एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है जिसमें कुछ लोग हिन्दू देवी काली की मूर्ति तोड़ रहे हैं. ये वीडियो शेयर करते हुए दावा किया जा रहा है कि बांग्लादेश में इस्लामिक कट्टरवादियों ने हिंदू देवी की मूर्ति को तोड़ दिया और मंदिर में मौजूद श्रद्धालुओं की हत्या कर दी.
ज़ी न्यूज़ ने अपने रिपोर्ट में वायरल वीडियो चलाते हुए दावा किया कि बांग्लादेश में कट्टरपंथियों ने कालीबाड़ी (काली मंदिर) पर हमला कर हिंदू देवी काली की मूर्ति तोड़ दी और उसे तोड़ने का वीडियो भी बनाया.
भाजपा की मातृ संगठन आरएसएस की मुखपत्रिका ऑर्गनाइज़र ने वीडियो ट्वीट करते हुए इसे बांग्लादेश की घटना बताया और लिखा कि इस्लामिक कट्टरवादियों ने कालीबाड़ी (काली मंदिर) पर हमला कर हिन्दू देवी काली और अन्य हिंदू देवताओं की मूर्ति को खंडित कर दिया और वहां मौजूद हिन्दू श्रद्धालुओं की हत्या कर दी. (आर्काइव लिंक)
अक्सर गलत जानकारी सांप्रदायिक एंगल देकर शेयर करने वाले जितेंद्र प्रताप सिंह ने वीडियो ट्वीट करते हुए दावा किया कि ये बांग्लादेश की घटना है जहां मुसलमानों ने मंदिर पर हमला कर हिन्दू देवी देवताओं की मूर्ति को तोड़ दिया और अंदर मौजूद भक्तों को मार दिया गया. इसी के साथ जितेंद्र ने ये भी दावा किया कि इस हमले में 20 से ज़्यादा हिन्दू घायल हो गए. (आर्काइव लिंक)
Yesterday in Bangladesh, Muslims attacked Kalibari i.e. Kali temple and destroyed the idols of Mother Kali and all the Hindu gods and goddesses.
And the Hindu devotees present inside the temple were beaten.
More than 20 Hindu devotees are badly injured But the whole world is… pic.twitter.com/fsDlDl7ae6
— 🇮🇳Jitendra pratap singh🇮🇳 (@jpsin1) December 2, 2024
रशिया के सरकार की स्वामित्व वाली मीडिया RT इंडिया ने वीडियो शेयर करते हुए इसे बांग्लादेश का बताया और दावा किया कि वहाँ हिन्दू मंदिर पर हमला किया गया. (आर्काइव लिंक)
ऐसे ही कई यूज़र्स ने वायरल वीडियो इसी दावे के साथ ट्वीट किया जिसमें अक्सर ग़लत जानकारी फैलाने वाले अजय चौहान, फ़ेक न्यूज़ वेबसाइट BLiTZ के एडिटर और बांग्लादेशी पत्रकार सलाह उद्दीन शोएब चौधरी, भाजपा समर्थक अक्षित सिंह, फ़ेक न्यूज़ वेबसाइट क्रियेटली, सुदर्शन न्यूज़, इत्यादि शामिल हैं.
फ़ैक्ट-चेक
मामले से जुड़े की-वर्ड्स सर्च करने पर ऑल्ट न्यूज़ को बांग्लादेशी फ़ैक्ट-चेकर सोहनूर रहमान का एक ट्वीट मिला जिसमें उन्होंने एक यूज़र को रिप्लाई देते हुए लिखा था कि ये वीडियो बांग्लादेश का नहीं बल्कि भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के सुल्तानपुर का है. इसके साथ ही उन्होंने एक पोस्ट का स्क्रीनशॉट भी शेयर किया था. इस पोस्ट में जगन्नाथ मंडल नाम के यूज़र ने काली माता निरंजन 2024 को लेकर एक पोस्ट किया था. और जगह सुल्तानपुर, खानदागोश, पूर्वी वर्धमान लिखी है. इसके आयोजकों में सुल्तानपुर किरणामई लाइब्रेरी और सुल्तानपुर ग्रामवासी लिखा है.
This video is not from Bangladesh, nor does it show people attacking the Kali Pratima. It is from Sultanpur, Khandaghosh, East Burdhaman, India.
The event depicted is a religious ceremony called Kali Mata Niranjan. Participants in the video can be seen chanting slogans like “Jai… pic.twitter.com/ivScUOoFa2
— Shohanur Rahman (@Sohan_RSB) December 2, 2024
हमने फ़ेसबुक पर किरणामई लाइब्रेरी के बारे में सर्च किया तो एक पेज मिला. इसपर 26 नवंबर को काली माता निरंजन 2024 को लेकर एक पोस्ट किया गया था. इस पोस्ट में कई तस्वीर और वीडियोज़ मौजूद हैं. इस पोस्ट में मौजूद वीडियोज़ देखने पर हमने पाया कि ये वीडियोज़, वायरल वीडियो से बिल्कुल मेल खाता है. हालांकि, ये दोनों वीडियोज़ अलग-अलग एंगल से रिकॉर्ड किये गए हैं.
किरणामई लाइब्रेरी द्वारा किये गए पोस्ट में वीडियो भी मौजूद है जिसमें देखा जा सकता है कि श्रद्धालु मंदिर से मूर्ति के टूटे हिस्से लेकर विसर्जन के लिए गाजे-बाजे के साथ निकल रहे हैं.
” ১২ বছরের ঐতিহ্যের কালীমাতা নিরঞ্জন
মায়ের প্রতিমা নিরঞ্জন এর কিছু মুহূর্ত থেকে যাক 🙏
মা সবাই কে সুস্থ রেখো মা…
Posted by সুলতানপুর কিরনময়ী পাঠাগার on Tuesday 26 November 2024
इस पेज पर हमें 31 अक्टूबर का एक पोस्ट भी मिला जिसमें बांग्ला भाषा में एक अखबार की कटिंग है. इस न्यूज़पेपर क्लिप में भी हिन्दू देवी काली की मूर्ति की तस्वीर है, ये तस्वीर भी वायरल वीडियो से बिल्कुल मेल खाती है.
हमने फ़ेसबुक पोस्ट में मौजूद मंदिर की तस्वीर को गूगल मैप पर मौजूद तस्वीर से कंपेयर किया तो पाया कि ये पश्चिम बंगाल के वर्धमान ज़िले के सुल्तानपुर में स्थित है.
मामले से जुड़े बांग्ला की-वर्ड्स सर्च करने पर हमें दैनिक स्टेटसमेन न्यूज़ की वेबसाइट पर 21 अक्टूबर 2024 की एक खबर मिली. इसमें बताया गया है कि ये मूर्ति 12 साल में एक बार बनती है जिसके बाद उसका विसर्जन कर दिया जाता है, सुल्तानपुर पूर्वी में स्थित द्रितिष्णु गांव में हिंदू मुस्लिम सभी इस पूजा में हिस्सा लेते हैं. करीब 600 साल पहले इस गांव में ये परंपरा शुरू हुई थी जिसे गांव के लोहार समुदाय के लोगों ने इस पूजा की शुरुआत की थी, बाद में इसकी ज़िम्मेदारी गांव की मंडली को सौंप दिया गया. इस वर्ष परंपरा के अनुसार, 12 साल पूरा होने पर मूर्ति की परित्याग की बारी है. फिर से नई मूर्ति बनेगी. इतनी बड़ी मूर्ति को तालाब में नहीं ले जाया जाएगा. सबसे पहले नियमों के अनुसार, मूर्ति की एक उंगली टोडी जाएगी फिर श्राद्धालुओं द्वारा तालाब में मूर्ति को टुकड़ों में प्रवाहित किया जाएगा. परित्याग से पहले कुछ घंटों के लिए पूरे गांव में जुलूस निकाला जाएगा.
हमने इस मामले को लेकर काली माता निरंजन 2024 के आयोजक किरणामई लाइब्रेरी और मंदिर समिति के सदस्य देवाशीष मंडल से बात की. उन्होंने बताया कि ये अनुष्ठान स्थानीय रीति-रिवाजों और मंदिर से जुड़ी एक प्राचीन मान्यता से जुड़ा है. सदियों पुरानी किंवदंती के अनुसार, मंदिर की मूर्ति एक स्वप्न दर्शन/स्वप्नदेश (सपने में भक्त को भगवान से मिला आदेश) के आधार पर बनाई गई थी जिसमें हिंदू देवी काली ने एक भक्त को सपने में दर्शन देकर निर्देश दिया था कि उनकी 13 फीट की मूर्ति बनाई जाए और 12 साल बाद उसका विसर्जन किया जाए. देवाशीष ने आगे स्पष्ट किया कि विसर्जन समारोह एक अनूठी परंपरा का पालन करता है. सबसे पहले, पास के एक कमरे में देवी काली की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है. फिर पुजारी द्वारा पुरानी मूर्ति की सबसे छोटी उंगली तोड़ी जाती है. इसके बाद परंपरा के अनुसार, स्थानीय लोग मंदिर के अंदर मूर्ति को तोड़ते हैं और फिर मंदिर के पीछे तालाब में उसका विसर्जन करते हैं. गर्भगृह में सीमित स्थान होने के कारण, 13 फीट की मूर्ति को आसानी से बाहर नहीं निकाला जा सकता है. देवाशीष ने बताया कि अंगहानि (मूर्ति के अंगों को खंडित करना) भी स्वप्नादेश का ही एक हिस्सा था.
मूर्ति को खंडित कर विसर्जित करने के बाद, पास के कमरे में प्रतिष्ठित किए गए प्राण प्रतिष्ठा कलश को गर्भगृह में रखा जाता है. फिर यह प्रक्रिया हर 12 साल में दोहराई जाती है जिसमें हतकृष्णनगर के कारीगरों के एक विशेष परिवार द्वारा 13 फीट की नई मूर्ति मंदिर के अंदर ही बनाई जाती है. पीढ़ी दर पीढ़ी काली की मूर्ति की गढ़ाई इसी विशेष मूर्तिकार परिवार द्वारा की जाती रही है. यह अनुष्ठान सदियों से किया जाता रहा है, और यह केवल हिंदुओं का कार्यक्रम है. इस परंपरा को लेकर अशांति या हमले की कोई घटना नहीं हुई है.
कुल मिलाकर, कई यूजर्स ने पश्चिम बंगाल के वर्धमान ज़िले में स्थानीय परंपरा के अनुसार मूर्ति को तोड़कर परित्याग करने का वीडियो बांग्लादेश का बताकर सांप्रदायिक एंगल के साथ शेयर करते हुए झूठा दावा किया कि मुसलमानों ने हिन्दू देवी काली की मूर्ति को तोड़ दिया और मंदिर में श्रद्धालुओं की हत्या कर दी.
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