प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में 48वें G7 शिखर सम्मेलन के लिए 26 जून से 28 जून तक जर्मनी का दौरा किया. अपनी यात्रा के दूसरे दिन यानी, 27 जून को पीएम मोदी ने म्यूनिख में भारतीय प्रवासियों को संबोधित किया. संबोधन के दौरान उन्होंने भारत सरकार की कई “उपलब्धियां” बताई.

घंटे भर चलने वाले इस सामुदायिक कार्यक्रम में पीएम मोदी लगभग 21 मिनट पर मंच पर पहुंचे. और उन्होंने 33 मिनट का लंबा भाषण दिया. इस भाषण में उन्होंने भारत सरकार के विकास काम और अलग-अलग “उपलब्धियों” पर बात की, जैसे कि भारत अब पूरी तरह “खुले में शौच से मुक्त (ODF)” हो गया है और देश के “हर गांव” में बिजली पहुंचाई गई है.

अपने भाषण में पीएम ने भारत सरकार की “सफलता की कहानी” को बढ़ावा देने के लिए म्यूनिख के भारतीय समुदाय की सराहना की और उन्हें भारत का “राजदूत” कहा. लेकिन उनके द्वारा किए गए दावे पूरी तरह सच नहीं हैं, बल्कि बढ़ा-चढ़ा के किए गए झूठे दावे हैं.

पहला दावा: भारत का हर गांव खुले में शौच से मुक्त (ODF) है

अपने भाषण में 27 मिनट 18 सेकेंड पर पीएम ने कहा, “आज भारत का हर गांव ओपन डेफ़िकेशन फ़्री (खुले में शौच से मुक्त) है.” हालांकि, ज़मीनी हकीकत पीएम मोदी के बयान से उलट है.

स्वच्छ भारत मिशन के तहत, भारत के सभी गांवों, ग्राम पंचायतों, ज़िलों, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने 2 अक्टूबर, 2019 तक खुद को “खुले में शौच से मुक्त” (ODF) घोषित किया. इसका ज़िक्र स्वच्छ भारत मिशन की वेबसाइट पर किया गया है और अलग-अलग मीडिया आउटलेट्स ने इस पर रिपोर्ट भी की थी.

सरकार ODF को कैसे परिभाषित करती है?

स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के तहत सरकार ODF को “द टर्मिनेशन ऑफ़ फ़ेकल-ओरल ट्रांसमिशन” के रूप में परिभाषित करती है:

1) पर्यावरण/गांव में बाहर कोई मल नहीं देखा गया; और

2) प्रत्येक घर के साथ-साथ सार्वजनिक/सामुदायिक संस्थान मल के निपटान के लिए सुरक्षित टेक्निकल विकल्पों का इस्तेमाल कर रहे हैं

ये समझने के लिए कि क्या पीएम के भाषण के अनुसार भारत सच में खुले में शौच से मुक्त हो गया है, हमने दो डेटा सोर्स देखें:

  1. द फिफ्थ नेशनल फ़ैमिली हेल्थ सर्वे (2019 – 2021), और
  2. द थर्ड राउंड ऑफ़ द नेशनल एनुअल रूरल सैनिटेशन सर्वे (NARSS).

NFHS डेटा

मार्च 2022 में पब्लिश नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (2019-2021) या NFHS-5 में बताया गया है कि कितने प्रतिशत घरों में शौचालय की सुविधा उपलब्ध है. इसमें परिवारों का प्रतिशत वितरण, साथ ही धर्म, जाति और धन वितरण के आधार पर शौचालयों के वितरण को दर्शाता है. ताजा आंकड़ों के अनुसार, देश में 83% घरों में शौचालय की सुविधा है और 17% घरों में किसी भी शौचालय सुविधा का इस्तेमाल नहीं किया जाता है.

[यहां ध्यान दें है कि NFHS के आंकड़े आमतौर पर राउंड अप होते हैं, इसलिए मिलान करने पर ये आंकड़ा अलग हो सकता है.]

जब हमने इसकी तुलना NFHS-4 (2015-2016) रिपोर्ट में दिए गए आंकड़ों से की तो पता चला कि निश्चित रूप से सुधार हुआ है. जहां NFHS-4 (2015-2016) के अनुसार 39% परिवार खुले में शौच करते थे, वहीं ताज़ा आंकड़ों के अनुसार अब केवल 17% परिवार खुले में शौच करते हैं.

NFHS-5 के अनुसार, राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों में सबसे कम शौचालय की सुविधा बिहार (62%) में है, इसके बाद झारखंड (70%) और ओडिशा (71%) का स्थान है. सुधार के बावजूद, ताज़ा NFHS रिपोर्ट में ये नहीं बताया गया है कि देश 100% ODF (शौच मुक्त) है.

राष्ट्रीय वार्षिक ग्रामीण स्वच्छता सर्वेक्षण (NARSS) डेटा

NARSS राउंड 3 (2019 – 2020) की रिपोर्ट में शौचालय वाले घरों के लिए अलग-अलग इंडीकेटर्स हैं. रिपोर्ट में कहा गया है, “घर के लिए शौचालय की सुविधा तक पहुंच की जानकारी चार प्रतिक्रियाओं को मिलाकर कलेक्ट की गई थी.” ये चार कुछ इस प्रकार हैं:

i) खुद का शौचालय: ऐसे परिवार जिनके पास शौचालय है और केवल घर के सदस्यों द्वारा इन शौचालय का इस्तेमाल किया जाता है.

ii) साझा शौचालय: कई परिवारों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले शौचालय.

iii) सामुदायिक शौचालय: सार्वजनिक शौचालय की सुविधा वाले परिवार (शौचालय आम जनता के लिए खुला होता है), और

iv) शौचालय का न होना: परिवारों के पास किसी भी शौचालय तक पहुंच नहीं है (परिवार के सदस्य आमतौर पर झाड़ियों, खेतों या अन्य जगहों पर शौच करते हैं).

NARSS राउंड -2 (2018-19) के रिपोर्ट के अनुसार, खुले में शौच करने वाले परिवारों का प्रतिशत राष्ट्रीय स्तर पर 6.7% से घटकर NARSS राउंड -3 (2019-20) में 5.6% हो गया. NARSS राउंड -1 (2017-18) में खुले में शौच करने वाले परिवारों का प्रतिशत 24% बताया गया था. नीचे ट्रेंड लाइन को विज़ुअली दिखाने के लिए एक चार्ट दिया गया है.

यूनिसेफ़ के अनुसार, 2015 में भारत की आधी आबादी, लगभग 568 मिलियन लोग खुले में शौच करते थे. 2019 तक ये संख्या घटकर अनुमानित 450 मिलियन हो गई. यूनिसेफ़ ने इस उपलब्धि के लिए सरकार के प्रमुख कार्यक्रम, स्वच्छ भारत मिशन (SBM) को क्रेडिट दिया है.

अलग-अलग सरकारी रिपोर्ट्स द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों में असमानता के बावजूद, भारत को 100% खुले में शौच से मुक्त के बताने वाला कोई भी सर्वेक्षण हमें नहीं मिला. हलांकि, हमने एक ट्रेंड नोटिस की, जिसमें पिछले कुछ सालों में खुले में शौच में हुई गिरावट को देखा जा सकता है.

दूसरा दावा: देश के हर गांव में पहुंच चुकी है बिजली

27 मिनट 30 सेकेंड पर पीएम ने कहा कि देश के हर गांव में बिजली पहुंच गई है. सरकार ने देश भर में ग्रामीण विद्युतीकरण कार्यों के लिए दिसंबर 2014 में दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (DDUGJY) योजना की शुरूआत की और अक्टूबर 2017 में प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना (सौभाग्य) को बचे हुए घरों में बिजली मुहैया कराने के लिए शुरू किया गया था. ये योजना ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में भी लागू की गई थी.

NFHS-5 (2019-2021) के आंकड़ों के अनुसार, 96.8% भारतीय आबादी के घरों में बिजली की सुविधा है. इसका मतलब है कि भारत की 3% से ज़्यादा आबादी बिना बिजली के घरों में रहती है. 99% शहरी घर और 95% ग्रामीण घरों में बिजली है.

28 अप्रैल, 2018 को पीएम मोदी ने घोषणा की कि भारत के हर एक गांव में बिजली पहुंचाई गई है. लेकिन उस वक्त फ़ोर्ब्स और द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 31 मिलियन घरों में उस वक्त भी बिजली नहीं थी. ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि 1997 से लागू “इलेक्ट्रीफ़ाइड विलेज” की परिभाषा ही ऐसी है. एक गांव को इलेक्ट्रीफ़ाइड तब माना जाता है जब ये बुनियादी चीजें वहां मौजूद हो, जैसे:

  1. एक रिहायशी इलाके में एक डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफार्मर और डिस्ट्रीब्यूशन लाइनें मौजूद हैं,
  2. स्कूल, पंचायत कार्यालय, स्वास्थ्य केंद्र, दवाखाना और सामुदायिक केंद्र जैसे सार्वजनिक स्थानों पर बिजली प्रदान की जाती है, और
  3. गांव में कम से कम 10% घर इलेक्ट्रीफ़ाइड हो.

भारत में सौभाग्य योजना के तहत 2.82 करोड़ घरों में बिजली पहुंचाई गई है. हालांकि, “इलेक्ट्रीफ़ाइड विलेज” की परिभाषा ज़मीनी हकीकत से अलग है. एक तरफ सरकार ग्रामीण इलाकों के इलेक्ट्रीफ़ाइड होने की “सफलता” का जश्न मना रही है. वहीं दूसरी तरफ इसे व्यापक आलोचना भी मिली है.

कुल मिलाकर, ये दावा कि भारत सरकार ने अपने सभी गांवों में 100% बिजली की पहुंच हासिल कर ली है, इलेक्ट्रीफ़ाइड की एक अजीबो-गरीब परिभाषा पर आधारित है जो 1997 से चली आ रही है.

तीसरा दावा: भारत की 99% से अधिक आबादी के पास गैस कनेक्शन है

27 मिनट 50 सेकेंड पर पीएम ने दावा किया कि 99% से ज़्यादा भारतीय आबादी के पास “साफ खाना पकाने” के लिए गैस कनेक्शन है. हमने शहरी और ग्रामीण भारतीय जनसांख्यिकी द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले खाना पकाने के ईंधन के प्रकारों के बारे में NFHS-5 (2019 – 2021) के डेटा की जांच की.

आंकड़ों के अनुसार, भारत की 57.7% आबादी रसोई ईंधन के रूप में LPG/प्राकृतिक गैस का इस्तेमाल करती है. जबकि इसके दूसरे सोर्स बायोगैस, चारकोल आदि हो सकते हैं. रिपोर्ट में कहा गया है, “भारत में 41 प्रतिशत परिवार किसी न किसी प्रकार के ठोस ईंधन का इस्तेमाल करते हैं. ये ईंधन, असल में लकड़ी या उपले होते हैं.” 31.7% परिवार खाना पकाने के लिए ईंधन के रूप में लकड़ी का इस्तेमाल करते हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, दुनिया भर में लगभग 2.4 बिलियन लोग अभी भी ठोस ईंधन का इस्तेमाल करके खाना बनाते हैं. ये खाना पकाने के तरीके सही नहीं हैं, साथ ही इन ईंधन और टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करने से उच्च स्तर का घरेलू वायु प्रदूषण होता है. धूम्रपान से होने वाली बीमारियों से हर साल 43 लाख लोगों की मौत होती है. ये दुनिया भर में सबसे घातक पर्यावरणीय स्वास्थ्य जोखिमों में से एक है. विश्व स्वास्थ्य संगठन, घरों में स्वच्छ ईंधन और स्टोव संयोजनों के संक्रमण में वैश्विक प्रगति की निगरानी के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले घरेलू ऊर्जा डेटाबेस भी रखता है.

WHO के घरेलू ऊर्जा डेटाबेस के अनुसार, 2022 में खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन और टेक्नोलॉजी तक 67.9% भारतीयों की पहुंच है. ध्यान दें कि WHO द्वारा सर्वेक्षण के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले सैंपल साइज़ सरकारी एजेंसियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले सैंपल साइज़ से काफी छोटा है. हालांकि, दोनों सरकारी सोर्स के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय सोर्स ये नहीं बताते हैं कि 99% से ज़्यादा भारतीय आबादी के पास खाना पकाने के लिए स्वच्छ सोर्स मौजूद है.

आधा-अधूरा सच, और बढ़ा-चढ़ा कर किए गए दावे

ये सच है कि प्रधानमंत्री के भाषण के एक बड़े हिस्से में भ्रामक दावे थे. लेकिन उनके द्वारा बताई गई कुछ उपलब्धियां सच थीं. उदाहरण के लिए, ये दावा कि दुनिया का 40% रीयल-टाइम डिजिटल लेनदेन भारत में होता है, सच है. भारत ने 2021 तक 48.6 बिलियन रीयल-टाइम पेमेंट किया, जो चीन की तुलना में 2.6 गुना ज़्यादा है.

पीएम ने दावा किया कि हर गरीब भारतीय परिवार को मुफ्त इलाज के लिए 5 लाख रुपये तक दिए जाते हैं. आयुष्मान भारत – प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY) के तहत लाभार्थी परिवार ये स्वास्थ्य बीमा प्राप्त करते हैं. उनकी पहचान 2011 की सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (SECC) से ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में चुनिंदा अभाव और व्यावसायिक मानदंडों के आधार पर की गई है. उदाहरण के लिए, AB-PMJAY के मानदंड को पूरा करने के लिए एक ग्रामीण परिवार में 16 से 59 वर्ष के बीच के वयस्क सदस्यों की अनुपस्थिति अनिवार्य है. एक और मानदंड ये है कि परिवार एक कमरे के घर में कच्ची दीवारों और कच्ची छत में रहता हो. इस तरह, प्रधानमंत्री के बयान की जांच करने से ये दावे सच साबित होते हैं. IIM अहमदाबाद में एक PhD स्कॉलर ने पाया कि AB-PMJAY “एक संभावित पेमेंट मैकेनिज्म का पालन करता है जिसमें उपचार लागत की ऊपरी सीमा पहले से निर्धारित और निश्चित है.” इससे ये भ्रम होता है कि उपचार “मुफ्त” है, लेकिन हर उपचार या प्रक्रिया की एक निश्चित राशि होती है जिसे पहले से निर्धारित किया गया है. पैकेज के लिए निर्धारित सीमा से ज़्यादा राशि भी मरीजों की जेब से आ सकती है.

ऐसे मामले भी सामने आए हैं जहां मरीज इलाज का लाभ नहीं उठा सके क्योंकि इस योजना में शामिल शर्तों को वो पूरा नहीं कर पाए. 2019 में, एम्स और राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (NHA), ने स्वास्थ्य मंत्रालय से आयुष्मान भारत के लाभार्थियों को राष्ट्रीय आरोग्य निधि के तहत जानलेवा बीमारियों के लिए उच्च लागत वाले उपचार का लाभ उठाने की अनुमति देने का अनुरोध किया. उन्होंने ऐसे मामलों का हवाला दिया जिनमें आयुष्मान भारत के लाभार्थी ब्लड कैंसर और पुरानी लीवर की बीमारियों के इलाज का लाभ नहीं उठा सके. क्योंकि ये स्वास्थ्य बीमा योजना के अंतर्गत नहीं आते हैं. एम्स और NHA के प्रस्ताव को शुरू में खारिज करने के बाद, 2020 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने अपने दिशानिर्देशों में संशोधन किया. एम्स द्वारा उठाए गए ये कुछ अन्य मुद्दे थे:

  • AB-PMJAY पैकेज की दरें डॉक्टर द्वारा प्रदान किए गए असली खर्च/अनुमानों के अनुरूप नहीं हैं.
  • AB-PMJAY योजना डिस्चार्ज के बाद सिर्फ 15 दिनों तक दवाओं का कवरेज देती है जबकि कुछ कैंसर रोगियों को आउट पेशेंट के आधार पर लंबे समय की दवाओं की ज़रूरत होती है और AB-PMJAY नियमों के अनुसार इन-पेशेंट एडमिशन की ज़रूरत होती है, इसलिए इस योजना का लाभ नहीं उठाया जा सकता.
  • कुछ राज्यों में पोर्टेबिलिटी बैन हैं जिसके कारण एम्स में इलाज करा रहे AB-PMJAY लाभार्थी अपने राज्य के बाहर योजना का लाभ नहीं उठा सकते हैं.

पीएम ने ये भी दावा किया कि सरकार पिछले दो साल से 80 करोड़ परिवारों को मुफ्त राशन मुहैया करा रही है. ये बयान सच है. प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKY) के तहत प्रत्येक लाभार्थी को हर महीने 5 किलो अनाज (गेहूं, चावल, मोटा अनाज) मुफ्त दिया जाता है. लाभार्थियों को नेशनल फ़ूड सिक्यूरिटी एक्ट(NFSA), 2013 से मान्यता प्राप्त है. NFSA की अपनी वेबसाइट के अनुसार, 80 करोड़ व्यक्ति NFSA के अंतर्गत आते हैं.

पीएम ने दावा किया कि हर महीने औसतन 18 लाख परिवारों को पाइप से जलापूर्ति से जोड़ा जा रहा है. हमें इस बात का डेटा नहीं मिला कि कितने परिवारों को पाइप से पानी मिल रहा है. हालांकि, जल जीवन मिशन के डेटाबेस का इस्तेमाल करके हमने देखा कि 2021 में हर महीने औसतन 20 लाख घरों में नल का पानी उपलब्ध कराया गया था.

पीएम मोदी ने ये भी दावा किया कि भारत दुनिया के उन कुछ देशों में से एक है जहां मोबाइल डेटा सबसे सस्ता है. Cable.co.uk द्वारा एनुअल वर्ल्डवाइड मोबाइल डेटा प्राइसिंग रिपोर्ट के अनुसार ये सच है.

पीएम ने दावा किया कि CoWin पोर्टल पर 110 करोड़ रजिस्ट्रेशन हो चुके हैं. ये भी सच है. CoWin पर डैशबोर्ड के अनुसार, अब तक 1,09,87,86,318 रजिस्ट्रेशन किए जा चुके हैं. पीएम ने ये भी दावा किया कि भारत में 90% वयस्कों को पूरी तरह से वैक्सीन लगाया गया है यानी उन्हें दोनों खुराक मिल चुकी है. ये भी सच है और द हिंदू द्वारा बनाए गए वैक्सीनेशन के डैशबोर्ड के इस्तेमाल से ये वेरीफ़ाईड किया जा सकता है. उन्होंने आगे दावा किया कि 22 करोड़ भारतीय आरोग्य सेतु ऐप से जुड़े हैं. आरोग्य सेतु वेबसाइट के डैशबोर्ड के अनुसार, IOS और एंड्रॉइड डिवाइस पर 21,68,00,000 डाउनलोड किए गए हैं. लेकिन ध्यान दें कि डाउनलोड की संख्या एक्टिव यूज़र्स की संख्या नहीं दिखाती है. इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने वैक्सीनेशन के लिए IT एप्लीकेशन के इस्तेमाल की आलोचना करते हुए कहा कि “इस देश की 18 से 44 साल की उम्र के बीच की एक महत्वपूर्ण आबादी के वैक्सीनेशन के लिए विशेष रूप से एक डिजिटल पोर्टल पर निर्भर वैक्सीनेशन पॉलिसी, इस तरह के डिजिटल डिवाइस की वजह से वैक्सीनेशन के अपने लक्ष्य को पूरा करने में असमर्थ होगी.” ऐसी रिपोर्ट्स भी हैं जिन्होंने कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग के लिए डिजिटल सिस्टम पर निर्भर रहने के मुद्दे उठाए हैं.

पीएम ने दावा किया कि भारत में 10 करोड़ से ज्यादा शौचालय बनाए गए हैं. ये सच है. स्वच्छ भारत मिशन के शुभारंभ के बाद से जुलाई 2019 तक, पूरे भारत में 9.5 करोड़ से ज़्यादा शौचालय बनाए जा चुके हैं. 2022 में ये संख्या 10 करोड़ के करीब होनी चाहिए. हालांकि, 2019 में, ग्रामीण विकास पर संसदीय स्थायी समिति ने रिपोर्ट किया कि स्वच्छ भारत मिशन के तहत बनाए गए कई शौचालय खराब और अनुपयोगी थे.

पीएम मोदी ने दावा किया कि सभी भारतीय परिवार बैंकिंग सेवाओं से जुड़े हुए हैं. हमने विश्व बैंक द्वारा 2021 के ग्लोबल फ़ाइनेंसियल इन्क्लुसियन डेटा की जांच की. आंकड़ों के अनुसार, 15 साल से ज़्यादा आयु वर्ग के 77.5% लोगों के पास बैंक एकाउंट्स है. 25 साल से ज़्यादा आयु वर्ग के 81.3% लोगों के पास बैंक एकाउंट्स हैं.

हालांकि, रिपोर्ट के मुताबिक, 15 साल से ज्यादा उम्र के लोगों के 27.44% अकाउंट एक्टिव नहीं हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में 15 साल से ज़्यादा आयु वर्ग का, 31.01% अकाउंट एक्टिव नहीं है और शहरी क्षेत्रों में ये आंकड़ा 23.33% है. इसी तरह 25 साल से ज़्यादा आयु वर्ग के लोगों के 29% बैंक एकाउंट्स एक्टिव नहीं हैं. कुल मिलाकर, बड़ी संख्या में लोगों के पास बैंक एकाउंट्स होने का ये मतलब नहीं है कि एकाउंट्स एक्टिव हैं.

पीएम ने कुछ ऐसे दावे भी किए जिनका फ़ैक्ट-चेक नहीं किया जा सका. उदाहरण के लिए, उन्होंने कहा कि हर महीने औसतन 5 हज़ार पेटेंट दायर किए जा रहे हैं. भले ही ये संख्या सच हो लेकिन पेटेंट फ़ाइल करने का मतलब तकनीकी इनोवेशन या विकास कतई नहीं है.

कुल मिलाकर, जर्मनी के म्यूनिख में भारतीय प्रवासियों को संबोधित करते हुए पीएम मोदी का भाषण थोड़ा बहुत सच, आधा सच, झूठ और भारत सरकार की उपलब्धियों को काफी बढ़ा-चढ़ा कर बताये जाने पर आधारित था.

 

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