब्लिश की. कुछ यही Zee न्यूज़ (आर्काइव लिंक), लाइव मिंट (आर्काइव लिंक), वेबइंडिया123 (आर्काइव लिंक), डिफ़ेन्स न्यूज़ (आर्काइव लिंक), बिग न्यूज़ नेटवर्क (आर्काइव लिंक), रशिया न्यूज़ (आर्काइव लिंक) ने भी रिपोर्ट किया.
फ़ेसबुक की फ़ैक्ट चेकिंग में क्या खामियां हैं? क्यूं ख़ुद को फ़ैक्ट-चेक नहीं कर रही ये कंपनी?
सत्ता को आईना दिखाने वाली पत्रकारिता का कॉरपोरेट और राजनीति, दोनों के नियंत्रण से मुक्त होना बुनियादी ज़रूरत है. और ये तभी संभव है जब जनता ऐसी पत्रकारिता का हर मोड़ पर साथ दे. फ़ेक न्यूज़ और ग़लत जानकारियों के खिलाफ़ इस लड़ाई में हमारी मदद करें. नीचे दिए गए बटन पर क्लिक कर ऑल्ट न्यूज़ को डोनेट करें.
बैंक ट्रांसफ़र / चेक / DD के माध्यम से डोनेट करने सम्बंधित जानकारी के लिए यहां क्लिक करें.