जुलाई के दूसरे हफ़्ते में कई सोशल मीडिया यूज़र्स ने एक पोस्ट शेयर किया. दावा किया जा रहा है कि हिमालया ड्रग कंपनी के नीम, तुलसी और लहसुन सप्लिमेंट्स में हलाल मांस पाया जाता है. इस दावे का समर्थन, अवतार सिंह ([email protected]) और हिमालया की ग्राहक सेवा प्रबंधक सुश्री तारा शरद चारुन ([email protected]) के बीच 2015 के ई-मेल एक्सचेंज की फ़ोटोकॉपी की एक तस्वीर में भी किया गया है.

ईमेल में लिखा है, “प्रिय श्री सिंह, एक बार फिर हमसे संपर्क करने के लिए धन्यवाद. फ़िलहाल, भारतीय बाज़ार में मौजूद हमारे शुद्ध हर्ब कैप्सूल शेल (नीम, तुलसी और लहसुन) हार्ड जिलेटिन हैं. जिलेटिन कैप्सूल में फ़ार्मास्युटिकल ग्रेड जिलेटिन पायी जाती है जो हलाल प्रमाणित गाय की हड्डी (बोवाइन बोन) का बनता है. आपकी सलामती के लिए हमारी शुभकामनाएं.”

कई ट्विटर यूज़र्स के अलावा बीजेपी समर्थक संजीव नेवर और अरुण पुदुर ने कंपनी को निशाना बनाते हुए ट्वीट किया है. संजीव नेवर को ट्विटर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी फ़ॉलो करते हैं. उनके ट्वीट को 3,000 से अधिक बार रीट्वीट किया गया है.

कई फ़ेसबुक यूज़र्स ने भी ये दावा शेयर किया है.

फ़ैक्ट-चेक

कंपनी की वेबसाइट के अनुसार, नीम, तुलसी और लहसुन सप्लिमेंट्स 100% शाकाहारी टेबलेट हैं, कैप्सूल नहीं.

कैप्सूल के प्रकार

मोटे तौर पर कैप्सूल दो प्रकार के माने जा सकते हैं- शाकाहारी और मांसाहारी. आमतौर पर, मांसाहारी कैप्सूल जिलेटिन-आधारित होते हैं. और शाकाहारी कैप्सूल स्टार्च या हाइड्रॉक्सीप्रोपाइल मिथाइलसेल्युलोज़ (HPMC) पर आधारित होते हैं. 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय फ़ार्मास्युटिकल इंडस्ट्री का 98% हिस्सा, जानवरों के अंगों वाले कैप्सूल का उपयोग करता हैं.

जिलेटिन क्या है?

PETA के अनुसार, “जिलेटिन एक प्रोटीन है जो त्वचा, टेंडन, लिगामेंट्स या फिर हड्डियों को पानी में उबालकर बनाया जाता है. ये आमतौर पर गायों या सूअरों से निकाला जाता है. जिलेटिन का उपयोग शैंपू, फ़ेस मास्क और अन्य सौंदर्य प्रसाधनों में किया जाता है. जैसे फलों के जिलेटिन और पुडिंग (जैसे Jell-O) के कैंडीज, मार्शमॉलो, केक, आइसक्रीम और योगर्ट में, फ़ोटोग्राफ़िक फ़िल्म पर, विटामिन में कोटिंग के रूप में और कैप्सूल के रूप में.” नेशनल सेंटर फ़ॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफ़ॉर्मेशन स्टडी में ज़िक्र है कि जिलेटिन एक बहुत लोकप्रिय दवा और फ़ूड प्रोडक्ट है और हलाल रिसर्च में सबसे ज़्यादा इसके बारे में पढ़ा जाता है.

हिमालया की प्रतिक्रिया

सोशल मीडिया पर हो रहे विवाद पर कंपनी ने एक आधिकारिक बयान दिया, “हिमालया वेलनेस भारत में मानव उपयोग वाले किसी भी प्रोडक्ट में जिलेटिन कैप्सूल का उपयोग नहीं करता है. हमारे सभी प्रोडक्ट टैबलेट के रूप में या वेजिटेबल कैप्सूल में हैं. हम स्पष्ट करना चाहते हैं कि सोशल मीडिया पोस्ट में दी गयी जानकारी फ़ैक्ट के हिसाब से गलत है. और भारत में मौजूद नीम, तुलसी और लहसुन जैसे हमारे एकल जड़ी-बूटी प्रोडक्ट टैबलेट के रूप में हैं, कैप्सूल के रूप में नहीं.”

हालांकि, हिमालया के प्रवक्ता ने ये स्पष्ट नहीं किया कि 2015 का ई-मेल असली है या नहीं, हमारे सूत्रों के अनुसार ईमेल असली है. ध्यान देने वाली बात है कि हिमालया ड्रग कंपनी को नियमित रूप से सांप्रदायिक गलत जानकारियों से निशाना बनाया जाता है, इसका एक कारण है कि इसे 1930 में बेंगलुरु स्थित मोहम्मद मनल ने स्थापित किया था.

नीम, तुसली और लहसुन में उपयोग होने वाले कैप्सूल के प्रकार

हमें नेशनल सेंटर फ़ॉर बायोटेक्नोलॉजी इन्फ़ॉर्मेशन (NCBI) द्वारा 2013 की एक रिसर्च मिली जिसमें हिमालया ड्रग कंपनी द्वारा लहसुन कैप्सूल का ज़िक्र है. रिसर्च ने एक प्रोडक्ट पेज बनाया है, जिसमें लहसुन कैप्सूल में उपयोग होने वाले उत्पादों की लिस्ट है. ये पेज अब ऐक्टिव नहीं है. हालांकि, WayBackMachine पर ये मौजूद है. हिमालया ड्रग कंपनी पेज का आर्काइव वर्ज़न, जिसे पहले हिमालया हेल्थ केयर के नाम से जाना जाता था, बताता है कि नीम, तुलसी और लहसुन सप्लिमेंट्स असल में कैप्सूल के रूप में बेची गई थी. पेज ये नहीं बताता है कि प्रोडक्ट 100% शाकाहारी था.

फ़ेसबुक पर एक कीवर्ड सर्च करने पर हमें दो और पोस्ट मिलीं जो ये साबित करती हैं कि जिलेटिन-आधारित कैप्सूल असल में इस्तेमाल किए गए थे.

2014 में थाईलैंड के फ़ेसबुक पेज ‘Namaste-Himalaya product nateral100%’ ने हिमालया नीम की तस्वीरें पोस्ट कीं थी. तस्वीर में प्रोडक्ट के पीछे लिखे डिस्क्रिप्शन के अनुसार कैप्सूल जिलेटिन आधारित थे.

2015 में, फ़ेसबुक पेज हिमालया पर्सनल केयर ने फ़ेसबुक यूज़र अतुल सरीन को जवाब देते हुए इस बात को कन्फ़र्म किया था.

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हमारी जांच के अनुसार, तुलसी, नीम और लहसुन के लिए कैप्सूल-आधारित सप्लिमेंट्स को 2015 के बाद टैबलेट के रूप में बदल दिया गया था. कई अन्य कंपनियों की तरह, हिमालया कंपनी भी कैप्सूल-आधारित सप्लिमेंट्स, जैसे आयुर्सलिम और गोक्षुरा बेचती है. गोक्षुरा के प्रोडक्ट पेज पर अतिरिक्त सूचना टैब के तहत इसके 100% शाकाहारी होने की सूचना दी गयी है. इसके अलावा, हमें गोक्षुरा का प्रोडक्ट डिस्क्रिप्शन भी मिला जो बताता है कि HPMC कैप्सूल का उपयोग किया जाता है.

कैप्सूल के बारे में अधिक जानकारी के लिए आप NCBI द्वारा 2017 में की गयी एक स्टडी पढ़ सकते हैं. इसका शीर्षक है, ‘Are your capsules vegetarian or nonvegetarian: An ethical and scientific justification’

2015 में ईमेल भेजने वाले अवतार सिंह के इनपुट्स

ऑल्ट न्यूज़ ने राम गौ रक्षा दल के अवतार सिंह से भी फ़ोन पर बात की. उन्होंने कहा, “2015 में मैं एक ऐसे कानून की वकालत कर रहा था जो फ़ार्मास्यूटिकल्स सहित अन्य कंपनियों को हरे या लाल इंडिकेटर से ये इंगित करने के लिए मजबूर करता है कि उनका प्रोडक्ट शाकाहारी है या नहीं. अगर ये फ़ूड प्रोडक्ट्स पर लागू किया जा सकता है तो दूसरे प्रोडक्ट्स के लिए क्यों नहीं?” उन्होंने हमारे साथ 2015 के ईमेल पत्राचार को शेयर करने से मना किया.

गौरतलब है कि अवतार सिंह के पहले का ईमेल आईडी [email protected] अब मौजूद नहीं है. हालांकि, वेबसाइट ramgauarakshadal.com के आर्काइव WayBackMachine पर मौजूद हैं.

मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला

जिलेटिन आधारित कैप्सूल के इस्तेमाल को लेकर विवाद कोई नया नहीं है. 2002 में, एक जनहित याचिका दायर की गई थी जिसमें दावा किया गया था कि सौंदर्य प्रसाधन, दवाएं या खाना किन प्रोडक्ट्स से बना है (शाकाहारी / मांसाहारी). ये जानना उपभोक्ता का अधिकार है, इसे एक स्पष्ट संकेत (हरे गोले और भूरे गोले) से दिखाया जाना चाहिए.

जस्टिस G.S सिंघवी और जस्टिस सुधांशु ज्योति मुखोपाध्याय की पीठ ने 2013 में कहा था, “ जहां तक ​​फ़ूड प्रोडक्ट्स की बात है, उपभोक्ताओं को ये सूचित करने के लिए पर्याप्त प्रावधान दिये गए हैं कि खाने का सामान शाकाहारी है या मांसाहारी. जहां तक ​​दवाओं और सौंदर्य प्रसाधनों की बात है, संबंधित कानूनों में आवश्यक संशोधन नहीं किए गए हैं. ​​जीवन रक्षक दवाओं के संबंध में किसी जानवर के बारे में पूरी तरह या थोड़ा बहुत भी ये खुलासा नहीं किया जाना चाहिए कि उन्हें बीमारी से लड़ने और जीवन बचाने के लिए उपयोग किया गया है. किसी भी समय दवाओं को चुनने में उनका उपयोग एक सूचित विकल्प के रूप में नहीं किया जा सकता. इसलिए, इन परिस्थितियों में जीवन रक्षक दवाओं के मामले में मजबूत नज़रिया होना चाहिये. ये अपवाद केवल जीवन रक्षक दवाओं पर ही लागू होगा. ये स्पष्ट करने की ज़रुरत है कि सभी दवाएं जीवन रक्षक दवाओं के रूप में इलाज के काबिल नहीं हैं. जो दवाएं जीवन रक्षक नहीं हैं, उन्हें फ़ूड प्रोडक्ट्स के साथ कुछ हद तक खड़ा होना चाहिए और ये बताना चाहिए कि वे पूरी तरह से या थोड़ा बहुत भी जानवरों से बनी हैं या नहीं.”

शीर्ष अदालत ने ये भी कहा कि इसी तरह की एक याचिका को ड्रग टेक्निकल एडवाइज़री बोर्ड ने 8 जुलाई, 1999 को अपनी 48वीं बैठक में खारिज किया था. बोर्ड ने अप्रैल 2021 में भी प्रस्ताव को खारिज किया था.

ऑल्ट न्यूज़ ने सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइज़ेशन के प्रेस रिलेशन ऑफ़िसर से बात की. उन्होंने कहा, “दवायें शाकाहारी या मांसाहारी हैं, ये जानने के लिए उन पर हरे या भूरे रंग का डॉट लगाने के नियम को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने मंजूरी नहीं दी है.”

पिछले साल ड्रग टेक्निकल एडवाइज़री बोर्ड की बैठक में ड्रग एंड कॉस्मेटिक्स ऐक्ट, 1940 (1940 के 23) के सेक्शन 12 और सेक्शन 33 के तहत नए नियम दिए गए थे. जिसे कॉस्मेटिक नियम, 2020 के रूप में जाना जाता है. इस अपडेट में हरे या लाल डॉट से दवाओं पर निशान लगाने के बारे में कोई कानून नहीं है.

2015 में हिमालया के ग्राहक सेवा प्रबंधक द्वारा किया गया 2015 का ई-मेल असली है. एक सूत्र ने इस बात को कन्फ़र्म किया है. लेकिन इससे भी ज़रुरी बात ये है कि ग्राहकों के साथ कंपनी की पुरानी बात-चीत इस बात को स्पष्ट करती है कि उनके कैप्सूल जिलेटिन आधारित थे. हालांकि, हिमालया अब कैप्सूल के रूप में नीम, तुलसी और लहसुन सप्लिमेंट्स नहीं बेचता, जिसमें जिलेटिन इस्तेमाल होता था. इस कंपनी को जान-बूझ कर सोशल मीडिया पर टारगेट किया गया है. वरना सच तो ये है कि भारतीय फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री का 98% हिस्सा ऐसे कैप्सूल का उपयोग करता ही है.

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🙏 Blessed to have worked as a fact-checking journalist from November 2019 to February 2023.