जबलपुर, मध्यप्रदेश से BJP विधायक इंदु तिवारी ने 19 सेकंड का एक वीडियो ट्वीट किया और दावा किया कि वीडियो में पत्रकार रवीश कुमार हैं. उन्होंने लिखा, “इस मसीहा पत्रकार को पहचानते हैं? ये दुनिया को पत्रकारिता पर ज्ञान देने की खान हैं। इन्हें आजकल की पत्रकारिता इन्हें मज़ाक़ लगता है। क़ैदें हैं रविश कुमार” (ट्वीट का आर्काइव)

पत्रकार सुशांत सिन्हा ने भी ये वीडियो ट्वीट किया. उन्होंने बिना किसी का नाम लिए लिखा, “इस मसीहा पत्रकार को पहचानते हैं? (Hint: ये दुनिया को पत्रकारिता पर ज्ञान देने की खान हैं)” (ट्वीट का आर्काइव लिंक) सुशांत सिंह खुद को गूगल द्वारा सर्टिफ़ाइड फ़ैक्ट-चेकर बताते हैं.

इस वीडियो को कई ट्विटर हैंडल्स ने रवीश कुमार का बताकर ट्वीट किया है, @choga_don, @Humor_Silly, @coolfunnytshirt इनमें कुछ प्रमुख नाम हैं. @BefittingFacts नाम के एक हैंडल ने रवीश कुमार की कुछ अन्य तस्वीरों के साथ वायरल वीडियो से ली गयी तस्वीर शेयर करते हुए उनपर तंज कसा है.

फ़ेसबुक पर भी ये वीडियो इसी दावे से वायरल हो रहा है.

फ़ैक्ट-चेक

इस वीडियो की पड़ताल करते हुए पता चला कि NDTV ने अगस्त, 2013 में एक ब्लूपर्स वीडियो यूट्यूब पर अपलोड किया था. इसमें बताया गया है कि ये 2006 का है. इस 3 मिनट के वीडियो में वो हिस्सा भी है जिसे अभी रवीश कुमार का बताकर शेयर किया जा रहा है.

ध्यान से देखने पर पता चलता है कि माइक के साथ लेटकर रिपोर्टिंग करने वाले शख़्स रवीश कुमार नहीं बल्कि जम्मू-कश्मीर के फ़याज़ बुख़ारी हैं. नीचे की तस्वीर से ये बात पूरी तरह साफ़ हो जाती है. इनके हेयर स्टाइल और नाक पर गौर किया जाए.

 

हमने फ़याज़ बुखारी से संपर्क किया. उन्होंने बताया कि वीडियो में दिख रहे शख्स वही हैं. उन्होंने कहा, “मई 2006 की बात है. एक कांग्रेस रैली हो रही थी जो अचानक फिदायीन हमले के दायरे में आ गयी. मैं इस रैली के खत्म होने के बाद लाइव कर रहा था. अचानक गोलीबारी हुई और मैं उस वक़्त बिना किसी कवर के लाइव कर रहा था. कैमरा वालों ने कवर ले लिया था. मैं अकेला था जो गोलीबारी की चपेट में आ सकता था. मैं नीचे झुका और खुद को बचाने के लिए लुढ़का क्योंकि बाकी कैमरा वालों की तरह मुझे खुद को किसी भी तरह गोलीबारी से बचाना था.”

हमने 2006 में कश्मीर में हुए गोलीबारी की घटना का आर्काइव चेक किया. असोसिएटेड प्रेस (AP) ने यूट्यूब पर 2015 में इस घटना का वीडियो अपलोड किया है. बताया गया है कि इस गोलीबारी में 7 लोगों की मौत हो गयी थी और 20 लोग घायल हो गए थे. इस वीडियो में देखा जा सकता है कि कैसे पत्रकार और कैमरामेन गोलीबारी के दौरान खुद को बचाने की कोशिश कर रहे हैं.

 

 

हमने देखा कि AP आर्काइव के इस वीडियो में एक कैमरा वही है जो वायरल हो रहे वीडियो में दिखता है. नीचे दोनों तस्वीरों के मिलान करने पर ये देखा जा सकता है.

मई, 2006 में आउटलुक में छपे एक आर्टिकल में भी ये जानकारी दी गयी है. AP आर्काइव का ये वीडियो भी मई 2006 का है ये जानकारी वेबसाइट देखने पर साफ हो जाती है.

 

 

तो ये पूरी तरह साफ़ है कि जिसे रवीश कुमार का वीडियो बताया जा रहा है वो जम्मू-कश्मीर के पत्रकार फ़याज़ बुखारी हैं. NDTV ने 2013 के ब्लूपर वीडियो में जिसे जगह दी वो दरअसल एक पत्रकार द्वारा खुद को बचाने की कोशिश थी. वो भी ऐसी घटना जिसमें 7 लोगों की मौत की ख़बर है.

हमने रवीश कुमार से भी संपर्क किया. उन्होंने कहा, “मुझसे कुल तीन लोगों ने इस वीडियो के बारे में पूछा. सवाल तो उससे पूछना था जिसने वीडियो जारी किया. कम से कम पूरा वीडियो मांग लेते तो पता चलता कि किस संदर्भ में ऐसा किया गया है. मैं तो नहीं था. यह मुझे पता है. अगर होता भी तो देखता कि स्टोरी क्या थी. क्यों ऐसा कर रहा था. यह सब दिखा कर आप अर्णब गोस्वामी और उनकी नकल में चीख चिल्ला रहे गोदी मीडिया की हरकतों पर पर्दा नहीं डाल सकते. मुझे पता था कि यह श्रीनगर के फैयाज़ बुख़ारी साहब का वीडियो है. अब जो भी लोग इस वीडियो के झांसे में आएं वो क्या करें. कम से कम इतना तो सोचें कि ऐसे वीडियो जारी करने वाले उन्हें कितना बेवकूफ समझते हैं कि कुछ भी जारी कर दो लोग झांसे में आ जाएंगे. सारा मॉडल ही यही है. झांसा देते रहो और लोगों को उलझाते रहो. मुझे हंसी आ रही है और दुख भी हो रहा है उन लोगों पर जो इस वीडियो के झांसे में आए. वे जाने ऐसे कितने वीडियो के झांसे में आकर उल्लू बन चुके होंगे. ईश्वर उन्हें बुद्धि दे.”

हालांकि ये NDTV चैनल की उस ‘नाइंसाफ़ी’ को भी सामने लाता है जो उसने गोलीबारी में फंसे अपने रिपोर्टर फ़याज़ बुख़ारी के साथ की है. बेहद मुश्किल हालात में, जान पर बन आने की स्थिति से रिपोर्टिंग कर रहे शख्स की क्लिप को काटकर उसे हंसी-ठिठोली का हिस्सा बना देना अमानवीय मालूम देता है. इसपर, वो लोग और चार चांद लगा देते हैं जो इस क्लिप को उठाकर किसी और को उपहास का पात्र बनाने की कोशिश में लग जाते हैं.

ये पहला मौका नहीं है जब रवीश कुमार पर निशाना साधने के लिए गलत जानकारी फैलाई गयी हो. पिछले साल रवीश कुमार के 2013 के शो का क्लिप किया हुआ वीडियो गलत जानकारी के साथ शेयर किया था. इसे शेयर करने वालों में कई पत्रकार भी शामिल थे. ऐसे ही एक 3 साल पुराने फ़ेसबुक पोस्ट पर आधारित ऑडियो क्लिप रवीश कुमार के नाम से शेयर की गयी थी.

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