प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वेबसाइट www.narendramodi.in पर, 12 दिसंबर को प्रकाशित एक स्‍टोरी की आकर्षक हेडलाइन थी ‘पीएम मोदी भारत के पहले सीप्‍लेन के पहले यात्री बने! (अनुवाद)’ वेबसाइट के इस लेख में अहमदाबाद में साबरमती नदी से मेहसाणा के धरोई डैम तक पीएम की सी-प्‍लेन यात्रा का जिक्र किया गया था और इसे गुजरात में दूसरे चरण के मतदान से पहले उनके अभियान का हिस्‍सा बताया गया। बाद में यह हेडलाइन बदल दी गई।

यह दावा भारत के प्रधानमंत्री की ऑफिसियल वेबसाइट पे भी किया गया।

इस दावे को बीजेपी के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट और भाजपा नेताओं और पदाधिकारियों की ओर से बार-बार दोहराया गया कि यह भारत में अब तक की पहली सीप्‍लेन यात्रा थी।

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बहुत सारे टेलीविज़न चैनलों और समाचार-पत्रों ने यह खबर चलाई और इसे ऐसा साहसी और अनोखा कदम बताया जो देश के भीतर जलमार्ग यात्रा को रफ्तार देकर परिवहन के क्षेत्र में आमूलचूल बदलाव ला देगा।

News18 India के ट्विटर अकाउंट से ये बताया गया ‘अंबाजी मंदिर के दर्शन के लिए देश में सी-प्लेन की पहली उड़ान के पहले यात्री बनेंगे प्रधानमंत्री मोदी’

अमर उजाला ने भी ऐसा एक विडियो अपने वेबसाइट पे शेयर किया जिसका शीर्षक ये था ‘देश के पहले सी प्लेन में मोदी ने अंबाजी मंदिर जाने को ऐसे भरी उड़ान’

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तो क्‍या यह पहली सी-प्‍लेन सेवा है जिसकी परिकल्‍पना भारत में की गई? ऑल्‍ट न्‍यूज ने तथ्‍य जाँच की और हमें यह ज्ञात हुआ कि सबसे पहली व्‍यावसायिक सीप्‍लेन सेवा भारत में वर्ष 2010 में शुरू की गई थी। सार्वजनिक क्षेत्र की हेलिकॉप्‍टर कंपनी, पवन हंस और अंडमान व निकोबार प्रायद्वीप के प्रशासन द्वारा संयुक्‍त रूप से संचालित इस सेवा, जल हंस का उद्घाटन उस वर्ष दिसंबर में हुआ था। तत्‍कालीन नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्‍ल पटेल ने भी हाल के एक ट्वीट में इसकी पुष्टि की। जल हंस सेवा अब रुक गई है।

भारत में सीप्‍लेन सेवा शुरू करने का एक और सरकारी प्रयास केरल सरकार द्वारा जून 2013 में किया गया जब केरल टूरिज्‍़म इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर लिमिटेड द्वारा प्रवर्तित सेवा केरल सीप्‍लेन की घोषणा राज्‍य के जलमार्गों को जोड़ने के लिए की गई थी। हालाँकि स्‍थानीय मछुआरा समुदाय द्वारा विरोध किए जाने के कारण यह परियाजना आरंभ नहीं हो पाई। केरल के तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री ओमान चांडी ने इसके बारे में ट्वीट किया था।

भारत में सीप्‍लेन सेवा शुरू करने की कोशिश सिर्फ सरकारों तक सीमित नहीं थी। निजी कंपनियों ने वर्ष 2011-12 में ही सीप्‍लेन सेवाओं की घोषणा की थी। वर्ष 2012 में सीबर्ड सीप्‍लेन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बनाई गई और इसने केरल और लक्षद्वीप में सेवा शुरू करने की घोषणा की। एक अन्‍य कंपनी Mehair ने वर्ष 2011 में अंडमान और निकोबार प्रायद्वीप में सेवा शुरू की और बाद में इसे महाराष्‍ट्र और गोवा तक विस्‍तारित किया। हालाँकि इन निजी कंपनियों ने व्‍यावसायिक रूप से फायदा न होने और सरकारी मंजूरी की समस्‍याओं के चलते इनका परिचालन बंद कर दिया था।

शुरुआती बाधा के बावजूद भारत में व्‍यावसायिक सीप्‍लेन यात्रा को पुनर्जीवित करने के संगठित प्रयास किए गए। हाल ही में 9 दिसंबर को, स्‍पाइसजेट ने मुम्‍बई के गिरगाँव चौपाटी में समुद्री परीक्षण किए जहाँ केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और अशोक गजपति राजू उपस्थित थे। स्‍पाइसजेट का लक्ष्‍य है कि जलमार्गों की परिवहन संभावना का पता लगाकर क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने के लिए 100 एम्‍फ़ीबियन एयरक्राफ़्ट खरीदे जाएँ।

गडकरी द्वारा इस्‍तेमाल किए गए एयरक्राफ़्ट का ही उपयोग प्रधानमंत्री मोदी की अहमदाबाद से मेहसाणा तक यात्रा के लिए किया गया जैसा कि रजिस्‍ट्रेशन नंबर N181KQ द्वारा पुष्टि की जा सकती है।

दिलचस्‍प बात है कि जब ऑल्‍ट न्‍यूज ने एयरक्राफ़्ट का फ़्लाइट पाथ देखा तो पता लगा कि यह प्‍लेन 3 दिसंबर को कराची, पाकिस्‍तान से मुम्‍बई आया था। पिछले 90 दिनों में, क्‍वेस्‍ट कोडिएक का यह सिंगल इंजन एयरक्राफ़्ट ग्रीस से लेकर सऊदी अरब और न्‍यूज़ीलैंड तक पूरी दुनिया में सफर कर चुका है।

Flight path N181KQ

भारत में जलपरिवहन योग्‍य जलमार्ग लगभग 14,500 किमी का है। सीप्‍लेन यात्रा को शुरू करना देश के भीतर परिवहन व्‍यवस्‍था को विविधता प्रदान करने की दिशा में एक सही कदम है। हालाँकि गुजरात चुनावों को ध्‍यान में रखकर की गई पीएम मोदी की सीप्‍लेन यात्रा को प्रधानमंत्री की वेबसाइट द्वारा देश की अब तक की पहली सीप्‍लेन यात्रा कहकर प्रचारित किया गया और इसे कई समाचार संस्‍थानों ने दोहराया जबकि साफ है कि ऐसा नहीं था, और न ही प्रधानमंत्री सीप्‍लेन में यात्रा करने वाले पहले भारतीय थे। पहले इस बात को फैलाया गया और फिर बाद में पीएम मोदी की वेबसाइट से इसे चुपचाप हटा लिया गया

मीडिया ने प्रधानमंत्री की वेबसाइट और बीजेपी द्वारा पेश की गई इस गलत जानकारी की तथ्‍यात्‍मक जाँच करने की जहमत तक नहीं उठाई। हालाँकि बाद में पीएम की वेबसाइट ने इस खबर का शीर्षक बदल दिया लेकिन मीडिया संस्‍थानों ने कोई स्‍पष्‍टीकरण नहीं जारी किया। प्रधानमंत्री और सत्ताधारी पार्टी की छवि निखारने की मंशा से संभावित रूप से इस झूठी रिपोर्ट को प्रचारित किया गया जबकि इसकी सटीकता पर कोई ध्‍यान नहीं दिया गया।

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