पंडित नेहरू से लेकर नोबल पुरस्‍कार विजेता रिचर्ड थैलेर तक, इस महीने फेक न्‍यूज उद्योग द्वारा अपना प्रोपेगंडा आगे बढ़ाने के लिए किसी को नहीं छोड़ा गया। पाकिस्‍तान के समर्थन में नारों के प्रति दक्षिणपंथी समूहों की विचार फिर से चर्चा के केंद्र में रही और जिन तीन घटनाओं का पता चला, वे सभी झूठी साबित हुईं। समय बीतने के साथ, दूसरों को राष्‍ट्र-विरोधी के रूप में प्रस्‍तुत करने के लिए लालयित लोग असल में राष्‍ट्र-विरोधी साबित हो रहे हैं क्‍योंकि वे देश के सामाजिक ढांचे को अपूरणीय नुकसान पहुंचा रहे हैं।

इस महीने की मुख्‍य फेक खबरों का राउंड-अप:

1. इस महीने की प्रमुख घटना बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय द्वारा जवाहरलाल नेहरू को कलंकित करने के लिए प्रचारित की गई फ़ोटो का कोलाज था। सोशल मीडिया बीजेपी समर्थकों द्वारा नेहरू के बारे में अपमानजनक बातों और छेड़छाड़ की गई फ़ोटो से भरा हुआ है। महिलाओं के साथ नेहरू की इन तस्‍वीरों को ट्वीट करके, मालवीय ने इशारों-इशारों में हार्दिक पटेल की कथित सैक्‍स सीडी को नेहरू के डीएनए से जोड़ने का गलत प्रयास किया।

मालवीय को सिर मुंडाते ही ओले का सामना करना पड़ा जब नेहरू के प्रति स्‍नेह दिखा रही महिलाएँ उनकी बहन और भतीजी निकलीं। व्‍यापक नाराजगी के बावजूद, मालवीय ने न तो ट्वीट डिलीट किया और न ही नेहरू को बदनाम करने की अपनी कोशिशों के लिए माफ़ी माँगी। आप इन नौ फ़ोटो के पीछे की असली कहानी ऑल्‍ट न्‍यूज़ के लेख में यहाँ पढ़ सकते हैं।

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2. अमित मालवीय और फेक न्‍यूज के प्रति उनकी विशेष रुचि की बात करे तो उनके द्वारा एक और गुमराह करने वाली खबर यह फैलाई गई कि नोबल पुरस्‍कार विजेता रिचर्ड थैलेर ने नोटबंदी का समर्थन किया जिसे खुद थैलेर ने नकार दिया। नोटबंदी का थैलेर द्वारा समर्थन करने के प्रमाण के रूप में मालवीय ने उनकी बातचीत में से एक ट्वीट अपनी मर्जी से चुन लिया था।

एक ट्विटर यूजर ने प्रोफेसर थेलर को नोटबंदी पर उनके विचारों के बारे में सीधा सवाल करते हुए ईमेल किया। नोबेल पुरस्कार विजेता ने अपने जवाब में शब्‍दों की कोई कमी नहीं की: “भ्रष्टाचार रोकने के लिए कैशलेस सोसायटी की तरफ कदम बढ़ाने के तौर पर यह कॉन्‍सेप्‍ट अच्छा था लेकिन बहुत ख़राब ढंग से लागू किया गया और 2,000 रुपये का नोट शुरू करके इस पूरे काम की प्रेरणा ही पेचीदा हो गई। (अनुवाद)”

थैलेर ने अपना जवाब रीट्वीट भी किया हालाँकि इसके बाद भी मालवीय नहीं रुके। ऑल्‍ट न्‍यूज के लेख के दो दिन बाद, मालवीय फिर से नोटबंदी के समर्थन में थैलेर के नाम का इस्‍तेमाल करते हुए पाए गये। खैर! आइए आगे बढ़ें, कुछ लोग कभी नहीं सीखेंगे।

3. इस महीने पद्मावती फ़िल्‍म से जुड़ा विवाद ज़्यादातर सुर्खियों में छाया रहा। बीजेपी प्रवक्‍ता संजू वर्मा ने इस मौके का फायदा उठाकर ध्‍यान भटकाने के लिए हिंसक धमकियाँ देने वाले लोगों को कांग्रेस/सपा/आप का सदस्‍य बता दिया।

संजू वर्मा के दावों की पोल ऑल्‍ट न्‍यूज के लेख से खुल गई जिसमें हिंसा की धमकी देने वाले लोगों की राजनीतिक मान्‍यता की सच्‍चाई सामनेआई। वर्मा ने अपनी गलती सुधारना पसंद नहीं किया और वह उन लोगों के खिलाफ शोर मचाने लगी जिन्‍होंने उनके ट्वीट की तथ्‍यात्‍मक गलती की ओर इशारा किया था।

4. नवंबर में हमने देखा कि सरकारी विभाग ने अपनी उपलब्धियाँ बताने के लिए विदेश की तस्‍वीरों का इस्‍तेमाल किया। इस बार सड़क, परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय ने अपनी परिवहन वेबसाइट पर टोरेंटो, कनाडा के गार्डिनर एक्‍सप्रेसवे की फ़ोटो इस्‍तेमाल की थी। वेबसाइट पर मौजूद एक और फ़ोटो दरअसल नेवादा, अमेरिका की कायल केन्‍यन रोड की थी।

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इस विषय पर ऑल्‍ट न्‍यूज लेख आने के तुरंत बाद फ़ोटो को हटा दिया गया। यह पहली बार नहीं है कि ऐसा कुछ हुआ है। इस साल की शुरुआत में स्पेन-मोरक्को बॉर्डर को भारत सीमा पर जलने वाली लाइटों के तौर पर दिखा दिया गया था। जबकि भारत के पास दिखाने को बहुत कुछ है, हमें हैरानी होती है कि भारत सरकार बार-बार किसी और देश की तस्‍वीरें दिखाते हुए क्यों पाई जाती है।

5. अल्पसंख्यक समुदाय को राष्ट्र-विरोधी के रूप में पेश करने के लिए नकली वीडियो का इस्‍तेमाल करना अब एक पुरानी चाल बन गई है। इसलिए कोई हैरानी की बात नहीं कि पंजाब में राष्ट्रीय झंडा जलाते हुए और भारतीय मुसलमानों द्वारा पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाते हुए का फैलाया जा रहा वीडियो आखिरकार झूठा साबित हुआ।

वास्तव में, न तो राष्ट्रीय ध्वज जलाया गया था, न ही किसी ने “हाय हाय भारत” या “पाकिस्तान जिंदाबाद” के नारे लगाए थे और न ही इस भीड़ में मुसलमान थे। वीडियो में सुनने लायक एकमात्र नारा “आतंकवाद हाय हाय” का था। दरअसल जून महीने का यह वीडियो जिसमे एक दछिणपंथी नेता सुधीर कुमार सूरी जिन्होंने ऑपरेशन ब्लूस्टार की 33वीं वर्षगांठ पर मारे गए उग्र प्रचारक जर्नेल सिंह भिण्‍डरावाले का पुतला जलाया। आप इस स्‍टोरी के बारे में यहाँ पढ़ सकते हैं।

6. उत्तर प्रदेश में हाफिज सईद के समर्थन में नारे लगे? यह भी टाइम्स ऑफ इंडिया सहित कई मीडिया संस्‍थानों द्वारा बनाई गई ऐसी खबर निकाली जो झूठी थी। ऑल्‍ट न्यूज़ ने लखीमपुर के एसपी से संपर्क किया जिन्होंने कहा कि आरोप झूठे हैं।

7. लखीमपुर वाली घटना के बारे में नकली खबर आने के ठीक एक दिन बाद, दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, अमर उजाला और जनसत्ता ने एक स्‍टोरी चलाई और कहा कि उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में एआईएमआईएम रैली में ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगे थे। ऑल्‍ट न्‍यूज ने साहिबाबाद डिवीजन, गाजियाबाद के एसएचओ से बात की जिन्‍होंने बताया कि रैली में ऐसे कोई नारे नहीं लगे थे। आगे की जाँच से पता चला कि राष्‍ट्र-विरोधी तत्‍वों द्वारा ‘हाजी जीशान जिंदाबाद’ के नारे को जानबूझकर ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे के रूप में गलत ढंग से पेश किया गया।

8. सीपीएम के साइबर सिपाहियों पर पूर्व ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर टॉम मूडी के फेसबुक पेज पर अश्लीलता के साथ लगातार जबानी हमले करने का आरोप लगा, यह भी बताया गया कि उन्‍होंने भ्रम में अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसी, मूडी पर हमले के बजाय क्रिकेटर मूडी पर जबानी हमला बोल दिया। कई दक्षिणपंथी खातों ने टाइम्स ऑफ इंडिया और द न्यूज मिन्‍ट का सहारा लेकर केरल और इसकी साक्षरता रैंकिंग का मजाक उड़ाने लगे। मामला तब पलट गया जब सोशल मीडिया के चौकन्‍ने यूज़र्स ने पता लगाया कि टॉम मूडी का अपमान करने वाले प्रोफाइल असल में आरएसएस समर्थकों के प्रोफाइल थे जो सीपीएम कैडर के रूप में खुद को पेश कर रहे थे।

टाइम्स ऑफ इंडिया कोच्चि संस्करण के पहले पन्ने पर इस मुद्दे पर किसी गोविंद माधव की अपमानजनक टिप्पणी के साथ एक लेख प्रकाशित किया जिसे टाइम्स ऑफ इंडिया ने सीपीएम ट्रोल बताया था। यह समाचार-पत्र साफ तौर पर अपना रिसर्च करने में विफल रहा। माधव की फेसबुक टाइमलाइन आरएसएस के प्रचार से भरी पड़ी थी जिसमें यह टिप्पणी भी थी “कॉमियों ने टॉम मूडी को गलती से रेटिंग एजेंसी मानते हुए उसे गाली दी।” (अनुवाद) टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस खुलेआम सीपीएम विरोधी प्रचार के लिए कोई सफाई नहीं दी या माफी नहीं मांगी।

टॉम मूडी की पोस्ट शुरुआती 125 टिप्पणियों के बारे में बूम फैक्‍टचेक द्वारा किए गए एक विश्लेषण में यह भी बताया गया कि वास्तव में कोई बड़े पैमाने की संगठित ट्रॉलिंग नहीं हुई थी जैसा कि समाचार लेखों में दावा किया गया था।

9. उत्तर प्रदेश के एक डिस्ट्रिक्‍ट जेल में गधों की गिरफ्तारी के बारे में अनोखी खबर की दो दिनों तक बहुत चर्चा हुई। सोशल मीडिया पर कुछ हद तक मज़ाक का कारण बनने वाली हालाँकि किसी का नुकसान न करने वाली यह खबर उस समय बदल गई जब कई मीडिया संस्‍थानों ने गिरफ्तारी के लिए यूपी पुलिस का मजाक उड़ाना शुरू किया। स्‍टोरी ब्रेक करने के अपने उतावलेपन में हर कोई यह बात भूल गया कि यूपी पुलिस और यूपी जेल, गृह मंत्रालय के तहत दो अलग-अलग विभाग हैं और यूपी पुलिस का इस घटना से कोई लेना-देना नहीं था। इस स्‍टोरी पर उन्हें टैग करने वाले हर व्‍यक्ति की गलती सुधारने में यूपी पुलिस को काफी मुश्किल झेलनी पड़ी। एनडीटीवी ने न तो सबसे पहले यह स्‍टोरी पेश की थी और न ही वह पहली मीडिया संस्‍थान थी जिसकी गलती सुधारनी थी, फिर भी यूपी पुलिस ने जब उनके सामने तथ्यों को स्पष्ट करते हुए रखा तो एनडीटीवी की तीव्र प्रतिक्रिया के कारण उसे ही दोषी ठहराया गया।

10. हमने एक आरटीआई के जवाब को वायरल होते हुए देखा, जिसमें बताया गया कि जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे की हालिया यात्रा के दौरान बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए भारत और जापान के बीच किसी समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर नहीं हुए थे। लालू प्रसाद यादव, गौरव पांधी और शकील अहमद सहित कई लोगों ने आरोप लगाया कि गुजरात चुनाव में वोट हासिल करने के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्‍ताक्षर होने की खबर फैलाई गई थी।

यह सही है कि भारत और जापान ने 14 सितंबर, 2017 को समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर नहीं किये। ऐसा इसलिए क्‍योंकि समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर वर्ष 2015 में ही हो चुके थे। एसएम होक्स स्लेयर ने वर्ष 2015 की पीआईबी विज्ञप्ति साझा की जिसमें बताया गया कि भारत और जापान के बीच इस परियोजना में सहयोग और सहायता के लिए एक समझौता ज्ञापन पर 12 दिसंबर 2015 को हस्‍ताक्षर हुए थे।

कहने की ज़रूरत नहीं है कि इस महीने नकली समाचार प्रसारित करने में सक्रिय भूमिका निभाने वाले लोगों में से किसी ने यह महसूस नहीं किया कि इनकी जिम्‍मेदारी लेना, इन्‍हें वापस लेना या इनके लिए माफी मांगना उनका दायित्‍व था। गुजरात चुनावों के चलते, नकली समाचारों का फैलाव बड़े पैमाने पर होने के साथ, सोशल मीडिया इस्‍तेमाल करने वाले लोगों को इस बात की संभावना के बारे में पहले से अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है कि सोशल मीडिया पर उनके सामने आने वाली हर बात सच नहीं होगी।

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