टाइम्स ऑफ़ इंडिया की पत्रकार भारती जैन ने ट्वीट्स की एक शृंखला में, नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन और बिहार के नालंदा विश्वविद्यालय के प्रबंधन के विरुद्ध वित्तीय कदाचार और भाई-भतीजावाद के गंभीर आरोप लगाए। उनके ट्वीट्स में दावा किया गया कि 2014 में मोदी के आने के बाद, इस कथित “धोखाधड़ी को रोक दिया गया और अमर्त्य सेन को नालंदा विश्वविद्यालय से बाहर कर दिया गया”। भारती जैन ने इसे प्रधानमंत्री की आर्थिक नीतियों की प्रोफेसर सेन की आलोचना के पीछे एक मकसद के रूप में माना।
उनके आरोपों के समर्थन में सबूतों के अभाव को लेकर सोशल मीडिया में बात उठने पर, जैन ने स्पष्ट किया कि उनके ट्वीट “स्रोतों” पर आधारित थे नाकि उनके खुद के विचार थे।
I am not the source of this tweet. Sorry but I should have mentioned ‘sources’ while tweeting
— Bharti Jain (@bhartijainTOI) April 28, 2019
कथित “स्रोतों” के बारे में दबाव पड़ने पर जैन ने जवाब दिया कि ये सरकारी स्रोत थे।
Bharti, do you have a source for your tweets? Because the university seems to have said the opposite: https://t.co/0iJy6PhCuN
— Puja Mehra (@pujamehra) April 28, 2019
कुछ समय बाद, जैन ने अपने ट्वीट्स हटा दिए।
संयोग से, “सरकारी स्रोतों” के नाम से जैन द्वारा लगाए गए आरोप, हाल के दिनों में व्हाट्सएप पर प्रसारित हो रहे थे। उन पर थोड़ा ही ध्यान गया, जब तक एक राष्ट्रीय समाचार पत्र के पत्रकार ने सोशल मीडिया में व्हाट्सएप संदेशों के समान सूचना शेयर करने का निर्णय लिया।
जैन, टाइम्स ऑफ इंडिया में संपादक, आंतरिक सुरक्षा हैं, और उनके ट्विटर परिचय के अनुसार, वह गृह मंत्रालय, सुरक्षा मामलों, कार्मिक मंत्रालय, चुनाव आयोग और संसद से संबंधित खबरें करती हैं।
इस रिपोर्ट में, ऑल्ट न्यूज़ ने प्रोफेसर सेन और नालंदा विश्वविद्यालय के खिलाफ जैन द्वारा लगाए गए आरोपों की तथ्य-जाँच करने का प्रयास किया है। ऐसा करते समय, अपने स्वयं के अनुसंधान के अलावा, ऑल्ट न्यूज़, नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन से भी संपर्क किया।
पहला आरोप:
“अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन को 2007 में नालंदा मेंटर ग्रुप के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था और 2012 में कांग्रेस सरकार द्वारा बिहार के प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय (NU) का पहला कुलपति बनाया गया था। उन्हें *5 लाख रुपये* प्रति माह वेतन, कर मुक्त लाभ, बेहिसाब विदेश यात्रा, विलासितापूर्ण होटलों में बैठक, सीधी नियुक्तियों की शक्ति, आदि दिए गए थे।” -(अनुवादित)
तथ्य-जांच:
डॉ. सेन के वेतन-भत्तों पर पहला मामला 2015 में भाजपा सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी द्वारा उठाया गया था, जब उन्होंने दावा किया था कि प्रोफेसर सेन ने नालंदा विश्वविद्यालय से 50 लाख रुपये का वार्षिक वेतन उठाया था। तब विभिन्न मीडिया संगठनों ने 2015 में विश्वविद्यालय के बयान का विवरण प्रकाशित किया था।
उस बयान में दावे को “झूठा” बताया गया और कहा गया कि डॉ. सेन ने नालंदा विश्वविद्यालय से कोई वेतन नहीं लिया था और विश्वविद्यालय के लिए उनके सभी काम मानद रूप में किए गए थे। यह भी कहा गया कि डॉ. सेन ने विश्वविद्यालय से कोई “अनुलाभ” नहीं लिया।
नालंदा विश्वविद्यालय ने आगे स्पष्ट किया कि मुफ्त यात्रा पास भारत सरकार से डॉ. सेन के लिए उपहार था। पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी ने उनके नोबेल पुरस्कार का जश्न मनाने के लिए यह पास उपहार दिया था।
ऑल्ट न्यूज़ को ईमेल से भेजे जवाब में, डॉ. सेन ने पत्रकार भारती जैन के आरोपों को “विचित्र रूप से झूठा” करार दिया। उन्होंने विस्तार से लिखा — “सबसे पहले, मैंने नलंदा से कोई भी वेतन प्राप्त नहीं किया, और शून्य पारिश्रमिक पर काम किया। दूसरा, मुझे “कोई कर मुक्त लाभ” नहीं मिला था और कोई “बेहिसाब विदेश यात्रा” नहीं थी। तीसरा, मुझे उन होटलों में ठहराया गया जहां बोर्ड की बैठकों का आयोजन किया गया और बोर्ड के अन्य सदस्य (विदेश मंत्रालय के प्रतिनिधियों सहित – जब दिल्ली से बाहर बैठक हुई) आमतौर पर ठहराए गए।” -(अनुवादित)
दूसरा आरोप:
“मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान नौ साल, अमर्त्य सेन ने ज़्यादातर विदेशों में रहते हुए नालंदा विश्वविद्यालय चलाया। उन्होंने सात संकायों को नियुक्त किया। नलंदा विश्वविद्यालय को 5-सितारा होटल बनाया।”
तथ्य-जांच:
कोई कुलपति, विश्वविद्यालय नहीं चलाते। एक उप-कुलपति के विपरीत, कुलपति का मानद अनिवासी पद है। उदाहरण के लिए, वेंकैया नायडू दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति हैं। भारतीय संसद द्वारा पारित नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम (2010) की धारा 14, कुलपति की ज़िम्मेदारियों को बतलाता है।
धारा 15 में कहा गया है कि कुलपति, मुख्य अकादमिक और कार्यकारी अधिकारी हैं और नालंदा विश्वविद्यालय के मामलों पर नियंत्रण रखते हैं और विश्वविद्यालय के सभी प्राधिकारियों के निर्णयों को प्रभावित करते हैं।
प्रोफेसर सेन ने सूचित किया — “नालंदा में अपनी उपस्थिति के बारे में, मैंने बोर्ड की सभी बैठकों में भाग लिया और नियमित रूप से राजगीर और नई दिल्ली में नालंदा विश्वविद्यालय के परिसर और कार्यालयों का दौरा किया और नालंदा विश्वविद्यालय में संकाय और छात्रों के साथ लगातार बैठकें कीं। अन्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के समान, नालंदा के कुलपति को परिसर में रहने की आवश्यकता नहीं है (वास्तव में, नालंदा परिसर में कुलपति के लिए कोई आवंटित आवास नहीं है)।”- (अनुवादित)
उनके द्वारा की गई नियुक्तियों के बारे में, उन्होंने कहा, “यह मेरे कर्तव्य का हिस्सा था कि मैं विशिष्ट संकाय सदस्यों की पसंद और भर्ती में मदद करूँ, और मैंने अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वहन करने की कोशिश की।”
प्रोफेसर सेन नालंदा विश्वविद्यालय को 5-सितारा होटल बनाने के आरोप से परेशान लग रहे थे। उन्होंने जवाब दिया, “मैं अनुमान नहीं लगा सकता कि “नालंदा विश्वविद्यालय को 5-सितारा होटल बनाने” से सुश्री भारती जैन का क्या मतलब संभव हो सकता है।” नालंदा विश्वविद्यालय में हमारे पास कोई होटल की सुविधा नहीं थी — बोर्ड के सदस्य, जब दौरा करते — तो पास के होटलों में ठहराए जाते थे।” -(अनुवादित)
तीसरा आरोप:
“कुल खर्च चौंकाने वाला *2729 करोड़* था”
तथ्य-जांच:
यह दावा करते हुए जैन, लगता है कि प्रोफेसर सेन के कार्यकाल के दौरान किए गए वास्तविक व्यय, और, नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना और संचालन के लिए भारत सरकार द्वारा निर्धारित कुल बजट को लेकर भ्रमित थीं।
नालंदा विश्वविद्यालय के बजट और व्यय को लेकर अप्रैल 2015 में लोकसभा में एक प्रश्न उठाया गया था। विदेश राज्यमंत्री जनरल वीके सिंह का इस पर जवाब इस प्रकार था — “नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए सरकार द्वारा 2727.10 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए हैं, जिनमें से अब तक 47.28 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं।” -(अनुवादित)
प्रोफेसर सेन का जवाब भी इसी तरह का था — “500 एकड़ से अधिक ज़मीन पर नालंदा का नया परिसर बनाने की योजना, तैयारी और शुरुआत तब हुई जब मैं कुलपति था। वर्तमान व्यय और दीर्घकालिक निवेश के बीच सुश्री जैन को फर्क करना होगा।” -(अनुवाद)
चौथा आरोप:
“चार महिला संकायों, डॉ. गोपा सभरवाल, डॉ. अंजना शर्मा, नयनजोत लाहिड़ी और उपिंदर सिंह को दिल्ली विश्वविद्यालय से संकाय बनाया गया। *उपिंदर सिंह, मनमोहन सिंह की सबसे बड़ी बेटी हैं*, जबकि शेष तीन उपिंदर की करीबी दोस्त थी।”
तथ्य-जांच:
ऑल्ट न्यूज़ की तथ्य-जाँच में पाया गया कि सभरवाल नालंदा विश्वविद्यालय की कुलपति थीं और शर्मा अकादमिक योजना की डीन थीं, लेकिन, लाहिड़ी और सिंह के बारे में विश्वविद्यालय की वार्षिक रिपोर्टों में कोई संदर्भ नहीं मिला।
ऑल्ट न्यूज़, प्रोफेसर नयनजोत लाहिड़ी तक पहुंचा जिन्होंने विश्वविद्यालय के साथ किसी भी तरह के संबंध से स्पष्ट रूप से इनकार किया। ऑल्ट न्यूज़ को एक ईमेल जवाब में, उन्होंने कहा, “वास्तव में, उस समय के दौरान जब प्रोफेसर सेन कुलपति थे, मैंने दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर के रूप में और कुछ वर्षों के लिए कॉलेजों के डीन के रूप में कार्य किया था। किसी भी समय मैं नालंदा में संकाय का हिस्सा नहीं थी और न ही मैंने किसी भी क्षमता में उस विश्वविद्यालय से एक रुपया भी कमाया है। दिल्ली विश्वविद्यालय छोड़ने के बाद, मैं 2016 में अशोका विश्वविद्यालय से जुड़ गई।” -(अनुवादित)
ऑल्ट न्यूज़ ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बेटी प्रोफेसर उपिंदर सिंह से भी संपर्क किया। ऑल्ट न्यूज़ से संवाद में, उन्होंने पुष्टि की कि वह कभी नालंदा विश्वविद्यालय में संकाय नहीं थीं, और न ही उन्हें विश्वविद्यालय से कोई पारिश्रमिक प्राप्त हुआ था।
ऑल्ट न्यूज़ को अपने ईमेल में, प्रोफेसर सेन ने इस बात को यह कहते हुए दोहराया, “न तो उपिंदर सिंह (मनमोहन सिंह की सबसे बड़ी बेटी), और न ही उनकी दोस्त नयनजोत लाहिड़ी, किसी भी समय नालंदा संकाय की सदस्य रहीं (हालांकि उनकी विशिष्ट योग्यता को देखते हुए, जैसे कि वे दिल्ली विश्वविद्यालय में थीं, उनकी नियुक्ति आसानी से नालंदा में की जा सकती थी)।”
पांचवां आरोप:
“दो और मानद संकायों की नियुक्ति की गई, दमन सिंह और अमृत सिंह। *मनमोहन सिंह की दूसरी और सबसे छोटी बेटियाँ। वेतन पाते हुए वे अमरीका में रहीं! *”
तथ्य-जांच:
दिलचस्प बात यह है कि जबकि शृंखला के बाकी ट्वीट्स को अब जैन ने हटा दिया है, तब भी यह ट्वीट उनकी टाइमलाइन पर मौजूद है।
Two more faculties were appointed, honorary, Daman Singh & Amrit Singh. Middle & youngest daughters of Manmohan Singh..They stayed in USA while drawing salary
— Bharti Jain (@bhartijainTOI) April 28, 2019
इस ट्वीट में, उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की धोखाधड़ी और मिलीभगत का गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि उनकी बेटियाँ अमेरिका में रहते हुए संकाय सदस्यों के रूप में विश्वविद्यालय से वेतन प्राप्त कर रही थीं।
जैन की कई लोगों द्वारा निंदा की गई। इनमें द हिंदू की वरिष्ठ पत्रकार सुहासिनी हैदर भी शामिल थीं, जिन्होंने आरोप की जाँच की और पाया कि सिंह की दोनों बेटी कभी भी किसी भी समय विश्वविद्यालय में संकाय सदस्य नहीं थीं और उनमें से एक अमेरिका में रहती भी नहीं हैं।
Bharti, please do check on your sources on this claim. Since it was coming from you, I made an effort to check, and neither people you named have been faculty at the University, and one of them doesn’t live in the USA at all. I urge you to revise the information.
— Suhasini Haidar (@suhasinih) April 29, 2019
ऑल्ट न्यूज़, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बेटी दमन सिंह से संपर्क किया। ऑल्ट न्यूज़ से बातचीत में, दमन सिंह ने कहा, “मैं इस बात की पुष्टि कर सकती हूं कि न तो मेरा और न ही मेरी बहन अमृत का नालंदा विश्वविद्यालय से कोई संबंध है”।
प्रोफेसर सेन ने इस दावे का जवाब देते हुए कहा, “यह भी पूरी तरह से असत्य है। उल्लिखित दोनों को कभी नालंदा विश्वविद्यालय का संकाय सदस्य नियुक्त नहीं किया गया (वे ऐसी नियुक्ति भी नहीं चाहती थीं)। संयुक्त राज्य अमेरिका में रहने के दौरान उनके वेतन का सवाल नहीं उठता है (“मानद” नियुक्तियों के लिए “वेतन उठाना” अलग से सत्य-असत्य के प्रश्न उठाता है)।”
छठा आरोप:
“2014 के बाद, जब मोदी आए, इन सभी धोखाधड़ी को रोक दिया गया और अमर्त्य सेन को नालंदा विश्वविद्यालय से बाहर कर दिया गया। उस दिन के बाद से अमर्त्य सेन ने मोदी के आर्थिक एजेंडे की आलोचना शुरू कर दी। हालांकि, विश्व स्तर पर, वह मोदी के खिलाफ किसी अन्य अर्थशास्त्री को प्रभावित करने में विफल रहे।”
तथ्य-जांच:
नालंदा विश्वविद्यालय में कुलपति का कार्यकाल नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम (2010) द्वारा नियंत्रित होता है। अधिनियम की धारा 5 (F) के अनुसार, 3 साल के कार्यकाल के लिए कुलपति नियुक्त किए जाते हैं।
नालंदा विश्वविद्यालय से डॉ. अमर्त्य सेन के निकलने में योगदान करने वाले कारकों के संबंध में एक प्रश्न के उत्तर में, विदेश राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह की प्रतिक्रिया इस प्रकार थी — “प्रोफेसर अमर्त्य सेन को 18 जुलाई, 2012 से तीन साल की अवधि के लिए नालंदा विश्वविद्यालय का पहला कुलपति नियुक्त किया गया था। जैसा कि तीन साल का उनका कार्यकाल पूरा होने वाला था, प्रो. सेन ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की कि वे जुलाई 2015 के बाद नालंदा विश्वविद्यालय के कुलाधिपति बने रहने से खुद को अलग करना चाहते थे।”
प्रोफेसर सेन ने विश्वविद्यालय से निष्कासित होने के आरोप का जवाब यह कहते हुए दिया, “वास्तव में, मैंने नालंदा विश्वविद्यालय का कुलपति बने रहने की कोशिश नहीं की (हालांकि, गवर्निंग बॉडी ने मुझे कुलपति बने रहने के लिए फिर से चुना था)। मुझे न केवल मोदी-सरकार की शत्रुता से घृणा थी, बल्कि यह भी देखना था कि मोदी-सरकार इस प्राचीन (बौद्ध-मूल) विश्वविद्यालय के साथ कितना बुरा व्यवहार करती है।” -(अनुवादित)
जैन का दावा, कि उन्होंने नालंदा से निकलने के बाद प्रधानमंत्री मोदी के आर्थिक एजेंडे की अपनी आलोचना शुरू की, की प्रतिक्रिया में प्रोफेसर सेन ने कहा, “मुझे अवश्य बताना चाहिए कि मैं नालंदा से अपने प्रस्थान के काफी पहले से मोदी की आर्थिक सोच की बड़ी भूलों की आलोचना करता रहा हूं (वास्तव में, नालंदा का कुलपति बनने के बहुत पहले से)।”
ऑल्ट न्यूज़ ने नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के पहले डॉ. अमर्त्य सेन द्वारा उनकी आलोचनाओं की खोज की तो कई उदाहरण मिले।
निष्कर्ष:
विभिन्न स्रोतों से की गई उपरोक्त तथ्य-जांच से साबित होता है कि भारती जैन द्वारा उद्धृत करके फॉरवर्ड किए गए व्हाट्सएप के वायरल दावे पूरी तरह से निराधार थे। ऑल्ट न्यूज़ को अपने ईमेल में, प्रोफेसर सेन ने टिप्पणी की, “अंत में, मुझे यह कहना चाहिए कि इतनी बड़ी और सकल गलतियों को इतने कम शब्दों में डालने की जैन की क्षमता को देखकर मैं काफी प्रभावित हूँ।” -(अनुवादित)
हालांकि, जैन की वह ट्वीट शृंखला अब हटा दी गई है, मगर, वह संदेश नकली समाचार तंत्र द्वारा उठा लिया जा चुका है। दक्षिणपंथी दुष्प्रचार वेबसाइट, ओपइंडिया ने सेन और मनमोहन सिंह की ‘अपवित्र सांठगांठ’ पर एक लेख प्रकाशित किया है, जिसमें मनमोहन सिंह की अमेरिका में रहती बेटियों के बारे में जैन के ट्वीट को उद्धृत किया गया है। इस वेबसाइट ने एक पूर्व प्रधानमंत्री और एक नोबेल पुरस्कार विजेता के खिलाफ धोखाधड़ी के गंभीर आरोप लगाने से पहले दावे की तथ्य-जांच करने का कोई प्रयास नहीं किया। फेसबुक पर कई भाजपा समर्थकों द्वारा “सेन, मोदी के प्रखर आलोचक क्यों हैं, इसका कारण” बताने के लिए इस ट्वीट शृंखला को कॉपी-पेस्ट भी किया गया है।
यह गलत जानकारी व्हाट्सएप पर प्रसारित होना अब भी जारी है, और जो आरोप पहले बिना स्रोत का नाम लिए चलाए गए थे, वे अब स्रोत के रूप में टाइम्स ऑफ इंडिया की भारती जैन के नाम से चल रहे हैं।
ऑल्ट न्यूज़ के लेख के बाद भारती जैन ने माफी मांगते हुए ट्वीट में लिखा कि अमर्त्य सेन के बारे में किए गए उनके सारे दावे गलत हैं।
This is to acknowledge that my tweets on Prof Amartya Sen with regard to his tenure at Nalanda University were completely incorrect. I was misinformed. My sincere apologies to Prof Sen and everyone else I have named in my tweets.
— Bharti Jain (@bhartijainTOI) May 2, 2019
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