जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा देश की राजधानी में किये जा रहे विरोध प्रदर्शन से संबंधित गलत सूचनाएं सोशल मीडिया में काफी व्यापक रूप से फैलाई जा रही है। ऐसे ही एक अन्य उदाहरण में, सोशल मीडिया पर एक तस्वीर प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर निशाना साधने के लिए प्रसारित की गई है। दावा किया गया है कि ये 45 वर्षीय छात्र, कांग्रेस के नेता अब्दुल रज़ा है, जो अभी भी विश्वविद्यालय के छात्र है।

तस्वीर के साथ किये गए दावे के अनुसार, “ये JNU का छात्र निकला 45 वर्ष का जानते हैं कौन है अब्दुल रजा कांग्रेस का मण्डल अध्यक्ष कुछ समझे”

सोशल मीडिया उपयोगकर्ता इस तस्वीर को #ShutDownJNU के साथ ट्वीट कर रहे है। कुछ उपयोगकर्ता इसे रीट्वीट भी कर रहे है। यह तस्वीर फेसबुक पर भी प्रसारित है।

तथ्य जांच: 45 वर्षीय छात्र अब्दुल रज़ा नहीं

प्रसारित किया गया दावा गलत है। तस्वीर में दिख रहा व्यक्ति 45 वर्षीय कोंग्रेसी नेता अब्दुल रज़ा नहीं है। उनका नाम शुभम बोकडे है। शुभम 23 साल के हैं और जेएनयू में भाषा विज्ञान में एमए कर रहे है। ऑल्ट न्यूज़ से हुई बातचीत के दौरान बोकडे ने बताया कि, “मेरा नाम शुभम बोकडे है। में जेएनयू का छात्र हूँ और भाषा विज्ञान में मास्टर कर रहा हूँ। मेरी उम्र 23 साल है। मैंने स्नातक की पढाई नागपुर विश्वविद्यालय से की है। मैं शिक्षा के प्रति अपनी लगन की वजह से इस विश्विद्यालय में पढ़ने के लिए आया था। क्योंकि जेएनयू देश का सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय है। फीस में हुई बढ़ोतरी के कारण विश्वविद्यालय के अन्य छात्रों के विरोध प्रदर्शन ने मुझे भी प्रभावित किया है। इसलिए, मैंने प्रदर्शन में हिस्सा लिया क्योंकि मेरा मानना है कि प्राप्य और सस्ती शिक्षा सभी को मिलनी चाहिए। विश्वविद्यालय को निशाना बनाने के लिए और सिर्फ उम्र से पहले हुए मेरे गंजेपन के कारण आप मुझपर निशाना साध रहे हैं, यह काफी निंदनीय है। मैंने काफी प्रताड़ना झेली है अपने गंजेपन के कारण और मैंने सोचा कि जेएनयू में आने के बाद मेरी स्थिति में कुछ सुधार आएगा, लेकिन हालिया घटना ने तो मुझे अंदर से हिलाकर रख दिया है। इसकी वजह से मेरी मानसिक स्थिति को जो भी नुकसान हुआ वह कभी भरा नहीं जा सकता है।” (अनुवाद)

बोकडे ने प्रसारित पोस्ट को ख़ारिज करते हुए आगे बताया, “सबसे पहले, साझा की जा रही पोस्ट गलत है। मेरा सोचना है कि जो दावा प्रसारित किया गया है वह समस्यात्मक है। यह स्पष्ट रूप से इस्लामोफोबिया है। दूसरी बात यह कि अगर मैं दावे के मुताबिक 45 वर्षीय अब्दुल रज़ा हूं, तो भी सवाल यह है कि एक 45 वर्षीय व्यक्ति के लिए सस्ती कीमत पर शिक्षा प्राप्त करने की कोशिश करना क्या गलत है। शिक्षा का विचार विश्वविद्यालय को सर्वश्रेष्ठ बनाने से ज़्यादा शिक्षा को हर एक व्यक्ति तक पहुंचाने का है।” (अनुवाद)

यह इस तरह की गलत सूचनाओं का ये हालिया उदाहरण है, जिसमें जेएनयू छात्रों पर पुरानी और असंबंधित तस्वीरों का सहारा झूठे दावे के साथ निशाना साधने का प्रयास किया जा रहा है।

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