“हमास के आतंकवादियों को दक्षिणी इज़राइल में एक गर्भवती महिला मिली. उन्होंने उसके शरीर के टुकड़े कर दिए थे. उसका पेट काट कर गर्भनाल के साथ भ्रूण को बाहर निकाल दिया. साथ ही अजन्मे बच्चे को अपनी माँ के गर्भ से धीरे-धीरे मरने के लिए छोड़ दिया था. हमास लोगों के साथ ऐसे ही अमानवीय बर्बरता करता है.”
टीवी9 नेटवर्क के कार्यकारी संपादक आदित्य राज कौल ने 10 अक्टूबर को ये ट्वीट किया था. अपनी X (ट्विटर) प्रोफ़ाइल फ़ोटो में युद्ध की पोशाक में नज़र आ रहे आदित्य कौल के ट्वीटर पर 4 लाख से ज़्यादा फ़ॉलोवर्स हैं. इस ट्वीट को 32 हज़ार से ज़्यादा लाइक्स मिले हैं साथ ही इसे 10 मिलियन से ज़्यादा बार देखा गया. आदित्य कौल द्वारा रिपोर्ट की गई हिंसा की भयावह प्रकृति को देखते हुए, ऐसा होना लाज़िमी ही था. हालांकि, एक दिक्कत भी है. अगर आदित्य कौल के ट्वीट पर किये गए कमेंट्स पर गौर किया जाये, तो ये देखा जा सकता है कई यूज़र्स ने आदित्य द्वारा किए गए दावों पर शक जताया. ट्वीट को ट्विटर के कम्युनिटी नोट्स द्वारा चिह्नित किया गया था जिसमें कहा गया था कि हमास द्वारा किसी इज़रायली महिला पर ऐसी हिंसा करने का कोई सबूत नहीं है. नोट में बताया गया कि उक्त घटना 1982 में इजरायलियों द्वारा फ़िलिस्तीनी लोगों के सबरा और शतीला नरसंहार की रिपोर्ट के तरह थी. कुछ लोगों ने आदित्य कौल पर 2002 के गुजरात दंगों के दौरान कौसर बानो पर हुई हिंसा को प्रतिबिंबित करने का आरोप लगाया.
हालांकि, आदित्य कौल अपनी ‘रिपोर्टिंग’ की सच्चाई पर उठ रहे सवालों के प्रति काफी उदासीन दिखे. “संदर्भ हमास के आतंकी समर्थकों द्वारा दिया गया है, न कि ट्विटर द्वारा. ये कहां बताया गया है कि अगर 1992 में कुछ अपराध हुआ है तो वो दोबारा नहीं हो सकता?.” उन्होंने एक यूज़र को रिप्लाई देते हुए कहा कि वो हमास के समर्थक या प्रवक्ता न बनें. आदित्य कौल ने इस बात पर ज़ोर दिया कि उन्हें घटना का सबूत पेश करने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि उन पर “किसी भी राजनेता को संतुष्ट करने” का कोई दायित्व नहीं है. एक दूसरे ट्वीट में, उन्होंने दावा किया कि मौके पर मौजूद उनके दोस्त अविषय ने उन्हें घटना की सूचना दी थी. अविषय ने जाहिर तौर पर उनके साथ तस्वीरें भी शेयर की थीं लेकिन दुर्भाग्य से, वो तस्वीरें पोस्ट नहीं कर सके.
पत्रकार या फ़ैक्ट-चेकर्स के लिए इस तरह की जानकारी को स्वतंत्र रूप से वेरिफ़ाई करना व्यावहारिक रूप से असंभव है, खासकर ऐसे युद्ध के बीच जिसमें बड़े पैमाने पर हिंसा देखी गई है. इस विशेष दावे के बारे में तर्कसंगत रूप से इतना ही कहा जा सकता है कि सार्वजनिक डोमेन में इसका समर्थन करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं. हालांकि, इस तरह के सनसनीखेज दावों पर लोगों की नज़र होती है जिसकी वजह से आदित्य कौल के ट्वीट को इस तरह का आकर्षण मिलता है. हमने ट्विटर पर आदित्य कौल के ट्वीट के टेक्स्ट को देखा और पाया कि दस से ज़्यादा हैंडल्स ने ‘कॉपीपेस्ट’ का इस्तेमाल किया था. ये एक रणनीति है जहां एक निश्चित नैरेटिव को बढ़ाने के लिए टेक्स्ट के एक ब्लॉक को कई लोगों द्वारा कॉपी और पेस्ट किया जाता है. सबंधित की-वर्डस सर्च करने पर हमें नवंबर में इसी दावे के वाले सैकड़ों ट्वीट्स मिलें. उनमें से किसी ने भी इस फ़ैक्ट की परवाह नहीं की कि ये दावा अनवेरिफ़ाईड और अविश्वसनीय था. इस दावे को आगे बढ़ाना जाहिर तौर पर इज़राइल के पक्ष में प्रचार करना था. और तो और, अपना शक जताने वालों को आदित्य कौल ने हमास का समर्थक या प्रवक्ता करार दिया.
पिछले डेढ़ महीनों में राजनीतिक अधिकार के साथ खुद को जोड़ने वाले भारतीय सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर सोशल मीडिया पर इज़रायल समर्थक प्रचार, भ्रामक दावे, अनवेरिफ़ाईड नैरेटिव, झूठे कोट, पुरानी और असंबंधित तस्वीरें और वीडियोज़ और लगभग हर प्रकार की गलत सूचना और दुष्प्रचार को तेजी से शेयर कर रहे हैं और आगे बढ़ा रहे हैं. इस रिपोर्ट में प्रोपगेंडा इकोसिस्टम के कौन, क्यों और क्या का विवरण दिया गया है.
इज़राइल और फ़िलिस्तीन के प्रति भारत का आधिकारिक रुख
7 अक्टूबर को हमास के हमले पर शुरूआती प्रतिक्रिया के रूप में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कई और वैश्विक नेताओं की तरह, “आतंकवादी हमलों की खबर” पर “गहरा दुख” व्यक्त किया. उन्होंने ट्वीट किया, “हमारे विचार और प्रार्थनाएं निर्दोष पीड़ितों और उनके परिवारों के साथ हैं. हम इस कठिन समय में इज़राइल के साथ एकजुटता से खड़े हैं.” पांच दिन बाद, केंद्रीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने अंतरराष्ट्रीय कानून के सम्मान का आह्वान किया और “फ़िलिस्तीन के संप्रभु, स्वतंत्र और व्यवहार्य राज्य” की स्थापना के पक्ष में भारत की बात को दोहराया.
27 अक्टूबर को भारत ने गाज़ा में युद्धविराम और युद्धग्रस्त क्षेत्र में निर्बाध मानवीय पहुंच की मांग वाले प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNJA) में मतदान से परहेज किया. ये कुछ हद तक फ़िलिस्तीन समर्थक रुख के विपरीत है जो भारत ने ऐतिहासिक रूप से 1948 से अपनाया है.
जहां तक राजनयिक संबंधों का सवाल है, भारत और इज़राइल का अतीत उतार-चढ़ाव भरा रहा है. 1940 के दशक में स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष के बाद फ़िलिस्तीन के लिए तत्कालीन ब्रिटिश जनादेश के साथ एकजुटता उत्पन्न हुई. भारत ने 1947 में यहूदी अल्पसंख्यकों के लिए सुरक्षा उपायों के साथ फ़िलिस्तीन का एक स्वतंत्र संघीय राज्य बनाने की योजना प्रस्तावित की. जब UNJA ने 1947 का प्रस्ताव पारित किया जिसमें फ़िलिस्तीनी राज्य के साथ-साथ इज़राइल राज्य की स्थापना की सिफारिश की गई थी, तो भारत उन कुछ गैर-अरब देशों में से एक था जिन्होंने इसके खिलाफ मतदान किया था. 1974 में भारत फ़िलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइज़ेशन (PLO को “फ़िलिस्तीनी लोगों के एकमात्र और वैध प्रतिनिधि” के रूप में मान्यता देने वाला पहला गैर-अरब देश था. जब 1988 में PLO ने इसे घोषित किया तो भारत फ़िलिस्तीन राज्य को मान्यता देने वाला पहला गैर-अरब देश भी था.
दूसरी ओर, जहां तक इज़राइल का सवाल है, 1950 में भारत “इज़राइल के साथ पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित करने की दिशा में आगे बढ़ने की स्थिति में था” और इज़राइल को पहली बार औपचारिक रूप से भारत में मान्यता दी गई थी. हालांकि, 1992 में ही भारत ने नई दिल्ली में इज़राइली दूतावास की स्थापना करके इज़राइल को पूर्ण राजनयिक मान्यता प्रदान की.
1999 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान इज़राइल ने हथियार और गोला-बारूद उपलब्ध कराने में अपनी रुचि दिखाई. हाल के सालों में भारत ने इज़राइल से लगभग 2 बिलियन डॉलर कीमत का गोला-बारूद खरीदा है और अब ये इज़राइली रक्षा उद्योग का सबसे बड़ा विदेशी ग्राहक है. 2017 में नरेंद्र मोदी इज़राइल का दौरा करने वाले पहले भारतीय प्रधान मंत्री बने, और बेंजामिन नेतन्याहू ने 2018 में नई दिल्ली की यात्रा की. इस मिलनसार ने भारतीय राईट विंग के सामूहिक मानस में एक आदर्श तस्वीर दिखाई जैसा कि एक हिंदू के रूप में अखंड भारत का उनका सपना था. राष्ट्र इज़राइल के धार्मिक-राष्ट्रवादी राज्य के साथ पूरी तरह से जुड़ा हुआ है.
इज़राइल यात्रा के महीनों बाद, 2018 में मोदी ने कब्जे वाले वेस्ट बैंक में रामल्ला का दौरा करने वाले पहले भारतीय प्रधान मंत्री बनकर इतिहास रचा. फ़िलिस्तीनी राष्ट्र प्रमुख महमूद अब्बास के साथ बातचीत के बाद मोदी ने कहा कि भारत को “शांति के माहौल में रहने वाला एक स्वतंत्र फ़िलिस्तीनी राज्य” देखने की उम्मीद है. भारत ने निकट पूर्व में फ़िलिस्तीन शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र राहत और कार्य एजेंसी में अपना योगदान भी दिया.
I consider it an honour to be in Palestine. I bring with me the goodwill and greetings of the people of India. Here are my remarks at the joint press meet with President Abbas. https://t.co/lUWKPB9Nxe pic.twitter.com/3uUPtuh4gP
— Narendra Modi (@narendramodi) February 10, 2018
हालांकि, भारत संभावित कूटनीतिक नतीजों से अवगत रहा है जिससे मोदी अरब खाड़ी के अलग-अलग नेताओं के साथ स्थिति संरेखित करने के लिए चर्चा में शामिल होने के लिए प्रेरित हुए हैं. हाल ही में भारत ने पूर्वी येरुशलम, वेस्ट बैंक और गोलान हाइट्स में इज़रायली बस्तियों की निंदा करने वाले संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया.
भारतीय राईट विंग के लिए पक्ष लेना आसान रहा है
हालांकि भारत सरकार ने सावधानी से कदम उठाया है, लेकिन सोशल मीडिया पर मजबूत उपस्थिति वाले देश के राईट विंग इकोसिस्टम ने हाल में जारी संघर्ष पर अपना रुख तय करने में बहुत कम समय दिया है. उन मुस्लिम देशों के साथ सीमा शेयर करना जिन्हें वो दुश्मन मानते हैं और घर पर मुस्लिम अल्पसंख्यक आबादी होने के कारण, भारत और इज़राइल एक-दूसरे की जनसांख्यिकीय चिंताओं को प्रतिबिंबित करते हैं. भारत में हिंदू-राष्ट्रवादी भाजपा के शासन के पिछले 10 सालों में ये चिंता बड़े पैमाने पर इस्लामोफ़ोबिया और जीवन के लगभग हर क्षेत्र में दिखाई देने वाली सांप्रदायिक नफरत में बदल गई है. 2022 में ऑल्ट न्यूज़ द्वारा किए गए सभी फ़ैक्ट-चेक में से 41% में ग़लत सूचना/दुष्प्रचार का लक्ष्य मुसलमान थे. हाल में जारी संघर्ष ने राईट विंग को इस इस्लामोफ़ोबिया को बढ़ाने का अवसर दिया है. नतीजतन, 7 अक्टूबर को हमास के हमले के बाद इज़रायल द्वारा फ़िलीस्तीनियों के नरसंहार (जिनमें से ज़्यादातर मुस्लिम हैं) (यहां और यहां देखें) को हिंदू राईटविंग के बीच मजबूत समर्थन मिला है.
हैशटैग #IStandWithIsrael के साथ ट्वीट्स का एक बड़ा हिस्सा भारतीय यूज़र्स ने किया था और हजारों भारतीय एकाउंट्स ने अपने X हैंडल के आगे इज़राइल का झंडा लगाया.
फ़िलिस्तीनियों के प्रति अपनी दुश्मनी की भावना से प्रेरित होकर, सोशल मीडिया पर भारतीय राईटविंग इंफ्लुएंसर्स, 7 अक्टूबर को हमास के हमले के बाद से फ़िलिस्तीन को निशाना बनाकर ग़लत सूचनाएं शेयर कर रहे हैं. फ़िलिस्तीन के समर्थन को अवैध बनाने की कोशिश में फ़िलिस्तीन और फ़िलिस्तीन के मानवाधिकारों के लिए बोलने या प्रदर्शन करने वाले किसी भी व्यक्ति को ‘संभावित आतंकवादी’ करार दिया गया और हमास का बचाव करने का आरोप लगाया गया. भारतीय यूज़र्स द्वारा फ़िलिस्तीन समर्थक ग़लत सूचना शेयर करने के उदाहरण सामने आए हैं. लेकिन काउंटर नैरेटिव की तुलना में ये अनुपात में बहुत कम हैं.
कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया आउटलेट्स ने रिपोर्ट किया कि कैसे भारत, हाल में जारी युद्ध से संबंधित ग़लत सूचनाओं का केंद्र बन गया है. अल जज़ीरा ने लिखा, “…इजरायल-हमास युद्ध ने भारत में बड़े और छोटे दोनों तरह के सोशल मीडिया एकाउंट्स को व्यापक पहुंच प्रदान की है – जो मुस्लिम विरोधी और इज़रायल समर्थक उत्साह की लहर चलाने में कामयाब रहे हैं.” राजनयिक ने कहा, “हालांकि घरेलू घटनाओं को बढ़ावा देने के लिए अंतरराष्ट्रीय घटनाओं का ये शोषण कोई नई बात नहीं है जो देखा जा सकता है वो इज़रायल के समर्थन में हिंदू राष्ट्रवादियों द्वारा स्वैच्छिक और विकेन्द्रीकृत दुष्प्रचार अभियान का उद्भव है. खुद को इज़राइल का “डिजिटल चैंपियन” कहते हुए, बड़े फ़ॉलोवर्स वाले व्यक्तिगत अकाउंट हमास के खिलाफ अनवेरिफ़ाईड एकतरफा ख़बरें भेजते हैं जिसने ऑनलाइन काफी तेजी पकड़ ली है…जैसे-जैसे मौजूदा संघर्ष सामने आ रहा है, हमास के प्रति इज़रायल की तीव्र जवाबी कार्रवाई और गाज़ा के खिलाफ घातक हमले भी अस्तित्व में आ रहे हैं, और हिंदू राष्ट्रवादियों द्वारा अपने मुस्लिम विरोधी एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए इसे चुना गया है.”
भारतीय फ़ैक्ट-चेक वेबसाइट बूमलाइव ने अरब क्षेत्र के कई पत्रकारों से बात की जिनमें वेस्ट बैंक स्थित फ़ैक्ट-चेक संगठन काशिफ़ भी शामिल था, और बूम ने एक हालिया रिपोर्ट में ज़िक्र किया कि उन सभी ने इज़राइल और फ़िलिस्तीन के बारे में दावों को खारिज करने के लिए भारत को शीर्ष तीन क्षेत्रों के रूप में नामित किया जिनकी वो निगरानी कर रहे थे.
ऊपर बताई गई तीन रिपोर्ट्स में से दो में टीवी9 से जुड़े पत्रकार आदित्य राज कौल के अनवेरिफ़ाईड दावों का ज़िक्र किया गया है.
पुराना, असंबद्धित मीडिया
जैसा कि संघर्ष के समय आम है, सोशल मीडिया पर हाल में चल रहे युद्ध से जुड़ी असंबद्धित तस्वीरों और वीडियोज़ की बाढ़ आ गई. ऑल्ट न्यूज़ ने ऐसे लगभग 40 दावों की पड़ताल की है.
भारतीय यूज़र्स द्वारा शेयर की गई फ़िलिस्तीन विरोधी ग़लत सूचनाओं में ध्यान देने लायक एक पैटर्न है जिसमें ‘जिहाद‘, ‘आतंकवादी‘ और इसी तरह के शब्दों का इस्तेमाल किया गया है. ये ऐसे शब्द हैं जिनका वर्णन आमतौर पर भारतीय राईट विंग इंफ्लुएंसर द्वारा मुसलमानों को संदर्भित करने के लिए किया जाता है. कई मामलों में हमास द्वारा 7 अक्टूबर के हमले को ‘इस्लामिक आतंकवाद’ की आड़ में सामान्य करने की कोशिश की गई थी. जबकि राईट विंग एकाउंट्स ने ये दावा करने के लिए असंबंधित वीडियोज़ शेयर किए थे कि इज़राइल ने ऐसे आतंकवाद का प्रभावी ढंग से मुकाबला किया था. #IslamsTheProblem जैसे हैशटैग का इस्तेमाल भी देखा गया.
मैक्सिकन कार्टेल के एक सदस्य द्वारा एक आदमी के शरीर से उसका दिल निकालकर खाने का एक ग्राफ़िक वीडियो इस दावे के साथ वायरल है कि हमास का एक आतंकवादी एक इज़रायली नागरिक पर ऐसे अत्याचार कर रहा था. भारतीय यूज़र्स ने इस दावे को आगे बढ़ाया और ऐसे पोस्ट्स को हजारों लाइक्स और रीट्वीट भी मिलें. भारतीय मूल के यूज़र @JIX5A ने अपने ट्वीट में लिखा, “जागो! ये राक्षस हैं.” रिडर्स इस वीडियो के बारे में ऑल्ट न्यूज़ द्वारा पब्लिश की गई फ़ैक्ट-चेक रिपोर्ट यहां पर देख सकते हैं.
सैन्य सामरिक शूटर वीडियो गेम ARMA 3 के क्लिप्स को मौजूदा संकट से ग़लत तरीके से जोड़कर शेयर किया गया था. उदाहरण के लिए, एक ARMA 3 फ़ुटेज को हमास लड़ाकों द्वारा 4 इज़रायली युद्ध हेलीकॉप्टरों को मार गिराने के फ़ुटेज रूप में शेयर किया गया था. वायरल क्लिप शेयर करने वाले व्यक्तियों में से एक वेरिफ़ाईड भारतीय मूल के यूज़र ‘@IacGaurav’ भी थे जिनके ट्विटर पर करीब 17 हज़ार फ़ॉलोवर्स हैं.
Just-In🚨🚨
Hamas fighters shot down 4 Israel war helicopters in Gaza, Palestine 🇵🇸#Israel | #Hamas | #Ghaza #FreePalestine #Mossad #Palestine #SAvSL #SLvsSA #SAvsSL
Only loss of humanity,Peace..
— 𝑮𝒂𝒖𝒓𝒂𝒗 𝑹𝒂𝒊 (@IacGaurav) October 7, 2023
ऑल्ट न्यूज़ ने इज़रायल विरोधी ग़लत सूचनाओं को भी खारिज किया. लेकिन जैसा कि पहले बताया गया है, ऐसे उदाहरण बहुत कम हैं. वर्दी में सैनिकों के एक ग्रुप द्वारा एक छोटे बच्चे को जबरदस्ती हिरासत में लेने का एक वीडियो सोशल मीडिया पर काफी ज़्यादा शेयर किया गया था. जब एक दर्शक को विरोध करते देखा गया, तो अधिकारियों ने उसे धक्का दिया और लड़के को दूर कर दिया. RJ सईमा ने ये वीडियो को इस कैप्शन के साथ ट्वीट किया था, “ये विज़ुअल्स मेरे कलेजे को चीड़ने वाला है. ये अकल्पनीय परिमाण की क्रूरता है. गाज़ा में रक्तपात बंद करो.” दरअसल, ये वीडियो आठ साल पुराना है और इसमें 6 साल के अब्दुल्ला लुत्फ़ी यूसुफ़ को फ़िलिस्तीनी शरणार्थी शिविर से इज़रायली सैनिकों ले जा रहे हैं. कई घंटों तक हिरासत में रखने के बाद अब्दुल्ला को रिहा कर दिया गया. इस मामले पर ऑल्ट न्यूज़ की फ़ैक्ट-चेक रिपोर्ट यहां पढ़ें.
#पॉलीवुड कांस्पीरेसी थ्योरी
जैसे-जैसे युद्ध बढ़ता गया, इज़राइल राज्य के अलग-अलग ऑफ़िशियल हैंडल, इज़राइल समर्थक इंफ्लुएंसर और सोशल मीडिया यूज़र्स ने फ़िलिस्तीन में होने वाली मौत के दावों पर सवाल उठाने की कोशिश की. फ़िलीस्तीन और हॉलीवुड का प्रतीक ‘पॉलीवुड’ शब्द का इस्तेमाल हैशटैग के रूप में किया गया. ये शब्द ये सुझाव देने के लिए यूज़ किया गया कि फ़िलीस्तीनी फ़ेक हैं और वो चोट और मौत का नाटक कर रहे हैं.
25 अक्टूबर को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाईडन ने एक बयान में कहा कि गाज़ा पट्टी में मरने वालों के लिए “फ़िलिस्तीनी जिस संख्या का इस्तेमाल कर रहे हैं, उन्हें उस पर कोई भरोसा नहीं है.” बाईडन ने कहा, “वो मुझसे जो कहते हैं वो ये है कि मुझे इस बात का अंदाज़ा नहीं है कि फ़िलिस्तीनी सच बता रहे हैं कि कितने लोग मारे गए हैं. मुझे यकीन है कि निर्दोष लोग मारे गए हैं, और ये युद्ध छेड़ने की कीमत है.”
X पर, इज़रायल समर्थक भारतीय यूज़र्स जिनमें से बड़ी संख्या में फ़ॉलोवर्स वाले राईट विंग इंफ्लुएंसर भी हैं, ने फ़िलिस्तीन के मौत और विनाश के दावों पर सवाल उठाया है और यहां तक कि #Pollywood के साथ या उसके बिना, उनका मज़ाक भी उड़ाया है. एक उदाहरण में कुछ यूज़र्स ने एक नकली अंतिम संस्कार के पुराने फ़ुटेज को ये दावा करने के लिए बढ़ाया कि फ़िलिस्तीनी जो एक शव ले जाने का नाटक कर रहे थे, जब सायरन बजना शुरू हुआ तो वे भाग गए. वीडियो में शव भागते हुए भी दिख रहा है. इस भ्रामक दावे पर ऑल्ट न्यूज़ की फ़ैक्ट-चेक रिपोर्ट यहां पढ़ी जा सकती है.
Watch this video carefully until the end.. Some #Palestinians are seen carrying a small boy’s body while chanting religious praises.. They’ve even granted an interview to Al Jazeera.. alleging that this boy fell victim to #Israeli airstrikes.. However, in the end, as sirens… pic.twitter.com/fLy6a3Kn65
— R S 🇮🇳🇮🇳 (@rs_rajender) October 11, 2023
एक कदम और आगे बढ़ते हुए, कुछ राईटविंग अकाउंट फ़िलिस्तीनियों की मौत के अच्छी तरह से प्रलेखित मामलों को नकारने की हद तक चले गए. उन्होंने इस नैरेटिव को स्थापित करने की कोशिश की कि मौत के असली विज़ुअल्स का मंचन किया गया जिसमें लोग मौत की एक्टिंग कर रहे थे. उदाहरण के लिए, गाज़ा के अल शिफ़ा अस्पताल से एक मृत फ़िलिस्तीनी बच्चे को ले जाते हुए एक वीडियो इस दावे के साथ ऑनलाइन शेयर किया गया था कि ये एक गुड़िया थी. प्रमुख राईटविंग इंफ्लुएंसर, प्रोपगेंडा आउटलेट्स और पत्रकारों सहित भारतीय यूज़र्स ने इस दावे को बढ़ाया. ऐसे ही एक इंफ्लुएंसर ने टिप्पणी की, “#Hamasterrorist का प्रचार बुरी तरह विफल रहा.” ऑल्ट न्यूज़ की फ़ैक्ट-चेक रिपोर्ट आप यहां पढ़ सकते हैं.
इसी तरह के एक उदाहरण में, CNN रिपोर्ट की एक क्लिप ऑनलाइन शेयर की गई जिसमें कफन में लिपटी एक लाश थी. यूज़र्स ने दावा किया कि शव को ‘अपना सिर हिलाते हुए’ देखा गया था. भारतीय राईटविंग इंफ्लुएंसर अरुण पुदुर इसे शेयर करने वालों में से एक थे. वायरल फ़ुटेज शूट करने वाले फ़िलिस्तीनी पत्रकार ने ऑल्ट न्यूज़ के साथ बातचीत करते हुए वायरल दावे को ग़लत बताया. हमारी जांच में भी ये पाया गया कि वायरल आरोप निराधार थे. इस दावे पर हमारी फ़ैक्ट-चेक रिपोर्ट यहां पढ़ी जा सकती है.
फ़िलिस्तीनियों के हताहत होने का नाटक करने के झूठे दावे के एक और उदाहरण में अस्पताल के बिस्तर पर एक फ़िलिस्तीनी व्यक्ति का वीडियो इस दावे के साथ शेयर किया गया कि ये फ़िलिस्तीनी व्लॉगर सालेह अलजफ़रवी था. हालांकि, असल में ये वीडियो जुलाई-अगस्त 2023 में नूर शम्स शरणार्थी शिविर पर इज़रायली हमले में घायल हुए 16 साल के सईद ज़ांडेक का है. न तो ये वीडियो फ़िलहाल चल रहे संघर्ष से संबंधित था और न ही वीडियो में मौजूद व्यक्ति कोई एक्टर था. कहने की जरूरत नहीं है कि कई राईटविंग इंफ्लुएंसर ने भी इस वायरल भ्रामक दावे को सक्रिय रूप से आगे बढ़ाने का काम किया. इस मामले पर ऑल्ट न्यूज़ की रिपोर्ट यहां पढ़ी जा सकती है.
संदिग्ध दावे
कई उदाहरणों में पत्रकारों और अंतरराष्ट्रीय और भारतीय दोनों मीडिया आउटलेट्स ने सोशल मीडिया पर झूठे और अनवेरिफ़ाईड दावों के आधार पर रिपोर्ट्स/अपडेट जारी किए. ऐसी ‘रिपोर्ट्स’ में ‘हमास उग्रवादियों द्वारा 40 बच्चों का सिर काटने’ से लेकर ‘हमास उग्रवादियों द्वारा बच्चे को ओवन में डालने’ के आरोप शामिल थे जिन्हें पर्याप्त सबूत और सत्यापन के बिना शेयर किया गया. इससे संभावित रूप से ग़लत जानकारी के प्रसार में योगदान हुआ. ये देखा जा सकता है कि ऐसे न्यूज़ आइटम अक्सर ग्राफ़िक प्रकृति के होते हैं और उनमें ज़्यादा ध्यान और दर्शकों को आकर्षित करने की प्रवृत्ति होती है. ये अनुमान लगाया जा सकता है कि इन आउटलेट्स के लिए, दर्शकों और सनसनीखेज की प्यास अपने उपभोक्ताओं को सटीक और सही जानकारी देने के दायित्व पर हावी रही.
पत्रकार आदित्य राज कौल (जैसा कि पहले बताया गया) के अलावा, कई और भारतीय यूज़र्स ने इस दावे को बढ़ावा दिया कि दक्षिणी इज़राइल में हमास के आतंकवादियों द्वारा एक गर्भवती महिला का पेट काट दिया गया और उसके बच्चे की हत्या कर दी गई. ट्वीट को हजारों लाइक्स और रीट्वीट मिले हैं.
मिंट, विओन और ज़ी न्यूज़ सहित भारतीय मीडिया संगठनों ने भी इस दावे को आगे बढ़ाया.
इस संदर्भ में दावे को विश्वसनीयता देने की कोशिश में मेक्सिको का एक पुराना वीडियो भी वायरल किया गया था. इस मामले पर ऑल्ट न्यूज़ की फ़ैक्ट-चेक रिपोर्ट यहां पढ़ी जा सकती है.
जंगल की आग की तरह फैलने वाला एक और सनसनीखेज दावा ये था कि हमास ने 7 अक्टूबर को अपने हमले के दौरान 40 बच्चों के सिर काट दिए थे. इज़रायली न्यूज़ आउटलेट ‘i24NEWS’ के एक संवाददाता ने एक वीडियो में कहा कि इज़रायली सैनिकों ने उन्हें बताया था कि उन्हें वो “बच्चे मिले थे जिनके सिर कटे हुए थे.” एक और ट्वीट में संवाददाता ने सैनिकों के हवाले से लिखा कि उनका मानना है कि “40 बच्चे मारे गए हैं.” जानकारी के इन दो हिस्सों के बीच संबंध के कारण “40 बच्चों के सिर काटे जाने” का अनवेरिफ़ाईड नैरेटिव सामने आया. भारत में कई न्यूज़ संगठन और पत्रकारों ने जानकारी को स्वतंत्र रूप से वेरिफ़ाई करने की कोशिश किए बिना इसकी रिपोर्ट की.
11 अक्टूबर को प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मीडिया आउटलेट CNN ने वायरल दावों का बचाव करते हुए बताया कि हमास ने सच में बच्चों के सिर काटे थे जिसकी इज़रायली प्रधान मंत्री कार्यालय के प्रवक्ता ने “पुष्टि” की थी. अगले दिन, CNN रिपोर्टर सारा सिडनर ने भ्रामक रिपोर्ट के लिए माफी जारी की, ये स्वीकार करते हुए कि रिपोर्ट की पुष्टि नहीं की गई थी. बाद की एक रिपोर्ट में CNN ने ये भी बताया कि इज़रायली सरकार ने “उस विशिष्ट दावे की पुष्टि नहीं की है कि हमास के हमलावरों ने 7 अक्टूबर को अपने चौंकाने वाले हमले के दौरान बच्चों के सिर काट दिए थे और ISIS शैली के अत्याचार किए थे.” अधिकारी के हवाले से कहा गया, “हालांकि, हम इसकी पुष्टि नहीं कर सकते कि पीड़ित पुरुष थे या महिला, सैनिक थे या नागरिक, वयस्क थे या बच्चे.”
इज़रायली सेना ने भी इस दावे का खंडन किया और कहा कि इस आरोप की पुष्टि करने वाली कोई जानकारी नहीं है कि हमास ने “बच्चों के सिर काटे.”
#BREAKING Israeli army tells Anadolu that they have no information confirming allegations that ‘Hamas beheaded babies’ pic.twitter.com/fQJA7ui9bE
— Anadolu English (@anadoluagency) October 10, 2023
प्रमुख ग़लत सूचना विक्रेता
हजारों फॉलोवर्स वाले कुछ प्रमुख राईटविंग अकाउंट्स, आसानी से अपने पोस्ट को बड़े पैमाने पर लोकप्रियता दिला सकते हैं और माइक्रोब्लॉगिंग साइट पर ये पोस्ट्स वायरल कर सकते हैं.
X यूज़र रौशन सिन्हा उर्फ @MrSinha_
अपने ट्विटर हैंडल @mrsinha_ से बेहतर जाने जाने वाले रौशन खुद को एक भारतीय राजनीतिक टिप्पणीकार, विदेश नीति के विशेषज्ञ, एक पत्रकार और एक हिंदू अधिकार कार्यकर्ता बताते हैं. पहले भी कई बार ऑल्ट न्यूज़ ने उनके द्वारा की जाने वाले ग़लत दावों की पड़ताल की है. 7 अक्टूबर को हमास के हमले के बाद से रौशन अक्टूबर में ही कम से कम 100 बार इस युद्ध के बारे में ट्वीट कर चुके हैं. और उनके सभी ट्वीट इजराइल समर्थक हैं.
उन्होंने उस अनवेरिफ़ाईड दावे को आगे बढ़ाया कि हमास ने 40 बच्चों का सिर काट दिया था. उन्होंने अपने ट्वीट में कहा, “उन लोगों को शर्म आनी चाहिए जो इन राक्षसों का समर्थन कर रहे हैं.” उन्होंने उस गर्भवती महिला के बारे में भी ट्वीट किया जिसका पेट कथित तौर पर काट दिया गया था और बच्चे को मरने के लिए छोड़ दिया गया था. ये एक और अनवेरिफ़ाईड दावा है जिसकी चर्चा इस स्टोरी में पहले भी की गई है.
8 अक्टूबर को सिन्हा ने हमास द्वारा एक लड़के का सिर काटे जाने की भ्रामक फ़ुटेज शेयर की. ये फ़ुटेज असल में 2016 की थी. इसे सीरिया में फ़िल्माया गया था. हरकत नूर अल-दीन अल-ज़ेंकी के सदस्यों ने अलेप्पो के पास हंडारात में एक बच्चे को पकड़ लिया था और उसे एक पिकअप ट्रक के पीछे मार डाला था. मामले पर ऑल्ट न्यूज़ की फ़ैक्ट-चेक स्टोरी यहां पढ़ी जा सकती है. सिन्हा ने बाद में ये ट्वीट हटा दिया. लेकिन इससे पहले इसे करीब 30 लाख बार देखा गया और 14 हज़ार से ज़्यादा बार रीट्वीट किया गया.
सिन्हा ने पोलीवुड साजिश सिद्धांत को बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उन्होंने ये भ्रामक दावा शेयर किया कि संघर्ष में मारे गए 4 साल के उमर के रूप में एक गुड़िया थी. एक और भ्रामक दावा जो उन्होंने शेयर किया वो ये था कि अस्पताल के बिस्तर पर इंटुबैट में देखा गया एक व्यक्ति फ़िलिस्तीनी इंफ्लुएंसर सालेह अलजाफरावी था. इन दोनों झूठे दावों की चर्चा इस रिपोर्ट में पहले भी की गई है.
रौशन ने लंदन में फ़िलिस्तीन समर्थक विरोध प्रदर्शन में ISIS का झंडा लहराए का एक वीडियो भी शेयर किया. हमारी जांच में ये दावा भी झूठा निकला. पुलिस के मुताबिक, ये झंडा शाहदा झंडा था.
X यूज़र @MeghUpdates
नियमित रूप से इज़राइल-फ़िलिस्तीन संघर्ष से संबंधित भ्रामक दावे शेयर करने वाले एक और भारतीय यूज़र है ‘@MeghUpdates’. यूज़र ने इज़रायल के प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और उनके बेटे की एक तस्वीर शेयर करते हुए दावा किया कि नेतन्याहू अपने बेटे को एक सैनिक के रूप में सेवा करने के लिए भेज रहे हैं. इस ट्वीट को दो घंटे में 35 हज़ार लाइक्स और 6 हज़ार से ज़्यादा रीट्वीट मिले हैं. इस ट्वीट की लाइक्स की संख्या अब 72 हज़ार से ज़्यादा हो गई है. हालांकि ये तस्वीर असल में 1 दिसंबर 2014 की है. नेतन्याहू के सबसे छोटे बेटे ने जब अपनी तीन साल की अनिवार्य सैन्य सेवा शुरू की थी और जब वो जेरूसलम के अम्मुनिशन हिल पहुंचे तो उनके माता-पिता भी उनके साथ थे. ऑल्ट न्यूज़ की फ़ैक्ट-चेक रिपोर्ट आप यहां पढ़ सकते हैं. (आर्काइव)
Israel PM Netanyahu sends his son to serve the country as a soldier, Pic gets viral pic.twitter.com/cGDIaMP04x
— Megh Updates 🚨™ (@MeghUpdates) October 11, 2023
कहने की जरूरत नहीं है, इस यूज़र ने ये साबित करने की कोशिश में पुराने और असंबंधित फ़ुटेज भी शेयर किए हैं कि फ़िलिस्तीनी अपनी चोटों का नाटक कर रहे थे. उन्होंने मिस्र में छात्रों द्वारा 2013 में किए गए प्रदर्शन का फ़ुटेज शेयर किया और इसे मौजूदा युद्ध से जोड़ा. वीडियो में एक ‘लाश’ को अपना हाथ हिलाते हुए देखा जा सकता है. यूज़र ने ये दावा करते हुए शेयर किया कि इसमें हमास के नकली शव दिखते हैं. हालांकि, ये वीडियो मिस्र के अल-अज़हर विश्वविद्यालय का है जहां छात्रों ने 2013 में शवों के रूप में पुलिस और सेना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था. यहां आप ऑल्ट न्यूज़ की फ़ैक्ट-चेक रिपोर्ट पढ़ सकते हैं.
इसी तरह के एक उदाहरण में, यूज़र ने एक वीडियो शेयर किया जिसमें खून से सना हुए चेहरे वाली एक लड़की है और एक आदमी कैमरे के साथ बैकग्राउंड में चल रहा है. उन्होंने ये वीडियो पॉलीवुड लेबल के साथ शेयर किया. दरअसल, ये फ़ुटेज गाज़ा पर एक लेबनानी फ़िल्म के पर्दे के पीछे का शॉट है. इस मामले पर ऑल्ट न्यूज़ की फ़ैक्ट-चेक रिपोर्ट आप पढ़ सकते हैं.
मीडिया की ग़लत खबरें और पत्रकारों के झूठे दावे
पत्रकारों, मीडिया घरानों और प्रोपगेंडा आउटलेट्स ने भी नियमित तौर पर फ़िलिस्तीन को निशाना बनाते हुए झूठे और अनवेरिफ़ाईड दावे शेयर किए.
राईटविंग प्रोपेगैंडा आउटलेट सुदर्शन न्यूज़ के प्रधान संपादक सुरेश चव्हाणके ने भी हाल में चल रहे संघर्ष से संबंधित भ्रामक जानकारी शेयर की. पहले भी कई बार इनके द्वारा किए गए दावों पर ऑल्ट न्यूज़ ने जांच की है. ऐसे ही एक उदाहरण में, सुरेश चव्हाणके ने संयुक्त राष्ट्र में इज़राइल के राजदूत गिलाद एर्दान का 2021 का एक वीडियो ग़लत तरीके से शेयर किया. इसमें उन्होंने हाल ही में इज़राइल द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन का डॉक्यूमेंटेशन करने वाली 20 पेज की संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट फाड़ दी थी, और एर्दन के इस कदम की सराहना की थी. उन्होंने अपने ट्वीट में कहा, ‘मर्दों वाली बात’. एक और उदाहरण में, उन्होंने इज़राइल-लेबनान सीमा पर बाड़ तोड़ रहे प्रदर्शनकारियों का एक पुराना वीडियो शेयर करते हुए दावा किया कि युद्ध के बीच आतंकवादी इज़राइल में घुस रहे थे.
फ़ैक्ट-चेक किए जाने और अपने ट्वीट के साथ कम्युनिटी नोट्स अटैच होने के बावजूद भी सुरेश चव्हाणके ने भ्रामक ट्वीट नहीं हटाया है.
फ़िलिस्तीन विरोधी प्रचार प्रसार में पत्रकार आदित्य राज कौल की भी अहम भूमिका रही है. इज़राइल रक्षा बल द्वारा ये दावा किए जाने के बाद कि हमास की आतंकवादी गतिविधियों का मुख्यालय गाज़ा में शिफा अस्पताल के नीचे सुरंगों में स्थित था, आदित्य कौल ने गाज़ा में विस्तृत सुरंग नेटवर्क पर 2021 रूस टुडे अरबी रिपोर्ट को ट्वीट किया, और इसे मौजूदा संकट से जोड़ा. सुरेश चव्हाणके की तरह, आदित्य कौल ने भी फ़ैक्ट चेक होने के बावजूद अपना ट्वीट नहीं हटाया. इस दावे पर पब्लिश्ड हमारीफ़ैक्ट चेक रिपोर्ट यहां पढ़ी जा सकती है.
आदित्य कौल ने 2021 का एक वीडियो भी ट्वीट किया जिसमें एक पाकिस्तानी राजनेता ने इज़राइल पर बमबारी करने की धमकी दी थी. उन्होंने इसे इस भ्रामक दावे के साथ शेयर किया कि ये इज़राइल और फ़िलिस्तीन के बीच संघर्ष से संबंधित था. वीडियो में प्रांतीय असेंबली की पाकिस्तानी सदस्य सरवत फातिमा, पाकिस्तान की परमाणु क्षमताओं पर चर्चा कर रही हैं. आदित्य कौल के झूठे दावे पर बूमलाइव ने फ़ैक्ट-चेक किया है.
इस पर आपत्ति जाताए जाने के बाद, आदित्य कौल ने एक अजीबोगरीब बचाव करते हुए कहा कि वीडियो पुराना था लेकिन ‘आत्मविश्वास वही है.’ उन्होंने कहा, “पाकिस्तानी राजनेता उतने ही मूर्ख और कट्टरपंथी हैं.”
Pakistani Parliamentarian threatens Israel with Nuclear Weapons. 😂😂😂
“Our Atom Bomb is to defend Muslims. We call on our Prime Minister to convey to Israel to end war in Gaza against Palestine or else we will erase Israel from the face of this earth”. pic.twitter.com/bMN8opLzsW
— Aditya Raj Kaul (@AdityaRajKaul) October 17, 2023
ट्विटर पर 500000 से ज़्यादा फ़ॉलोवर्स और ग़लत सूचना फैलाने का लगातार ट्रैक रिकॉर्ड रखने वाले एक और ‘पत्रकार’, अभिजीत मजूमदार का इज़रायल समर्थक प्रचार में महत्वपूर्ण हाथ रहा है. 26 अक्टूबर को उन्होंने भ्रामक हैशटैग #Pallywood के साथ एक फ़िल्म प्रोजेक्ट के लिए एक्टर्स पर काम कर रहे एक फ़िलिस्तीनी मेकअप कलाकार का 6 साल पुराना वीडियो शेयर किया. फ़ैक्ट-चेक किए जाने के बावजूद मजूमदार ने अपना ट्वीट नहीं हटाया है.
अभिजीत मजूमदार ने राईटविंग यूज़र मेघअपडेट्स के भ्रामक ट्वीट को भी बढ़ावा दिया जिसमें उन्होंने गाज़ा पर एक लेबनानी फ़िल्म के पर्दे के पीछे के शॉट का इस्तेमाल करते हुए दावा किया कि ये फ़िलिस्तीनियों द्वारा अपनी चोटों को दिखाने का एक और उदाहरण है. ये ट्वीट अभी भी मजूमदार की प्रोफ़ाइल पर लाइव है.
कई मेनस्ट्रीम मीडिया आउटलेट्स ने भी भ्रामक दावों को बढ़ावा दिया और मौजूदा संकट पर रिपोर्ट करने के लिए पुराने, असंबंधित फ़ुटेज का इस्तेमाल किया है. ऐसे ही एक उदाहरण में प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया (PTI), डेक्कन हेराल्ड, मनीकंट्रोल.कॉम, इकोनॉमिक टाइम्स, द टेलीग्राफ़, द टाइम्स ऑफ़ इंडिया और द वीक ने ये झूठा दावा किया कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाईडन ने भारत-मध्य की घोषणा का हवाला दिया था. व्हाइट हाउस में एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए ईस्ट इकोनॉमिक कॉरिडोर को हमास द्वारा इज़राइल पर हमला करने का संभावित कारण बताया गया. इस दावे का व्हाइट हाउस ने भी खंडन किया था. इस मामले पर हमारा फ़ैक्ट-चेक आप यहां पढ़ सकते हैं.
इज़राइल-लेबनान सीमा पर बाड़ लांघने वाले प्रदर्शनकारियों के पुराने वीडियो की पहले ही चर्चा हो चुकी है जिसे एबीपी न्यूज़ ने इज़राइल-फ़िलिस्तीन युद्ध के संदर्भ से जोड़कर शेयर किया था. हालांकि फिलहाल ये रिपोर्ट डिलीट कर दी गई है.
टाइम्स नाउ ने एक रिपोर्ट पेश की थी जिसमें दावा किया गया था कि ईरानी संसद सदस्यों ने संसद के अंदर ‘डेथ टू इज़राइल’ और ‘डेथ टू अमेरिका’ के नारे लगाए थे. दरअसल ये वीडियो 2020 का है जिसमें ईरान की संसद में अमेरिका विरोधी नारे लगाए गए थे. (आर्काइव लिंक 1, लिंक 2)
सुदर्शन न्यूज़ और RSS द्वारा संचालित पत्रिका ऑर्गनाइज़र वीकली जैसे प्रोपेगेंडा आउटलेट्स ने भी पिछले महीने में इज़राइल-फ़िलिस्तीन युद्ध के बारे में कई दावे किए जिन पर ऑल्ट न्यूज़ ने फ़ैक्ट-चेक किया है. सुदर्शन न्यूज़ ने एक वीडियो ट्वीट किया जिसमें कथित तौर पर हमास के आतंकवादियों द्वारा पांच बच्चों को पिंजरे में कैद किया गया है. दरअसल, ये वीडियो यूट्यूब पर जनवरी 2020 में अपलोड किया गया था. इसके अलावा, वायरल वीडियो में कैमरापर्सन बैकग्राउंड में हंस रहा है. हमने पाया कि एक पिता ने अपने बच्चों को चिकन पिंजरों के अंदर खेलते हुए पाया और उन्होंने एक मजेदार वीडियो लेने के लिए इसे कैमरे में कैद कर लिया. बहरहाल फ़ैक्ट-चेक के बावजूद सुदर्शन न्यूज़ ने अपना ट्वीट नहीं हटाया है.
ऑर्गेनाइज़र वीकली ने गाज़ा में सुरंग नेटवर्क पर 2021 रशिया टुडे अरबी रिपोर्ट को भी हाल में जारी युद्ध से जोड़ा. उन्होंने 2022 का एक वीडियो भी ट्वीट किया जिसमें दावा किया गया कि स्वीडन में हमास समर्थकों ने इस युद्ध के बीच हिंसा का सहारा लिया. इस मामले पर हमारी फ़ैक्ट-चेक स्टोरी आप यहां पर सकते हैं.
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