डॉ. रमेश गुप्ता की लिखी एक ज़ूलॉजी (जंतु विज्ञान) बुक के एक पन्ने की तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है. कई यूजर्स ने तस्वीर शेयर करते हुए दावा किया कि इस किताब में COVID-19 के इलाज के बारे में लिखा है.

ट्विटर पर सुनीता प्रधान ने लिखा, ‘#WHO आपको डॉ. रमेश गुप्ता की 12वीं किताब के बारे में कोई जानकारी नहीं है, जिसमें उन्होंने कोरोना वायरस के बारे में लिखा है कि ये कोई नई बीमारी नहीं है. और उसमें उन्होंने इसके इलाज के बारे में भी लिखा है… और कौन कन्फ्यूज्ड है यहां #JantaCurfewMarch22 #pmoindia #NarendraModi #coronavirus,”

ये दावा और भी कई जगह शेयर किया गया है. “भाइयों काफी किताबों में ढूंढने के बाद बड़ी मुश्किल से कोरोना वायरस की दवा मिली है…दवा इंटरमीडिएट की जन्तु विज्ञान की किताब में दी गई है…और यह कोई नई बीमारी नहीं है…”

इस किताब के ‘कॉमन कोल्ड’ सेक्शन में कोरोना वायरस के बारे में लिखा गया है. इसके अनुसार, कॉमन कोल्ड कई तरह के होते हैं, जिसमें से 75 फीसदी राइनो वायरस या कोरोना वायरस की वजह से होते हैं. अंत में, एक्सर्प्ट में उन दवाइयों के बारे में लिखा है जिन्हें इसके संक्रमण के इलाज में इस्तेमाल में लाया जा सकता है – एस्पिरिन, एंटीहिस्टामाइंस और नेजल स्प्रे.

दावा:

1. नोवेल कोरोना वायरस (nCoV) या कोविड-19 कोई नई बीमारी नहीं है.

2. इसका इलाज बहुत पहले ढूंढा जा चुका है.

3. कोरोना वायरस को एस्पिरिन, एंटीहिस्टामाइंस और नेजल स्प्रे से ठीक किया जा सकता है.

नतीजा:

झूठ.

फ़ैक्ट-चेक:

सोशल मीडिया पर किए जा रहे तीनों दावे पूरी तरह से ग़लत हैं.

1. नोवेल कोरोना वायरस (nCoV) एक नए किस्म का कोरोना वायरस है.

नोवेल कोरोना वायरस, कोरोना वायरस फ़ैमिली का नया सदस्य है. इसकी विशेषताएं अद्वितीय हैं और इसे पहले कभी नहीं देखा गया.

चीन के स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि nCoV संभवत: वुहान के सीफ़ूड मार्केट से आया. उस मार्केट में जंगली जानवरों का अवैध व्यापार हो रहा था. चीनी शोधकर्ताओं ने संभावना जताई है कि ये वायरस “किसी संक्रमित जानवर से अवैध पेंगुलिन्स में आया और फिर इंसानों में’’ फैला. एशियाई बाज़ारों में भोजन और दवा के तौर पर पेंगुलिन्स की भारी मांग रहती है. इस रिपोर्ट में ये भी लिखा है, “वैज्ञानिकों ने संभावना जताई है कि चमगादड़ या सांप इस वायरस के स्रोत हो सकते हैं.”

नोवेल कोरोना वायरस, कोरोना वायरस का एक नया प्रकार है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़, “कोरोना वायरस (CoV) वायरसों के बड़े समूह होते हैं, जिनकी वजह से सामान्य बुखार से लेकर MERS-CoV और SARS-CoV जैसी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं.” इंसानों में नोवेल कोरोना वायरस (nCoV) और इसका प्रकोप पहले कभी नहीं देखा गया. लक्षणों में बुखार, थकावट औऱ सूखी खांसी मुख्य हैं. गंभीर मामलों में, सांस लेने में दिक्कत, टूटन और दर्द, गले में खटास या रेयर मामलों में, डायरिया, उल्टी या नाक बहने की समस्या दिखती है.

सेंटर्स फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रीवेन्शन (CDC) के अनुसार, मानवी कोरोना वायरस की पहचान पहली बार 1960 के दशक के मध्य में हुई थी. “कई बार जानवरों को संक्रमित करने वाले कोरोना वायरस विकसित होकर इंसानों को कमज़ोर बना देते हैं और नए इंसानी कोरोना वायरस बन जाते हैं. इसके तीन हालिया उदाहरण हैं nCoV, SARS-CoV, and MERS-CoV.”

SARS-CoV असल में सीवियर एक्यूट रिस्पायरेट्री सिंड्रोम है जिसकी पहचान 2003 में हुई थी. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, ये जानवरों में पाया जाने वाला वायरस है. ये “शायद चमगादड़ से दूसरे जानवरों में फैला (बिल्लियों के बच्चों) और 2002 में पहली बार दक्षिणी चीन के गुआंगदोंग प्रांत में इसकी वजह से इंसानों को संक्रमण हुआ.”

मिडिल ईस्ट रिस्पायरेट्री सिंड्रोम (MERS-CoV) कोरोना वायरस से होने वाली एक सांस संबंधी बीमारी है. पहली बार इसकी पहचान 2012 में सऊदी अरब में हुई थी.

इससे पहले भी कोरोना वायरस की अलग-अलग किस्में पहले भी पहचानी जा चुकी हैं, इसलिए नोवेल कोरोना वायरस (nCoV या SARS-CoV-2) नया है.

2. अभी तक नोवेल कोरोना वायरस का कोई इलाज नहीं मिला है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, “कोविड-19 से बचाव या इसके उपचार के लिए कोई वैक्सीन या स्पेसिफिक एंटीवायरल दवा नहीं है.” असलियत में, SARS-CoV और MERS-CoV के लिए भी कोई वैक्सीन नहीं बनाई जा सकी है.

आमतौर पर एक नई वैक्सीन तैयार करने में 10 से 15 साल का समय लगता है. हालांकि, तकनीकी विकास की वजह से वैक्सीन बनाने की रफ्तार तेज हुई है. हाल ही में, अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने क्लोरोक़्विन और हाइड्रोक्सीक्लोरोक़्विन को कोरोना वायरस का संभावित इलाज बताया था, जिसके बाद यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) ने क्लोरोक़्विन के क्लीनिकल ट्रायल को मान्यता दे दी थी. हालांकि, एरिज़ोना में एक व्यक्ति ने क्लोरोक़्विन से अपना इलाज करने की कोशिश की, जिसकी वजह से उसकी मौत हो गई. उसकी पत्नी की हालत गंभीर बनी हुई है.

फोर्ब्स ट्रैकर के मुताबिक़, कई दवा कंपनियां, विश्वविद्यालय और बायोटेक स्टार्ट-अप कंपनियां इस बीमारी का इलाज और बचाव का रास्ता खोजने के लिए लगातार रिसर्च कर रही हैं. सभी उपाय अभी विकास के पहले चरण में हैं या उनका जानवरों और इंसानों पर ट्रायल चल रहा है.

3. कोरोना वायरस को एस्पिरिन, एंटीहिस्टामाइन्स और नेजल स्प्रे से ठीक नहीं किया जा सकता.

जब किसी भी कोरोना वायरस (या फिर राइनो वायरस) से कॉमन कोल्ड होता है, डॉक्टर्स का लक्ष्य होता है, (1) एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संक्रमण को रोकना और (2) लक्षणों के आधार पर उपचार. इसकी वजह ये है कि कॉमन कोल्ड खुद तक सीमित रहने वाली बीमारी है. ये खुद से ही ठीक होता है. इसी वजह से, कॉमन कोल्ड में एंटी वायरल या एंटीबायोटिक्स नहीं दिया जाता है. सामान्य परिस्थिति में, कॉमन कोल्ड की वजह ढूंढने की ज़रूरत भी नहीं होती क्योंकि इससे इसके इलाज पर कोई असर नहीं पड़ता. कॉमन कोल्ड के लक्षणात्मक उपचार के लिए NSAIDs (एस्पिरिन इनमें से एक है), एंटीहिस्टामाइन्स, एंटीकोलिनर्जिक दवाएं और डिकंजेस्टेंट्स जैसी एंटी-इनफ़्लेमेट्री दवाएं सबसे कारगर होती हैं. इन दवाओं को डॉक्टर्स की सलाह के बिना भी मेडिकल स्टोर से खरीदा जा सकता है.

हालांकि, जब SARS, MERS और नोवेल कोरोना वायरस (कोविड-19) जैसे कोरोना वायरसों की वजह से निमोनिया, एक्यूट रिस्पायरेट्री डिस्ट्रेस सिंड्रोम, सेप्टिक शॉक जैसी गंभीर बीमारी होती है, उस हालत में आपातकालीन केयर और सही दवाईयों से उपचार किया जाता है.

इसलिए, कॉमन कोल्ड के इलाज को सभी तरह के कोरोना वायरस संक्रमण के इलाज के तौर पर पेश करना काफ़ी ग़लत होगा.

टेक्स्टबुक में भी ग़लत और अनुचित उपचार के बारे में लिखा गया है. “नेजल स्प्रे” सिर्फ़ नाक के रास्ते दिए जाने वाली दवा को कहा जाता है. ऐसी बहुत सारी दवाइयां हैं जो नाक के रास्ते दी जाती हैं. कॉमन कोल्ड के लिए इस्तेमाल होने वाली डीकंजेस्टेंट्स उनमें से सिर्फ़ एक हैं.

निष्कर्ष

जंतु विज्ञान की एक पाठ्यपुस्तक में कॉमन कोल्ड के बारे में बताई गई बुनियादी बातों को अलग तरह से लिया गया. दुनिया में सिर्फ़ एक तरह का कोरोना वायरस है और उससे सिर्फ़ कॉमन कोल्ड होता है, इस ग़लत धारणा के आधार पर दावे किए गए. असलियत में, कोरोना वायरस कई तरह के होते हैं जो अलग-अलग तरह के जानवरों को संक्रमित करते हैं. 1960 के दशक के मध्य से अभी तक, सात कोरोना वायरसों का संक्रमण इंसानों में हुआ है. SARS, MERS और नोवेल कोविड-19 इन्हीं में से हैं. ये वायरस कॉमन कोल्ड से लेकर एक्यूट रिस्पायरेट्री डिस्ट्रेस सिंड्रोम जैसी बीमारियां दे सकते हैं. इसलिए कोरोना वायरस के उपचार की उपलब्धता को लेकर वायरल हो रहे ट्वीट लोगों को गुमराह कर रहे हैं. इससे इस तरह की कॉन्सपिरेसी थ्योरी को भी हवा मिलती है कि हालिया कोरोना वायरस महामारी नई नहीं है.

भारत में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या 600 के पार जा पहुंची है. इसकी वजह से सरकार ने बुनियादी ज़रुरतों से जुड़ी चीज़ों को छोड़कर बाकी सभी चीज़ों पर पाबंदी लगा दी है. दुनिया भर में 4 लाख से ज़्यादा कन्फ़र्म केसेज़ सामने आये हैं और 22 हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. लोगों में डर का माहौल बना हुआ है और इसी वजह से वो बिना जांच-पड़ताल किये किसी भी ख़बर पर विश्वास कर रहे हैं. लोग ग़लत जानकारियों का शिकार बन रहे हैं जो कि उनके लिए घातक भी साबित हो सकता है. ऐसे कई वीडियो या तस्वीरें वायरल हो रही हैं जो कि घरेलू नुस्खों और बेबुनियाद जानकारियों को बढ़ावा दे रही हैं. आपके इरादे ठीक हो सकते हैं लेकिन ऐसी भयावह स्थिति में यूं ग़लत जानकारियां जानलेवा हो सकती हैं. हम पाठकों से ये अपील करते हैं कि वो बिना जांचे-परखे और वेरीफ़ाई किये किसी भी मेसेज पर विश्वास न करें और उन्हें किसी भी जगह फ़ॉरवर्ड भी न करें.

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