गणतंत्र दिवस के दिन उत्तर प्रदेश के कासगंज में हुई सांप्रदायिक हिंसा में कई तरह की अफ़वाहें फैली। इसमें एक अफ़वाह थी राहुल उपाध्याय नामक व्यक्ति की मौत के बारे में। इसके लिए प्रमुख समाचार वेबसाइट जागरण और अमर उजाला सहित कई स्थानीय समाचार वेबसाइट और सोशल मीडिया जिम्मेदार है। किसी भी हिंसा के फैलने में उन अफ़वाहों का बड़ा हाथ होता है जो बिना किसी सत्यापन के इधर से उधर फैलायी जाती है। ग़लत अफ़वाह, हिंसा में आग में घी का काम करती है। इन अफवाहों के बीच राहुल उपाध्याय ने खुद मीडिया के सामने आकर अपने जिंदा होने के सबूत पेश किए और मौत की खबरों को अफवाह बताया।
जागरण ने एक लेख प्रकाशित किया था जिसमें बताया गया कि भीरा (उत्तरप्रदेश) में कासगंज की घटना में चन्दन गुप्ता और राहुल उपाध्याय के मारे जाने के विरोध में युवाओं और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् द्वारा आक्रोश जुलुस निकाला गया।
हालांकि जागरण ने अभी यह लेख हटा लिया है। वहीं अमर उजाला ने भी इसी खबर को सूचित करते हुए लिखा कि “इस घटना के विरोध में युवाओं ने मशाल जुलूस निकाला। इसमें आये पदाधिकारियों ने घटना में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद कार्यकर्ता चंदन गुप्ता और राहुल उपाध्याय की मौत पर आक्रोश जताया। कासगंज में उपद्रव में मारे गए चंदन गुप्ता की मौत पर युवाओं में काफी आक्रोश था। दूसरे युवक राहुल की मौत की खबर मिलने पर गुस्साए युवाओं ने मशाल जुलूस निकाला। जुलूस के दौरान चंदन-राहुल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं।” अमर उजाला का लेख अभी भी मौजूद है।
आक्रोश जुलूस के बैनर पर भी राहुल उपाध्याय का नाम है। जुलूस करने वालों ने भले ही राहुल उपाध्याय का नाम लिया था लेकिन जागरण और अमर उजाला जैसे प्रमुख वेबसाइट ने बिना किसी सत्यापन के राहुल के मौत की खबर को प्रकाशित किया।
वहीं एक अन्य समाचार वेबसाइट दैनिक रुड़की ने लिखा कि चन्दन गुप्ता और राहुल उपाध्याय को अग्रवाल समिति ने श्रधांजलि दी
रफ़्तार नामक एक और समाचार वेबसाइट ने हैडलाइन राहुल उपाध्याय भी हारे जिन्दगी के जंग, अलीगढ़ अस्पताल में उपचार के दौरान मौत के साथ लेख प्रकाशित किया।
एक और समाचार वेबसाइट KNLSलाइव ने बताया कि कासगंज दंगे में घायल हुए राहुल उपाध्याय की उपचार के दौरान मौत हो गयी
Newstrack वेबसाइट ने भी ऐसा ही कुछ सूचित किया
24city.news ने भी इस खबर को बताया था लेकिन बाद में डिलीट कर दिया गया। एक फर्जी समाचार वेबसाइट दैनिक भारत ने भी ऐसा ही अफवाह उड़ाया। जबकि नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार राहुल उपाध्याय जिसको इतने सारे समाचार वेबसाइट ने मृत घोषित कर दिया वह जीवित है। कासगंज से लगभग 10 किलोमीटर दूर स्थित नगलागंज गांव में रहने वाले राहुल ने कहा कि जिस दिन हिंसा फैली उस दिन वह अपने घर पर थे। राहुल के शरीर पर किसी तरह की चोट के निशान नहीं हैं और वह बिल्कुल ठीक है। नवभारत टाइम्स के ही रिपोर्ट के अनुसार जो तस्वीर राहुल उपाध्याय का बताकर वायरल किया गया दरअसल वो मुंबई के रहने वाले युवक दिलीप मोदी की है जिसकी 26 जनवरी (गणतंत्र दिवस) के दिन ही एक सड़क हादसे में मौत हो गयी थी इस हादसे की खबर गुजराती अख़बार में छपी थी।
पहले भी ऑल्ट न्यूज़ ने कुछ प्रमुख समाचार वेबसाइट द्वारा फर्जी खबर फैलाये जाने को सूचित किया है। जैसे दैनिक जागरण और अमर उजाला ने एक खबर फैलाई थी कि गाजियाबाद में AIMIM की रैली में पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगे थे लेकिन यह एक झूठी खबर थी, इस बारे में आप यहाँ पढ़ सकते हैं। कुछ समय पहले कई समाचार संस्थान ने हाफिज सईद की रिहाई पर यूपी के लखीमपुर में जश्न और आतिशबाजी की खबर बताई थी यह भी झूठ साबित हुई थी। पिछले महीने भी एक पुराने विडियो को मेजर प्रफुल्ल का बताकर दैनिक जागरण ने रिपोर्ट किया था। ऐसी जानकारी जब प्रमुख मीडिया संस्थानों के द्वारा साझा की जाती है, तो कानून प्राधिकरणों और आम जनता को एक गंभीर चुनौती पेश करती है जो इन खबरों के समाचार संस्थान द्वारा रिपोर्ट किए जाने से बिना सोचे विश्वास कर लेते हैं।
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