“हम फेसबुक पर झूठी ख़बरों के प्रसार से लड़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं, खासकर, 2019 के आम चुनाव अभियान से पहले” -यह बात, फेसबुक के भारत के समाचार भागीदारी प्रमुख मनीष खंडूरी ने एक बयान में कही। पिछले महीने इस बड़ी तकनीकी कंपनी ने भारत के अपने तथ्य-जांच नेटवर्क में पांच नए भागीदारों को जोड़कर इनकी संख्या कुल सात कर दी थी। इसका उद्देश्य, तीसरे पक्ष भागीदारों के मार्फत सूचनाओं की प्रामाणिकता सत्यापित करना है, जो किसी खबर को गलत ठहरा सकें और उसका आगे प्रसार रोक सकें।

लेकिन, हमारे ध्यान में आया कि पुलवामा आतंकी हमले के बाद फेसबुक के सात तथ्य-जांच भागीदारों में से तीन — इंडिया टुडे, दैनिक जागरण और न्यूज़मोबाइल – को भ्रामक सूचनाएं फैलाते हुए पाया गया है। यही नहीं, अधिकांश मामलों में इन संगठनों ने या तो अपनी भ्रामक खबरें नहीं हटाईं या फिर उनके अपडेटेड लेखों में स्पष्टीकरण नहीं जोड़े।

फेसबुक के भारत के तथ्य-जांच भागीदारों द्वारा प्रसारित भ्रामक सूचनाएं

इंडिया टुडे ग्रुप

1. बालाकोट हवाई हमले में IAF जेट विमानों को दिखलाने के लिए 2017 के वीडियो का इस्तेमाल

14 फरवरी को आतंकी समूह जैश-ए-मोहम्मद के द्वारा सीआरपीएफ के 44 जवानों की हत्या के बाद, 26 फरवरी को बालाकोट, पाकिस्तान में हवाई हमला करके IAF ने इसका बदला लिया। इंडिया टुडे ने इस घटना की खबर में कथित रूप से पाकिस्तानी सीमा में IAF के जेट विमानों के एक वीडियो का इस्तेमाल किया।

खबरों के अनुसार, भारतीय वायुसेना द्वारा जैश के शिविरों पर 26 फरवरी 2019 को सुबह 3:30 बजे के आसपास हवाई हमला किया गया था। आल्ट न्यूज़ ने पाया कि इंडिया टुडे द्वारा IAF के हवाई हमले की खबर देने के लिए इस्तेमाल किया गया वीडियो, पहली बार 2017 में पोस्ट किया गया था।

ऑल्ट न्यूज़ ने इंडिया टुडे के इस भ्रामक रिपोर्ट को इसके प्रसारण वाले दिन ही खारिज कर दिया था। इस न्यूज़ चैनल ने अभी तक न तो इसे हटाया है और न ही कोई स्पष्टीकरण दिया है।

2. पुलवामा हमले के ‘मारे गए आतंकवादी’ को दिखलाने के लिए फोटोशॉप तस्वीर का इस्तेमाल

18 फरवरी को खबर आई कि पुलवामा हमले का मास्टरमाइंड मुठभेड़ में मार गिराया गया है। खबरों के अनुसार, जैश का कमांडर अब्दुल रशीद ग़ाज़ी उर्फ कामरान, सुरक्षा बलों के साथ 12-घंटे लंबी मुठभेड़ के बाद मारा गया। इसकी खबर इंडिया टुडे समेत कई मीडिया संगठनों द्वारा की गई जिसके साथ कथित रूप से मारे गए जैश के कमांडर की तस्वीर भी थी।

इंडिया टुडे ने जो तस्वीर इस्तेमाल की थी वह एक फोटो सॉफ्टवेयर एप्लिकेशन का उपयोग करके बनाई गई थी। ऑल्ट न्यूज़ ने पाया कि उस एप्लिकेशन के एक टेम्पलेट में अब्दुल रशीद ग़ाज़ी का चेहरा जोड़ दिया गया (superimposed) था।

इंडिया टुडे ने यह फोटोशॉप की हुई तस्वीर बाद में हटाई और अपने लेख को स्पष्टीकरण देकर अपडेट किया।

3. “IAF के हवाई हमले के बाद बालाकोट से मृत शरीर हटाए गए”

13 मार्च को इंडिया टुडे ने ANI की एक रिपोर्ट चलाई जो एक गिलगित कार्यकर्ता सेंगे हसनैन सेरिंग के ट्वीट पर आधारित थी। एक वीडियो का हवाला देते हुए उन्होंने कहा था कि पाकिस्तानी सेनाधिकारी ने “200 आतंकवादियों की शहादत” को स्वीकार किया।

ऑल्ट न्यूज़ ने सेरिंग के ट्वीट में किए गए दावे को खारिज किया था। पोस्ट किया गया वह वीडियो न तो बालाकोट का था और न ही पाकिस्तानी सेना द्वारा 200 आतंकवादियों के मारे जाने को स्वीकार करने का था। उस वीडियो की ऑडियो कमेंट्री अपने आप में यह स्थापित करने के लिए पर्याप्त थी कि पाक सैन्यकर्मी केवल एक आदमी की मृत्यु के बारे में बात कर रहे थे।

ऑल्ट न्यूज़ ने पाकिस्तानी मीडिया के स्रोतों से संपर्क किया, जिन्होंने बताया कि मरने वाला व्यक्ति एक असैनिक कुली, एहसानुल्लाह था। सेना की एक यूनिट का सहयोग करते हुए उसे 28 फरवरी को दिल का दौरा पड़ा था। एहसानुल्लाह की दफन क्रिया 1 मार्च को पाकिस्तान के ख़ैबर पख्तूनख्वा प्रांत में ऊपरी दिर जिले के सिंघारा दारोरा में हुआ था। हमने गूगल मैप्स पर देखा, यह जगह बालाकोट से कम से कम 300 किमी दूर है। नीचे पोस्ट किए गए वीडियो में एहसानुल्लाह को दफनाने के फुटेज हैं, जिसमें सेरिंग द्वारा पोस्ट किए गए वीडियो के दृश्य हैं।

 

احسان اللہ شہید جنازے کا ایک خوبصورت منظر ۔

Posted by ‎شینگاڑہ درہ نیوز‎ on Saturday, 2 March 2019

हमारी तथ्य-जांच के बावजूद, इंडिया टुडे ने अभी तक स्पष्ट नहीं किया है कि उसकी रिपोर्ट में जिस ट्वीट का हवाला दिया गया, वह एक असंबद्ध और भ्रामक वीडियो पर आधारित था।

4. “बालाकोट हवाई हमले में 300 आतंकवादी मारे गए”

इंडिया टुडे ने अपने 26 फरवरी के प्रसारण में कई मीडिया संगठनों की इस घोषणा, कि “स्रोतों के अनुसार, बालाकोट हवाई हमले में 300 आतंकवादी मारे गए” का दावा किया।

हालांकि, यह रिपोर्ट गलत जानकारी का कोई खास मामला नहीं था मगर, यह निस्संदेह समय से पहले और भ्रामक था। इसमें न केवल घटनास्थल की रिपोर्टों और दृश्य सबूतों की कमी थी, बल्कि, इनके अलावा, बालाकोट हवाई हमले में मरने वाले की संख्या को लेकर सरकार द्वारा कोई आधिकारिक घोषणा भी नहीं की गई थी। फिर भी, इंडिया टुडे ने एक असत्यापित संख्या पर आधारित कहानी चलाई। मरने वालों की संख्या को लेकर नवीनतम अपडेट रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण का यह कथन है, कि सरकार कोई आंकड़ा प्रदान नहीं करेगी।

5. बालाकोट हवाई हमले के दौरान गिराए गए IAF के विमान के रूप में, 2015 की तस्वीर का इस्तेमाल

इंडिया टुडे ग्रुप के आज तक को भी पुलवामा हवाई हमले के बाद भ्रामक सूचना प्रसारित करते हुए पाया गया। 27 फरवरी को इस मीडिया संगठन ने “पाक का दावा — दो भारतीय विमान मार गिराए, 1 पायलट जिंदा गिरफ्तार” शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें ‘मिग प्लेन क्रैश’ कैप्शन के साथ एक गिरे हुए विमान की तस्वीर का उपयोग किया। ऑल्ट न्यूज़ ने खोज की कि विमान की वह तस्वीर, जिसके एलओसी के निकट पाकिस्तान में गिरने का दावा किया गया, वह तीन साल पुरानी थी और उड़ीसा के मयूरभंज जिले में गिरे भारतीय वायुसेना के लड़ाकू प्रशिक्षण विमान की थी।

आज तक ने बिना किसी स्पष्टीकरण के यह तस्वीर अब बदल दी है, लेकिन इसका अर्काइव्ड संस्करण यहां देखा जा सकता है।

जागरण मीडिया नेटवर्क

हाल ही, इस साल फरवरी में, फेसबुक के साथ साझेदारी में एक तथ्य-जाँच पहल शुरू की गई — विश्वास न्यूज़विश्वास न्यूज़, हिंदी दैनिक, दैनिक जागरण का मूल संगठन, जागरण मीडिया नेटवर्क का एक हिस्सा है।

पुलवामा आतंकी हमले के बाद दैनिक जागरण भ्रामक खबरें प्रकाशित करता हुआ पाया गया।

1. इस हिंदी मीडिया संगठन ने 27 फरवरी को दिल्ली सिटी प्रिंट संस्करण में पहले पन्ने पर “बालाकोट में 300 आतंकवादी मारे गए” पर खबर प्रकाशित की।

जैसा कि पहले बताया गया है, यह संख्या समयपूर्व और भ्रामक थी और सरकार, मरने वालों की संख्या बताने से मना कर चुकी है। फिर भी, इस खबर को, जिसे वेबसाइट पर भी प्रकाशित किया गया, जागरण ने संशोधित नहीं किया है।

2. दूसरी भ्रामक रिपोर्ट, जिसे इस लेख में पहले खारिज किया जा चुका है, वह था — “IAF के हवाई हमले के बाद बालाकोट से मृत शरीर हटाए गए”। 13 मार्च को दैनिक जागरण ने एक लेख प्रकाशित किया जिसका शीर्षक था — “Air Strike का सबूत मांगने वालों को करारा जवाब, गिलगित एक्टिविस्ट ने बताया कहां गएआतंकवादियों के शव”

ऑल्ट न्यूज़ द्वारा यह उजागर किए जाने पर कि गिलगित कार्यकर्ता के ट्वीट में भ्रामक दावे थे, दैनिक जागरण ने अपनी खबर बदल दी। इसकी शुरुआती रिपोर्ट का अर्काइव्ड संस्करण यहां पढ़ा जा सकता है।

संयोगवश, जागरण की बदली हुई खबर भी तथ्यात्मक रूप से गलत थी। इस समाचार संगठन ने अब दावा किया कि “गिलगित एक्टिविस्ट ने पुराना विडियो जारी करके बताया भारतीय Air Strike का सबूत”।

जबकि जागरण ने अपने शीर्षक में दावा किया कि वीडियो छह साल पुराना था, रिपोर्ट की सामग्री से पता चलता है कि मीडिया संगठन ने इस सूचना की प्रामाणिकता का जिम्मा भी नहीं लिया। वास्तव में, इस खबर में यह लिखा गया कि “ऐसा कहा जा रहा है कि यह वीडियो पुराना है”।

सच्चाई यह है कि वीडियो पुराना नहीं था। यह बस, बालाकोट हवाई हमले के बाद का प्रतिनिधित्व नहीं करता था। जैसा कि इस लेख में पहले उजागर किया गया है, इस वीडियो में पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में ऊपरी दिर जिले के सिंघारा दरोरा में 1 मार्च को एक व्यक्ति की दफन-क्रिया को दिखालाया गया था। इस फुटेज को लेकर ऑल्ट न्यूज़ की विस्तृत जांच यहां पढ़ी जा सकती है।

दैनिक जागरण ने पुलवामा आतंकी हमले से पहले भी गलत प्रचार भी प्रकाशित किए हैं। पिछले साल, इस मीडिया संगठन की गलत रिपोर्टिंग के कई मामले रहे – पोस्टमार्टम रिपोर्ट के विरोधाभास में “कठुआ में बलात्कार नहीं” घोषित करना; कट्टर इंजिलवाद को गुरुग्राम हत्या का मकसद घोषित करना, उमर खालिद को कथित अपहरण में सहभागी के रूप में घोषित करना। 2017 में, दैनिक जागरण ने जम्मू-कश्मीर के नागरिक को मारे गए आतंकवादी के रूप में दिखला दिया था

न्यूज़मोबाइल

1. फेसबुक के तथ्य-जांच भागीदारों में से एक अन्य, न्यूज़मोबाइल ने 27 फरवरी को “300 आतंकवादी मारे गए” की असत्यापित संख्या वाली खबर दी। कहने की जरूरत नहीं कि इस संख्या के समर्थन में सरकार की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं है।

2. ज्योतिष भविष्यवाणियां

न्यूज़मोबाइल के ‘हमारे बारे में‘ -( About us) अनुभाग में कहा गया है — “…हमारा उद्देश्य उन कहानियों को उजागर करना है जो लोगों को प्रभावित करती हैं और हमारे पाठकों के लिए विश्वसनीय और तथ्य-जांच की गई कहानियां पेश करती हैं।” -( अनुवाद) लेकिन विडंबनापूर्वक, यह संगठन साप्ताहिक ज्योतिष भविष्यवाणियां प्रकाशित करता है।

ज्योतिष भविष्यवाणी के बारे में ​​विश्वास है कि आकाशीय घटनाएं पृथ्वी पर मानव गतिविधि को प्रभावित करती हैं। NASA ने इसे एक छद्म विज्ञान के रूप में खारिज कर दिया था और कहा था कि इसका कोई सबूत नहीं है कि ज्योतिष का “उपयोग भविष्य की भविष्यवाणी करने के लिए किया जा सकता है या यह वर्णन कर सकता है कि लोग अपनी जन्मतिथि के आधार पर किस तरह के होते हैं।”

एक समर्पित तथ्य-जाँच संगठन का, राशियों पर आधारित भविष्यवाणियां प्रकाशित करना जिसका कोई वैज्ञानिक विवरण नहीं है, अजीबोगरीब है। तथ्यपरक समर्थन के बिना कोई भी जानकारी भ्रामक सूचना से बेहतर नहीं है।

क्या फेसबुक फर्जी खबरों के खिलाफ ईमानदार लड़ाई लड़ रहा है?

सीआरपीएफ के 44 जवानों की शहादत, बालाकोट में वायुसेना का हवाई हमला और विंग कमांडर अभिनंदन के पकड़े जाने से देश के नागरिक भारत और पाकिस्तान की राजनीतिक खलबली में भावनात्मक रूप से उलझे रहे। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब सार्वजनिक भावनाओं के गुमराह होने की सबसे अधिक आशंका थी, उस समय में तथ्य-जांच संगठनों द्वारा गलत खबरें प्रकाशित की गईं।

जब मुख्यधारा मीडिया सही तरीके से सूचित करने में विफल है, तो सटीक जानकारी प्रस्तुत करने की जिम्मेवारी तथ्य-जाँच वैबसाइट पर आ जाती है। अगर, भ्रामक सूचनाओं को उजागर करने वाले तथ्य-जांच संगठन, गलत सूचना प्रसारित करने वालों के साथ जुड़ जाएं, तो संपूर्ण सामाजिक गति ही बदल जाएगी।

ऑल्ट न्यूज़ ने “बालाकोट में 200 आतंकवादी मारे गए” का दावा करने वाले वीडियो को, जिस दिन मीडिया ने यह रिपोर्ट की थी, उसी दिन खारिज किया था। लेकिन, फेसबुक के तथ्य-जाँच भागीदारों में से किसी ने भी इस गलत सूचना को लेकर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है। इसकी बजाय, दैनिक जागरण ने जो दावा किया कि वीडियो छह साल पुराना था, वह भी असत्य था।

ऐसी गलत सूचना को इन तरीकों से आसानी से टाला जा सकता है – पहला, तथ्यों का सत्यापन करके; और दूसरा, अपूर्ण सत्यापन के मामले में विलंबित रिपोर्ट से। चूंकि मीडिया संगठनों द्वारा ऐसा कोई अभ्यास नहीं किया गया, इसलिए उन संगठनों के तथ्य-जांच प्रभाग की प्रामाणिकता संदिग्ध हो जाती है। ऐसे संगठन, जो कम से कम समय में अधिकतम लोगों तक सबसे तेजी से खबरें प्रस्तुत करने के पेशे में हैं, क्या तथ्य-जांच के साथ न्याय कर सकते हैं?

एक समर्पित तथ्य-जांच संगठन के रूप में, ऑल्ट न्यूज़ किसी भी रिपोर्ट में देरी की आशंका के बावजूद खबर के हर पहलू की पुष्टि करता है। अकेले पुलवामा के बाद, हमने गलत सूचना के कम से कम 30 उदाहरणों को खारिज किया। वही उम्मीद मुख्यधारा मीडिया से भी की जा सकती है।

फेसबुक पर भ्रामक सूचना उद्योग के तेजी से बढ़ने के साथ, इस प्लेटफार्म द्वारा तथ्य-जाँच वेबसाइटों के साथ साझेदारी करना सराहनीय है। लेकिन, जब इन्हीं भागीदारों को गलत सूचना में योगदान करते पाया जाता है, तो सवाल उठता है – क्या फेसबुक फर्जी खबरों को रोकने के अपने प्रयासों के प्रति ईमानदार है?

फेसबुक की एक पूर्व तथ्य-जाँच भागीदार, अमेरिकी तथ्य-जांच वेबसाइट — स्नोप्स (Snopes) — के प्रबंध संपादक, ब्रुक बिंकोव्स्की ने The Guardian से बात करते हुए कहा – “वे (फेसबुक) हमारा अनिवार्य उपयोग संकट पीआर के लिए करते हैं। वे कुछ भी गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। वे खुद को अच्छा दिखलाने और जिम्मेवारियों को दूसरों पर डाल देने में अधिक रुचि रखते हैं … वे स्पष्ट रूप से कोई परवाह नहीं करते हैं।” स्नोप्स (Snopes) पिछले साल, फेसबुक के तथ्य-जांच नेटवर्क से अलग हो गया था।

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