मध्य प्रदेश के इंदौर में कागदीपुरा क्षेत्र के एक मस्जिद पर एक पोस्टर लगा था जिसमें बुर्का पहनी महिला हाथ में हरे रंग का झंडा लिए खड़ी दिख रही है. साथ ही तस्वीर के ऊपरी हिस्से में अरबी भाषा में कुछ लिखा है. भाजपा विधायक मालिनी गौड़ के बेटे और भाजपा नगर उपाध्यक्ष एकलव्य गौड़ ने मस्जिद पर लगी पोस्टर की तस्वीर शेयर करते हुए आरोप लगाया कि ये “गज़वा-ए-हिंद” के आतंक को दर्शाता है और इसे शहर को आतंकित करने के मंसूबों से लगाया गया है. एकलव्य गौड़ ने दैनिक भास्कर को दिए एक इन्टरव्यू में कहा कि पोस्टर में दो पक्षों को लड़ता हुआ दिखाया गया है, जिसमें एक पक्ष के हाथ में भगवा झंडा है.

इस मामले पर भाजपा के वरिष्ठ नेता और मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने भी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अगर आरोपी मेरे हाथ लग गए तो उन्हें उल्टा लटकाकर शहर में घुमाएंगे.

सत्ताधारी पार्टी भाजपा की मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मुखपत्रिका ने ये तस्वीर ट्वीट करते हुए लिखा कि भारत में इस्लामी सत्ता के ख्वाब से मस्जिद पर ग़जवा-ए-हिन्द का पोस्टर लगाया गया. (आर्काइव लिंक)

रौशन सिन्हा जैसे कई भाजपा समर्थक अकाउंट्स, राइट-विंग प्रॉपगेंडा वेबसाइट ऑपइंडिया, हिन्दू पोस्ट समेत कई प्रमुख न्यूज़ आउटलेट ने भी इस खबर को बिना वेरीफाई किये चलाते हुए ऐसा ही दावा किया. इनमें ज़ी न्यूज़, न्यूज़24, न्यूज़18, इंडिया टुडे ग्रुप का एमपी तक, अमर उजाला, नई दुनिया, पंजाब केसरी, इत्यादि शामिल हैं.

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फ़ैक्ट-चेक

वायरल पोस्टर पर लिखा है, “मन कुन्तो मौला, फा-अली उन मौला”. यह टेक्स्ट दुनिया भर के शिया मुसलमानों की आस्था और हदीस की बुनियाद है. यह भारत के प्रमुख सूफी संगीतकार आमिर खुसरो की रचना का भी हिस्सा जो कि इन्हीं हदीस से प्रेरित है. इसका अर्थ है ‘जो मुझे मौला मानता है, अली उसका भी मौला है’. इसमें मौला शब्द के अर्थ पर भी शिया और दूसरे मुसलमानों की अलग राय है. इतिहासकार राना सफवी ने इस पर 2017 में लिखा था कि इस वाक्य और इसमें मौला शब्द के भी विभिन्न विश्लेषण हैं जो कि शिया समुदाय और दूसरे मुसलमानों के बीच विवाद का कारण बनते हैं. हमने अपनी जांच में यह पाया कि किसी भी तरह से इस टेक्स्ट में ‘गज़वा-ए-हिन्द’ का ज़िक्र नहीं है.

इसके बाद हमने वायरल तस्वीर को गूगल पर रिवर्स इमेज सर्च किया तो हमें इस तस्वीर से जुड़े कई आर्टिकल्स मिले जिनमें इसे इस्लामिक इतिहास की सबसे बड़ी घटनाओं में से एक कर्बला (वर्तमान इराक का एक शहर) की लड़ाई से जुड़ा बताया गया है. हज़रत इमाम हुसैन और उनके समर्थकों के एक छोटे समूह ने एक क्रूर बादशाह यज़ीद और उसके सैनिकों से लड़ाई लड़ी थी जिसमें इमाम हुसैन और उनके समर्थक शहीद हो गए थे. वायरल तस्वीर उसी इतिहास के एक हिस्से, मुहर्रम के 10वें दिन ‘आशूरा’ के दिन से जुड़ी बताई जाती है जब कर्बला की लड़ाई में इमाम हुसैन शहीद हुए थे. हाथ में झंडा थामे महिला इमाम हुसैन की बहन हज़रत ज़ैनब हैं. लड़ाई में हज़रत इमाम हुसैन और उनके समर्थकों के एक छोटे समूह की शहादत के बाद, हज़रत ज़ैनब और उनके घर की महिलाओं और बच्चों को बंदी बनाकर क्रूर राजा यज़ीद के दरबार में लाया गया था, जिसपर हज़रत जैनब ने क्रूर बादशाह को मुंहतोड़ जवाब देने का निर्णय लिया और एक विद्रोही भाषण दिया. इस तस्वीर को अत्याचार के प्रतिरोध के रूप में प्रतीकात्मक रूप से प्रस्तुत किया गया है.

हमने पाया कि ईरान के एक पत्रकार ने 2019 में इस तस्वीर को ट्वीट किया था. उन्होंने इसे शेयर करते हुए लिखा था कि वालियासर चौक की नई दीवार पेंटिंग का अनावरण किया गया जिसमें आशूरा का डिज़ाइन है. आशूरा की शाम को हज़रत ज़ैनब के हाथों से जो झंडा फहराया गया था, वह आज ज़कज़की और दरगाह के रक्षकों के हाथों में पहुँच गया है और यह प्रतिरोध की निरंतरता का संदेश है.

हमने इस मुद्दे पर ईरान के कोम शहर में अल-मुस्तफा यूनिवर्सिटी में भारतीय-ईरानी इस्लाम धर्म के जानकार, प्रोफेसर सैयद ज़मीर अब्बास जाफ़री से बात की. उन्होंने हमें बताया, “इस पेंटिंग का मतलब ये है कि जब इमाम हुसैन कर्बला के युद्ध में शहीद हो गए तो उनकी बहन हज़रत जैनब, जिन्हें नारीवाद का समर्थन करने वाले लोग महिला प्रतिरोध के प्रतीक के रूप में देखते हैं, क्योंकि इमाम हुसैन की शहीदी के बाद इनके परिवार को कैदी बनाया गया था, तब हज़रत जैनब ने ज़ालिम बादशाह के प्रति प्रतिरोध दर्ज करवाया था और दुश्मन के महल में उसे चुनौती देते हुए उसके खिलाफ भाषण दिया था. इस तस्वीर में दर्शाया गया है कि इमाम हुसैन के शहीद होने के बाद उनकी बहन हज़रत जैनब ने जालिमों के खिलाफ़ उस परचम को बुलंद किया था. वह जालिमों के सामने झुके नहीं और इज्जत, गैरत, वफ़ा, शुजात, इशार, कुर्बानी, और शहादत के जज्बे को लेकर आगे बढ़ी. संक्षेप में इसका संदेश है कि इमाम हुसैन शहीद हो गए लेकिन उनका मकसद शहीद नहीं हुआ, उनका मकसद हज़रत जैनब ने आगे बढ़ाया. ये तस्वीर दिखा रहा है कि अगर आप किसी को मार देते हो तो उसके आदर्श नहीं मरते, और प्रतिरोध का झण्डा बुलंद रहता है.” प्रोफेसर सैयद ज़मीर अब्बास जाफ़री ने कहा कि इस तस्वीर का ‘गजवा-ए-हिन्द’ जैसी चीजों से कोई संबंध नहीं है.

मौलाना सैयद मोहम्मद जौन आब्दि ने इस मामले को लेकर सबील मीडिया के जरिए एक वीडियो भी रिलीज किया है.

दैनिक भास्कर से बात करते हुए ऑल इंडिया शिया समाज के प्रदेश प्रवक्ता सैयद दिलशाद अल नकवी ने कहा कि ये पोस्टर करीब 4 महीने से उस जगह पर लगा हुआ था. हर साल मोहर्रम पर लगने वाले इस पोस्टर में हज़रत इमाम हुसैन की शहादत की जगह कर्बला का सीन दर्शाया गया है. पोस्टर में हाथ में हरा झंडा पकड़े हुई दिख रही महिला हज़रत इमाम हुसैन की बहन हज़रत बीबी जैनब हैं और छोटी बच्ची इमाम हुसैन की सबसे छोटी बेटी सकीना हैं. इसमें दिखाया गया है कि सामे याज़ीद की सेना खड़ी है जिसके हाथ में लाल रंग का झंडा है. इस पोस्टर पर ना तो अन्य कोई रंग है और ना ही कुछ लिखा हुआ है.

हमें इस तस्वीर से जुड़ी खबर ईरान की एक न्यूज़ वेबसाइट HVASL पर भी मिली. इसमें ईरान के तेहरान में स्थित, ईरान के द्वारा किसी संदेश को प्रदर्शित करने के लिए सबसे प्रमुख स्थानों में से एक वली-असर स्क्वेर वॉल पर मुहर्रम के महीने में ये तस्वीर लगाए जाने से जुड़ी जानकारी मौजूद है. इस आर्टिकल में तस्वीर के डिजाइनर पूयब सरबी के हवाले से तस्वीर की विस्तृत व्याख्या की गई है. एक रिपोर्टर से बात करते हुए डिजाइनर ने बताया कि उसने इस घटना को इमाम हुसैन की तीन साल की बच्ची के नज़रिए से बयान करने की कोशिश की है. एक बच्ची जिसने तकलीफ़ें सहीं लेकिन फिर भी झंडा बुलंद रखना चाहती थी. उन्होंने तस्वीर में अपनी दृष्टिकोण को जाहिर करते हुए कहा कि तीन साल की बच्ची अकेले झंडा नहीं थाम सकती, इसलिए हज़रत ज़ैनब उसके साथ खड़ी होकर उसकी मदद कर रही हैं. चूंकि, इमाम हुसैन की शहादत के बाद आशूरा में कई घटनाओं का केंद्र हज़रत ज़ैनब रहीं. इसलिए वह सबसे अच्छी शख़्स थी जो लड़की के साथ खड़ी हो सकती थी और झंडा थामे रखने में उसकी मदद कर सकती थी. डिजाइनर सराबी ने बताया कि तस्वीर में महिलाओं की मौजूदगी याद दिलाती है कि वे हमेशा पुरुषों को झंडा बुलंद रखने में मदद की हैं. पुरुष की शहादत के बाद भी, महिलाएँ अभी भी खड़ी हैं. पुयब सराबी ने बताया कि इस तस्वीर का विचार व्यक्तिगत था लेकिन उनकी टीम के सदस्यों ने मिलकर इस पर काम किया है.

हमें यह तस्वीर 2019 में पुयाब सराबी के इंस्टाग्राम अकाउंट पर भी अपलोड मिली. हमने उनसे इस तस्वीर के बारे में पूछा तो उन्होंने इस बात की पुष्टि की उनकी टीम द्वारा यह तस्वीर बनाई गई है और वे इसके क्रियेटर, कॉपी राइटर और आर्ट डायरेक्टर हैं. इस पोस्ट के कैप्शन में उन्होंने अपनी टीम के सदस्यों को टैग किया है. हमने इस तस्वीर के बारे में उनकी टीम के एक सदस्य ग्राफिक डिजाइनर मोहम्मद तगहिपोर से संपर्क किया, जिसके जवाब में उन्होंने पुष्टि की कि इस तस्वीर को वो और उनकी टीम ने प्रस्तुत किया है. इस तस्वीर के संदेश के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि कि प्रतिरोध कई मौतों के बाद भी नहीं मरता है. यही इसका संदेश है.

कुल मिलाकर, इस तस्वीर का संबंध किसी भी प्रकार से ‘गज़वा-ए-हिन्द’ जैसी चीजों से नहीं है. कई मीडिया आउटलेट्स, राइट-विंग इनफ़्लूएंसर्स और प्रॉपगेंडा वेबसाइट ने इस्लामिक इतिहास की सबसे बड़ी घटनाओं में से एक कर्बला से जुड़ी प्रतीकात्मक तस्वीर को ‘गजवा-ए-हिन्द’ से जोड़कर चलाया.

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Abhishek is a senior fact-checking journalist and researcher at Alt News. He has a keen interest in information verification and technology. He is always eager to learn new skills, explore new OSINT tools and techniques. Prior to joining Alt News, he worked in the field of content development and analysis with a major focus on Search Engine Optimization (SEO).