20 फ़रवरी को ऑल्ट न्यूज़ ने रिपोर्ट किया कि जागरण मीडिया के विश्वास न्यूज़, इंटरनेशनल फ़ैक्ट-चेकिंग नेटवर्क (IFCN) की एक सिग्नेटरी मीडिया वेबसाइट ने कम से कम दो IFCN कोड ऑफ़ कंडक्ट का पालन नहीं किया –

  • कार्यप्रणाली के स्टैंडर्डस और ट्रांसपेरेंसी के प्रति प्रतिबद्धता
  • 5.2 आवेदक मुख्य रूप से दावों की पहुंच और महत्व के आधार पर जांच के लिए दावों का चयन करता है, और जहां तक संभव हो जांच के लिए इन दावों को चुनने की वजह भी बताता है.
  • एक खुली और ईमानदार सुधार नीति के प्रति प्रतिबद्धता

6.5 यदि आवेदक किसी मीडिया कंपनी की फ़ैक्ट-चेकिंग यूनिट है, तो ये सिग्नेटरी स्टेटस की रिक्वायरमेंट है कि पैरेंट मीडिया कंपनी के पास एक खुली और ईमानदार सुधार नीति हो साथ ही उसका पालन करती हो.

2020 से IFCN, मेटा (फ़ेसबुक) का फ़ैक्ट-चेकिंग पार्टनर है.

ऑल्ट न्यूज़ की रिपोर्ट में जनवरी 2021 और जुलाई 2022 के बीच दैनिक जागरण द्वारा पब्लिश ग़लत जानकारियों के 17 इंस्टैंस का डॉक्यूमेंटेशन किया गया था. साथ ही बताया गया था कि इन 17 ग़लत रिपोर्ट्स में से 6 को सही या अपडेट नहीं किया गया था.

विश्वास न्यूज़ ने हमारी रिपोर्ट का जवाब एक आर्टिकल से दिया जिसका टाइटल है, “ऑल्ट की रिपोर्ट में झूठे-भ्रामक दावे, आधे-अधूरे तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया.”

इस प्रतिक्रिया के बारे में ध्यान देने योग्य कुछ बातें इस प्रकार हैं:

A. इसमें IFCN आचार संहिता के उल्लंघन के संबंध में विश्वास न्यूज़ पर हमारे द्वारा लगाए गए दो प्रमुख आरोपों का कोई ज़िक्र ही नहीं है.

B.ऑल्ट न्यूज़ ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि विश्वास न्यूज़ की सहयोगी संस्था दैनिक जागरण की 17 ग़लत स्टोरीज़ में से 6 को सुधार के साथ अपडेट नहीं किया गया था. प्रतिक्रिया में कहा गया है, “ऑल्ट न्यूज़ द्वारा पॉइंट आउट किए जाने के बाद, सुधार नीति और स्थापित SOPs के मुताबिक, तीन स्टोरीज़ को सुधारा गया था.”

C. प्रतिक्रिया में कहा गया है कि तीन अन्य स्टोरीज़ में कोई ग़लत सूचना नहीं थी. हालांकि, उनमें से सिर्फ एक को इस एक्स्प्लेनेशन के लिए लिया गया है कि दैनिक जागरण अपनी रिपोर्ट पर क्यों अड़ा है. (झारखंड में कथित तौर पर पाकिस्तान ज़िंदाबाद के नारे लगाए जाने पर एक स्टोरी) अन्य दो स्टोरी का ज़िक्र भी नहीं है.

D. ऑल्ट न्यूज़ ने कहा था कि हम ये पता नहीं लगा सके कि दैनिक जागरण के प्रिंट एडिशन में पब्लिश दो ख़बरों में सुधार किया था या नहीं. प्रतिक्रिया में कहा गया है कि प्रयागराज एडिशन में उनमें से एक (हेडलाइन: वो चीखता रहा, लाठियां बरसती रही) के पब्लिश होने के अगले ही दिन एक भूल सुधार के साथ पब्लिश किया गया था.

E. इसमें बताया गया है कि ऑल्ट न्यूज़ द्वारा फ़्लैग की गई अन्य प्रिंट स्टोरीज़ में कोई ग़लत सूचना नहीं थी (हेडलाइन: असम में बाढ़ आई नहीं, लाई गई थी). इसके बाद विश्वास न्यूज़ इस मामले पर संबंधित ऑल्ट न्यूज़ की स्टोरी की ‘सच्चाई’ की जांच करता है जहां हमने बताया था कि असम बाढ़ को मीडिया द्वारा अनुचित रूप से सांप्रदायिक ऐंगल दिया जा रहा है.

ध्यान देने वाली बात है कि 20 फ़रवरी का आर्टिकल पब्लिश करने से पहले ऑल्ट न्यूज़ ने MMI ऑनलाइन लिमिटेड के CEO भरत गुप्ता और विश्वास न्यूज़ के प्रधान संपादक और वरिष्ठ उपाध्यक्ष राजेश उपाध्याय से कई बार संपर्क किया था. हालांकि, दोनों में से किसी की तरफ से कोई जवाब नहीं आया.

विश्वास न्यूज़ द्वारा दैनिक जागरण की दो स्टोरीज़ का बचाव

असम बाढ़ की कहानी

20 फ़रवरी के डिटेल्ड आर्टिकल में ‘असम में 2022 सिलचर बाढ़ का सांप्रदायिकीकरण’ सबटाइटल के तहत, ऑल्ट न्यूज़ ने लिखा, “जून में असम बाढ़ पर रिपोर्ट करते वक्त, न्यूज़X ने सिल्चर में बाढ़ को ‘बाढ़ जिहाद’ कहा था और इस आपदा के लिए असम के मुस्लिम समुदाय को दोषी ठहराया था. हिंदी मीडिया आउटलेट दैनिक जागरण ने ‘फ्लड जिहाद’ शब्द का इस्तेमाल नहीं किया, लेकिन जुलाई, 2022 में उसकी रिपोर्ट में कहा गया, “इसके पीछे एक गहरी साजिश के संकेत हैं.”

इसका जवाब देते हुए विश्वास न्यूज़ ने लिखा, “ऑल्ट न्यूज ने अपनी रिपोर्ट में “फ्लड जिहाद” पर अन्य मीडिया हाउस की रिपोर्टिंग का हवाला देते हुए दैनिक जागरण में जुलाई 2022 में प्रकाशित खबर का जिक्र करते हुए असम में आई बाढ़ को “सांप्रदायिक” रंग देने का आरोप लगाया है.”

हमने दैनिक जागरण की 7 जुलाई, 2022 की रिपोर्ट की जांच की थी क्योंकि –

  • हेडलाइन में दावा किया गया कि असम में जानबूझकर बाढ़ लाई गई. शब्द सवालिया निशान के अंदर नहीं थे जिसका मतलब है कि ये अखबार की खोज थी, न कि किसी और की राय.
  • अपने गांव में कथित रूप से एक तटबंध तोड़ने के आरोप में गिरफ़्तार किए गए चार मुस्लिम व्यक्तियों के नामों का ज़िक्र करने से पहले अख़बार ने लिखा, “इसके पीछे एक गहरी साजिश के संकेत हैं.” इससे पता चलता है इनके मुताबिक बाढ़ एक सांप्रदायिक साजिश थी. पाठक ध्यान दें कि स्टोरी के मुताबिक, बांध को तोड़ने के कारणों पर जागरण का आर्टिकल लिखे जाने के समय तक विचार ही किया जा रहा था.
  • रिपोर्ट में आसानी से इस फ़ैक्ट को नज़रअंदाज़ कर दिया गया कि असम के मुख्यमंत्री और कछार पुलिस अधीक्षक ने बाढ़ के पीछे किसी भी ‘सांप्रदायिक साजिश’ का खंडन किया था. दोनों ने बुधवार, 6 जुलाई को बयान दिया था. और जागरण की रिपोर्ट 7 जुलाई को छपी थी.

असम के मुख्यमंत्री, पुलिस और विशेषज्ञों के बयानों के आधार पर, ऑल्ट न्यूज़ ने निष्कर्ष निकाला था, “… 23 मई को, सिंचाई विभाग ने संबंधित पुलिस स्टेशन को बेतकंडी तटबंध के कथित रूप से टूटने के बारे में एक शिकायत भेजी थी जो सिलचर से 10 कि०मी० से कम दूर है. सिलचर शहर 19 जून के आसपास पानी में डूबा हुआ था. ऐसा इसके “इतिहास में पहले कभी” नहीं हुआ था. जुलाई के पहले सप्ताह में चार मुस्लिम व्यक्तियों को तटबंध तोड़ने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था. स्थानीय पत्रकारों ने बताया कि मई में जलजमाव को दूर करने के लिए तटबंध को तोड़ा गया था. इस घटना के एक महीने से ज़्यादा समय के बाद, असम के मुख्यमंत्री ने सिलचर में बाढ़ को “मानव निर्मित” आपदा कहा. कई मीडिया आउटलेट्स ने बाढ़ को “बड़े विवाद” का हिस्सा बताते हुए एक मुस्लिम विरोधी ऐंगल देने की कोशिश की. आपदा की बारीकियों पर रिपोर्ट करने के बजाय, मीडिया आउटलेट्स और पत्रकारों ने सिलचर में बाढ़ के लिए मुस्लिम समुदाय को दोषी ठहराने के लिए इस घटना को “बाढ़ जिहाद” करार दिया. ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि रिपोर्ट ऐसे समय में पब्लिश की गई जब देश के कई हिस्सों में सांप्रदायिक तनाव भड़क गया था.”

ऑल्ट न्यूज़ की रिपोर्ट यहां पढ़ी जा सकती है.

झारखंड में लगा पाकिस्तान ज़िंदाबाद का नारा

दैनिक जागरण द्वारा अक्सर ग़लत सूचनाएं देने के बारे में 20 फ़रवरी के विश्लेषण में ऑल्ट न्यूज़ ने लिखा, “झारखंड में गिरिडीह ज़िले की डोकीडीह पंचायत में मुखिया उम्मीदवार शाकिर हुसैन के नामांकन के दौरान लिया गया एक वीडियो इस दावे के साथ शेयर किया गया कि नामांकन रैली में ‘पाकिस्तान ज़िंदाबाद’ के नारे लगे थे. दैनिक जागरण ने इस संबंध में 23 अप्रैल, 2022 को एक आर्टिकल पब्लिश किया जिसकी हेडलाइन थी, “गिरिडीह में पाकिस्‍तान ज़िंदाबाद की नारेबाजी मामले में मुखिया प्रत्‍याशी को भी भेजा गया जेल, 50-60 अज्ञात पर केस”… जागरण ने दावा किया कि नारेबाजी लगाते समय पाकिस्तान ज़िंदाबाद का नारा लगाया गया और लगातार कई बार दोहराया भी गया. किसी ने कोई आपत्ति नहीं जताई. ऑल्ट न्यूज़ ने डोकीडीह के स्थानीय निवासियों से संपर्क किया जिन्होंने कहा कि जुलूस के दौरान ‘पाकिस्तान ज़िंदाबाद’ के नारे नहीं लगाए गए थे. ऑल्ट न्यूज़ ने भी स्लो मोशन में वीडियो को ध्यान से देखा और वीडियो का डिटेल में विश्लेषण किया. हम इस नतीजे पर पहुंचे कि झारखंड के गिरिडीह ज़िले के डोकीडीह मुखिया उम्मीदवार शाकिर हुसैन के नामांकन जुलूस के दौरान ‘पाकिस्तान ज़िंदाबाद’ के नारे नहीं बल्कि ‘शाकिर हुसैन ज़िंदाबाद’ के नारे लगे थे. जागरण ने फ़ैक्ट्स की पुष्टि किए बिना स्टोरी चलाई.”

इसका जवाब देते हुए विश्वास न्यूज़ ने बताया, “अपनी पड़ताल में हमने देखा कि दैनिक जागरण की रिपोर्ट नहीं, बल्कि ऑल्ट न्यूज का दावा फ़ैक्ट्स से अलग है और ये ‘पाकिस्तान ज़िंदाबाद’ के नारे लगने के बाद हुए घटनाक्रम को छिपाने की कोशिश है.”

दिलचस्प बात ये है कि विश्वास न्यूज़ ने न तो स्वतंत्र रूप से इस वीडियो की पुष्टि की और न ही ऑल्ट न्यूज द्वारा वीडियो के विश्लेषण में कथित ‘गलतियों’ को पॉइंट आउट किया. इसके बजाय, उन्होंने एक डिस्क्लेमर जोड़ा, “हम पाठकों को सूचित करना चाहते हैं कि गिरिडीह मामला विचाराधीन है. हमारा मकसद किसी भी तरह से अदालती कार्यवाही को प्रभावित करना नहीं है.”

विश्वास न्यूज़ का ऑल्ट न्यूज़ के निष्कर्षों का खंडन, बचाव पक्ष के वकील के बयान पर आधारित है. उन्होंने कहा है, ”दैनिक जागरण के गिरिडीह एडिशन में 27 अप्रैल, 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक, बचाव पक्ष के वकील प्रकाश सहाय ने अदालत में कहा, ”नामांकन-दाखिल (ग्राम प्रधान चुनाव के लिए) के दौरान कुछ लोगों ने ‘पाकिस्तान ज़िंदाबाद’ के नारे लगाए.’ हालांकि वे लोग बाहरी थे और प्रत्याशी शाकिर अपनी गाड़ी में बैठे थे. ये देशद्रोह या किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का मामला नहीं है.”

ऑल्ट न्यूज़ ने 24 फ़रवरी को प्रकाश सहाय से संपर्क किया. उन्होंने जागरण द्वारा किए गए दावे का स्पष्ट रूप से खंडन किया. उन्होंने कहा, “मैंने अदालत में कभी नहीं कहा कि कुछ लोगों ने ‘पाकिस्तान ज़िंदाबाद’ के नारे लगाए.”

प्रकाश सहाय ने कहा कि चूंकि शाकिर हुसैन पर धारा 124A (देशद्रोह) के तहत मामला दर्ज किया गया था. इसलिए उन्होंने अपने मुवक्किल के बचाव में अदालत में प्रतिष्ठित ‘बलवंत सिंह बनाम पंजाब राज्य’ के फैसले का संदर्भ दिया जिसमें कुछ लोगों पर ‘खालिस्तान ज़िंदाबाद’ के नारे लगाने का आरोप लगाया था. इसके बाद उन पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया. सुप्रीम कोर्ट ने जब इस मामले की सुनवाई की तो इसे देशद्रोह नहीं माना गया.

वायरल वीडियो के बारे में बात करते हुए, शाकिर हुसैन के वकील प्रकाश सहाय ने ऑल्ट न्यूज़ को बताया, “दैनिक जागरण ने मेरे तर्क का ग़लत मतलब निकाला है. शाकिर हुसैन की जमानत की दलील देते हुए मैंने कहा कि मेरे मुवक्किल पर भारत विरोधी नारे लगाने का आरोप भी नहीं है. मैंने फिर कहा, अगर तर्क के लिए ये मान लिया जाए कि ऐसे नारे लगाए गए थे, तब भी कानूनी प्राथमिकता के आधार पर उन पर देशद्रोह का आरोप नहीं लगाया जा सकता है. इससे भी ज़रुरी बात ये थी कि मेरा मुवक्किल गाड़ी के अंदर मौजूद था.

इस तरह दैनिक जागरण का ये दावा भी ग़लत है कि “बचाव पक्ष के वकील प्रकाश सहाय ने अदालत में कहा, “नामांकन-दाखिल (ग्राम प्रधान चुनाव के लिए) के दौरान, कुछ लोगों ने ‘पाकिस्तान ज़िंदाबाद’ के नारे लगाए थे.” विश्वास न्यूज़ द्वारा जागरण स्टोरी का बचाव भी झूठे दावे पर आधारित है.

जब ऑल्ट न्यूज़ ने जांच की (पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें) और लिखा कि पाकिस्तान ज़िंदाबाद के नारे नहीं लगे, तो कई स्थानीय सूत्रों ने हमें बताया कि जब से वीडियो वायरल हुआ है, दैनिक जागरण के पत्रकारों ने इस मामले में गहरी दिलचस्पी ली और पुलिस की कार्यवाही को प्रभावित करने की कोशिश भी की. ये जागरण के 21 अप्रैल, 2022 को पब्लिश आर्टिकल के अनुरूप मालूम पड़ता है. इस रिपोर्ट में पहले पैराग्राफ़ के बाद एक सब-हेडिंग थी जिसमें लिखा था, ‘दैनिक जागरण की पहल पर रात में ही चलाया गया था छापेमारी अभियान.’ रिपोर्ट में कहा गया है कि दैनिक जागरण की पहल के बाद शाकिर हुसैन और अन्य को आधी रात को गिरफ़्तार किया गया.

ऑल्ट न्यूज़ द्वारा 20 फ़रवरी को रिपोर्ट पब्लिश करने के एक दिन बाद, दैनिक जागरण ने अपनी रिपोर्ट को काफी ज़्यादा एडिट किया. उपर्युक्त सब-हेडिंग में भी बदलाव किया गया और ‘दैनिक जागरण की पहल पर आधारित’ वाक्यांश को हटा दिया गया. इस सब-हेडिंग के तहत असली स्टोरी में लिखा था कि वीडियो वायरल होने के बाद दैनिक जागरण ने संबंधित प्रशासनिक अधिकारियों से संपर्क किया जिसके बाद उन्होंने मामले की गंभीरता को देखते हुए कार्रवाई की. इसे अपडेट करते समय दैनिक जागरण की भागीदारी को बताने वाले इस पूरे हिस्से को हटा दिया गया.

जब स्टोरी अपडेट की गई तो दैनिक जागरण ने ये ज़िक्र नहीं किया कि हेड-हेडिंग और ऊपर बताए गए हिस्से को क्यों बदला या हटाया गया. ये फिर से IFCN के ‘प्रतिबद्धता के लिए एक खुली और ईमानदार सुधार नीति’ (पुरानी रिपोर्ट, अपडेटेड रिपोर्ट) के सिद्धांत का उल्लंघन है.

इसके अलावा, इस मामले के सभी पांचों आरोपियों को 12 मई को सत्र अदालत से ज़मानत मिल गई थी. जागरण की रिपोर्ट के अपडेटेड वर्ज़न और विश्वास न्यूज़ द्वारा किए गए ऑल्ट न्यूज़ के फ़ैक्ट-चेक के खंडन में इस विवरण को आसानी से नज़रअंदाज़ कर दिया गया है.

कुल मिलाकर, विश्वास न्यूज़ न सिर्फ़ विवादित वीडियो को स्वतंत्र रूप से वेरिफ़ाई करने में विफल रहा है बल्कि दैनिक जागरण की स्टोरी और ऑल्ट न्यूज़ की रिपोर्ट पर विश्वास न्यूज़ की प्रतिक्रिया दोनों ही बचाव पक्ष के वकील के ‘बयान’ पर आधारित हैं जो उन्होंने अदालत में कभी दिया भी नहीं.

फ़ेसबुक फ़ैक्ट-चेकिंग पार्टनर के रूप में अपने विशेषाधिकारों का इस्तेमाल करते हुए, विश्वास न्यूज़ ने 20 फ़रवरी के आर्टिकल को शेयर करने वाले ऑल्ट न्यूज़ के पोस्ट को ‘आंशिक रूप से ग़लत’ बताया था. बाद में फ़ेसबुक से ये नोटिस हटा दिया गया.

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