सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र की वैक्सीन पॉलिसी को “मनमानी और तर्कहीन” बताने के कुछ दिनों बाद 7 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित किया. प्रधानमंत्री मोदी ने विकेन्द्रीकरण नीति को हटा दिया और कहा कि केंद्र 21 जून से राज्यों को मुफ़्त में वैक्सीन देगा.
प्रधानमंत्री ने दावा किया कि पहले विकेन्द्रीकरण वैक्सीन पॉलिसी लागू करने के लिए केंद्र पर दबाव बनाया गया था. उन्होंने कहा, “इस साल 16 जनवरी से अप्रैल महीने के अंत तक भारत का वैक्सीनेशन प्रोग्राम केंद्र की देखरेख में चल रहा था. देश सभी को मुफ़्त में वैक्सीन देने की दिशा में बढ़ रहा था. देश के लोग भी अनुशासन में रहकर अपनी बारी आने पर वैक्सीन लगवा रहे थे. इस बीच कई राज्य लगातार कह रहे थे कि वैक्सीनेशन को डी-सेन्ट्रलाइज़्ड कर राज्यों को इसकी ज़िम्मेदारी दे देनी चाहिए…हमने सोचा कि अगर राज्य इस तरह की मांग कर रहे हैं और वो जोश से भरे है, तो 25% काम उन्हें सौंप देना चाहिए.”
और इस तरह, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैक्सीन पॉलिसी जिसकी आलोचना विपक्ष, सुप्रीम कोर्ट और मीडिया सभी कर रहे थे, की ज़िम्मेदारी से बचने का प्रयास किया.
भाजपा नेताओं ने भी राज्यों पर पहले विकेंद्रीय वैक्सीन पॉलिसी की मांग करने और बाद में उसके केंद्रीकरण की मांग करने का आरोप लगाया.
The hypocrisy of India’s opposition can’t be starker! They first demanded that vaccine procurement be decentralised, states be given autonomy. Once it happened and people started questioning them, they started passing the buck!
Their contribution to fighting the pandemic is ZERO. pic.twitter.com/fL03mAYxXP— Amit Malviya (@amitmalviya) May 13, 2021
प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में भ्रामक दावा किया
भारत में 28 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेश हैं. इन 8 केंद्र शासित प्रदेशों में से दिल्ली और पुडुचेरी में चुनी गई विधानसभाएं हैं जबकि कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू है. बाकी 12 राज्यों में सीधे तौर पर भाजपा का शासन है और 6 राज्यों में उनकी गठबंधन की सरकार है. प्रधानमंत्री के दावे, कि केंद्र ने 19 अप्रैल को राज्यों की मांग पर वैक्सीन पॉलिसी का विकेंद्रीकरण किया, के सच होने के लिए कई राज्यों से ऐसी मांग किया जाना ज़रूरी है. लेकिन सच तो ये है कि 18 राज्यों में सीधे तौर पर या गठनबंधन से भाजपा की सरकार है और बाकी 2 को छोड़कर अन्य राज्यों ने विकेंद्रीकरण की मांग की ही नहीं.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री मोदी को 24 फ़रवरी को पत्र लिखकर राज्य को विधानसभा चुनाव से पहले टीकाकरण के लिए वैक्सीन खरीदने की इजाज़त मांगी थी.
West Bengal CM @MamataOfficial writes to PM @narendramodi for initiating a rapid vaccination process in West Bengal before elections are held.
Letter says, the West Bengal Government wants to provide vaccine free of cost to all the people. pic.twitter.com/2lyIgbBw8s— Ayushman Kumar (@Iam_Ayushmann) February 24, 2021
ममता बनर्जी ने 18 अप्रैल को फिर से वैक्सीन की मांग की.
जब 19 अप्रैल को केंद्र ने टीकाकरण की नीति में बदलाव की घोषणा की तो ममता बनर्जी ने इसे “बहुत देर से उठाया गया कदम” बताया और कहा कि ऐसा लगता है कि ये “खोखला, सार हीन और ज़िम्मेदारी से बचने के लिए उठाया गया कदम है”. 22 अप्रैल को ममता ने ट्वीट किया कि हर भारतीय का मुफ़्त टीकाकरण सुनिश्चित करने के लिए केंद्र को वैक्सीन के लिए एक दाम तय करना होगा, “फिर चाहे पैसा कोई भी दे – केंद्र या राज्य”.
8 अप्रैल को, महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने केंद्र पर कोवैक्सीन और कोविशील्ड के डिस्ट्रीब्यूशन में भेदभाव करने का आरोप लगाया था. उन्होंने कहा कि भाजपा शासित राज्यों को ज़्यादा डोज़ मिल रही हैं. उनका ये आरोप केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्ष वर्धन के महाराष्ट्र में वैक्सीन शॉर्टेज के दावे को खारिज करने के एक दिन बाद आया था. 29 अप्रैल को राजेश ने कहा था कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने बताया था कि वो वैक्सीन लेने के लिए तैयार हैं लेकिन डोज़ नहीं मिल रहे हैं.
उद्धव ने प्रधानमंत्री को 8 मई को पत्र लिखकर बताया था, “अगर संभव है तो महाराष्ट्र राज्य टीके खरीदने के लिए तैयार है ताकि लोगों को सुरक्षित किया जाए और भारत के वैक्सीनेशन प्रोग्राम को गति मिल सके. लेकिन उत्पादकों के पास वैक्सीन स्टॉक उपलब्ध नहीं है. अगर हमें किसी और उत्पादक से खरीदने की छूट मिले तो हम अधिकतर लोगों को कम समय में कवर कर सकेंगे और संभवतः कोरोना की तीसरी लहर के असर को कम कर सकेंगे.”
ये खत विकेंद्रीकरण नीति की घोषणा के बाद लिखा गया था.
CM Uddhav Balasaheb Thackeray wrote to the Hon’ble Prime Minister Shri @narendramodi regarding the supply of vaccination, technical glitches on the CoWin App & developing a state-level app for citizens’ vaccination registration. pic.twitter.com/oMOX7kfdrA
— CMO Maharashtra (@CMOMaharashtra) May 8, 2021
14 मई को महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री ने राज्यों को “हानिकारक प्रतिस्पर्धा” से बचाने के लिए केंद्र सरकार को वैक्सीन की खरीद के लिए “ग्लोबल टेन्डर” जारी करने को कहा था.
इसके अलावा, वरिष्ठ कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने 16 अप्रैल को द इंडियन एक्स्प्रेस को बताया था कि राज्यों को तुरंत वैक्सीन खरीदने के लिए अनुमति देनी चाहिए. 18 अप्रेल को DMK नेता एमके स्टालिन ने प्रधानमंत्री को “राज्य सरकारों को स्वतंत्र रूप से ड्रग्स, वैक्सीन और मेडिकल साधन खरीदने की छूट” देने के लिए कहा था. 21 अप्रैल को उन्होंने ट्वीट किया कि राज्यों को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार टीकों की खरीद के लिए केंद्र से फ़ंडिंग मिलना चाहिए.
यहां ध्यान दें कि आनंद शर्मा राज्य सभा सांसद हैं लेकिन राज्य सरकार में किसी पद पर कार्यरत नहीं है. और एमके स्टालिन ने 7 मई को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री का पद ग्रहण किया था. यानी राज्यों को स्वतंत्र रूप से वैक्सीन खरीदने की छूट देने की बात उन्होंने बतौर किसी राज्य के प्रतिनिधि के रूप में नहीं कही थी.
किसी भी गैर भाजपा शासित राज्य या विपक्ष के नेता ने वैक्सीन की सीधी ख़रीद की मंशा नहीं ज़ाहिर की
ऑल्ट न्यूज़ ने 19 अप्रैल से पहले और बाद (वैक्सीन खरीद के केंद्रीकरण के पहले और विकेंद्रीकरण के बाद) में राज्यों की मांगों की पड़ताल की. किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश ने ऐसी मांग नहीं की थी कि वो ख़ुद ही वैक्सीन खरीदना चाहते थे. असल में तो ये हुआ था कि गैर भाजपा शासित राज्यों ने वैक्सीन खरीद के विकेंद्रीकरण किये जाने की आलोचना की थी. ये आलोचना प्रधानमंत्री के फैसले के तुरंत बाद ही शुरू हो गयी थी. सामूहिक मांग तो यही थी कि केंद्र सरकार को वैक्सीन मंगवाने की ज़िम्मेदारी संभालनी चाहिए और कहां कितनी मात्रा में टीके भेजे जाने हैं, इसका फ़ैसला करना चाहिए.
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 18 अप्रैल को एक चिट्ठी लिखी थी जिसमें उन्होंने सलाह दी थी कि राज्यों को वैक्सीन की डोज़ भेजने के लिए केंद्र को एक प्लान तैयार करना चाहिये. उन्होंने इसमें ये भी जोड़ा था कि आपातकाल में इस्तेमाल के लिए 10% टीकों को बचाकर रखना चाहिए. मनमोहन सिंह ने ये भी कहा था कि सरकार को वैक्सीन वितरण के बारे में अनाउंसमेंट भी करना चाहिये. उन्होंने कभी भी विकेंद्रीकरण की बात की ही नहीं.
Key to our fight against Covid19 must be ramping up vaccination effort. We must resist temptation to look at absolute numbers being vaccinated, focus instead on percentage of population vaccinated: Former PM Dr. Manmohan Singh writes to PM Modi on ramping up vaccination programme pic.twitter.com/ZD5SbQOE0u
— Congress (@INCIndia) April 18, 2021
हालांकि 8 अप्रैल को कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने एक और ख़त लिखते हुए कहा था, “वैक्सीन लाने और उसके वितरण में राज्यों को और भी ज़्यादा हिस्सेदारी दी जानी चाहिए (Give state governments a greater say in vaccine procurement and distribution)”. खत में ये भी कहा गया था, “लोगों के स्वास्थ्य का विषय राज्यों का है, लेकिन वैक्सीन की खरीद और रजिस्ट्रेशन में भी राज्यों को सम्मिलित नहीं किया गया है.”
#Congress leader #RahulGandhi writes to #PM #NarendraModi expressing concerns about #Covid19 vaccination program. The Congress leader also sought immediate moratorium on Covid19 vaccine exports in the letter to PM. pic.twitter.com/5GYuNtxR6z
— Mojo Story (@themojostory) April 9, 2021
भाजपा नेता इसी ख़त को दिखाते हुए दावा कर रहे हैं कि कांग्रेस ने वैक्सीन मंगवाने में विकेंद्रीकरण की मांग की थी. ऐसा दावा करने वालों में स्मृति ईरानी भी शामिल हैं जो केन्द्रीय मंत्री हैं.
यहां ये भी ध्यान में रखना चाहिए कि मनमोहन सिंह और राहुल गांधी किसी भी राज्य का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं.
19 अप्रैल से पहले की ऐसी कोई भी रिपोर्ट नहीं है जिससे ये मालूम चल रहा हो कि राज्य सरकार केंद्र सरकार से इस बात की अनुमति मांग रही थीं कि उन्हें सीधे वैक्सीन निर्माताओं से वैक्सीन ख़रीदने दिया जाए. ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने नरेंद्र मोदी को 30 मार्च को एक ख़त लिखा जिसमें उन्होंने गुज़ारिश की थी कि सरकारी सप्लाई चेन के बाहर भी वैक्सीन मुहैया करने का प्रबंध किया जाना चाहिए जिससे उसे खरीदने का सामर्थ्य रखने वाले उसे खरीद सकें.
नरेंद्र मोदी ने अपने 7 जून के भाषण में ऐसी तस्वीर पेश करने की कोशिश की कि जब विकेंद्रीकरण का फैसला लिया गया था तो राज्य टीकाकरण सुचारु रूप से करते नहीं दिख रहे थे और इसीलिए केंद्रीकरण का फैसला लिया गया. लेकिन ज़्यादातर गैर भाजपा शासित राज्यों ने कहा कि वो केंद्रीकरण खरीद ही चाहते हैं.
सरकार के 19 अप्रैल के विकेंद्रीकरण अनाउंसमेंट के एक दिन बाद, छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री ने कहा था कि कोविड-19 के टीके को लाने का विकेंद्रीकरण नहीं किया जाना चाहिए.
केरला के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने नरेंद्र मोदी से गुज़ारिश की थी कि वो अपने फ़ैसले पर पुनः विचार करें और राज्यों को मुफ़्त वैक्सीन मुहैया करायें. केरला की पूर्व स्वास्थ्य मंत्री केके शैलजा ने कहा था कि अगर लेफ़्ट केंद्र में होता तो हेल्थकेयर का राष्ट्रीयकरण कर देता.
Maximum vaccination is required to crush 2nd wave of #COVID19. Requested @PMOIndia to reconsider new policy on vaccine distribution so that availability is assured & no additional financial burden is incurred, enabling States to perform constitutional obligation in health sector. pic.twitter.com/sEE6dpGzpE
— Pinarayi Vijayan (@vijayanpinarayi) April 20, 2021
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 21 अप्रैल को ट्वीट किया था, “मैं उम्मीद करता हूं कि प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी 18 वर्ष से अधिक आयुवर्ग के लोगों के लिए भी फ्री वैक्सीनेशन की घोषणा करेंगे जिससे सभी नागरिकों को वायरस से सुरक्षा मिल सकेगी.”
इसके लिए मैं उम्मीद करता हूं कि प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी 18 वर्ष से अधिक आयुवर्ग के लोगों के लिए भी फ्री वैक्सीनेशन की घोषणा करेंगे जिससे सभी नागरिकों को वायरस से सुरक्षा मिल सकेगी।
3/3— Ashok Gehlot (@ashokgehlot51) April 21, 2021
राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर रघु शर्मा ने 25 अप्रैल को हुई एक वर्चुअल प्रेस कांफ्रे़ंस में कहा, “… ये केंद्र सरकार की ज़िम्मेदारी है कि राज्यों को ज़रूरत के हिसाब से टीके मिलते रहें.”
पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने प्रधानमंत्री के साथ 23 अप्रैल को हुई वर्चुअल मीटिंग में केंद्र सरकार से टीकाकरण के लिए फ़ंड मुहैया करवाने की मांग की थी.
25 अप्रैल को राजस्थान, पंजाब, छत्तीसगढ़, झारखण्ड और केरला (5 गैर भाजपा शासित प्रदेश) ने कहा था कि 18 से 45 आयुवर्ग के लोगों के लिए 1 मई से शुरू होने वाले टीकाकरण में कुछ देरी होगी क्यूंकि वैक्सीन निर्माताओं का कहना था कि वो पहले केंद्र सरकार से अनुबंधित टीकों की डोज़ सप्लाई करेंगे फिर उनकी मांगों पर विचार करेंगे. छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव ने कहा, “केंद्र सरकार लोगों को गुमराह करने की कोशिश कर रही है और राज्यों पर ठीकरा फोड़ रही है.” झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने कहा था कि मोदी सरकार को टीकाकरण का तीसरा फ़ेज़ शुरू करने से पहले सप्लाई चेन निर्धारित करने के बारे में सोच-विचार का लेना चाहिए था.
तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री के पलानिस्वामी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 26 अप्रैल को ख़त लिखते हुए कहा कि देश में कोविड-19 के टीकाकरण का तीसरा फ़ेज़ बेहद अनुचित है. उन्होंने गुज़ारिश की कि केंद्र टीकों की डोज़ खरीदे और सभी समूहों के टीकाकरण के लिए उन्हें मुहैया कराये. 7 मई को मुख्यमंत्री पद ग्रहण करने वाले एम के स्टालिन (पलानिस्वामी के बाद) ने 12 मई को नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखी और कहा कि केंद्र को वैक्सीन्स मंगवानी चाहिए और देश भर में सभी के लिए मुफ़्त टीकाकरण करना चाहिए.
वरिष्ठ विपक्षी नेता, कांग्रेस के पी चिदंबरम और AIMIM के चीफ़ असदुद्दीन ओवैसी ने भी टीके लाने के लिए केन्द्रीकरण को ही सही ठहराया.
8 अप्रैल को दिल्ली सरकार ने केंद्र सरकार से अपील की की थी कि वो सभी आयुवर्गों के लिए टीकाकरण की अनुमति दे दे. उन्होंने विकेंद्रीकरण की तो बात ही नहीं की. 24 मई को दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने भी वैक्सीन मंगवाने और मुहैया करवाने के लिए केन्द्रीकरण की ही मांग की थी.
ऐसा कोई भी सबूत नहीं है जो प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के इस दावे को सपोर्ट करे कि राज्यों ने वैक्सीन मंगवाने के लिए विकेंद्रीकरण की मांग की थी. 30 (चुनी हुई सरकारें) में 18 राज्य या तो भाजपा द्वारा शासित हैं या भाजपा वहां गठबंधन में है. दो मुख्यमंत्रियों के बयानों को किनारे कर दें तो किसी भी राज्य से ऐसी कोई ख़बर नहीं आई कि वो सीधे वैक्सीन खरीदना चाहते हैं. अगर केंद्र सरकार कुछ-एक विपक्षी पार्टियों के नेताओं के बयान को आधार बनाकर फैसले लेती है और अपनी ही पार्टी से जुड़ी राज्य सरकारों को अनदेखा कर देती है, तो कुछ नहीं कहा जा सकता. वरना, राज्यों पर ठीकरा फोड़ने की प्रधानमंत्री की कोशिश का कोई आधार नहीं नज़र आता.
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