सोशल मीडिया पर एक कोविड-19 के इलाज को लेकर एक मेसेज वायरल है. ऑल्ट न्यूज़ को व्हाट्सऐप (+917600011160) पर कई लोगों ने ये मेसेज वेरिफ़ाई करने की रिक्वेस्ट भेजी है.

इस वायरल मेसेज में लिखा है, “एक सुखद समाचार :-अन्ततोगत्वा पॉन्डिचेरी विश्व विद्यालय के एक भारतीय छात्र रामू ने Covid19 का घरेलू उपचार खोज लिया जिसे WHO ने पहली बार में ही स्वीकृति प्रदान कर दी. उसने सिद्ध कर दिया कि एक चम्मच भरकर काली मिर्च का चूर्ण, दो चम्मच शहद, थोड़ा सा अदरख का रस. लगातार 5 दिनों तक लिया जाय तो कोरोना के प्रभाव को 100%तक समाप्त किया जा सकता है. सम्पूर्ण जगत इस उपचार को लेना आरम्भ कर रहा है. अन्ततः 2021 में एक सुखद अनुभव. इसे अपने सभी समूहों में प्रेषित अवश्य करें. धन्यवाद:- डॉ सत्यपाल सिंह, सांसद लोकसभा.” ये मेसेज गुजराती में भी वायरल है.

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25 नवम्बर 2020 को अभिनेता और कांग्रेस नेता शत्रुघ्न सिन्हा ने भी ये मेसेज ट्वीट किया था.

पिछले साल से ही फ़र्ज़ी मेसेज वायरल

ये पहली बार नहीं है जब कोरोना वायरस संक्रमण का इलाज घरेलू उपचार बताया जा रहा और औषधियों के प्रयोग की सलाह दी जा रही हो. सिर्फ़ आम जनता ही नहीं, इस भ्रामकता को खुद आयुष मंत्रालय ने प्रमोट किया था. पिछले साल आयुष मंत्रालय ने लोगों को क्वाथ अथवा काढ़ा पीने की सलाह देते हुए दावा किया था कि औषधियों का ये मिश्रण कोरोना से लड़ने और बचाव करने के लिए ‘इम्युनिटी बूस्ट’ करता है. लेकिन ऑल्ट न्यूज़ ने अपने आर्टिकल में समझाया है कि ‘इम्युनिटी बूस्टर’ जैसा कुछ होता ही नहीं जिसके सेवन से कुछ ही दिनों में कोविड-19 से लड़ने की क्षमता आ जाये. यही नहीं, ‘इम्युनिटी बूस्टर’ कोई मेडिकल से जुड़ा शब्द नहीं है.

ऑल्ट न्यूज़ ने पहले भी अपनी साइंस रिपोर्ट में बताया है कि अदरक और काली मिर्च के इस्तेमाल से कोरोना से बचाव होने का कोई परिणाम नहीं है. इसके बावजूद आयुष मंत्रालय ने क्वाथ (काढ़ा) को कोरोना से सुरक्षा प्रदान करने वाला इम्युनिटी ‘बूस्टर’ बताते हुए प्रमोट किया था. इस काढ़े में काली मिर्च और अदरक के अलावा तुलसी और दालचीनी शामिल हैं. ऑल्ट न्यूज़ ने अपने विश्लेषण में पाया था कि इस दावे का कोई आधार नहीं है और न ही ये शरीर में कोई इम्युनिटी ‘बूस्ट’ करता है.

काली मिर्च

काली मिर्च का मुख्य भाग पिपेरिन, खून में रीफै़पिसिन, सल्फ़ाडायजीन, टेट्रासाइलक्लाइन और फ़ेनीटोइन के रक्त स्तर को बढ़ा देता है. मरीज़ जो ये दवा ले रहे हैं उनमें साइड इफे़क्ट्स और बुरे हो सकते है. (Velpandian, T. et al. 2001). यह गैस्ट्रिक एसिड के स्त्राव, पोटैशियम के उत्सर्जन और गैस्ट्रिक कोशिका के हटने या मुक्त होने की प्रक्रिया को भी तेज़ कर देता है. (Srinivasan, K. 2007)

किसी भी इंफे़क्शन या इम्यूनोमोड्यूलेटरी इफेक्ट के लिए काली मिर्च के प्रभाव पर कोई भी शोध नहीं किया गया है. डब्ल्यूएचओ ने भी काली मिर्च से कोविड-19 के इलाज की बात खारिज की थी (इंफोग्राफिक देखें).

अदरक

सोंठ (सूखा अदरक) और अदरक से वायरल इनफेक्शन पर प्रभाव बताने वाला कोई भी चिकित्सीय शोध अभी तक नहीं मिला है.

स्टीफे़नो, D. et al.(2019) के एक शोध में 10 स्वस्थ लोगों को सॉफ्टजेल कैप्सूल में एखिनेसिया अंगस्टीफोलिया और ज़िंगीबर ऑफिशिनेल (अदरक) का मिश्रण देने के बाद उन पर इम्यूनोमोड्यूलेटरी प्रभाव दिखाई दिया था. उन्होंने सफेद रक्त कोशिकाओं (शरीर में इम्यून के लिए काम करने वाले कोशिका) के ज़ीन के एक्सप्रेशन को नापा और उन्होंने पाया कि उन कैप्सूल्स को खाने के बाद इन ल्यूकोसाइट्स में 500 ज़ीन के एक्सप्रेशन (वह प्रक्रिया जिससे जींस प्रोटीन बनाते हैं) बढ़े थे. इन सब के नतीजे के रूप में ल्यूकोसाइट की प्रक्रिया इन्फ़्लमेशन को दबाने में हो रही थी जो इम्यून सिस्टम की प्रतिक्रिया है. यानी कि दावों के उलट जिसमें बूस्टिंग की बात कही गई थी, शोध के बाद पता चला कि इस मिश्रण का इम्यूनोमोड्यूलेशन इम्यून को दबाने के लिए दिया जाने वाला स्टेरॉइड ड्रग हाइड्रोकॉर्टिसोन की तरह काम करता है.

यानी ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जो बता सके कि इनमें से कोई भी दवाई (बेशक अकेले ही क्यों ना ली जाए) कोविड-19 के पेशेंट को किसी भी रूप में मदद कर पाएगी. इसके साथ ही इन औषधियों और इनके अंशो के डोसेज और इम्यूनिटी माड्यूलेशन के ऊपर कोई भी ऐसा शोध नहीं है.

शहद

शहद का भी प्रीक्लिनिकल अध्ययन का कोई सबूत नहीं है. अदरक, काली मिर्च या शहद में SARS-COV2 विशिष्ट एंटीवायरल गतिविधि होने का कोई सबूत नहीं है. सिर्फ इतना है कि ये गले में खराश से संबंधित लक्षणों को दूर कर सकते हैं.

पॉन्डिचेरी विश्वविद्यालय के छात्र का रिसर्च?

इसके अलावा, हमने जैसे ही गूगल पर ‘अन्ततोगत्वा पॉन्डिचेरी विश्व विद्यालय’ सर्च किया, पिछले साल की कई फ़ैक्ट-चेक रिपोर्ट्स सामने मिलीं. बीबीसी की 10 सितम्बर, 2020 की रिपोर्ट में भी इस वायरल दावे का फ़ैक्ट-चेक करते हुए बताया गया है कि पुडुचेरी विश्वविद्यालय ने ऐसे किसी भी शोध होने की बात ख़ारिज की है.


पतंजलि ने कहा कि WHO ने कोरोनिल को दे दी मंज़ूरी, मीडिया ने बगैर जांचे ख़बर चलाई

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