हाल ही में केंद्र और योगी आदित्यनाथ की यूपी सरकार के बीच तनातनी की रिपोर्ट्स सामने आ रही थीं. अगले साल राज्य में विधानसभा चुनाव भी होने हैं. इसी बीच कोविड-19 को लेकर पीएम मोदी के कुप्रबंध और यूपी में गंगा में बहते शवों की संख्या बढ़ने और योगी आदित्यनाथ की कड़ी आलोचना के बाद अटकलें लगाई जा रही थीं कि प्रधानमंत्री और यूपी के मुख्यमंत्री के संबंधों में खटास आने लगी है. इसके बाद योगी आदित्यनाथ ने अफ़वाहों को ख़ारिज करते हुए कहा कि भाजपा उनके नेतृत्व से खुश है. मुख्यमंत्री 10 जून को दिल्ली में गृहमंत्री अमित शाह से मिले. इस मुलाकात की एक तस्वीर सामने आई जिसमें योगी आदित्यनाथ अमित शाह को एक किताब भेंट करते दिख रहे हैं. किताब का टाइटल है- कोविड-19 एवं प्रवासी संकट का समाधान: उत्तर प्रदेश पर एक रिपोर्ट.

इसके अगले ही दिन योगी आदित्यनाथ ने यही किताब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को सौंपी. जेपी नड्डा को सौंपी गयी किताब अंग्रेज़ी में है जिसका टाइटल है- COVID-19 & The Migrant Crisis Resolution: A Report On Uttar Pradesh.

न्यूज़ एजेंसी UNI ने रिपोर्ट किया, “लगभग एक शताब्दी में पहली बार इतने बड़े स्तर पर आये प्रवासी संकट से निपटने के लिए किये गये शानदार काम के प्रमाण के तौर पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हार्वर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा किये गये शोध की किताब सौंपी.”

रिपोर्ट में आगे लिखा गया, “यही नहीं, सीएम योगी ने पीएम मोदी को तीन किताबें सौंपी. पहली हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के शोध वाली है. दूसरी, जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी द्वारा किये गये ऐसे ही शोध की किताब, और तीसरी, ज़िला स्तर पर सकल घरेलू उत्पाद के अवलोकन की.”

डेली पायनियर ने भी 12 जून को यही रिपोर्ट किया.

ये शोध हार्वर्ड का नहीं है

अदित्यनाथ ने जो हिंदी की किताब अमित शाह को सौंपी, वो अंग्रेज़ी की ओरिजिनल किताब का अनुवाद है जिसका टाइटल है, “COVID-19 & The Migrant Crisis Resolution: A Report On Uttar Pradesh.” इस किताब के कवर पर दो लोगो हैं – इंस्टिट्यूट फ़ॉर कम्पेटिटिवनेस (IFC) और माइक्रोइकोनॉमिक्स ऑफ़ कम्पेटिटिवनेस (MOC). ये दोनों हार्वर्ड बिज़नेस स्कूल से मान्यता प्राप्त संस्थान हैं.

अप्रैल में इसी शोध को कई मीडिया आउटलेट्स ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी का बताते हुए योगी आदित्यनाथ सरकार की तारीफ़ के कसीदे पढ़े थे और कहा था कि यूपी ने बाकी राज्यों के मुकाबले बेहतर तरीके से प्रवासी संकट का प्रबंधन किया था. ऑल्ट न्यूज़ ने बताया था कि ये शोध हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने नहीं किया था बल्कि इसे IFC ने तैयार किया था. इस शोध को ‘State Media 1’ नाम के एक व्हाट्सऐप ग्रुप में भेजा गया था जिसमें यूपी सरकार पत्रकारों से संपर्क करती है. पिछली बार की तरह इस बार भी IFC के शोध को हार्वर्ड बताते हुए उसी ग्रुप में शेयर किया गया.

IFC की वेबसाइट के मुताबिक, “ये हार्वर्ड बिज़नेस स्कूल के स्ट्रेटेजी ऐंड कम्पेटिटिवनेस (ISC) के वैश्विक नेटवर्क का भारतीय अंग है.” IFC खुद को हार्वर्ड बिज़नेस स्कूल का हिस्सा नहीं बताता है. ISC की विवरण पुस्तिका में भी इसे MOC से मान्यता प्राप्त बताया गया है और ये हार्वर्ड का प्रतिस्पर्धा और आर्थिक विकास पर एक कोर्स है. इस कोर्स को प्रोफ़ेसर माइकल पोर्टर और उनके साथियों और इंस्टिट्यूट फ़ॉर स्ट्रेटेजी ऐंड कम्पेटिटिवनेस (ISC) से जुड़े हुए संस्थानों ने तैयार किया है.

IFC के संमानित चेयरमैन अमित कपूर ने ऑल्ट न्यूज़ को ई-मेल के ज़रिये बताया, “MOC की स्टडी को हार्वर्ड स्टडी बताना सही नहीं है.” उन्होंने आगे कहा, “मीडिया रिपोर्ट्स में जो बताया गया है कि यूपी सरकार ने प्रवासियों के संकट को बाकी राज्य से ज़्यादा बेहतर संभाला है, वो सही नहीं है. इस रिपोर्ट में किसी और राज्य से तुलनात्मक विश्लेषण नहीं है. ये उत्तर प्रदेश सरकार के प्रयासों और उठाये गए क़दमों का दस्तावेज़ है.”

उन्होंने आगे कहा, “ये दस्तावेज़ आंतरिक इस्तेमाल के लिए था, न कि सार्वजनिक करने के लिए. इसके अलावा, अगर आप ध्यान दें, इस स्टडी में कहीं भी इसे हार्वर्ड स्टडी नहीं कहा गया है. बल्कि इसे इंस्टिट्यूट फ़ॉर कम्पेटिटिवनेस का काम बताया गया है. हमें अंदेशा नहीं था कि लोग इसे ग़लत समझ लेंगे. इस रिपोर्ट से लोगो को हटा लिया जाएगा ताकि ग़लतफ़हमी न रहे.

प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और गृहमंत्री को जब हार्वर्ड के लोगो के साथ वाली रिपोर्ट सौंपी गयी तो ऑल्ट न्यूज़ ने अमित कपूर से दोबारा संपर्क किया. उन्होंने कहा, “जैसा कि पहले बताया गया था, ये रिपोर्ट आंतरिक इस्तेमाल के लिए थी न कि सार्वजनिक करने के लिए. जहां तक आपका सवाल है, IFC ने रिपोर्ट से MOC नेटवर्क का लोगो हटा दिया है, जो मैं इस मेल में भी भेज रहा हूं. इंस्टिट्यूट फ़ॉर कम्पेटिटिवनेस ने ये रिपोर्ट अभी सार्वजानिक तौर से जारी नहीं की है और फ़िलहाल ये आंतरिक तौर से साझा की गयी है. जो रिपोर्ट शेयर की जा रही है उसे इंस्टिट्यूट फ़ॉर कम्पेटिटिवनेस ने प्रिंट या पब्लिश नहीं किया है.”

गौरतलब है कि इस रिपोर्ट में कहीं नहीं लिखा है कि ये सिर्फ़ आंतरिक इस्तेमाल के लिए है.

नीचे शोध की उस कॉपी की तस्वीर (दायीं तरफ़) है जिसे अमित कपूर ने भेजा है. अपडेट की गयी कॉपी से MOC का लोगो हटा लिया गया है.

UNI ने रिपोर्ट किया कि उपरोक्त शोध जैसा ही एक अन्य शोध जॉन हॉपकिन्स ने भी किया था जिसे प्रधानमंत्री को सौंपा गया. दो महीने पहले न्यूज़रूम पोस्ट, वेब दुनिया और द पायनियर ने जॉन हॉपकिन्स की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए ग़लत दावा किया था कि कोविड-19 प्रबंधन में उत्तर प्रदेश ने सर्वोत्तम काम किया है. लेकिन इस अध्ययन को लिखने वालों में शामिल जॉन्स हॉपकिन्स के डिपार्टमेंट ऑफ़ इंटरनेशनल हेल्थ के प्रोफ़ेसर डॉ. डेविड पीटर्स ने भारतीय मीडिया के दावों को ख़ारिज किया था.

उन्होंने ऑल्ट न्यूज़ को बताया, “इस केस स्टडी में 30 जनवरी 2020 से लेकर 15 जनवरी, 2021 के अन्तराल में कोविड-19 के खिलाफ़ उत्तर प्रदेश द्वारा उठाये गए कदमों का विश्लेषण किया गया है. इसका लक्ष्य संसाधन की कमी वाली जगहों में किये गए प्रबंधन का मुआयना करना और बेहतरी के लिए सीख लेना था. जैसा कि आप रिपोर्ट में भी देख सकते हैं, इस केस स्टडी में किसी और राज्य या देश से तुलना नहीं की गयी है, और न ही इसमें कहा गया है कि कौन-से राज्यों या राष्ट्रों ने बेहतर प्रदर्शन किया है.”

अप्रैल में मीडिया ने दो शोध के बारे में रिपोर्ट करते हुए कहा था कि इन्हें हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी ने तैयार किया है जिसमें यूपी सरकार को प्रवासी संकट और कोविड-19 प्रबंधन बाकी राज्यों से बेहतर प्रदर्शन किया है. इन दावों को सोशल मीडिया और व्हाट्सऐप पर भी खूब शेयर किया गया. हार्वर्ड के नाम पर प्रचारित की गयी रिपोर्ट को बढ़-चढ़ कर शेयर करने वालों में पत्रकार भी शामिल थे. लेकिन न ये दावे सही निकले और न ही दोनों यूनिवर्सिटी का इनसे सम्बन्ध. इसके बारे में दो महीने पहले सफ़ाई आने के बावजूद यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसे प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और गृहमंत्री को सौंपी. यही नहीं, ये ग़लत दावा सरकार ने पत्रकारों के व्हाट्सऐप ग्रुप में भी दोहराया.


दैनिक जागरण की स्टोरी का फ़ैक्ट-चेक: प्रयागराज में गंगा के किनारे दफ़न शव ‘आम बात’ हैं?

डोनेट करें!
सत्ता को आईना दिखाने वाली पत्रकारिता का कॉरपोरेट और राजनीति, दोनों के नियंत्रण से मुक्त होना बुनियादी ज़रूरत है. और ये तभी संभव है जब जनता ऐसी पत्रकारिता का हर मोड़ पर साथ दे. फ़ेक न्यूज़ और ग़लत जानकारियों के खिलाफ़ इस लड़ाई में हमारी मदद करें. नीचे दिए गए बटन पर क्लिक कर ऑल्ट न्यूज़ को डोनेट करें.

बैंक ट्रांसफ़र / चेक / DD के माध्यम से डोनेट करने सम्बंधित जानकारी के लिए यहां क्लिक करें.

Tagged:
About the Author

🙏 Blessed to have worked as a fact-checking journalist from November 2019 to February 2023.