सोशल मीडिया पर एक वीडियो इस दावे के साथ जमकर शेयर किया जा रहा है कि दिल्ली के हज़रत निज़ामुद्दीन दरगाह में लोगों ने कोरोना वायरस फैलाने के लिए एक साथ छींक मारी. नीचे आप अनीता सक्सेना का एक फ़ेसबुक पोस्ट देख सकते हैं, जिसके वीडियो को लगभग 24,000 बार देखा गया है और 1,700 बार शेयर भी किया जा चुका है.

nizzamuddin

यही क्लिप ट्विटर पर भी शेयर की जा रही है.

सूफ़ियों के धार्मिक आयोजन का असंबंधित वीडियो

ऑल्ट न्यूज़ ने पता लगाया कि ये वीडियो इससे पहले पाकिस्तान में कोरोना वायरस के दावे के साथ सोशल मीडिया पर सर्कुलेट हो रहा था. ये ट्वीट 30 जनवरी का है. एक पाकिस्तानी यूट्यूब चैनल ने इससे एक दिन पहले, यानी 29 जनवरी को ये वी़डियो अपलोड किया था. वीडियो और भी पुराना हो सकता है. हालांकि, ऑल्ट न्यूज़ को ओरिजिनल वीडियो का पता नहीं लग सका. भारत में कोरोना वायरस का पहला मामला 30 जनवरी, 2020 को सामने आया था.

इस वीडियो के फ़्रेम्स को रिवर्स इमेज सर्च करने पर हमें 4 मार्च का एक ट्वीट मिला. ये उर्दू में था. हिंदी में इसका मतलब है – “सूफ़ी दीवानगी”.

अपनी रिसर्च के दौरान, हमने वीडियो क्लिप के कुछ बिंदुओं पर गौर किया:

  1. ये लगभग असंभव है कि इतने सारे लोग एक साथ तालमेल बिठाकर ज़ोर-ज़ोर से छींकें.
  2. देखने से ऐसा लग रहा है कि ये लोग तेज गति से हवा अंदर ले रहे हैं और बाहर छोड़ रहे हैं.

इन ऑब्ज़र्वेशन और ऊपर के ट्वीट के आधार पर, हमने गूगल पर “Sufi breathing’ कीवर्ड सर्च किया. हमें कई ऐसे वीडियो मिले जिसमें ‘ज़िक्र’ शब्द का इस्तेमाल किया गया था.

सूफ़ी संगठन ‘अंसारी क़ादिरी रिफ़ाई तरीक़ा’ की वेबसाइट के मुताबिक़, ‘ज़िक्र’ एक ऐसी प्रथा है जहां उपासक एक साथ मिलकर अल्लाह को याद करते हैं. इसे कई तरह से किया जा सकता है. जैसे, “पारंपरिक व्यवस्था में, अल्लाह के नाम ज़िक्र में दर्ज होते हैं, और हर नाम को, सभी लोग मिलकर, प्राय: सैकड़ों बार दोहराते हैं. कुछ हरकतें, जैसे कि आगे-पीछे डोलना या दाएं से बाएं की तरफ़ झुकना, नाम दोहराने के दौरान एक साथ की जाती हैं. कुछ तरीक़ो में, बांहें फैलाकर, एक पैर पर, पूरे शरीर को घुमाते हुए प्रार्थना करना भी पारंपरिक है.”

नीचे एक वीडियो है, जिसमें वायरल वीडियो की तरह ही लोगों को आगे और पीछे झुककर ‘अल्लाह’ का नाम लेते हुए देखा जा सकता है.

सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में भी लोग इसी तरह बार-बार अल्लाह का नाम ले रहे हैं. पाठकों से निवेदन है कि वे ईयरफोन लगाकर ऑडियो को लूप में सुनें, खासकर 40 सेकेंड्स के बाद से.

कर्नाटक के गुलबर्ग में स्थित, केबीएन यूनिवर्सिटी में उर्दू के प्रोफेसर, डॉ. हामिद अकबर ने ऑल्ट न्यूज़ से बात की. उन्होंने कहा, “सूफ़ीवाद के चार प्रमुख सिलसिला (व्यवस्थाओं) में, इस तरह का ज़िक्र देखा जा सकता है, लेकिन ये इससे (वायरल वीडियो से) कहीं अधिक जटिल होता है. जो आवाज़ आप सुन रहे हैं, वो ‘सांस का ज़िक्र’ या ‘ज़िक्र ए-अनफ़ास’ है, जिसका मतलब होता है, अपनी सांस के साथ अल्लाह का नाम लेना. अगर आप ध्यान से सुनेंगे, तब आपको पता चलेगा कि वो ‘अल्लाहू’ (वीडियो में) का नाम ले रहे हैं.”

वायरल वीडियो में दिख रही मस्जिद न तो निज़ामुद्दीन मस्जिद है और न ही निज़ामुद्दीन दरगाह

डॉ. अकबर ने आगे कहा कि उन्होंने तब्लीग़ी जमात के कार्यक्रमों में ऐसी कोई रस्म नहीं देखी है, जैसा कि वायरल वीडियो में दिख रहा है. इन आयोजनों में नमाज़ (इस्लामिक प्रार्थना) और रोज़ा (उपवास) के महत्व पर ध्यान दिया जाता है. तब्लीग़ी जमात का आयोजन निज़ामुद्दीन मस्जिद में होता है, जिसे तब्लीग़ी मरकज़ या बंगलेवाली मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है.

मस्ज़िद से लगभग आधे किलोमीटर की दूरी पर स्थित निज़ामुद्दीन दरगाह के अहाते में क़व्वालियां (सूफ़ी भक्ति संगीत) गाई जाती हैं. हालांकि, जब ‘आज तक’ ने फ़र्ज़ी दावा किया किया कि क़्वारंटीन किए गए 33 लोगों ने दरगाह के एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया था, दरगाह ने तब्लीग़ी जमात से दूरी बना ली थी, .ट्वीट में लिखा था, “ये स्पष्ट है कि ख़बर निज़ामु्द्दीन तब्लीग़ी मरकज़ के बारे में है, न कि दरगाह के बारे में.”

नीचे, दरगाह की एक तस्वीर है जिसमें क़व्वालों को अहाते में बैठे देखा जा सकता है.

इसलिए, सूफ़ियों के रस्म अता करने के एक वीडियो को ग़लत तरीके से निज़ामुद्दीन मस्जिद का बताकर शेयर किया गया. साथ में ये फ़र्ज़ी दावा भी किया गया कि ये लोग कोरोना वायरस फैलाने के लिए जान-बूझकर छींक रहे हैं. इससे पहले, बोहरा मुसलमानों द्वारा बचे खाने की बर्बादी रोकने के लिए, बर्तन चाटने के वीडियो को ऐसे ही दावे के साथ शेयर किया गया था.

तब्लीग़ी जमात में शामिल हुए लोग, भारत में तीन जगहों पर हुए टेस्ट में पॉजिटिव पाए गए हैं. जिसके बाद से, निज़ामुद्दीन की पहचान ‘कोरोना वायरस हॉटस्पॉट’ के तौर पर हो रही है. इस संगठन ने, मार्च के मध्य में, दिल्ली के निज़ामुद्दीन इलाके में स्थित अपने मुख्यालय (मरकज़), बंगलेवाली मस्जिद में एक कार्यक्रम का आयोजन किया था. अब दिल्ली सरकार ने मस्जिद के एक मौलवी पर एफ़आईआर दर्ज करवाई है. तब्लीग़ी जमात का कहना है कि उनका आयोजन अवैध नहीं था, क्योंकि ये पीएम मोदी द्वारा, पहले लॉकडाउन (जनता कर्फ्यू, 22 मार्च) की घोषणा से पहले हुआ था. हालांकि, दिल्ली सरकार का दावा है कि बड़ी सभाओं पर पाबंदी, के 13 मार्च को जारी आदेश, का उल्लंघन हुआ है. विडंबना देखिए, इसी दिन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने घोषणा की थी कि कोविड-19 हेल्थ इमरजेंसी नहीं है. हालांकि, 13 मार्च का आदेश धार्मिक सभाओं के लिए नहीं था. 16 मार्च को इस संबंध में आए आदेश में ही धार्मिक सभाओं को जोड़ा गया था. अगर रिपोर्ट्स की मानें, तो तब्लीग़ी जमात का आयोजन 8 मार्च से 15 मार्च के बीच हुआ था.

नोट: भारत में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या 2000 के पार जा पहुंची है. इसकी वजह से सरकार ने बुनियादी ज़रुरतों से जुड़ी चीज़ों को छोड़कर बाकी सभी चीज़ों पर पाबंदी लगा दी है. दुनिया भर में 9 लाख से ज़्यादा कन्फ़र्म केस सामने आये हैं और 47 हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. लोगों में डर का माहौल बना हुआ है और इसी वजह से वो बिना जांच-पड़ताल किये किसी भी ख़बर पर विश्वास कर रहे हैं. लोग ग़लत जानकारियों का शिकार बन रहे हैं जो कि उनके लिए घातक भी साबित हो सकता है. ऐसे कई वीडियो या तस्वीरें वायरल हो रही हैं जो कि घरेलू नुस्खों और बेबुनियाद जानकारियों को बढ़ावा दे रही हैं. आपके इरादे ठीक हो सकते हैं लेकिन ऐसी भयावह स्थिति में यूं ग़लत जानकारियां जानलेवा हो सकती हैं. हम पाठकों से ये अपील करते हैं कि वो बिना जांचे-परखे और वेरीफ़ाई किये किसी भी मेसेज पर विश्वास न करें और उन्हें किसी भी जगह फ़ॉरवर्ड भी न करें.

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