सोशल मीडिया पर एक व्यक्ति की तस्वीर शेयर करते हुए दावा किया गया है कि ये शख्स 1857 के स्वतंत्रता सेनानी बांके चमार हैं. ट्विटर यूज़र विनोद शर्मा ने ये तस्वीर ट्वीट करते हुए लिखा, “ये हैं बांके चमार..1857 की क्रांति में जौनपुर क्रांति के मुखिया।अंग्रेजों ने उस समय सबसे बड़ा ₹50000 का इनाम रखा था जब एक आना में 2 गाय मिलती थी। मुखबिर ने पकड़वा दिया और 18 साथियों समेत फांसी पर लटक गए थे। और कुछ लोग कहते हैं आज़ादी चरखे से मिली?!”. (आर्काइव लिंक)

ट्विटर यूज़र आशीष जग्गी ने भी ये तस्वीर बांके चमार की बताते हुए शेयर की है. (आर्काइव लिंक)

ट्विटर और फ़ेसबुक पर ये तस्वीर वायरल है. व्हाट्सऐप पर भी ये तस्वीर इसी दावे के साथ शेयर की गई है.

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कुछ लोग ये तस्वीर स्वतंत्रता सेनानी ऊदैया चमार की बताकर भी शेयर कर रहे हैं. कांग्रेस के अनुसूचित जाति विभाग के राष्ट्रीय संयोजक प्रदीप नरवाल ने 20 जुलाई 2020 को ये तस्वीर ऊदैया चमार की बताकर ट्वीट की थी. (आर्काइव लिंक)

फ़ैक्ट-चेक

गूगल रिवर्स इमेज सर्च से हमें ये तस्वीर विकीपीडिया पर मिली. ये तस्वीर 1860 के दशक की बताई गई है. कैप्शन के मुताबिक, ये पूर्वी बंगाल में मछुआरों की एक जाति के लोगों की तस्वीर है. विकीपीडिया ने इस जानकारी का स्रोत ब्रिटिश लाइब्रेरी को दिया है. विकीपीडिया पर मौजूद तस्वीर को रिवर्स इमेज सर्च करने पर हमें ब्रिटिश लाइब्रेरी का एक लिंक मिला.

ब्रिटिश लाइब्रेरी के मुताबिक, ये तस्वीर पूर्वी बंगाल में बसने वाले मछुआरों के समुदाय कोईबर्तो के सदस्य की तस्वीर है. वेबसाइट पर ये नहीं बताया गया है कि इस तस्वीर को किसने और कहां लिया था. लेकिन ये तस्वीर 1860 के दशक के शुरुआती दौर में खींची गई है. वेबसाइट के मुताबिक, ये हिन्दू धर्म में आनेवाली मछुआरों की जाति के लोग हैं. ये लोग बंगाल में शुरुआत से बसने वाले लोगों में से हैं.

यहां पर ये बात तो साफ़ हो जाती है कि तस्वीर में दिख रहा व्यक्ति बांके चमार या ऊदैया चमार की नहीं है. ये चित्र पूर्वी इलाके की एक आदिवासी जाति का पोर्ट्रेट है.

बांके चमार और ऊदैया चमार कौन थे?

सर्च करने पर हमें दलित दस्तक का अगस्त 2016 का आर्टिकल मिला. इस आर्टिकल में बांके चमार की पहचान जौनपुर (उत्तर प्रदेश) के स्वतंत्रता सेनानी के रूप में की गई है. आर्टिकल के मुताबिक, “1857 की जौनपुर क्रांति असफल पर जिन 18 क्रांतिकारियों को बागी घोषित किया गया उनमें सबसे प्रमुख बांके चमार था, जिसे जिंदा या मुर्दा पकडऩे के लिए ब्रिटिश सरकार ने उस जमाने में 50 हजार का इनाम घोषित किया था. अंत में बांके को गिरफ्तार कर मृत्यु दंड दे दिया गया.”

गूगल बुक्स पर की-वर्ड्स सर्च करने पर हमें कई किताबों में बांके चमार का ज़िक्र मिला. किताबों में उन्हें 1857 की क्रांति का योद्धा बताया गया है. ‘दलित फ़्रीडम फ़ाइटर्स‘ किताब में बताया गया है कि बांके चमार जौनपुर के मछली शहर के कुंवरपुर गांव में रहते थे. क्रांति को असफ़ल करने के बाद बांके और उनके 18 साथियों को अंग्रेज़ सरकार ने फांसी पर लटका दिया था.

वैसे ही ऊदैया चमार भी स्वतंत्रता सेनानी थे. नवोदय टाइम्स के साल 2016 के एक आर्टिकल में बताया गया है कि साल 1804 में छतारी के नवाब के वफ़ादार और प्रिय योद्धा ऊदैया चमार को अंग्रेजों की गलत नीतियों की भनक हो गई थी. इसके बाद ऊदैया ने कई अंग्रेज़ों को मौत के घाट उतार दिया था. साल 1807 में अंग्रेजो ने ऊदैया को पकड़ कर उन्हें फांसी दे दी थी. गूगल बुक्स पर मौजूद किताबों में भी ऊदैया चमार का ज़िक्र मिलता है.

बांके चमार और ऊदैया चमार की तस्वीर हम ऑनलाइन माध्यम से ढूंढ नहीं पाए हैं. लेकिन यहां पर ये बात तो साफ़ हो जाती है कि बांके चमार की बताकर जो तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही है वो असल में भारत के पूर्वी इलाकों में बसने वाले मछुआरों के समुदाय से आने वाले एक शख्स की तस्वीर है.


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About the Author

Kinjal Parmar holds a Bachelor of Science in Microbiology. However, her keen interest in journalism, drove her to pursue journalism from the Indian Institute of Mass Communication. At Alt News since 2019, she focuses on authentication of information which includes visual verification, media misreports, examining mis/disinformation across social media. She is the lead video producer at Alt News and manages social media accounts for the organization.