कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए जारी किये गए लॉकडाउन के बीच दिहाड़ी मज़दूरों की हालत काफ़ी खस्ता है. शहरों में काम करने के लिए आए इन मज़दूरों की कमाई तो बंद हो ही चुकी है. इसी बीच मकान के किराये और अन्य ज़रूरतों के लिये उनके पास अब पैसे नहीं हैं. इन दिक्कतों के चलते इन मज़दूरों को घर की याद सता रही है. कई मज़दूरों ने लॉकडाउन की घोषणा के बाद अपने गांव लौटने के लिए सैकड़ों किलोमीटर का रास्ता पैदल ही तय करना शुरू कर दिया था. लॉकडाउन के दूसरे चरण यानी कि 3 मई तक बढ़ाये जाने की घोषणा होते ही मुंबई के बांद्रा रेलवे स्टेशन पर मज़दूरों की भीड़ इकट्ठा होनी शुरू हो गई. इसे रोकने के लिए मुंबई पुलिस ने इन मज़दूरों पर लाठीचार्ज किया. ऐसी ही स्थिति सूरत में भी दिखाई दी थी जहां पर इकट्ठा हुई भीड़ को पुलिस ने समझा-बुझाकर शांत कर दिया था. मज़दूरों की हालत को देखते हुए राज्य सरकारों ने उन्हें खाना पहुंचाने की ज़िम्मेदारी लेने का ऐलान किया.
मज़दूरों की हालत के बारे में मीडिया से ज़्यादा चर्चा सोशल मीडिया पर हो रही है. इसी दौरान सोशल मीडिया में एक तस्वीर शेयर हुई जिसमें कई लोगों को किसी इमारत की लॉबी में सोते हुए देखा जा सकता है. दावा किया गया कि ये तस्वीर गुजरात की है और लॉकडाउन के चलते मज़दूरों की खराब स्थिति दिखा रही है. ‘मीडिया आलोचक’ नाम के एक ट्विटर हैन्डल ने ये तस्वीर शेयर करते हुए लिखा -“गुजरात मे इन #मजदूरो के बारे मे #दलाल_मीडिया का क्या ख्याल है।इनके पास ना तो खाने के लिए राशन है ना ही राशन खरीदने के लिए पैसे है ना ही रहने के लिए रूम है।यह लोग जाये तो जाये कहाँ #मीडिया को असली तस्वीर छुपाने के लिए #जमाती और #मस्जिद वाला मुद्दा चाहिये ताकि नफरत का माहौल गरम रहे.” आर्टिकल लिखे जाने तक इस ट्वीट को 850 बार लाइक और 500 के करीब रीट्वीट किया गया है. (ट्वीट का आर्काइव लिंक)
इस तस्वीर को ग्राफ़िक के तौर पर एक अंग्रेज़ी टेक्स्ट के साथ पोस्ट किया गया है. तस्वीर के टेक्स्ट में बताया गया है कि ये तबलीग़ी जमात के लोग नहीं बल्कि हिन्दू हैं इसीलिए मीडिया इन्हें नहीं दिखा रही.
फ़ैक्ट-चेक
तस्वीर को रिवर्स इमेज सर्च करने से ‘डेली फुल्की’ नामक एक बांग्ला वेबसाइट का 25 दिसम्बर 2019 का आर्टिकल मिला. इस आर्टिकल में बताया गया है कि ये तस्वीर मलयेशिया में फंसे बांग्लादेशी प्रवासियों की है. मलयेशिया सरकार ने देश में गैरक़ानूनी तरीक़े से रह रहे बांग्लादेशी प्रावासियों को अपने देश लौटने का एक अवसर दिया था जिसमें उन्हें सिर्फ़ कुछ ज़ुर्माने की रक़म भरने के बाद अपने देश जाने का मौका मिल रहा था. एक और वेबसाइट ‘probashirdiganta.com’ के 26 दिसम्बर के आर्टिकल के मुताबिक, मलयेशिया सरकार ने प्रवासी मज़दूरों को अपने देश लौटने के लिए अगस्त 2019 से ये पहल शुरू की थी. रिपोर्ट के मुताबिक, ऐन मौके पर प्रवासियों की भीड़ बढ़ने के कारण सरकार ने अचानक से इसे होल्ड पर रख दिया.
इस तरह ये बात साफ़ हो जाती है कि लॉबी में सोते हुए मज़दूरों की तस्वीर जिसे सोशल मीडिया में भारत की बताकर शेयर हो रही है, हकीकत में वो मलयेशिया की पुरानी तस्वीर है.
वायरल है तस्वीर
ये तस्वीर इसी मेसेज के साथ ट्विटर पर वायरल है. फ़ेसबुक पर आसिफ़ अली खान नाम के एक यूज़र ने ये तस्वीर पोस्ट की है.
फ़ेसबुक यूज़र सुरेश प्रभु ने इस ग्राफ़िक शेयर करते हुए लिखा, “Our Media is busy in taking dictation from Modi! Shoooo now don’t disturb.” इस पोस्ट को आर्टिकल लिखे जाने तक करीब 3,500 बार शेयर किया जा चुका है.
Our Media is busy in taking dictation from Modi! Shoooo now don’t disturb.
Posted by Suresh Prabhu on Friday, 10 April 2020
तस्वीर को ग्राफ़िक के तौर पर ट्विटर और फ़ेसबुक दोनों में शेयर किया गया है.
नोट : भारत में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या 13 हज़ार के पार जा पहुंची है. इसकी वजह से सरकार ने बुनियादी ज़रुरतों से जुड़ी चीज़ों को छोड़कर बाकी सभी चीज़ों पर पाबंदी लगा दी है. दुनिया भर में 20 लाख से ज़्यादा कन्फ़र्म केस सामने आये हैं और 1 लाख 37 हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. लोगों में डर का माहौल बना हुआ है और इसी वजह से वो बिना जांच-पड़ताल किये किसी भी ख़बर पर विश्वास कर रहे हैं. लोग ग़लत जानकारियों का शिकार बन रहे हैं जो कि उनके लिए घातक भी साबित हो सकता है. ऐसे कई वीडियो या तस्वीरें वायरल हो रही हैं जो कि घरेलू नुस्खों और बेबुनियाद जानकारियों को बढ़ावा दे रही हैं. आपके इरादे ठीक हो सकते हैं लेकिन ऐसी भयावह स्थिति में यूं ग़लत जानकारियां जानलेवा हो सकती हैं. हम पाठकों से ये अपील करते हैं कि वो बिना जांचे-परखे और वेरीफ़ाई किये किसी भी मेसेज पर विश्वास न करें और उन्हें किसी भी जगह फ़ॉरवर्ड भी न करें.
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