कुछ टेलीविजन चैनलों के प्राइम टाइम पर यह सबसे बड़ी खबर थी कि गांधीनगर के मुख्य पादरी ने गुजरात के मतदाताओं से ‘देश को राष्ट्रवादी ताकतों से बचाने’ की अपील की। इंडिया टूडे ने अपने रात 8 बजे के समय पर एक बहस प्रसारित करते हुए मुख्य पादरी की पोजीशन पर सवाल खड़ा करते हुए ये हेडिंग चलाई ‘मुख्य पादरी की अपवित्र अपील’ (अनुवाद), ‘चर्च मानसिक उन्माद फैलाने की कोशिश में’ (अनुवाद) और ‘चुनाव से पहले, चर्च बनाम सेकुलर राज्य?’ (अनुवाद) इस सबके पीछे एक स्पष्ट मंशा यह थी कि मुख्य पादरी की अपील सांप्रदायिक थी और यह सरकार और धर्म के बीच के स्पष्ट विभाजन को खत्म करने वाली अपील थी। रिपब्लिक टीवी ने हैशटैग चलाया ‘ChurchvsNationalists’ और ‘Whocommunalisedpolitics’।
Is Gujarat Archbishop polarising voters ahead of polls? Full video of debate on #IndiaFirst with @gauravcsawant – https://t.co/yYUTjzr7Et pic.twitter.com/3rnRmoyccc
— India Today (@IndiaToday) November 23, 2017
गांधीनगर के मुख्य पादरी थॉमस मैक्वेन ने 21 नवंबर के पत्र में कहा, “गुजरात राज्य विधानसभा की तिथियाँ निश्चित हो गई हैं। इस चुनाव के परिणाम महत्वपूर्ण हैं और इसका असर और गूंज हमारे प्रिय राष्ट्र पर प्रतिबिंबित होगी। हम जानते हैं कि देश का लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष ताना-बाना खतरे में है। मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। संवैधानिक अधिकारों को कुचला जा रहा है। एक भी दिन ऐसा नहीं जाता जब हमारे चर्च, चर्च के लोगों, आस्था या संस्थाओं पर हमला नहीं होता है। अल्पसंख्यकों, ओबीसी, पिछड़े वर्ग, गरीबों आदि के बीच असुरक्षा की भावना बढ़ती जा रही है। राष्ट्रवादी ताकतें देश में वर्चस्व कायम करने के मुहाने पर हैं। गुजरात राज्य विधानसभा के चुनाव परिणामों से एक अंतर आ सकता है!”(अनुवाद)
यह देखा गया कि विभिन्न धार्मिक मतों और विभिन्न धार्मिक संप्रदायों के नेताओं ने चुनाव के समय में विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के समर्थन में बयान दिये हैं। 2014 के आम चुनावों से पहले, आध्यात्मिक गुरु जैसे श्री श्री रविशंकर और बाबा रामदेव ने मतदाताओं को अपना वोट नरेंद्र मोदी और बीजेपी के पक्ष में देने की अपील की थी।
2004 की शुरुआत में, नई दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम ने इसी तरह की अपील जारी करते हुए मतदाताओं से भाजपा को एक अवसर देने के लिए कहा था जबकि 2014 में, उन्होंने कांग्रेस को वोट देने की अपील की थी। ऑल्ट न्यूज़ ने भाजपा और डेरा सच्चा सौदा के नज़दीकी रिश्तों के बारे में पहले एक विस्तृत स्टोरी की थी।
हाल ही में, 4 नवंबर को गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी गुजरात में स्वामीनारायण संप्रदाय की वडताल शाखा में गए और उन्होंने घोषणा की कि वे राजकोट विधानसभा से चुनाव लड़ रहे हैं। इसके अगले दिन ही, वडताल शाखा ने आगामी राज्य विधानसभा चुनावों में भाजपा को समर्थन देने के लिए लोगों से अपील करते हुए एक बयान जारी किया। क्या हाल की इस अपील के मामले में धर्म और राजनीति को मिलाने के प्रयास की निंदा करने में भी उतना ही उत्साह दिखाया गया था?
ऑल्ट न्यूज़ ने एक जांच की और पाया कि किसी भी टीवी न्यूज़ चैनल ने इस मामले पर प्राइम टाइम पर बहस नहीं की। इंडिया टूडे, रिपब्लिक टीवी और टाइम्स नाउ जैसे न्यूज़ चैनलों ने साफ तौर पर उस समय चुप्पी साधे रखी जब इसी तरह की अपील कुछ दिनों पहले स्वामीनारायण संप्रदाय द्वारा की गई थी।
क्या मुख्यधारा का मीडिया राजनीतिक सत्ता के आदेशों के आगे झुक गया है? प्रमुख मीडिया घरानों द्वारा किए जा रहे इस एकपक्षीय व्यवहार के पीछे कौन-से कारण हैं? क्या यह सांप्रदायिक मुद्दों पर मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने का एक सोचा-समझा प्रयास है क्योंकि गुजरात में एक बेहद महत्वपूर्ण चुनाव होने जा रहे हैं जिससे राजनीति की दिशा तय होगी जिसका असर 2019 के चुनावों पर पड़ेगा?
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