15 जनवरी को अमित मालवीय ने शाहीन बाग़ के प्रदर्शनकारियों के बारे में आपस में बात कर रहे कुछ लोगों का एक वीडियो ट्वीट किया था। वीडियो में दिख रहे लोगों का आरोप था कि शाहीन बाग़ में नागरिकता संशोधन कानून और प्रस्तावित एनआरसी के ख़िलाफ़ धरना दे रही महिलाओं को इसके लिए पैसे दिए जा रहे हैं। वीडियो में दिख रहा एक शख्स दावा करता है कि शाहीन बाग़ का प्रदर्शन कांग्रेस द्वारा प्रायोजित है। मालवीय ने अपने ट्वीट में उस व्यक्ति के दावे को दोहराया है।

टाइम्स नाउ चैनल ने मालवीय के वीडियो ट्वीट का प्रसारण इस स्पष्टीकरण के साथ किया कि वो इस वीडियो की प्रमाणिकता की पुष्टि नहीं करते। टाइम्स नाउ पर अपने शो के दौरान मेघा प्रसाद ने कहा, “यह वीडियो देखने में स्टिंग ऑपरेशन मालूम पड़ता है। निश्चित तौर पर इसकी शूटिंग खुफ़िया कैमरे से की गई है और इससे यह बात साबित होती दिखती है कि जो लोग भी शाहीन बाग़ में धरने पर बैठे हैं, उन्हें ऐसा करने के बदले पैसे दिए जा रहे हैं, लेकिन मैं एक बात दोहराना चाहूंगी कि हम इस वीडियो फुटेज की प्रमाणिकता की पुष्टि नहीं करते। हमें तो ठीक-ठीक यह भी नहीं पता कि यह वीडियो भाजपा के हाथ कैसे आया. क्या यह उसके अपने लोगों की क्लिप है? क्या यह उसकी तरफ़ करवाया गया स्टिंग है? या भाजपा ने यह फुटेज किसी से लिया है?” – (अनुवादित)

एंकर मेघा आगे कहती हैं, “अमित मालवीय ने वीडियो का श्रेय किसी को भी नहीं दिया है। ऐसे में फिलहाल इस बात की सिर्फ अटकलें ही लगाई जा सकती हैं कि भाजपा ने ऐसा किया होगा.”

जिस दिन अमित मालवीय ने वीडियो ट्वीट किया उस शाम इंडिया टुडे और रिपब्लिक टीवी ने इसी विषय पर प्राइम टाइम डिबेट किया। रिपब्लिक टीवी की डिबेट में न केवल यह सवाल प्रमुखता से उछाला गया कि ‘क्या शाहीन बाग़ का प्रोटेस्ट पेड है?’ बल्कि #प्रोटेस्टऑनहायर का हैशटैग भी चलाया गया।

‘माई नेशन’ नाम का एक पोर्टल, जिसके तार भाजपा के राज्यसभा सांसद राजीव चंद्रशेखर से जुड़े हैं, ने उसी अप्रमाणिक वीडियो के आधार पर एक रिपोर्ट छापी, जिसमें ज़ोर देकर कहा गया, “अब, प्रदर्शनकारियों के संबंध में यह बात भी साफ़ हो गई है कि उन्हें पैसे का लालच देकर धरने पर बैठाया गया है.”

दक्षिणपंथी प्रोपेगैंडा करने वाले एक अन्य वेबसाइट ‘ऑपइंडिया’ ने भी इस वीडियो को संज्ञान में लेते हुए स्टोरी की और कहा, “हालांकि ‘ऑपइंडिया’ वीडियो की प्रमाणिकता सत्यापित नहीं कर सकता, लेकिन इससे शाहीन बाग़ के संगठित प्रदर्शन की विश्वसनीयता पर सवाल निश्चित तौर पर खड़ा होता है.”

दक्षिणपंथी तबके के कई अन्य ख़ास लोगों ने भी लगे हाथ यह वीडियो साझा किया। इनमें गुजरात से भाजपा के विधायक हर्ष संघवी, भाजपा महिला मोर्चा की प्रीति गांधी, शिवसेना के पूर्व सदस्य रमेश सोलंकी, भाजपा के दिल्ली आईटी सेल के प्रमुख पुनीत अग्रवाल व फिल्म निर्माता अशोक पंडित आदि प्रमुख हैं।

वीडियो कहां शूट किया गया

हमने वीडियो फ्रेम दर फ्रेम बेहद गौर से देखा। एक फ्रेम में दीवार पर लगे पोस्टर में एक मोबाइल नम्बर दिखाई दिया। वह नम्बर है: 9312484044.

इस नम्बर को लेकर जब हमने गूगल पर सर्च किया तो पता चला कि यह किसी ‘कुस्मी टेलिकॉम सेंटर’ का है। गूगल मैप पर हमने पाया कि दुकान की तस्वीर और वीडियो में उससे जुड़ी जानकारी हूबहू मेल खा रही थी। दुकान का रंग भी बिल्कुल वही है। वीडियो के बैकग्राउंड में नज़र आ रहे डाटाप्लान के पोस्टर पर गौर करें तो वह साफ़ तौर पर किसी मोबाइल शॉप की अंदरूनी दीवार मालूम पड़ती है।

“वीडियो मेरी दुकान पर रिकॉर्ड किया गया है, दावे झूठे हैं”

दरअसल नागरिकता संशोधन कानून के ख़िलाफ़ चल रहे प्रदर्शन के संबंध में इस सनसनीखेज़ ख़ुलासे की शूटिंग शाहीन बाग़ से 8 किलोमीटर दूर दक्षिणी दिल्ली के पुल प्रह्लादपुर इलाके में की गई थी। यह इलाका तुग़लकाबाद विधानसभा क्षेत्र में आता है। वीडियो की शूटिंग तुग़लकाबाद मेट्रो से कुछ मिनट की पैदल दूरी पर एफ़ ब्लॉक, मित्तल कॉलोनी स्थित कुस्मी टेलिकॉम (दुकान नम्बर 134) पर की गई थी।

तुग़लकाबाद शहरी क्षेत्र दक्षिणी दिल्ली की पहाड़ियों पर स्थित है, इसलिए यहां की सड़कों पर ढलान देखी जा सकती है। मित्तल कॉलोनी के एफ़ ब्लॉक की मुख्य सड़क जिसके किनारों पर बाज़ार लगती है, पहाड़ी पर ऊपर की तरफ़ जाते हुए चौराहे पर ख़त्म हो जाती है। ‘कुस्मी टेलिकॉम’ यहीं पर स्थित है।

38 वर्षीय अश्वनी कुमार दुकान के मालिक हैं, वो अपने बुज़ुर्ग पिता के सहयोग से दुकान चलाते हैं। डाटा प्लान रिचार्ज व प्रिंटआउट के काम के साथ चिप्स, अंडे व सिगरेट आदि बेचते हैं। दुकान तक़रीबन 8-10 स्क्वायर फीट की ही होगी, दुकान के बाहर लाल रंग के होर्डिंग/ पोस्टरों पर एयरटेल और वोडाफ़ोन के विज्ञापन देखे जा सकते हैं। दुकान की दीवारें हल्के नीले-हरे रंग में रंगी हुई हैं और दीवार पर सामने की तरफ़ रुख करके एक घड़ी लगाई गई है, जिसके बैकग्राउंड पर भाजपा नेताओं, खास तौर पर नरेंद्र मोदी की झांकती हुई तस्वीर देखी जा सकती है।

दुकान के मालिक अश्वनी व उनके पिता ने शुरू में बेहद आक्रामक तरीके से इस बात से इनकार किया कि वीडियो उनकी दुकान में बना है। लेकिन लगभग चार दिन बाद अपनी बात से पलटते हुए उन्होंने यह स्वीकार कर लिया कि हां, ऐसा हुआ था। हालांकि, उन्होंने खुद शूटिंग करने की बात से इनकार किया। लेकिन उनकी बातों में कोई तारतम्य नहीं था।

अश्वनी कुमार के साथ बातचीत को सहज बनाते हुए हमने उनसे चुनावी माहौल पर उनकी राय जानने की कोशिश की।

अश्वनी ने कहा, “ईमानदारी से कहें तो यहां नेताओं को वरिष्ठ नागरिकों और विधवाओं की कोई ख़ास फ़िक्र नहीं है, फिर चाहे वो विधायक हो या सांसद या कोई भी हो। हर कोई पांच साल में सिर्फ़ एक बार अपनी शक्ल दिखाने आता है, वो भी तब जब वोट लेना हो। मैं लोगों की फ़रियाद नेताओं तक ले जाता हूं और उनके काम करवाता हूं। मैं यहां के लोगों के लिए काम करता हूं।”

मोटे फ्रेम का चश्मा पहने और ऊनी टोपी लगाकर बैठे अश्वनी के पिता ने भी इस बात से अपनी सहमति ज़ाहिर की।

अश्वनी कुमार ख़ुद को ‘कार्यकर्ता’ कहलवाना पसंद करते हैं। चूंकि आपकी दुकान में भाजपा के चुनाव प्रचार से जुड़ी चीज़ें हैं तो क्या आपको ‘भाजपा कार्यकर्ता’ कहा जाए? इस सवाल के जवाब में मुस्कुराते हुए उन्होंने कहा, “हालांकि मैं शुरू से भाजपा से जुड़ा रहा हूं, फिर भी केवल ‘कार्यकर्ता’ कहना बेहतर रहेगा।”

अश्वनी जिनके काम आने का दावा करते हैं, दुकान की शेल्फ में ऐसे तमाम लोगों के दस्तावेज़ों के ढेर जमा थे। उन्होंने दस्तावेज़ों को बाहर निकालकर मेज पर रखा। उन्हीं में से एक काग़ज़ निकालकर दिखाते हुए उन्होंने कहा, “देखिए, इस व्यक्ति को पेंशन नहीं मिल रही है अब तक। यहां के आप विधायक और भाजपा सांसद, दोनों ही सहज उपलब्ध रहने वाले जन-प्रतिनिधि हैं। अगर आप किसी ज़रूरी काम या अपनी कोई समस्या लेकर उनके पास जाते हैं, वे अच्छे से पेश आते हैं और हमारी बात पर गौर भी करते हैं।”

जब हमने उनसे सीएए व एनआरसी पर बात की तो पिता और पुत्र दोनों ने एकसुर से इसका समर्थन किया। अश्वनी के पिता ने कहा, “मुझे यह बात समझ नहीं आती कि आख़िर क्यों इसका इतना विरोध हो रहा है। जब सरकार ने कोई कानून बना दिया है तो वह सही ही होगा। सरकार में मूर्ख थोड़े है, वे पढ़े-लिखे लोग हैं। यह सब फैसला लेते हुए उन्होंने देश के बारे में ज़रूर सोचा होगा।”

जो लोग कानून का विरोध कर रहे हैं, उनके बारे में आप क्या कहेंगे? इसका जवाब देते हुए अश्वनी ने कहा, “तरह-तरह के लोग होते हैं और आज तो जामिया के पास प्रदर्शन में गोली भी चली है” अश्वनी के मुताबिक गोली किसी प्रदर्शनकारी ने चलाई है, जो कि पूरी तरह गलत जानकारी है। उन्होंने आगे कहा, “यहां मित्तल कॉलोनी में रह रहे मुस्लिम भले हैं। वे अमनपसंद हैं।”

उनके पिता ने बातचीत के बीच में ही टोका, “यहां 125 करोड़ लोग रहते हैं, कौन जानता है कि कैसे-कैसे लोग यहां आ जा रहे हैं।”

जब हमने शाहीन बाग़ से जुड़े खुलासे का ज़िक्र करते हुए कहा कि कहा जा रहा है कि प्रोटेस्ट प्रायोजित है और महिलाओं को इसके लिए पैसे दिए जा रहे है तो अश्वनी कहते हैं, “लोगों के बारे में इस तरह की बातें करना ग़लत है। यह अफ़वाह से अधिक कुछ नहीं है और लोगों को इसे फैलाने में मजा आ रहा है। यह झूठ भी तो हो सकता है न।” शुरुआती 20 मिनट की बातचीत से कुछ बातें निश्चित तौर पर स्पष्ट हो जाती हैं।

अव्वल तो यह है कि भाजपा द्वारा फैलाया गया सनसनीखेज़ वीडियो इस दुकान पर शूट किया गया था। वीडियो के बैकग्राउंड में जो भी चीज़ें नज़र आती हैं वो दुकान से हुबहू मेल खाती है – जैसे कि अंडे, दीवार, नंबर आदि।

दूसरी बात, वीडियो में तीन आवाज़ें सुनाई पड़ती हैं: आरोप लगाने वाले व्यक्ति की आवाज़ जिसे वीडियो में साफ़ देखा जा सकता हैं, दो अन्य दूसरे लोगों की आवाज़, जिनकी झलक नहीं दिखाई पड़ती। जहां तक हमें लगता है, उन अन्य दो आवाज़ों में से एक अश्वनी कुमार के पिता की है, जिसका स्वर थोड़ा उंचा है और आवाज़ में भारीपन है। बल्कि ऐसा लगता है कि उनके पिता ने ही वीडियो में कहा, “सब कांग्रेस का खेल है।” बाद में यही लाइन अमित मालवीय ने अपने ट्वीट के कैप्शन में लिखी, इसे ही ‘टाइम्स नाउ’ पर भी दोहराया गया।

इसी तरह, अश्वनी कुमार की आवाज़ भी वीडियो में कैमरे के पीछे से आती आवाज़ से हूबहू मेल खाती है।

तीसरी बात जो सामने आती है कि वीडियो स्टिंग कैमरे की बजाय मोबाइल फ़ोन के कैमरे से बनाया गया था। वीडियो का ओरिजिनल फ़्रेम फ़ोन-साइज़ फ्रेम की तरह है, जो अमित मालवीय के शेयर में थोड़ा छोटा हो गया था।

अब अगर इन तमाम पहलुओं पर गौर करें तो सवाल पैदा होता है, क्या अश्वनी कुमार ने ख़ुद ही वह वीडियो बनाया?

जब उनसे इस बाबत हमने पूछा कि क्या वीडियो की शूटिंग दुकान में ही हुई तो वे चिढ़ गये और नाराज़गी भरे लहज़े में इस पर बात करने से इनकार कर दिया और कहा, “दो लोग किसी भी दुकान में जा सकते हैं, बकवास बातें कर सकते हैं और वीडियो बनाकर उसे वायरल कर सकते हैं। यह कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है बल्कि बहुत आसान है।”

तो क्या वह वीडियो आपकी दुकान पर शूट किया गया था? इसके जवाब में उन्होंने फिर जोर देकर कहा, “नहीं”।

बातचीत का रुख चुनावी मुद्दों से शाहीन बाग़ की तरफ़ मुड़ गया था, अब कुमार को बेशक पता चल गया था कि हम भाजपा के फैलाए उस वीडियो की छानबीन कर रहे हैं। उन्होंने रक्षात्मक रवैया अपनाते हुए सतर्कता से ज़ोर देकर कहा कि वे किसी भी राजनीतिक दल से संबंध नहीं रखते। उन्होंने अपशब्द कहना शुरू किया और हमसे नोटबुक ले लिया, ज़ोर-ज़बरदस्ती करते हुए नोटबुक से अपना नाम मिटा देने की कोशिश की, जहां नाम के साथ ‘भाजपा कार्यकर्ता’ लिखा था। इसके बाद उन्होंने नोटबुक से कई पन्ने भी फाड़ लिये।

जैसे ही मैंने उन्हीं की दुकान से ली हुई सिगरेट जलाई, कुमार यह कहते हुए वीडियो बनाने लगे, “देखो, यह आदमी मेरी ही दुकान पर मेरी इजाज़त के बिना सिगरेट पी रहा है।”

उन्होंने आगे कहा, “वह वीडियो जहां कहीं भी बना हो, आप एक बात जान लीजिए। वीडियो में जो लड़का है उसे कुछ नहीं पता था। वह तो बच्चा है, नासमझ है और मुझे भी भाजपा, आप या कांग्रेस से कोई लेना-देना नहीं है।” इस ‘लड़के’ का संकेत उस व्यक्ति की ओर है जो वीडियो में यह कहते हुए नज़र आता है कि शाहीन बाग़ में औरतों को बैठने के एवज़ में पैसे मिल रहे है।

हमारी उस मुलाकात में कुमार आख़िर तक आवेश में रहे और यह मानने से इनकार करते रहे कि वीडियो उनकी दुकान पर ही बनाया गया था। आख़िर में, चार दिन बाद फ़ोन पर उन्होंने स्वीकार किया, “वीडियो मेरी ही दुकान पर बनाया गया था। लेकिन वह कोई और था, जिसने छिपकर बाहर से वीडियो बनाया था और उसमें जो भी बातें कही गई वो झूठ हैं।”

अश्वनी की यह दलील पर यकीन करना मुश्किल है कि वीडियो दुकान के बाहर से किसी बाहरी व्यक्ति द्वारा शूट किया गया था। वीडियो में आरोप लगाने वाला शख्स, जो दुकान में बाहर की ओर डेस्क के उस पार खड़ा है, वह कैमरे के पीछे वाले शख्स की बातों का जवाब देते हुए दुकान के अंदर ही नज़र आता है।

वीडियो में 1:24 मिनट पर जब कैमरा ज़ूम आउट होता है तो यह साफ़ नज़र आता है कि जो व्यक्ति वीडियो बना रहा है, वह दुकान के अंदर है। बाहर खड़े व्यक्ति को उस फ्रेम से वीडियो बनाने के लिए, अपने हाथ फैलाने होंगे। ऐसा असंभव है कि रिकॉर्डिंग में अगर इतनी मेहनत-मशक्कत की जाए तो उस पर नज़र न जाएगी और छिपकर यह करना नामुमकिन है जबकि कुमार का दावा था कि यह सब छिपकर हुआ। जब कुमार को हमने यह दिखाया तो उन्होंने कहा, “उनके पिता की उम्र हो चली है इसलिए वे ध्यान न दे पाए होंगे कि क्या हो रहा।”

बात प्रूफ़ की नहीं, कॉमन सेंस की है

अश्वनी कुमार की दुकान से तक़रीबन 50 मीटर दूर पड़ोस में भाजपा के समर्थन में झंडा लहरा रहा था। यह पड़ोस के एक मकान की छत पर लगा था। यह पुल प्रह्लादपुर के स्थानीय भाजपा नेता भंवर सिंह राणा का घर है।

हंसमुख मिजाज़ के राणा यह मानते हैं कि शाहीन बाग़ की औरतों को धरने की एवज़ में पैसे दिए जा रहे हैं। वे इस बात का प्रमाण नहीं दे सकते हैं, वे इसके लिए ‘कॉमन सेंस’ का हवाला देते हैं। वे कहते हैं कि, “अगर धरना प्रायोजित नहीं है तो वे औरतों को सड़क पर क्यों बैठा रहे है?” राजनीति, भाजपा, न्यूज़, और पत्रकारों पर तकरीबन एक घंटे तक चली बातचीत के बाद राणा कहते हैं कि न्यूज़ चैनलों में उन्हें ‘रिपब्लिक भारत’ पसंद है।

मैंने उनसे जानबूझकर ग़लत सवाल किया कि क्या यह वही चैनल नहीं है, जिसने शाहीन बाग़ की प्रदर्शनकारी महिलाओं का स्टिंग किया था? वे मुस्कुराए, पास में ही बैठे अपने सहायक की तरफ़ मुड़े और लगभग शरारत भरे लहज़े में पूछा, “तुमको पता है वह स्टिंग किसने किया?” इसके बाद उन्होंने जवाब भी खुद ही दे दिया, “वह यहीं पास का ही है। हमारे पड़ोस में एक दुकान है। एक लड़का वहां खड़ा था और उसने कुछ-कुछ बातें बोली और किसी ने उसका वीडियो बना दिया.”

जब हमने राणा से उस दुकान के मालिक से मिलवाने का निवेदन किया तो उन्होंने मना कर दिया। उन्होंने कहा, “उस व्यक्ति ने मुझसे अपनी पहचान ज़ाहिर न करने का निवेदन किया है। मुझे नहीं पता कि वह लड़का कौन है, लेकिन मैं दुकान वाले को जानता हूं। वह मेरा करीबी है।”

जब हमने अधिक पूछताछ की तो राणा ने भी हमें कुछ-कुछ वैसा ही जवाब दिया जैसा अश्वनी कुमार ने दिया था। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “दुकान के बाहर खड़े एक व्यक्ति ने वीडियो बनाई थी, दुकान के मालिक ने नहीं। आप उस वीडियो को अपने पास सहेजकर रखिए। आप 8 फ़रवरी के बाद मेरे पास आइयेगा, चुनाव के बाद मैं आपको दुकान के मालिक से मिलवा दूंगा।”

फ़र्ज़ी सनसनीखेज खुलासा

जिन न्यूज़ चैनलों/ मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर इस तथाकथित ‘स्टिंग’ को न्यूज़ की तरह लगातार बेचा गया है, यहां तक की उसपर प्राइमटाइम डिबेट तक आयोजित किया गया, अगर उन्होंने इस संदर्भ में थोड़ी जांच-पड़ताल अपने स्तर पर की होती तो ऑल्ट न्यूज़-न्यूज़लॉन्ड्री को यह छानबीन करने की कोई ज़रूरत नहीं पड़ती।

पूरा वाकया कुछ इस तरह है: दिल्ली के एक कोने में तीन लोग इकट्ठा होकर 8 किलोमीटर दूर चल रहे धरना-प्रदर्शन को लेकर फ़र्ज़ी, भ्रमित करने वाला दावा करते हैं, एक व्यक्ति उसको फिल्माता है, केंद्र सरकार में जिस दल की सरकार है वो उस फुटेज को सोशल मीडिया पर साझा करती है, क्लिप वायरल होती है और अंततः टाइम्स नाउ, रिपब्लिक टीवी और इंडिया टुडे जैसे न्यूज़ चैनल इस पर टीवी डिबेट आयोजित करते हैं।

ऐसे लंबे-चौड़े अफ़वाह जनित दावों, जिनसे न केवल उस दुकानदार ने ख़ुद को अलग कर लिया बल्कि जिसके पक्ष में भाजपा भी किसी भी तरह का प्रामाणिक दस्तावेज़ पेश करने में असफल रही, इससे भले ही लोगों का ध्यान आकर्षित हो जाए या विज्ञापन रेवेन्यू में इज़ाफ़ा हो जाए, लेकिन इस पूरे घटनाक्रम के संदर्भ में मीडिया के रवैये से आधारहीन व अप्रामाणिक दावों को वैधता हासिल हुई है।

यह घटना भी उसी पूरी सोची समझी प्रक्रिया का एक हिस्सा है, जिसके तहत शाहीनबाग़ की महिला प्रदर्शनकारियों की छवि धूमिल करने की कोशिश की गई। इसके लिए छेड़छाड़ की गई तस्वीरों व एडिट किये गए वीडियो का इस्तेमाल किया गया। राजनैतिक गलियारों में फौरी तौर पर एक के बाद एक इस तरह की तमाम गतिविधियां हुईं, जिनमें छवियां बिगाड़ने की कोशिशें लगातार जारी रहीं और उनसे राजनैतिक हित साधने के प्रयास लगातार किये गए। गृहमंत्री अमित शाह ने बयान देते हुए कहा, आप लोग ईवीएम का बटन इतने गुस्से में दबाना कि करंट शाहीन बाग के अंदर लगे। भाजपा के ही एक मंत्री भीड़ से नारे लगवाए, ‘देश के गद्दारों को, गोली मारो सालों को’। इस तरह के बयानों व मीडिया प्रोजेक्शन से शाहीन बाग़ के बच्चों व बड़े-बूढ़ों की ज़िंदगी पर खतरे का साया मंडराने लगा है।

हमने इस संबंध में अमित मालवीय की प्रतिक्रिया जानने के लिए संपर्क किया। हालांकि, उन्होंने हमें कोई जवाब नहीं दिया। अगर उनका जवाब आता है तो उनकी प्रतिक्रिया खबर में जोड़ दी जाएगी।

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