JNU छात्र उमर खालिद पर 13 अगस्त की दोपहर में संसद भवन, दिल्ली के पास कंस्टीटूशन क्लब के बाहर कथित रूप से हमला किया गया था। शुरुआती रिपोर्टों में कहा गया है कि एक अज्ञात हमलावर ने खालिद को निशाना बनाने की कोशिश की पर उमर खुद को बचा पाने में कामयाब रहे। शुरुआती जांच अभी चल रही है। हालांकि, ओप इंडिया, मायनेशन और पोस्टकार्ड न्यूज ने बड़ी शीघ्रता से अपना फैसला सुना दिया कि खालिद “गोलीबारी के दौरान मौके पर मौजूद नहीं थे।”
उनकी रिपोर्ट एबीपी न्यूज़ पत्रकार विकास भदौरिया को दिए “प्रत्यक्षदर्शी” संतोष कुमार के बयान पर आधारित थी। घटनाओं के अपने संस्करण का वर्णन करते हुए कुमार ने दावा किया कि “उमर खालिद फायरिंग के दौरान उपस्थित नहीं थे और बाद में कंस्टीटूशन क्लब के अंदर से बाहर आए थे।” कुमार दैनिक भास्कर में पत्रकार हैं। कुमार द्वारा एबीपी न्यूज़ पत्रकार विकास भदौरिया को दी गई गवाही सोशल मीडिया पर व्यापक से शेयर हो रही है।
Alt News ने उमर खालिद से इस घटना पर उनके संस्करण का पता लगाने के लिए संपर्क किया। उन्होंने कहा, “यह घटना कंस्टीटूशन क्लब के बाहर एक चाय की दुकान के बगल में हुई थी। जब हमने निकलना शुरू किया, तभी एक लड़का पीछे से आया और मेरी गर्दन पकड़कर मुझे झुकने को मजबूर कर दिया। मैं मिट्टी में गिर गया। उसने एक पिस्तौल निकाला और मुझ पर निशाना बनाना शुरू कर दिया। मेरी स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी की वो मेरी तरफ निशाना न बना पाए और उसका हाथ दूर रखा जाये। मेरे दोस्तों ने भी विरोध करना शुरू कर दिया और उसे एक तरफ धक्का दिया। फिर वह उस जगह से भाग गया।” (अनुवाद)
पहले संतोष कुमार ने एक वीडियो में दावा किया कि खालिद फायरिंग के दौरान मौजूद नहीं था, बाद में उन्होंने घटनाओं के अपने संस्करण को बदलने के लिए एक और ट्वीट किया और अपना बयान बदल दिया। उन्होंने ट्वीट किया, “मुझे नहीं पता कि वह आदमी जो गिर गया था उमर था या नहीं।”
लड़कों के झगड़े में मैं नहीं देख पाया कि वो लड़का जिस पर बंदूक़ तानी गइ वो कौन था. क्योंकि वो लड़का नीचे कीचड़ में गिरने के बाद क्लब की ओर तेजी से गया था. बाद में बंदूक़ वाला लडका बीच सड़क पर हवाई फ़ायरिंग करता हुआ भाग गया.जो लड़का नीचे गिरा था वो उमर था या नहीं, मुझे मालूम नहीं. https://t.co/MZd6ZgBV7J
— Santosh Kumar (@santoshji) August 13, 2018
कुमार के इस स्पष्टीकरण को ओप इंडिया, मायनेशन और पोस्टकार्ड न्यूज ने अपनी सुविधा अनुसार उनके बाद वाले इस स्पष्टीकरण को छोड़ दिया व उसको समय पर रिपोर्ट नहीं किया।
ओप इंडिया ने अपने लेख का शीर्षक लिखा – “उदारवादी लोग अर्नब गोस्वामी को दोष दे रहे है, प्रत्यक्षदर्शी का दावा है कि उमर खालिद कथित फायरिंग की जगह पर मौजूद भी नहीं थे।” (अनुवाद)
ओप इंडिया ने दो बार अपने लेख को ट्वीट किया – पहली बार शाम 3:44 बजे (कुमार की गवाही एबीपी न्यूज़ पत्रकार विकास भदौरिया ने कुछ मिनट पहले, शाम 3:34 बजे ट्वीट की थी); और दूसरी बार शाम 4:28 बजे। कुमार ने भी शाम 4:28 बजे अपने बदले हुए बयान को ट्वीट किया था। इससे यह समझ में आता है कि ओप इंडिया चाहता तो दूसरा ट्वीट करने से बच सकते थे या बदले हुए बयान के साथ ट्वीट कर सकते थे। जबकि कुमार के बदले गए बयान को जोड़ने के लिए उन्हें लगभग चार घंटे लग गए, वो भी बिना लेख के शीर्षक में बदलाव किये बिना।
मायनेशन और पोस्टकार्ड न्यूज़ भी ओप इंडिया के नक़्शे कदम पर चलते हुए दिखे
ओप इंडिया की चुनिंदा रिपोर्टिंग के तुरंत बाद, माइनेशन ने एक लेख प्रकाशित किया – “उमर खालिद उस जगह थे ही नहीं जहाँ गोली चली : प्रत्यक्षदर्शी ने दावे को झूठा बताया।” उनका लेख 5:30 बजे प्रकाशित हुआ। कुमार की स्पष्टीकरण के एक घंटे बाद, फिर भी माइनेशन ने बड़ी सफाई से इसे अनदेखा कर दिया।
मायनेशन के संपादक अभिजीत मजूमदार ने कुमार के संशोधित बयान के बिना इस लेख को भी ट्वीट कर दिया।
‘Umar Khalid was not even at the spot when shot was fired’ ~ Eyewitness.
Watch this: https://t.co/F5b85LAbpe #ConstitutionClub #UmarKhalid— Abhijit Majumder (@abhijitmajumder) August 13, 2018
पोस्टकार्ड न्यूज़ भी पीछे नहीं था, उन्होंने वरिष्ठ पत्रकार बरखा दत्त पर हमला करते हुए एक लेख प्रकाशित किया और उन्होंने भी कुमार के बदले हुए बयान को प्रकाशित नहीं किया।
Barkha Dutt says there was an attempt to kill Umar Khalid! But the inside story proves she lied blatantly https://t.co/BSB1pFxjGr
— Post Card (@postcard_news) August 13, 2018
दिल्ली पुलिस ने अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ शस्त्र अधिनियम की धारा 307 के तहत मामला दर्ज किया है। पुलिस ने बताया कि उनके पास सुराग है और अपराधियों को जल्द ही गिरफ्तार कर लिया जाएगा।
Delhi Umar Khalid firing incident: Police register case against unknown persons under section 307 and under the Arms Act. Police says it has clues and the culprit will be arrested soon pic.twitter.com/o3s2TgN8O6
— ANI (@ANI) August 13, 2018
कुछ घंटों के अंदर, एक पत्रकार ने सोशल मीडिया पर एक दूसरे पत्रकार के असत्यापित साक्ष्य पोस्ट किये। बाद में उसी पत्रकार ने ही एक घंटे बाद अपना बयान बदला, फिर भी उसके संदिग्ध दावे को कई पत्रकारों ने उठाया और खुद फैसला कर यह तय कर लिया कि खालिद पर हमला हुआ ही नहीं था। उनमें से ये लोग प्रमुख रहे, एएफपी के भुवन बग्गा, स्वराज पत्रिका की स्वाती गोयल शर्मा और आदित्य चौधरी थे। विडंबना यह है कि इनके अधिकांश ट्वीट् कुमार के बयान से पलट जाने के बाद आये जिसे इन सभी लोगों ने नजर अंदाज कर दिया ।
संतोष कुमार के “साक्ष्य वीडियो” को लगभग 25,000 लोगो ने ट्विटर पर देखा व् लगभग 3,000 से ज्यादा लोगो ने शेयर किया। इसके विपरीत, उनके “स्पष्टीकरण” में केवल 184 रीट्वीट ही हुए। चूंकि हमले की रिपोर्ट शुरू हो चुकी थी, इसलिए सोशल मीडिया खालिद के दावों को बदनाम करने के प्रयासों के साथ ट्वीट कर रहा था। ओप इंडिया, मायनेशन और पोस्टकार्ड न्यूज द्वारा गलत रिपोटिंग की वजह से सोशल मीडिया पर चल रही अफवाहों को हवा दे दी गई।
अनुवाद: चन्द्र भूषण झा के सौजन्य से
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