“ममता दीदी, ‘मां माटी मानुष’ के नारे पर सवार होकर सत्ता में आई थीं, लेकिन वो नारा गायब हो गया है. बंगाल में ‘मुल्ला, मदरसा, माफिया’ का नारा अपनी जगह बना चुका है.”
पश्चिम बंगाल के हुगली ज़िले के सेरामपुर में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के हालिया भाषण में सांप्रदायिक बयानबाज़ी क, जो अब लगभग हर चुनावी भाषण में भाजपा नेताओं के लिए एक आम बात हो गई है. मुसलमानों को लगातार ;घुसपैठिए’ और ‘मुल्ला’ कहकर संबोधित करने वाले अमित शाह ने तृणमूल कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाया. भाषण के दौरान उन्होंने दो विशिष्ट दावे किये:
- 18 मिनट 21 सेकेंड पर अमित शाह ने कहा, “…(ममता बनर्जी) रमज़ान में मुस्लिम कर्मचारियों को छुट्टी दी थीं. ममता दीदी हमें इससे कोई तकलीफ नहीं है, दो छुट्टी आप. मगर हमारे दुर्गा पूजन में क्यों नहीं देती हो इसका जवाब तो हम चाहते हैं आपसे. ऐसा भेदभाव क्यों है?”
- 17 मिनट 46 सेकेंड पर: “इमाम को और मुल्लाओं को बंगाल के लॉकर से तनख्वाह देनी चाहिए क्या? अरे ज़ोर से बोलो, देनी चाहिए क्या? हाई कोर्ट ने न बोल दिया, इसलिए ममता बनर्जी वक्फ़ बोर्ड से मिलने का काम किया.”
क्या पश्चिम बंगाल सरकार दुर्गा पूजा पर छुट्टियां नहीं देती हैं?
पश्चिम बंगाल सरकार की 2024 की सार्वजनिक छुट्टियों को दो सूचियों में बांटा गया है. ऑल्ट न्यूज़ ने वित्त विभाग की ऑफ़िशियल वेबसाइट पर मौजूद डॉक्यूमेंट को देखा. लिस्ट-I (N.I.एक्ट के तहत 2024 में पब्लिक हॉलिडे) के मुताबिक, 2 अक्टूबर को महालया, 10 अक्टूबर को महा सप्तमी, 11 अक्टूबर को महा अष्टमी और महा नवमी और 12 अक्टूबर को दशमी की छुट्टियां दर्ज हैं.
इसके अलावा, रजिस्ट्रार ऑफ़ एश्योरेंस, कोलकाता और कलेक्टर ऑफ़ स्टांप रेवेन्यू, कोलकाता के कार्यालयों को छोड़कर, पश्चिम बंगाल सरकार के अधीन कार्यालय भी लिस्ट II में बताए गए दिनों में बंद रहेंगे जो सार्वजनिक छुट्टियों के तहत सूचीबद्ध नहीं हैं. लिस्ट II में 7 अक्टूबर को महा चतुर्थी, 8 अक्टूबर को महा पंचमी, 9 अक्टूबर को महा षष्ठी और 14 और 15 अक्टूबर को अतिरिक्त छुट्टियां हैं.
2023 में भी बंगाल सरकार ने दुर्गा पूजा के कारण कई छुट्टियां दीं और ऐसा 2022 में भी किया गया था.
इसलिए, अमित शाह का ये दावा सरासर झूठ है कि बंगाल सरकार दुर्गा पूजा पर छुट्टियां नहीं देती है.
क्या केवल इमामों को ‘बंगाल के लॉकरों’ से वेतन मिलता है?
2012 में ममता बनर्जी सरकार ने इमामों और मुअज्जिनों के लिए सम्मान राशि की घोषणा की. उस वक्त, इस फैसले को कलकत्ता उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया था. तब से मासिक भत्ते वक्फ़ बोर्ड के माध्यम से भेजे जाते हैं.
सितंबर 2020 में फिर से, ममता बनर्जी ने राज्य में लगभग 8,000 हिंदू पुजारियों को प्रति माह ₹1,000 का मानदेय देने की घोषणा की. उन्होंने कथित तौर पर कहा था कि वक्फ़ बोर्ड इमामों और मुअज्जिनों को वजीफा प्रदान करता है, लेकिन हिंदू पुजारियों के लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं है. उन्होंने मुख्य सचिव से उस वर्ष दुर्गा पूजा से पहले मानदेय शुरू करने का आग्रह किया. ममता बनर्जी ने कहा था कि उनकी सरकार ईसाई पुजारियों सहित सभी धर्मों के प्रतिनिधियों की मदद करने को तैयार है.
घोषणा के बाद, विपक्षी दलों ने इस कदम की आलोचना की और ममता बनर्जी पर धर्म को राजनीति के साथ मिलाने का आरोप लगाया.
अगस्त 2023 में ममता बनर्जी द्वारा मुस्लिम मौलवियों और हिंदू पुजारियों के मासिक भत्ते में 500 रुपये की बढ़ोतरी की भी घोषणा की गई. इससे पहले 2012 से इमामों को 2,500 रुपये का मासिक भत्ता मिलता था और मुअज़्ज़िन को 1,000 रुपये का वजीफा मिलता था. बढ़ोतरी के बाद, इमामों को अब 3000 और मुसेज़िन और हिंदू पुजारियों को 1500 रुपये मिलते हैं.
आलग-अलग वेतन की विपक्षी नेताओं ने भी आलोचना की है. बीजेपी सांसद दिलीप घोष ने जनवरी 2021 में पूछा था, “सिर्फ 8,000 पुरोहित ही क्यों… इस राज्य में 80,000 से भी ज़्यादा हैं. वे जिन पुरोहितों को ये पैसा दे रहे हैं उनकी सूची कहां है? उन्होंने नाम कैसे तय किये? क्या कोई आयु या आय मानदंड था? राज्य सरकार सिर्फ कुछ चुनिंदा लोगों को ये दिखाने के लिए रिश्वत दे रही है कि वे संतुलित हैं, लेकिन ये सच नहीं है.” सुवेंदु अधिकारी ने भी कोलकाता में एक सार्वजनिक सभा के दौरान इस असमानता पर सवाल उठाया था.
इसलिए, ये कहना सही नहीं है कि केवल ‘इमाम और मुल्लाओं’ को ही वेतन मिलता है. हिंदू पुजारियों को भी मुआवज़ा मिलता है. हालांकि, उन्हें मिलने वाली सैलरी में काफी अंतर है. इमामों और मुअज्जिनों के लिए वजीफे की घोषणा के आठ साल बाद हिंदू पुजारियों के लिए वेतन की भी घोषणा की गई.
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