2018 की पहचान मुख्यधारा मीडिया के प्रति भरोसा और विश्वास खोने वाले अबतक के एक और वर्ष के रूप में हुई है। ऐसे कई उदाहरण रहे, जब शीर्ष समाचार संगठनों द्वारा भ्रामक सूचनाओं को फैलाया गया। परेशानी की बात यह रही कि कई अवसरों पर, इन मीडिया संगठनों की खबरों ने सांप्रदायिक विभाजन को आगे बढ़ाया।
1. हत्या को लेकर उत्तेजक मीडिया ख़बरों ने घटना को सांप्रदायिक रंग दिया
दिल्ली में 1 अक्टूबर को 31 वर्षीय शिक्षक अंकित कुमार गर्ग की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। घटना के तुरंत बाद, कई समाचार संगठनों ने बता दिया कि यह ऑनर किलिंग का मामला था। इन ख़बरों का आधार पीड़ित परिवार द्वारा लगाया गया आरोप था कि अंकित की हत्या उस मुस्लिम लड़की के परिवार द्वारा की गई थी जिसके साथ वह रिश्ते में था।
ज़ी न्यूज़, आज तक, न्यूज़18, दैनिक भास्कर और टाइम्स नाउ सहित कई मीडिया संगठनों ने बताया कि गर्ग की हत्या ऑनर किलिंग का मामला था। इन रिपोर्टों की भाषा और लहजा भड़काऊ थे।
बाद में पता चला कि हत्या का मकसद ऑनर किलिंग नहीं था। इसकी पुष्टि दिल्ली पुलिस ने की थी जिसमें कहा गया था कि बीटेक के एक छात्र को हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया था, और एक महिला के साथ पीड़िता की दोस्ती को लेकर जलन इस हत्या का कारण था।
2. गुरुग्राम हत्याकांड में गलत तरीके से ‘कट्टर इंजीलवाद’ को उद्देश्य बताया
13 अक्टूबर को, गुरुग्राम के जिला न्यायाधीश की पत्नी और बेटे को ड्यूटी पर तैनात उनके निजी सुरक्षा अधिकारी (पीएसओ) द्वारा दिन-दहाड़े गोली मार दी गई थी। 16 अक्टूबर को, पुलिस ने घोषणा की कि हत्या का एकमात्र कारण “अचानक क्रोध” था। लेकिन पुलिस जांच पूरी होने के पहले ही, कई प्रारंभिक मीडिया रिपोर्टों ने हत्या को “धर्म परिवर्तन” से जोड़ दिया।
इन मीडिया रिपोर्टों ने घोषित किया कि आरोपी ने न्यायाधीश के परिवार पर ईसाई धर्म अपनाने का दबाव डाला, जिसके कारण बार-बार विवाद हुआ और बाद में हमला हुआ। इन ख़बरों का आधार अपराधी का आध्यात्मिक झुकाव और पुलिस पूछताछ के दौरान उसके द्वारा दिए गए बयान थे। दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, वन इंडिया और आज तक जैसे कई समाचार संगठनों ने यही खबर की थी।
हरियाणा पुलिस ने स्पष्ट किया कि यह हत्या मुजरिम के आध्यात्मिक झुकाव से जुड़ी नहीं थी। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में डीसीपी (अपराध) सुमित कुमार ने कहा, “मामले के सभी पहलुओं की जांच करने के बाद, हम इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि जब न्यायाधीश की पत्नी और पुत्र गुड़गांव के आर्केडिया मार्केट में खरीदारी करने गए तो महिपाल कार छोड़ कर चला गया। जब उससे सवाल किया गया और समय पर नहीं लौटने के लिए फटकार लगाई गई, तो उसने गुस्से में दोनों को गोली मार दी – (अनुवादित)।”
हालांकि बाद में कई मीडिया संगठनों ने अपनी ख़बरों को सुधारा, लेकिन इस घटना के बारे में गलत सूचना देने को लेकर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया।
3. कठुआ पीड़िता की पोस्टमार्टम रिपोर्ट का दैनिक जागरण की रिपोर्ट ने खंडन किया
“कठुआ में बच्ची से बलात्कार नहीं, पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में केवल चोटों की बात” – 20 अप्रैल को हिंदी अखबार दैनिक जागरण के पहले पेज का यह शीर्षक था। इस लेख में दावा किया गया था कि कठुआ की घटना की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बलात्कार का जिक्र नहीं है। इसमें कहा गया था कि पीड़िता को लगी चोटों के अन्य कारण भी हो सकते हैं। रिपोर्ट में बताया गया कि गिरने के परिणामस्वरूप जांघ पर खरोंच पड़ा हो सकता है और हाइमन फटना, साइकिल चलाने, तैरने, घुड़सवारी आदि जैसी गतिविधियों का परिणाम हो सकता है। इस लेख में अन्य चोटों का कोई उल्लेख नहीं था जो यौन हमले की संभावना का इशारा करते हो।
दैनिक जागरण की रिपोर्ट कठुआ की बलात्कार पीड़िता की पोस्टमार्टम रिपोर्ट का खंडन थी। ऑल्ट न्यूज़ ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट को देखा, जिसमें लैबिया पर खून का उल्लेख, वल्कल लैकरेशन, योनि से खून बहना, हाइमन का बरकरार न होना और जांघों और पेट पर खून के निशान थे। इसके अलावा, जिला अस्पताल कठुआ के डॉक्टरों के बोर्ड द्वारा पुलिस को लिखित जवाब में स्पष्ट रूप से बताया गया कि “उल्लिखित चोट किसी भी प्रकार के यौन उत्पीड़न के कारण हो सकते हैं“।
4. सुदर्शन न्यूज़ ने गलत तरीके से इज्तेमा सभा को भीड़ की हिंसा से जोड़ा
3 दिसंबर को यूपी में बुलंदशहर जिले के सियाणा तहसील में कथित गौहत्या के विरोध में एक भीड़ के उग्र हो जाने के बाद हुई झड़प में एक पुलिसकर्मी की मौत हो गई थी। हिंसा का यह प्रकोप बुलंदशहर में 1 दिसंबर से 3 दिसंबर तक हुई इस्लामिक विद्वानों की तीन दिवसीय इज्तेमा सभा के अंतिम दिन हुआ।
सुदर्शन न्यूज़ के प्रमुख सुरेश चव्हाणके ने ट्वीट किया कि यह हिंसा इज्तेमा सभा से जुड़ी थी। एक अन्य ट्वीट में चव्हाणके ने इज्तेमा के आयोजक के रूप में ‘तब्लीगी जमात’ का जिक्र करते हुए कहा कि यह सुरक्षा एजेंसियों के रडार पर है। सुदर्शन न्यूज ने इसपर एक प्राइम टाइम कार्यक्रम भी प्रसारित किया।
#बुलंदशहर_इज्तेमा के आयोजक “तब्लीगी जमात” सुरक्षा एजन्सियो के रडार पर पहले से है। आज भी करोड़ों लोगों को कभी भी कही भी एक करने की क्षमता रखते है यह। कई देशों के साथ हि कई संदिग्ध संस्थाओं से है लिंक का इनपुट https://t.co/0b8b2bVUes
— Suresh Chavhanke STV (@SureshChavhanke) December 3, 2018
बुलंदशहर पुलिस ने ट्विटर के माध्यम से स्पष्ट किया कि शहर को हिला देने वाली वह हिंसा किसी भी प्रकार से इज्तेमा सभा से जुड़ी नहीं थी। चव्हाणके के ट्वीट का जवाब देते हुए पुलिस ने हिंसा के बारे में गलत सूचना नहीं फैलाने की अपील की।
5. आरएसएस से जुड़े संगठन को राम मंदिर के समर्थन में ‘मुस्लिम महिलाएं’ बताया
एक बार फिर जबकि राम जन्मभूमि मुद्दा सार्वजनिक चर्चाओं में सबसे आगे है, नवंबर 2018 में कुछ समाचार संगठनों ने खबर की कि “मुस्लिम महिलाएं” जी-जान से अयोध्या में राम मंदिर का समर्थन कर रही थीं। उदाहरण के लिए, अमर उजाला ने “‘कसम खुदा की खाते हैं, मंदिर वहीं बनवाएंगे’ : आगे आईं मुस्लिम महिलाएं, पुरुषों का रुख साफ नहीं” शीर्षक से एक लेख प्रकाशित किया।
यह पता चला कि इस अभियान का नेतृत्व कर रही मुस्लिम महिलाएं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े संगठनों के बैनर तले यह कार्य कर रही थीं। संघ परिवार से जुड़े संगठन हैं- ‘मुस्लिम राष्ट्रीय मंच’ और ‘राष्ट्रीय एकता मिशन’। अमर उजाला की रिपोर्ट में इस विवरण को छोड़ दिया गया, और यह धारणा दी गई कि मेरठ की मुस्लिम महिलाओं के समूह ने राम मंदिर के लिए अपना समर्थन दिया है।
6. सुदर्शन न्यूज द्वारा यूपी पुलिस के खिलाफ मस्जिद से पारित फरमान की गलतबयानी
“शुरू हो गया वो सब कुछ जिसका डर था। #up की एक # मस्जिद से आया फरमान – “टुकड़ों टुकड़ों में काटना है @Uppolice वालों को” – यह ट्वीट 21 जुलाई, 2018 को सुदर्शन न्यूज़ चैनल के प्रधान संपादक सुरेश चव्हाणके ने किया। इस ट्वीट के साथ इसी शीर्षक से एक लेख था, जिसमें दावा किया गया था कि उत्तर प्रदेश की एक मस्जिद द्वारा यूपी पुलिस के खिलाफ फरमान जारी किया गया है। यह लेख भड़काऊ था।
शुरू हो गया वो सब कुछ जिसका डर था . #up की एक #मस्जिद से आया फरमान – “टुकड़े टुकड़े में काटना है @Uppolice वालों को”@baghpatpolice @dgpup @myogiadityanath @narendramodi@adgzonemeerut @HMOIndia #UPCM https://t.co/B2YBnlCpZ2
— Suresh Chavhanke STV (@SureshChavhanke) July 21, 2018
यूपी की बागपत पुलिस ने ट्विटर पर एक वीडियो के माध्यम से इसकी प्रतिक्रिया दी थी जिसमें डूबने से हुई एक मौत के बाद एक पुलिस अधिकारी को सार्वजनिक चेतावनी दिए जाने की एक घटना का विवरण था। ऑल्ट न्यूज़ के साथ बातचीत में पुलिस ने, किसी भी मस्जिद द्वारा पुलिस के खिलाफ फरमान जारी किए जाने को खारिज कर दिया। हालांकि, सुदर्शन न्यूज ने न कोई स्पष्टीकरण दिया और ना ही अपने लेख को वापस लिया ।
7. अलीगढ़ मुठभेड़ : समाचार संगठनों ने उमर खालिद की संलिप्तता की झूठी खबर दी
फर्जी मुठभेड़ों के एक कथित मामले में, उत्तर प्रदेश पुलिस ने 21 सितंबर को अलीगढ़ के हरदुआगंज में दो कथित अपराधियों – मुस्तकीम और नौशाद को गोली मार दी और इसे फिल्माने के लिए मीडियाकर्मियों को ‘आमंत्रित’ किया। बाद में अलीगढ़ के एसपी अतुल श्रीवास्तव ने मुठभेड़ों का मंचन किए जाने से इनकार किया।
उमर खालिद सहित अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और AMU और JNU के छात्र नेताओं जिसमें उमर खालिद भी शामिल थे, ने मुठभेड़ों की जांच के लिए 27 सितंबर को मृतक के परिजनों से मुलाकात की। अगले दिन, कई मीडिया संगठनों ने खबर की कि खालिद कथित अपराधियों के परिवार के सदस्यों का अपहरण करने में शामिल थे। इनमें ज़ी न्यूज़, दैनिक जागरण और जनसत्ता शामिल थे।
महिलाओं का अपहरण नहीं किया गया था, बल्कि वे अपनी मर्जी से खालिद और अन्य लोगों के साथ गई थीं। ऑल्ट न्यूज़ के साथ बातचीत में महिलाओं ने इसकी पुष्टि की। ऑल्ट न्यूज़ से बात करते हुए, उमर खालिद ने भी वही दोहराया। कई मीडिया रिपोर्टों के शीर्षक में उमर खालिद को अपहरण में शामिल चित्रित किया गया, जबकि लेख में यह स्थापित नहीं था।
8. टाइम्स नाउ ने हांगकांग में नीरव मोदी की गिरफ्तारी की घोषणा कर दी
9 अप्रैल की शाम 5:41 बजे, टाइम्स नाउ ने ब्रेकिंग न्यूज़ दी। इसके अनुसार, 11,000 करोड़ के पीएनबी घोटाले में आरोपी नीरव मोदी को हांगकांग में गिरफ्तार किया गया है।
टाइम्स नाउ के एंकर ने कहा- “ठीक है, तो अब यह जो बड़ी ब्रेकिंग न्यूज़ आ रही है, नीरव मोदी को हांगकांग में गिरफ्तार किया गया है। यह खबर सबसे पहले टाइम्स नाउ पर पेश की जा रही है। हांगकांग में गिरफ्तार नीरव मोदी की खबरें आ रही हैं; यह सुरक्षा एजेंसियों के लिए, जांच एजेंसियों के लिए, जो नीरव मोदी को भारत वापस लाने की कोशिश और कानून का सामना कर रही हैं, एक बड़ी बड़ी सफलता हो सकती है – (अनुवादित)।”
मजे की बात है कि टाइम्स नाउ ने इस ‘बड़ी ब्रेकिंग न्यूज’ को फिर नहीं चलाया, क्योंकि नीरव मोदी को गिरफ्तार नहीं किया गया था। उस समय एकमात्र अद्यतन यह था कि हांगकांग द्वारा उसकी गिरफ्तारी के लिए भारत के अनुरोध को मानने की संभावना थी।
9. एएमयू के छात्र को लेकर टाइम्स ऑफ इंडिया की गलत खबर
जनवरी में, टाइम्स ऑफ इंडिया ने “हिजबुल में शामिल हो गए एएमयू पीएचडी छात्र का रूममेट भी लापता“(अनुवादित) शीर्षक से एक लेख प्रकाशित किया। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पीएचडी विद्वान मन्नान बशीर वानी के कथित तौर पर आतंकवादी समूह हिजबुल मुजाहिदीन में शामिल होने के एक दिन बाद, टाइम्स ऑफ इंडिया ने यह खबर दी कि उनके रूममेट भी गायब हैं। अलीगढ़ के एसएसपी, राजेश पांडे का हवाला देते हुए, इस अखबार ने दावा किया कि प्रारंभिक जांच में उस रूममेट का पता चला है जो बारामुला का ही रहने वाला था और जुलाई 2017 से लापता है।
फ्री प्रेस कश्मीर को फोन पर सवालों से घिरे इस भले व्यक्ति ने कहा कि “जब से मैंने इस रिपोर्ट को देखा है, मैं बहुत परेशान हूं। मेरा यहां करियर और जीवन है और इस समाचार रिपोर्ट ने मुझे खतरे में डाल दिया है। इस रिपोर्ट को करने से पहले इस पत्रकार ने कभी न तो मुझे फोन किया और न ही बात की। मुझे नहीं पता कि वे कैसे दावा कर रहे हैं कि मैं गायब हूं और वे इसका क्या मतलब निकाल रहे हैं – (अनुवादित)।” इसकी पुष्टि बारामूला पुलिस ने एक ट्वीट के जरिए भी की।
10. चुनाव पूर्व वादों पर मीडिया द्वारा नितिन गडकरी का गलत उल्लेख
“हम बहुत आश्वस्त थे कि हम कभी सत्ता में नहीं आ सकते। इसलिए हमारे लोगों ने हमें सिर्फ बड़े वादे करने का सुझाव दिया। अब लोग हमें अपने वादे याद दिलाते हैं … अब हम सिर्फ हंसते हैं और आगे बढ़ते हैं।” – यह बात केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने 34 सेकंड की क्लिप में कही, जो सोशल मीडिया में वायरल हो गया। गडकरी, कलर्स मराठी चैनल के रियलिटी शो, असल पावने, इरशाल नमुने में बॉलीवुड अभिनेता नाना पाटेकर के साथ 4 अक्टूबर, 2018 को एक अतिथि के रूप में थे।
टाइम्स ऑफ़ इंडिया, द वीक और द वायर जैसे कई मीडिया संगठनों ने इसकी खबर करते हुए गडकरी का उल्लेख किया कि उन्होंने स्वीकार किया था कि उनकी पार्टी ने 2014 के आम चुनाव में वादे किए थे।
गडकरी 2014 के अंत में होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के संदर्भ में बोल रहे थे, उसी वर्ष हुए राष्ट्रीय आम चुनाव के बारे में नहीं। मीडिया संगठनों द्वारा निकाला गया गलत निष्कर्ष क्लिप किए गए वीडियो क्लिप के आधार पर था।
11. कर्नाटक सीएम द्वारा शीर्ष पुलिस अधिकारियों के स्थानांतरण की गलत खबर
कन्नड़ समाचार चैनल,बीटीवी न्यूज़ ने मई 2018 में खबर की कि कर्नाटक के आईजीपी को कर्नाटक के मुख्यमंत्री एच. डी. कुमारस्वामी ने स्थानांतरित किया था। कई मुख्यधारा मीडिया संगठनों ने इसकी खबर दी। इनमें डीएनए, फाइनेंशियल एक्सप्रेस, ज़ी न्यूज़ और स्वराज्य शामिल थे। खबरों के मुताबिक, तबादला इसलिए हुआ क्योंकि शीर्ष पुलिस अधिकारी ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को कर्नाटक सीएम के शपथ ग्रहण समारोह के लिए लगभग एक किलोमीटर पैदल चलवा दिया था।
द न्यूज मिनट द्वारा इस फर्जी समाचार का भंडाफोड़ किया गया, जिसने पुष्टि की कि ऐसा कोई स्थानांतरण आदेश जारी नहीं किया गया है। द न्यूज मिनट की रिपोर्ट के अनुसार, कुमारस्वामी ने कहा कि “विधानसभा में विश्वास मत हासिल होने तक मैं केवल सीएम पद पर हूं, सीएम नहीं। मैं इस बारे में निर्णय नहीं कर सकता कि किसे स्थानांतरित किया जाए। नीलमणि राजू को अभी स्थानांतरित नहीं किया गया है – (अनुवादित)।”
12. ‘जय सिया राम’ से भाषण शुरू करते अबू धाबी के राजकुमार की गलत खबर
फरवरी 2018 में, टाइम्स नाउ ने ट्वीट किया, “जब अबू धाबी के राजकुमार को अपने विचार साझा करने के लिए मंच पर आमंत्रित किया गया, तो उन्होंने ‘जय सिया राम’ से भाषण शुरू करके भीड़ को बावला कर दिया – (अनुवादित)।” इस ट्वीट को बाद में हटा दिया गया। टाइम्स नाउ की रिपोर्ट में कहा गया, “चूंकि अबू धाबी आज पीएम मोदी का स्वागत करने के लिए तैयार है, उसके राजकुमार शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान का एक वीडियो सोशल मीडिया पर फिर से प्रसारित किया जा रहा है – (अनुवादित)।” ज़ी न्यूज़ ने भी यही खबर दी।
दोनों चैनलों ने बिना किसी सत्यापन के यह खबर दी थी। यह पता चला कि वीडियो में व्यक्ति, आबू धाबी के राजकुमार नहीं, बल्कि संयुक्त अरब अमीरात स्थित अरब मामलों के स्तंभकार और टिप्पणीकार सुल्तान सूद अल कासमी है। इन चैनलों ने इतना भी नहीं सोचा कि आबू धाबी के राजकुमार और यूएई सशस्त्र बल के उप-सर्वोच्च कमांडर, ‘जय सिया राम’ के उच्चारण से मोरारी बापू की रामकथा का उद्घाटन कर सकते हैं!
13. ज़ी न्यूज़, डीएनए ने वाजपेयी को अंतिम सम्मान देते एम्स के डॉक्टरों की नकली तस्वीर प्रसारित की
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन के बाद ज़ी न्यूज़ के एक लेख के मुताबिक, “पुराने राजनीतिक दिग्गज को अपना अंतिम सम्मान देने वाले डॉक्टरों की एक तस्वीर ज़ी न्यूज़ द्वारा हासिल की गई है – (अनुवादित)।” इसी प्रकार, डीएनए के एक लेख में अस्पताल के बिस्तर पर पड़े एक शव को घेरकर सिर झुकाए कतार में खड़े डॉक्टरों की एक तस्वीर का वर्णन करते हुए कहा गया, “कतार में खड़े और मौन धारण किए सभी डॉक्टर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सम्मान के रूप में अपना सिर झुकाए थे – (अनुवादित)।”
तस्वीर को गौर से देखने से पता चलता है कि यह भारत की नहीं है। यह चीनी डॉक्टरों के एक समूह की 2012 की एक तस्वीर है जो एक महिला को श्रद्धांजलि दे रहे है, जिसके अंगों को उसकी मृत्यु के बाद दान किया गया था। 22 नवंबर, 2012 को ग्वांगडोंग में अपनी मृत्यु के बाद अपने अंगों को दान करने वाली 17 वर्षीय वू हुजिंग का चिकित्सा कर्मियों ने नमन किया। ज़ी न्यूज़ और डीएनए दोनों ने बाद में अपनी चूक महसूस की, अपने ट्वीट को हटाया और लेखों को संशोधित किया।
14. पैरोडी अकाउंट्स से धोखा का गए मीडिया संगठन
ऐसे कई उदाहरण ऐसे रहे जिनमें मुख्यधारा के समाचार संगठन, कुछ समाचार संगठनों के पैरोडी अकाउंट के झांसे में आ गए। वर्ष की शुरुआत में, आज तक, टाइम्स नाउ के एक पैरोडी अकाउंट ‘टाइम्स हाउ’ के झांसे में आ गया। टाइम्स हाउ ने एक मौलाना का उद्धरण ट्वीट किया था, जिसमें कथित तौर पर सनसनी मचाने वाली किशोरी प्रिया प्रकाश वारियर के खिलाफ फतवा जारी किया गया था। आज तक ने उसके आधार पर शाम का एक कार्यक्रम प्रसारित किया।
इसी तरह के एक अन्य उदाहरण में समाचार एजेंसी आईएएनएस शामिल है जो त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब देब के पैरोडी अकाउंट के झांसे में आ गई।
हालांकि, मीडिया संगठनों द्वारा भ्रामक सूचनाओं के बेशुमार उदाहरण साल भर देखने को मिले; फिर भी, 2018 का साल ऐसा भी रहा जब कई मीडिया संगठनों ने तथ्य-जांच के लिए समर्पित विभाग स्थापित किए। उम्मीद है कि यह सही और विवेकपूर्ण रिपोर्टिंग को आगे बढ़ाने में मदद करेगा, और 2019 में भ्रामक ख़बरों के प्रसार पर अंकुश लगाएगा।
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