किसान आंदोलनों पर रिहाना और ग्रेटा तूनबेरी के ट्वीट के बाद इस मुद्दे ने अंतर्राष्ट्रीय ध्यान खींचा. केवल रिहाना और ग्रेटा ही नहीं दुनियाभर के कई जाने-माने लोगों और संगठनों ने किसान आन्दोलन को समर्थन देते हुए ट्वीट किये. इसके बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर दिया. यही नहीं, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किसानों का मुद्दा पहुंचना सरकार को चिंता का विषय लगने लगा और इसे देश की एकता और संप्रभुता पर खतरा बताया गया. अचानक से भारतीय फ़िल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोग और सचिन तेंदुलकर समेत कई क्रिकेटर्स ट्वीट लिख कर बताने लगे कि हम एक हैं और बाहरी लोगों को हमारी चिंता करने की ज़रूरत नहीं है. मीडिया आउटलेट्स ये दिखाने में जुट गए कि आन्दोलन को अंतर्राष्ट्रीय समर्थन मिलना एक साजिश का हिस्सा है.

इसी क्रम में अब मीडिया ने एक बड़ा दावा करते हुए कहा कि अमेरिका ने भारत के नए कृषि कानूनों का समर्थन किया है. ANI ने 4 जनवरी को एक ट्वीट में बताया, “अमेरिका ने नए कृषि कानूनों का बचाव किया है. कहा, ये कानून बाज़ार का प्रभाव बढ़ाएगा.” ANI की रिपोर्ट कैच न्यूज़, बिज़नेस स्टैंडर्ड और इकॉनोमिक टाइम्स ने भी पब्लिश की.

टाइम्स ऑफ़ इंडिया और टाइम्स नाउ ने भी PTI से ली गयी रिपोर्ट पब्लिश की जो ANI की स्टोरी से मिलती-जुलती है.

लाइव मिंट भी ये दावा करने वालों में शामिल है.

हिंदी आउटलेट्स CNN न्यूज़18 और अमर उजाला ने भी कहा कि अमेरिका ने कृषि कानूनों का बचाव किया है.

राईट विंग वेबसाइट्स स्वराज्य और ऑप-इंडिया ने भी ये स्टोरी पब्लिश की.

रिपब्लिक भारत और दैनिक जागरण ने इसे और बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया. इन आउटलेट्स के मुताबिक अमेरिका ने कहा है कि नए कृषि कानून से विश्वभर में भारतीय बाज़ार का प्रभाव बढ़ेगा.

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भाजपा पंजाब ने भी ट्वीट कर यही दावा किया.

न्यूज़ नेशन ऐंकर दीपक चौरसिया, ABP न्यूज़ के एसोसिएट एडिटर आशीष सिंह और ANI के पत्रकार नवीन कपूर ने भी अपने-अपने हैंडल्स से इस भ्रामक दावे को और लोगों तक पहुंचाया.

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वहीं NDTV ने हेडलाइन में अमेरिका द्वारा कृषि कानूनों को समर्थन देने की बात तो नहीं की. लकिन आर्टिकल में लिखा, “भारत सरकार के कृषि क्षेत्र में सुधार लाने के लिए प्राइवेट निवेश और बाज़ार तक किसानों की पहुंच बढ़ने वाले कदम को बायडन सरकार का समर्थन मिलने के संकेत देते हुए विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता…”

अधूरी रिपोर्ट्स से फैली भ्रामकता

नीचे अमरीकी विदेश मंत्रालय के बयान लिखे हैं जिन्हें ANI ने अपनी रिपोर्ट में जगह दी है:

“हम मानते हैं कि शांतिपूर्ण प्रदर्शन किसी भी सफल लोकतंत्र की निशानी है. भारत के सुप्रीम कोर्ट ने भी यही बात कही है.”

“हम किसी भी असहमति पर बातचीत के ज़रिये रास्ता खोजने का समर्थन करते हैं. सीधे शब्दों में कहें तो, अमेरिका भारतीय बज़ार का प्रभाव बढ़ाने और निजी क्षेत्रों के निवेश प्रोत्साहित करने वाले कदम का स्वागत करते हैं.”

PTI और ANI, दोनों के तीसरे स्टेटमेंट में लिखा है, “सीधे शब्दों में कहें तो अमेरिका भारतीय बाज़ार का प्रभाव बढ़ाने और निजी क्षेत्रों के निवेश प्रोत्साहित करने वाले कदम का स्वागत करता है.”

ये मुख्य तौर से केवल कृषि कानूनों के लिए नहीं कहा जा रहा है. इसके अलावा, अधिकतर मीडिया आउटलेट्स ने अन्य मुद्दों पर अमरीकी सरकार के बयान को हाईलाइट नहीं किया.

अल जज़ीरा ने अपनी रिपोर्ट में प्रवक्ता की पूरी बात लिखी है जिसमें वो कहते हैं, “हम समझते हैं कि बिना किसी रूकावट के सूचना पाना अभिव्यक्ति की आज़ादी का आधार है और एक सफल लोकतंत्र की निशानी है.” इसे दिल्ली में यूएस एम्बेसी के प्रवक्ता ने भी दोहराया.

न्यूज़ एजेंसियां ANI और PTI ने ये नहीं रिपोर्ट किया कि अमरीकी सरकार का भारत में इन्टरनेट बंद किये जाने पर क्या रुख था. लेकिन अपनी रिपोर्ट्स में बस ये कहा कि अमेरिका ने कृषि कानूनों का समर्थन किया है. अमरीकी प्रवक्ता ने कहा था कि वो कृषि क्षेत्र में सुधारों का समर्थन करते हैं न कि इन कानूनों की बात करते हुए उनका बचाव किया. साथ ही उन्होंने दोनों पक्षों के बीच बातचीत के ज़रिये मसला हल करने का सुझाव दिया. इसपर भारतीय विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया यहां पढ़ सकते हैं.


फ़र्ज़ी पत्रकारों की फ़र्ज़ी कहानी से लेकर किसानों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने वाले भाजपा कार्यकर्ता की असलियत तक

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Pooja Chaudhuri is a senior editor at Alt News.