सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल है जिसमें ऑस्ट्रेलियाई स्कूल में गैर-मुस्लिम छात्रों को कथित तौर पर मस्जिद में नमाज़ पढ़ने का तरीका सिखाया जा रहा है. यूज़र्स दावा कर रहे हैं कि ‘गुस्साए माता-पिता’ स्कूल पर उनके बच्चों का ब्रेनवॉश करने और एक प्रवासी समुदाय को खुश करने के लिए ‘इस्लामीकरण’ करने का आरोप लगा रहे हैं.
ट्विटर हैंडल ‘@MeghUpdates’ ने इसी दावे के साथ ये वीडियो ट्वीट किया. (आर्काइव)
Australia: Parents go furious as a video of children in Australia being taught how to pray in a mosque goes viral.
Furious parents accuse the school of brainwashing and Islamizing their children in the name of pleasing a migrant community. pic.twitter.com/VuNZUZsort
— Megh Updates 🚨™ (@MeghUpdates) March 9, 2023
सुप्रीम कोर्ट के वकील और राजनीतिक कमेंटेटर शशांक शेखर झा ने भी ये वीडियो ट्वीट करते हुए दावा किया कि ऑस्ट्रेलियाई छात्रों को उनके माता-पिता की अनुमति के बिना ‘नमाज़’ पढ़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है. (आर्काइव)
Australia: Schools going students are made to do Namaz without permission from their parents.
CC: @Australia @AlboMP
— Shashank Shekhar Jha (@shashank_ssj) March 9, 2023
ट्विटर ब्लू सब्सक्राइबर मिन्नी राजदान ने वीडियो ट्वीट करते हुए दावा किया कि छात्रों में से एक के माता-पिता ने पूछा, “क्या मुस्लिम पेरेंट्स चाहते हैं कि उनके बच्चे चर्च जाएं और ईसा मसीह की प्रार्थना करें?” (आर्काइव)
Meanwhile in Australia ….👇
🇦🇺Australia
Parents are upset that the schools are brainwashing and Izlamizing their children
“Would muzlim parents want their children to visit a Church and pray to Christ?”, asked one parent.
Not just in US, this is happening all over the… https://t.co/HxMFTCWhnC pic.twitter.com/BN8M6xmfdi
— Minni Razdan (@mini_razdan10) March 9, 2023
पत्रकार राकेश कृष्णन सिम्हा ने भी इसी दावे के साथ ये वीडियो ट्वीट करते हुए कहा कि स्कूल ‘धर्मनिरपेक्षता से प्रभावित’ है. (आर्काइव)
Infected by secularism, a school in Australia held a session on how to pray in a mosque. Parents accused the school of brainwashing and Islamizing their children. “Would Muslim parents want their children to visit a church and pray to Christ?” asked one parent. pic.twitter.com/HFnDxn753x
— Rakesh Krishnan Simha (@ByRakeshSimha) March 9, 2023
ट्विटर यूज़र ‘@Klaus_Arminius’ ने इसी दावे के साथ ये वीडियो ट्वीट किया. इस ट्वीट को आर्टिकल लिखे जाने तक लगभग 2300 लाइक और 600 से ज़्यादा रीट्वीट्स मिलें. (आर्काइव)
Video of children in Australia being taught how to pray in a mosque is going viral
Furiously parents accuse the school of brainwashing and Islamizing their children
“Would muslim parents want thier children to visit a Church and pray to Christ?”, asked one parent pic.twitter.com/TGPfQ9yTTx
— Klaus Arminius (@Klaus_Arminius) March 8, 2023
ये वीडियो फ़ेसबुक पर भी इसी दावे के साथ वायरल है.
फ़ैक्ट-चेक
ऑल्ट न्यूज़ ने देखा कि कई यूज़र्स ने ये भी बताया है कि ये क्लिप असल में ‘द स्वैप‘ नामक एक स्पेशल ब्राडकास्टिंग सर्विस सीरीज़ की थी. ये शो अलग-अलग धार्मिक बैकग्राउंड के 12 छात्रों और उनके परिवारों के बारे में है. ये लोग एक एक्सपेरिमेंट में हिस्सा लेकर एक-दूसरे की संस्कृतियों के बारे में जानते हैं. हमने वायरल वीडियो के आखिर में SBS का लोगो भी देखा.
इसे ध्यान में रखते हुए हमने गूगल पर की-वर्ड्स सर्च किया. अब तक सीरीज़ का सिर्फ एक एपिसोड ही जारी किया गया है. इसके सारांश के मुताबिक, ऑस्ट्रेलिया के सबसे बड़े इस्लामिक स्कूल के 6 छात्रों ने कैथोलिक कॉलेजों के 6 छात्रों और एक सेक्युलर राज्य हाई स्कूल के साथ क्रॉस-कल्चरल डिवाइड्स को कम करने के लिए अदला-बदली की. सीरीज की पहली कड़ी में, इस्लामिक कॉलेज ऑफ़ ब्रिस्बेन (ICB) के CEO अली कादरी, अलग-अलग समुदायों के बीच अलगाव को खत्म करने की कोशिश करते हैं, और अपने छात्रों को विस्तृत दुनिया के लिए तैयार करने में मदद करते हैं. कादरी को वायरल वीडियो में एक बयान देते हुए देखा जा सकता है जिसमें वो कहते हैं कि उनके छात्रों को ये सीखना होगा कि कैसे दूसरों को उनके मूल्यों में शिक्षित करने की कोशिश करते समय असभ्य या अभद्र नहीं होना चाहिए.
SBS की ऑफ़िशियल वेबसाइट पर शो के बारे में पब्लिश एक आर्टिकल के मुताबिक, ये तीन-पार्ट की डॉक्यूमेंट सीरीज़ तब बनी है जब 12 छात्र और उनके परिवारों को अलग-अलग संस्कृति, धर्म और बैकग्राउंड की दुनिया से मिलाया गया. आर्टिकल में अली कादरी को शो के ‘आर्किटेक्ट’ के रूप में डिस्क्राइब किया गया है. “इसमें भाग लेने वाले 6 मुस्लिम परिवार, 4 कैथोलिक परिवार और 2 नास्तिक परिवार हैं. स्कूल के एक टर्म के दौरान, अली कादरी छात्रों के साथ भावनात्मक सफ़र पर गये. क्योंकि उन्हें एक-दूसरे के स्कूल और एक-दूसरे के परिवार और समुदायों के साथ समय बिताने की चिंता, उत्तेजना और आश्चर्य का अनुभव होता है.”
ये साफ़ है कि छात्रों के परिवार इस प्रयोग में उतने ही शामिल थे जितने कि छात्र खुद.
ये वीडियो को 3 मार्च 2023 को SBS ऑस्ट्रेलिया के ऑफ़िशियल फ़ेसबुक पेज पर शेयर किया गया था. कैप्शन में लिखा है, “कभी-कभी दूसरों को अपने मूल्यों के बारे में शिक्षित करने की कोशिश में, हम असभ्य या अभद्र रूप से सामने आ सकते हैं…ये कुछ ऐसा है जो (छात्रों) को सीखना होगा कि इसे कैसे नहीं करना है. छात्रों को कल्चरल वैल्यूज़ का गहरा इनसाइट मिलता है. क्योंकि उनमें से कुछ पहली बार प्रार्थना में शामिल होते हैं. द स्वैप | प्रीमियर बुधवार 8 मार्च को रात 8.30 बजे SBS पर और SBS ऑन डिमांड पर.”
“Sometimes in trying to educate others about our values, we may come across as rude or abrupt… that is something which (the students) have to learn how not to do.” The students get a deeper insight into cultural values as some of them attend prayer for the first time.
The Swap | Premieres on Wednesday 8 March at 8.30pm SBS and SBS On Demand
Posted by SBS Australia on Sunday, 5 March 2023
अली कादरी का बयान
ऑल्ट न्यूज़ ने अली कादरी से उनके बयान के लिए संपर्क किया. कादरी ने इन दावों को बिल्कुल ग़लत बताया कि छात्रों के माता-पिता नाराज़ थे. उन्होंने कहा, “सभी पक्षों के अभिभावक शो के बारे में जानते थे और छात्रों के सभी कार्यों का समर्थन कर रहे थे. किसी भी अभिभावक द्वारा कोई आक्रोश या असहमति नहीं जताई गई.”
शो के बारे में बात करते हुए कादरी ने कहा, “प्रयोग के पीछे का मकसद हर तरफ फ़ैले रूढ़िवादिता का सामना करते हुए आपस में भाईचारा का निर्माण करना था. हमारे ज़्यादातर छात्र मुसलमान हैं और ऑस्ट्रेलिया में पैदा हुए हैं. इस्लामिक कॉलेज में पढ़कर उनका अलग-अलग धर्मों और संस्कृतियों के लोगों से सीमित संपर्क होता है. इसके उलट, गैर-मुस्लिमों द्वारा इस्लाम और मुसलमानों के बारे में रूढ़िवादी और नस्लवादी राय हैं. इस प्रयोग के माध्यम से, हमारा मकसद अलग-अलग धर्मों और मूल्यों के युवा छात्रों को एक-दूसरे को जानने और एक-दूसरे के मतभेदों और समानताओं की सामान्य समझ बनाना था.
उन्होंने आगे कहा, “अदला-बदली के दौरान, 6 गैर-मुस्लिम छात्र ब्रिसबेन के इस्लामिक कॉलेज गए और ICB के 6 छात्र एक कैथोलिक और एक धर्मनिरपेक्ष राजकीय स्कूल में गए. इसमें एक दूसरे की प्रार्थना सत्र में भाग लेने वाले छात्र शामिल थे. गैर-मुस्लिम छात्रों ने प्रार्थना सत्र में भाग लिया और मुस्लिम छात्र जिनमें मैं भी शामिल था, एक कैथोलिक मास में गए. राजकीय विद्यालय में कोई धार्मिक अनुष्ठान नहीं होता है.”
उन्होंने कहा, “आलोचकों ने मुस्लिम समुदाय को और अलग-थलग करने और ग़लत दिखाने के लिए एक स्टीरियोटाइप और पूर्वाग्रह को बनाए रखने के लिए इस शो का सहारा लिया है.”
कुल मिलाकर, डॉक्यूमेंट्री TV सीरीज़ ‘द स्वैप’ के एक पार्ट में गैर-मुस्लिम छात्रों को इस्लामिक प्रार्थना सेसन में भाग वाली एक क्लिप को इस भ्रामक दावे के साथ शेयर किया गया कि एक स्कूल में गैर-मुस्लिम छात्रों को नमाज़ पढ़ाया जा रहा था और गुस्साए माता-पिता आरोप लगा रहे थे कि इस स्कूल में बच्चों का ब्रेनवॉश और इस्लामीकरण किया जा रहा है.
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